मिटाकर छोटे बड़े की हस्ती / चला रंग, गुलाल की कश्ती
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मुंगेर के मूल निवासी और देश के दिग्गज कवित्रय होली में (बाएं से सर्वश्री विजय गुप्त, अनिरुद्ध सिन्हा, शहंशाह आलम) |
हर किसी के ख्यालों में होता है कोई एक चेहरा और वही चेहरा बनाता है इस बरंगे से जीवन को एक रंगीन कलाकृति. शहंशाह आलम जैसे सुप्रसिद्ध और कुशल शब्द-चित्रकार के आगे उनकी कला की प्रेरणा विराजमान है लेकिन उनके पास भौतिक संसाधन ही नहीं उसकी अद्भुत छवि को कैनवास पर उतारने का. उनके अपने घर का रंग है उनके पास लेकिन बड़ा ही फीका और बदरंग. वे कहते हैं -
उसका चेहरा है
मेरे सामने
और मेरे हाथ में
रंगरेज के घर का रंग.
सवाल है कि ये चेहरा हमारे जेहन में तो रंग भर देता है लेकिन जब हम नून-तेल-लकड़ी के फेर में पड़ते हैं तो पता चलता है कि होली को कैलेण्डर के एक दिन से सचमुच होली के त्यौहार में बदलने के पीछे कितनी जद्दोजहद, संघर्ष और विपर्यय छुपा है आज के जमाने में. मशहूर गीतकार डॉ. विजय प्रकाश कहते हैं -
गर्म कहकहों का बाजार, सम्पादक जी, होली में;
नाच उठा है अपना प्यार, सम्पादक जी, होली में.
राधा ने सपना देखा, विहँस बढ़ा कान्हा आगे;
नींद खुली भरते अंकवार, सम्पादक जी, होली में.
रंगों का त्यौहार, अहा! हाँ, गुलाल में जादू है;
विनत तनी भौं की तलवार, सम्पादक जी, होली में.
अलगू-जुम्मन ने सबके साथ लिया है शपथ नया;
बंद आपसी सब तकरार, सम्पादक जी, होली में.
हाँ, हम उत्साहित लेकिन कमर तोडती जाती है
भारी महंगाई की मार, सम्पादक जी, होली में.
सिर्फ चोंचलेबाजी है, पंचायत से संसद तक,
चाहे जिस दल की सरकार, सम्पादक जी, होली में.
अच्छी खबरों के बरअक्स अपराध-कथाओं से बिलकुल
भरे पड़े सारे अख़बार, सम्पादक जी, होली में.
यह सब तो है ही लेकिन होली है जी होली है;
अत: करेंगे हम मनुहार, सम्पादक जी होली में.
वे मस्ती में झूमें तो हम भी प्यार में पागल हैं;
देखो! देखो! नजर पसार, सम्पादक जी होली में.
आज 'विजय' कितने खुश हैं तीन रंग के कुर्ते में;
'जन-गण-मन' की जयजयकार, सम्पादक जी होली में.
जहाँ एक और विजय प्रकाश जी तीन रंगों वाला कुर्ता पहनकर समझ रहे हैं कि उन्होंने देश में होली की उमंग फैला दी वहीँ गलियों में अजब माहौल है. जिसको देखो गाली-गलौज, कपड़ा फाड़ने, गंदे नाले में डुबोने और मारपीट करने में लगा है. वाह रे होली. ऐसे भटके हुए लोगों को समझाते हुए एक अत्यंत सजग और तत्सम शब्दों को शायरी में प्रवेश कराने हेतु प्रसिद्ध कवि घनश्याम बड़े शांत भाव से कहते हैं -
सबसे पहले मन का मालिन्य मिटाएं
फिर से इक दूजे को हम गले लगाएं
ईर्ष्या, विभेद तजकर हमसब आपस में
सद्भाव, प्रेम के रंग-गुलाल लगाएं
भाई-भाई में हरगिज़ फर्क़ नहीं हो
होली में कोई तर्क-वितर्क नहीं हो
वैसे भी दार्शनिक सोच वाला आदमी कभी व्यर्थ की तकरार में नहीं पड़ता.. कलकत्ते में रहनेवाले अंग्रेजी के लोकप्रिय कवि भास्कर झा कहते हैं -
यह दु:ख और शोक, विलासिता और ठाठ-बाट
आनंद में रंग कर सभी एक हैं
मानवता और शांति के ब्रह्माण्डीय हंडे में.
(अंग्रेजी से अनुवादित)
आनंद में रंग कर सभी एक हैं
मानवता और शांति के ब्रह्माण्डीय हंडे में.
(अंग्रेजी से अनुवादित)
तो, भास्कर जी जहां सब को एक ही रंग में रंगने में लगे हैं वहीं राजकुमार भारती इस बह रही फाल्गुनी बयार को प्यार का नाम दे रहे हैं-
ये फागुनी बयार तो ॠतु प्यार ही का है
ये मदमाता जीवन और व्याकुल सा होता मन
रूह शांत हो जाती है जब पाती है तेरा दामन
वो सावन की बारिश और तपिश जेठ माह की
बलखाते हैं लगते इठलाते हैं आते ही माह फागुन
प्रकृति में सब कुछ तेरे श्रृगार ही का है
ये फागुनी बयार तो ॠतु प्यार ही का है।
ढेर नई उमंगें और जोश है सागरों सा
फनफनाता और उफनता यह यौवन लहरों सा
तेरा किनारा पाकर के हम शांत हो जाते
वरना जीवन की धूप में बौराते पहरों सा
इश्क में जो कुछ मिले सब यार ही का है
ये फागुनी बयार तो ॠतु प्यार ही का है।
जहां भारती जी प्यार के ऋतु को लाने की बात कर रहे हैं वहीं एक शरारती खिलाड़ी भी हैं होली के संतोष कुमार चौबे. ये छत पर जाकर अपनी प्रेयसी का कुशल क्षेम जान रहे हैं पूरा का पूरा-
छत पर पहुँच उसके,
कुशल क्षेम पूछ आया हूँ,
मत पूछो कहाँ कहाँ
होली के रंग लगाया हूँ,
रंग गुलाल पानी के बोतल,
गालों बालों पर उड़ेल आया हूँ,
होली तब तक अधूरी है जब तक यह महलों से निकल कर टेढ़ी मेढ़ी गलियों से होते हुए झोपड़ियों तक नहीं पहुँच जाए. सामजिक आर्थिक स्तर के सबसे निचले पायदान वाले लोगों के लिए भी अपनी पूरी संवेदना रखनेवाली सुपरिचित कवयित्री लता प्रासर उन्हीं की बात कर रहीं हैं-
फागुन दे गया रंगों की मस्ती
रंग बिरंगी दुनिया को मदमस्त बनाया
मिटाकर छोटे बड़े की हस्ती
चला रंग, गुलाल की कश्ती
हृदय के फूल हुए गुलजार
आज रंगमय हो रही गंदी बस्ती
होली सब त्योहारों से है सस्ती!
लेकिन जनाब होली है तो चाहे कितना भी शालीन और संभ्रांत बनने की कोशिश कर लीजिए आपको हुड़दंग का हिस्सा बनाना ही पड़ेगा और इस कला में सबसे माहिर कवि सिद्धेश्वर कहते हैं -
ढाई आखर प्रेम का
और होली हुड़दंग
साली, भाभी या घरवाली
जीत ही लोगे जंग.
आप सबको बेजोड़ इंडिया ब्लॉग के संचालक समूह की ओर से होली का ढेर सारा प्यार और त्यौहार की बधाई!
.....
कविगण / कवयित्रियाँ - शहंशाह आलम, डॉ. विजय प्रकाश, घनश्याम, भास्कर झा, राजकुमार भारती, संतोष कुमार चौबे, लता प्रासर एवं सिद्धेश्वर.
संयोजन एवं प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
(बाएं से दूसरे) कवि श्री घनश्याम / बाएं से पहले हैं शायर श्री समीर परिमल |
कवि डॉ. विजय प्रकाश अपनी पत्नी के साथ |
(बाएं से प्रथम) कोलकाता के अंग्रेजी कवि भास्कर झा |
(बाएं से पहले) कवि श्री राजकुमार भारती अपने मित्र के साथ |
(बाएं से पहली महिला महामहिम राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा का अभिवादन करतीं दायें से पहली कवयित्री श्रीमती लता प्रासर) |
नवी मुंबई की कवयित्री श्रीमती वंदना श्रीवास्तव |
कवि श्री सिद्धेश्वर |
कवि श्री संतोष कुमार चौबे अपनी पत्नी के साथ |
नवी मुंबई के कवि श्री अशवनी उम्मीद |
कलकत्ता के साहित्यकार श्री सुशांत कुमार अपनी पत्नी के साथ |
नई दिल्ली की चित्रकार दम्पति श्री रवीन्द्र दास और श्रीमती संजू दास अपनी बच्चियों के साथ |
नवी मुंबई के लघुकथाकार श्री सेवा सदन प्रसाद (चश्मा पहने) अपने परिवार के साथ |
अनेक कवियों की रचनाओं और उनके चित्रों का समन्वय करते हुए सुसंगत आलेख सहित होली की प्रासंगिकता को उत्तम ढंग से प्रस्तुत करने हेतु बेजोड़ इंडिया ब्लॉग स्पाट और हेमन्त दास हिम जी को बहुत बहुत धन्यवाद.
ReplyDeleteधन्यवाद् आदरणीय.
Deleteसर, आपकी लेखनी एक उत्कृष्टता लिए हुए रहती हैं और इसमे आपने एक मुकाम हासिल किया है, ब्लॉग में मेरी पंक्तियों को शामील कर आपने मुझे भी सम्मान दिया। धन्यवाद सर इसके लिए और आपको सपरिवार हमारे तरफ से होली की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद संतोष जी!
Deleteलाजवाब काम हुआ है भाई💐💐हार्दिक बधाई💐💐
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका.
Deleteउम्दा!
ReplyDeleteधन्यवाद सुशांत जी. कोलकाता से सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिपोर्ट भेजिए. हमें देश के हर कोने से सांस्कृतिक रिपोर्ट चाहिए.
Deleteवाह एक उम्दा व सार्थक प्रयोग।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका.
Deleteबहुत-बहुत आभार.
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद.
Deleteबहुत-बहुत आभार.
ReplyDeleteआपकी "सम्पादक जी"वाली कविता एक उत्कृष्ट कविता है.
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