प्रथम सदी की उज्जयिनी और वर्तमान भारतीय समाज में ज्यादा अंतर नहीं
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आरा की नाट्य इकाई "भूमिका "द्वारा शूद्रककृत नाटक "मृच्छकटिकम् "का हिंदी रुपांतरण का मंचन आरा नागरीप्रचारिणी सभागार में हुआ। मृच्छकटिकम् ने देश विदेश के रंगनिर्देशकों, नाटककारों और रंगकर्मियों का ध्यान वर्षों से आकृष्ट किया है। यही कारण है कि अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी, फ्रांस और चीन में इसका मंचन हुआ है। भारतीय भाषाओं में इसके अनुवाद हुए हैं और हजारों बार इसका मंचन हुआ है।सन्1905 में हार्वर्ड युनिवर्सिटी सीरीज के अंतर्गत इसका अँग्रेजी में अनुवाद आर्थर विलियम रायडर ने "दी लिटिल क्ले कार्ट बाई शूद्रक"के रूप में किया था। आज देश में जिस तरह अराजकता, शराबखोरी, लंपटता, द्यूतकर्म, चौरकर्म, धूर्तता, स्त्रियों का बलात्कार, न्यायालयों का पतन जिस तरह बढ़ा है उसके रूप तो तत्कालीन उज्जयिनी के राज में भी मिलते हैं।आज सांसद-विधायक और सत्ता के करीबी लोग बलात्कार भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जा रहे हैं वैसी स्थिति तो प्रथम सदी के आसपास के समृद्ध राज उज्जयिनी में थी। इसलिए मृच्छकटिक की मंचीय प्रस्तुति सार्थक लगती है।
मृच्छकटिक की संक्षिप्त कथावस्तु
"मृच्छकटिक "की कथा पहली सदी की है।उस समय समाज में बौद्ध धर्म का प्रभाव था।उज्जयिनी समृद्ध राज था।समाज चार वर्णों में विभाजित था। सामंत और दास प्रथा का बोलबाला था। उज्जयिनी का राजा क्षत्रिय था।नया व्यापारी वर्ग उदित हो रहा था। ब्राह्मण व्यापार में सक्रिय हो रहे थे। उनका समाज और राजसत्ता पर प्रभाव था। समाज में वारवनिकाएँ थीं। द्यूतकर्म फलफूल रहा था। सामंतों के वारवनिकाओं के साथ विवाहेत्तर संबंध थे। सामंत ,व्यापारी और वारवनिकाएँ दास दासियाँ रखती थीं।धन देकर इन दासों को मुक्त कराया जा सकता था।कथावस्तु में मानवीय करूणा, उदारता और उच्चकोटि के प्रेम प्रसंग के दृश्य हैं।विश्वसनीय मैत्री है।लंपटता और सामाजिक अराजकता के कारण राजा के खिलाफ विद्रोह है। क्षत्रिय राजा को अपदस्थ कर ग्लाला पुत्र को राजा बनाने का प्रसंग है। न्यायाधीश को छल और धौंस से प्रभावित करने की कोशिश है।
उज्जयिनी निवासी ब्राह्मण चारूदत्त जो व्यापारी भी है, मृच्छकटिक नाटक का नायक है। वारवनिता वसंतसेना नायिका है। चारूदत्त विवाहित है और उसकी पत्नी धूता उसके प्रति पूर्णतः समर्पित और चरित्रवान स्त्री है। रोहितसेन उस दम्पती का नाबालिग पुत्र है। चारूदत्त और वसंतसेना एक दूसरे को तहेदिल से प्यार करते हैं। चारूदत्त दान पुण्य में विश्वास करनेवाला ब्राह्मण है। यह अद्भुत है कि चारुदत्त सामान्य ब्राह्मणों की तरह दान लेता नहीं देता है।उसमें दया, करुणा और मानवीय संवेदना है। दान देकर और मददगारों को मदद कर वह निर्धन हो गया है। फिर भी वसंतसेना उससे प्रेम करती है।
उज्जयिनी के राजा का साला शाकार खलनायक है। वह वसंतसेना को किसी भी कीमत पर पाना चाहता है।अपने प्रयास में असफल रहने पर वह वसंतसेना की हत्या का प्रयास करता है।
शार्विलक नामक ब्राह्मण वसंतसेना की दासी मदनिका से प्रेम करता है। वह धन देकर मदनिका दासी को मुक्त कराना चाहता है। धन के लिए वह चारुदत्त के घर में सेंधमारी करता है।
उज्जयिनी चूँकि समृद्धि का केन्द्र है, इसलिए पाटलिपुत्र ग्राम का संवाहक उज्जयिनी में बसना चाहता है और व्यापार करना चाहता है। वह द्यूतकर्म में फँस जाता है। उदार वसंतसेना अपना कंगन देकर उसे मुक्त करा देती है। लेकिन जीवन से विरक्त होकर वह बौद्ध भिक्षु बन जाता है।
ग्वाला पुत्र आर्यक के बारे में सिद्ध की भविष्यवाणी है कि वह राजा बनेगा। राजा उसे बंदी बना लेता है। वह कारागार तोड़कर भाग निकलता है और वसंतसेना की माटी की गाड़ी में छिपकर जान बचाता है। राजा के खिलाफ विद्रोह सफल होता है और ब्राह्मण, व्यापारी और गरीब लोग आर्यक को राजा घोषित करते हैं।
रंगनिर्देशक श्रीधर शर्मा की रंग परिकल्पना
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रंगनिर्देशक श्रीधर शर्मा आरा नागरीप्रचारिणी सभागार के छोटे से मंच को दो हिस्सों में बाँट देते हैं--बायीं ओर ब्राह्मण व्यापारी चारुदत्त के घर का दृश्य पर्दे पर अंकित है। उसका घर चित्रों और कलाकृतियों से सजा है जो उसकी समृद्धि का प्रतीक है। दायीं ओर वारांगना वसंतसेना का आलीशान घर है जो पर्दे पर चित्रों द्वारा उकेरा गया है। रंगनिर्देशक ने कुल बाईस रंगकर्मियों के सफल मंचन द्वारा नाटक को दर्शकों के सामने निर्देशित किया है। मंच सज्जा में चित्रकार रौशन राय की महत्वपूर्ण भूमिका है। उसी प्रकार कलाकारों के रूप सज्जा में कवि चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर ने दायित्व निभाया। निम्नलिखित कलाकारों ने उनके नाम के आगे दर्ज पात्र की भूमिका निभाई---(1)चारुदत्त--लोकेश दिवाकर, (2)मैत्रेय--रंजन यादव, (3)शार्विलक--सुधीर सुमन,(4)आर्यक/न्यायाधीश--सुभाषचंद्र बसु, (5)संवाहक/बौद्ध भिक्षु--आजाद भारती, (6)शालार(राजा का साला)--श्रीधर शर्मा, (7)वसंतसेना---पूजा, (8)मदनिका(दासी)--प्रीति, (9)रदनिका--अनुप्रिया, (10)वसंतसेना की माँ--प्रिया सिंह, (11)धूता(चारुदत्त की पत्नी)--उत्तम, (12)चेटी--प्रिया सिंह, (13)माथुर या चंडाल--संतोष सिंह,(14)द्यूताध्यक्ष--ओमप्रकाश पाठक, (15)चंदनक--दीपक सिंह गुड्डू, ((16)बर्दमानक--संतोष द्वितीय,(17)शोधनक--रविशंकर सिंह, (18)श्रेष्ठी--दीक्षांत, (19)चेट--नकुल, (20)रोहितसेन (चारुदत्त का बेटा)--मास्टर आदित्य, (21)विट--वेद प्रकाश,
पूरे नाटक की प्रस्तुति शानदार रही। शार्विलक के रूप में सुधीर सुमन चारुदत्त के घर में सेंधमारी के बाद आत्मालाप द्वारा एक ब्राह्मण चोर के दिल में उठते भावों की प्रभावशाली अभिव्यंजना की है। विदूषक और मैत्रेय के रूप में रंजन यादव, वसंतसेना के रूप में पूजा, आर्यक /न्यायाधीश के रूप में सुभाषचंद्र बसु, शालार के रूप में निर्देशक श्रीधर शर्मा का अभिनय प्रभावशाली रहा। संवाहक/बौद्ध भिक्षु के रूप में आजाद भारती ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया।द्यूताध्यक्ष के रूप में ओम प्रकाश पाठक, मदनिका के रूप में प्रीति, माथुर चांडाल के रूप में संतोष सिंह, शोधनक के रूप में रविशंकर सिंह की भूमिकाएं उल्लेखनीय रहीं।
दर्शक दीर्घा में पुराने रंगकर्मी इस्तयाक अहमद, सुनील सरीन, अशोक मानव, अंजनी शर्मा, कृष्णेंदु, साहित्यकार राम निहाल गुंजन, प्रो नीरज सिंह, जितेन्द्र कुमार, कवि सुमन कुमार सिंह, अरुण शीतांश, सिद्धार्थ वल्लभ, डॉ सिद्धनाथ सागर, आशुतोष कुमार पाण्डेय, सावन कुमार, रंजीत बहादुर माथुर, जनार्दन मिश्र आदि की गरिमामय उपस्थिति थी। गार्गी प्रकाशन का बुक स्टॉल भी पाठकों को आकर्षित करता रहा।
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