Thursday 30 January 2020

वसंतोत्सव - बेजोड़ इंडिया आभासी कवि गोष्ठी दिनांक 30.1.2020

तेरी सांसों की सरगम को / मैं एक मधुर संगीत लिखूँ

(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+  Bejod India)



प्रेम दुनिया का सबसे खतरनाक और संक्रामक रोग है. जो भी इसके सम्पर्क में  आता है उसको यह अपनी चपेट में ले लेता है और तमाम इलाज को धत्ता बताते झुए किसी न किसी रूप में ये आदमी पर जीवनपर्यंत कब्जा जमाये रहता है. यही कारण है कि समझदार लोग इससे दूर रहने की सलाह देते हैं. लेकिन सवाल है कि यदि आप प्रेम को रोग कहेंगे तब तो ज़िंदगी को महामारी कहना होगा क्योंकि जीने लायक अगर कुछ है तो प्रेम है बाकी  उसे पाने का यत्न मात्र है. चलिए इतने सुहाने मौसम में दर्शनशास्त्र में न उलझते हुए  सीधे प्रेम करते हैं.

"बेजोड़ इंडिया" भी मचल उठा है कल "बिहारी धमाका" पर काव्य की "बसंती बयार" को देखकर. और पीतवसन, धानी चूनर वाली इस ऋतुओं की रानी पर पूरी तरह से मोहित हो चुका है.

अंकलेश्वर (गुजरात) में रहनेवाले हरिनारायण सिंह हरि की कविताओं में न सिर्फ छंद का नियमबद्ध पालन होता है बल्कि निष्पक्ष भाव से अपने विचारों को बखूबी रखने के लिए भी ये जाने जाते हैं. बड़ से बड़े शक्तिशाली को भी अपनी काव्य रचना से सिहरा देनेवाले का रोम-रोम आज वासंती पवन झकोरे खा-खाकर सिहर उठा है -
*आया  वसंत , आया  वसंत!
 कुसुमित-सुरभित अब दिग्दिगंत !
*सरसों फूले ,मंजर आये ,
 पुष्पों पे भँवरे-दल छाये ।
 ये पवन झकोरे सिहर-सिहर,
 तन-मन को हरदम सहलाये।
*सूरज में कुछ गर्मी आयी ,
 हो गया शीत का अहा अंत !
 आया  वसंत , आया  वसंत!
*धरती का कण-कण मुसकाया,
 नव रूप-रंग, नव रस पाया ।
 चूनर है हरित, हरित चोली,
 रह-रह कर मन यह भरमाया ।
*नयनों में मादकता छायी,
 फिर नवल जोश में आज कंत !
 आया  वसंत , आया  वसंत !
*है कंठ-कंठ में  मधुर राग ,
 कामना सभी की उठी जाग ।
 खिल उठे सभी के हृदय-पुष्प,
 जग गये अहा अनुराग-फाग!
*हाँ ,अरमानों को पंख लगे,
 उड़ चला तुरत यह मन दुरंत!
 आया  वसंत ! आया वसंत !
                  •
शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) से कवयित्री रश्मि सक्सेना ऐसे इठलाते मौसम को देखकर सुरभित पवन सी नाच उठी हैं -
  उर आनंद भर जाये अनन्त
  मिलना मुझसे बनकर बसंत
*तन पर साजेंगे पीत बसन
  नाचूँगी ज्यों सुरभित पवन
  सर पर ओढ़े चूनर धानी
  इठलाऊँ ज्यों ऋतुओं की रानी
  झंकृत वीणा दिग- दिगंत
  मिलना मुझसे बनकर बसंत
*वेदना के झर जाएंगे जीर्ण पात
  पिघलेगी हृदय की शीत बात
  मुख पर होगी छटा निराली
  कूकूँगी कोकिल सी मतवाली
  दृग से होगा अश्रुओं का अंत
  मिलना मुझसे बनकर बसंत
*पल्लवित होंगीं मन की कलियाँ
  गुंजायमान भवरों से गालियाँ
  तनमन महके ज्यों पुष्प पराग
  हिय में उमड़ेगा मधु अनुराग
  नव आशाएँ मानो हो संत
  मिलना मुझसे बनकर बसंत

पटना (बिहार) में हिंदी के प्राध्यापक किंतु देशभर में समादृत "नई धारा" नामक 70 वर्ष पुरानी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक और समालोचक कवि डॉ. शिवनारायण ठेठ देसी अंदाज में वासंती दोहे प्रस्तुत कर रहे हैं -
खेत खेत सरसों खिली, रहर खड़ी पगुराय
धनिया माटी में रही, बूंट मटर छितराय ।
जौ गेहूं की बालियां,लहर लहर मुसकाय
रेड़ मकय की आड़ में,पहुना फागुन गाय ।
महुआ मांदर मंजरी, मदिर मदिर बौराय
अबकी सजनी चैत में, फागुन रास रचाय ।
केसर केसर मन लदा, वासंती रसभार
कली कली भ्रमर खिले,राधा कृष्णा धार ।
धानी चुनरी ओढ़ कर, महके बेर मकोय
भिनसर भिनसर गंध में, मन में कुछ कुछ होय।

नई दिल्ली में रहनेवाले युवाकवि चैतन्य उषाकिरण चंदन हारनेवाले के रूप में अपनी पहचान बनाने को आतुर है बशर्ते कि वह खेल प्रेम का हो -
मैं ग़ज़ल लिखूँ या गीत लिखूँ
तेरी खातिर अब प्रीत लिखूँ
तेरी सांसों की सरगम को
मैं एक मधुर संगीत लिखूँ
आलिंगन में आ जाओ तुम
तुझको अपना मनमीत लिखूँ
तुझसे गठबंधन की खातिर
अब नई कोई मैं रीत लिखूँ
दिल हार के अपना अब 'चंदन'
तेरे प्रेम में अपनी जीत लिखूँ.

सेन होस (अमेरिका) में प्रवास कर रहीं लेख्य मंजूषा की अध्यक्ष, मूलत: हाइकूकार और लघुकथाकार के रूप में प्रसिद्ध विभारानी श्रीवास्तव को लोगों ने जब भी देखा है बड़े ही सौम्य, गरिमामय और गम्भीर रूप में देखा है किन्तु इस वसंत ऋतु में उनका मन भी थोड़ा पगला ही गया -
  बसंत - बसंत - बसंत.... !
  का शोर मचा और मन पगलाया
  क्यों..  मन पगलाया.?
*क्योंकि
  आमों के पेड़ पर  मंजर
  देख  कोयल की पी-कहाँ ,  पी-कहाँ ,
  सुन  मन पगलाया..!
*क्योंकि
  खबर है बारात आने की
  धरती बनी दुल्हन  पीली चुनरी  ओढ़ी
  देख हल्दी का रस्म सुन शहनाई की धुन  मन पगलाया..!
*क्योंकि
 "सरस्वती पूजा" है  नजदीक                   
करनी है  तैयारी हो न जाए कोई गलती
सोच- सोच   मन पगलाया...!
*क्योंकि
"बसंत - बसंत - बसंत...!"
शोर मचा और मन पगलाया.... !

ऐसा लगता है इन दिनों देवरिया (उत्तर प्रदेश) में रहनेवाले युवाकवि वेद प्रकाश तिवारी किसी सुरीली आवाज वाली के प्रेम में हैं. इसलिए वो आजकल कोयल का महिमागान करते नहीं अघाते. देखिए उनकी 'मधुमास; शीर्षक कविता  -
कोयल के पास नहीं होता
सुरों का ज्ञान
उसके कंठ से निकलता है
एक ही राग
वो गाती है बसंत के गीत
और जगाती है उनको
जिन्हें नहीं मिला अब तक
जीवन में सुगंध
कोयल ने स्वयं को प्रकृति में पिरोकर
जान लिया है परिवर्तन का रहस्य
इसलिए बसंत के जाने के बाद भी
वो नहीं होती उदास
कोयल को रहता है पूरा विश्वास
फिर आएगा मधुमास l

नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) में रहनेवालीं अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच की अध्यक्ष डॉ. अलका पाण्डेय इन दिनों आम्र मंजरी और महुआ के गंध को पाकर एक नई उमंग से हर्षायी दिख रही हैं -
*आयो आयो रे वसन्त आयो आयो रे।
 लायो लायो रे उमंग लायो लायो रे।
 ओढ़ पिताम्बरी चूनर आयो
 वसुन्धरा को मन हर्षायो
 वन अन्चल में हर्ष समायो
 दो ऋतुआं को मिलन करायो
 नव पल्लव नव कुसुम खिलायो
 आम्र मंजरी तन इठलायो
 सरसों को रंग लायो
 महुआ की गंध लायो
 आयो आयो रे वसन्त आयो आयो रे।
*लाज भरी अलकें हैं उन्मन
 अधरों पर है प्रणय निवेदन
 सखियों संग है झूमे तन मन
फ़िज़ा में राग वसंत का नर्तन
 लता तरुवर का आलिंगन
 टूट गये सब लाज के बन्धन
 मौसमी बहार लायो
 नयनों में प्यार लायो
आयो आयो रे वसन्त आयो आयो रे।
*कलरव करते पंछी सारे
 चातक मोर पपीहा प्यारे
 तितली अपने पंख निहारे
 धरा गगन भी हैं मतवारे
 हिमगिरि के हैं धवल नज़ारे
उड़ी पतंगे छूने तारे,
 सुनहरी धूप लायो,
 एक नयो रुप लायो,
 आयो आयो रे वसन्त आयो आयो रे।।
 लायो लायो रे उमंग लायो लायो रे।।

नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) को अपना ठिकाना बनाकर रहते हुए ज्यादा से ज्यादा सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रचार-प्रसार में लगे रहनेवाले साहित्यिक पत्रकार और कवि हेमन्त दास 'हिम' को वसंत ऋतु में भी तपते दिख रहे हैं और इसलिए कह उठते हैं -
मुझे सिर्फ आपका प्यार चाहिए
तपते जमीं को ज्यों फुहार चाहिए
कायदे और बंदिशें होतीं हैं नाकाम
बस दिल से दिल का करार चाहिए
वार झेलने की आदत बुरी लगी
तीर कोई दिल के आर-पार चाहिए
घोंसला बन सके चैन और अमन का
बस थोड़े तिनके और झाड़ चाहिए
ग़मगीन होठों पर जो ले आये मुस्कान
ऐसी ही कुछ बातें दो-चार चाहिए
स्पर्शहीन, दृष्टिहीन, शब्दहीन हो पर
मन से मन का जुड़नेवाला तार चाहिए.

आपके जीवन पर हमेशा वसन्त छाया रहे. इन्ही शुभकामनाओं के साथ विद्या की देवी माता सरस्वती को नमन करते हुए इस गोष्ठी का समापन करता हूँ.
...........

संयोजन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
भाग लेनेवाले कवि/ कवयित्री -  रश्मि सक्सेना,  डॉ. शिव नारायण,  डॉ. अलका पाण्डेय,  विभारानी श्रीवास्तव,  हेमन्त दास 'हिम',  हरिनारायण सिंह हरि,  उषाकिरण चंदन,  वेद प्रकाश तिवारी
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट- यदि कोई मित्र अब भी बचे रह गए हों तो अपनी वासंती कविता और चित्र ऊपर दिये गए ईमेल पर शीघ्र भेजें.















5 comments:

  1. श्रम साध्य कार्य के लिए साधुवाद

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आपका.

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  2. बहुत बहुत आभार आपका,,,🙏🙏
    बसंती रंग से सराबोर सभी रचनाएँ,,,
    संयोजन एवं संपादक ,,,बेजोड़,,,👌👌👌

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    1. इस प्रशंसा हेतु हार्दिक आभार। आपके गीत ने इस गोष्ठी को और मूल्यवान बना दिया।

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  3. आपका विनम्र आभार सर 🙏

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