Friday 31 January 2020

वेद प्रकाश तिवारी के कविता-संग्रह "बादल से वार्तालाप" पर शहंशाह आलम की समीक्षा

जहाँ बची है उदारता
समीक्षा कविता संग्रह (बादल से वार्तालाप )

(Small News - अग्निशिखा की 33वीं गोष्ठी / हर 12 घंटों के बाद  देख लीजिए- FB+  Bejod India)

अब के भी झुलसेगी बस्ती अब के भी तरसेंगे लोग
          अब के भी सावन बरसेगा दूर  किसी  वीराने  पर।
                                            -कुमार पाशी

समीक्षक - शहंशाह आलम
          
आज की कविता उदासीनता को भगाने का सबसे बेहतरीन उपक्रम है।

वेद प्रकाश तिवारी की कविता जीवन की कविता है। तभी इनकी कविता में बच्चे की हँसी है, चाँद है, फूल है, गंगा है, यात्रा है, इंतज़ार है, रंग है, पहाड़ है, पानी है, माँ हैं, पिता हैं, रिश्ते-नाते हैं। रात है, दिन भी है। इन सबसे ही तो हमारा लोक बनता है, जिसमें हम रहते हैं। एक-दूसरे से मिलते हैं, बतियाते हैं। तभी यह कविता आदमी के वर्तमान की कविता है। यानी यह कवि ऐसा है, जो वर्तमान को जीते हुए भविष्य के लिए रास्ते बनाता हुआ चलता है। इस कवि की एक ख़ास बात यह भी है कि कवि मौसम की आवाज़ को पहचानता है। तभी कवि बादल की नाराज़गी को जानने की ख़ातिर बादल से सीधे बातचीत करता है। कवि बादल से पूछता है कि
 झमाझम बारिश की जगह 
बस थोड़ी-सी फुहार 
वह भी कभी-कभार 
कैसे जिएगा संसार? 

यह थोड़ी-सी फुहार वाली बात दिल को ज़रा ज़ोर से लगती है। वेद प्रकाश तिवारी को मालूम है कि आदमी अब थोड़े से ही काम चला रहा है। तभी यह थोड़ा वाला मामला यहाँ पर विशिष्ट हो गया है। और अधिक गहराई लिए हुए है। कवि की निष्ठा हमको यह बतलाती है, समझाती है, सीख देती है कि आदमी के घर में जो भी बचा हुआ है, थोड़ा ही बचा हुआ है। अधिक अब बस उन्हीं के पास बचा हुआ है, जो लोग हाकिमे वक़्त हैं। जो लोग सत्ता की चाकरी में लगे हुए हैं। ऐसा ही है, तभी कवि अपनी 'गदहे' शीर्षक कविता में साफ़ कहता है कि
गदहे बिना थके / बिना रुके / 
सुबह से शाम तक / ढोते हैं बोझ /
वे होते हैं स्वभाव से सरल / अपने मालिक के आज्ञाकारी / 
इसलिए सदियों से आ रहे हैं काम / 
पर, इनकी तुलना उनसे की जाती है / जो नहीं होते किसी काम के /
 जिस दिन गदहों की समझ में आ जाएगा / कि हो रहा उनका अपमान /
 वे उसी दिन छोड़ देंगे / बोझ ढोने का काम। 

आज राजनीति की भाषा इतनी अतिवादी हो गई है कि आदमी को आदमी से डर लगने लगा है। सच यही है, राजनीति का काम अब इतना भर रह गया है कि आपके और मेरे बीच एक ऐसा अदृश्य भय पैदा कर दे जिससे आप और मैं जब मिलें, घृणा को अपना मानकर मिलें। यानी कल तक आप और मैं जो अपने भाई की तरह मिला करते थे, आज शत्रु की तरह मिला करते हैं। यह सब करवा कौन रहा है, आज की फ़ासीवादी राजनीति की भाषा ही तो यह सब करवा रही है। दरअसल राजनीति की भाषा इतनी गंदी हो गई है कि हमारा सामाजिक ढाँचा ख़राब से ख़राबतर होता जा रहा है। लेकिन कविता की भाषा ऐसा कभी नहीं करती। राजनीति की आस्था जिस बिगाड़ में हो, कविता की आस्था हमेशा मनुष्यता के बचाव में रहती आई है। वेद प्रकाश तिवारी की कविता की आस्था भी मनुष्यता के बचाव की है। इनकी कविता इस बात के लिए हमको आश्वस्त करती है कि कविता का आदमी हमेशा नई संभावना के लिए जीता है जबकि फ़ासीवादी राजनीति का हर आदमी संकट, आशंका और संदेह पैदा करने के लिए जीता आया है। हर कवि हमेशा ईमानदार होता है, एक अच्छा आदमी होने के नाते। वेद प्रकाश तिवारी एक अच्छे आदमी हैं, इसीलिए एक अच्छे कवि हैं। अच्छे कवि हैं, तभी बादल से वार्तालाप कर पाते हैं। और बादल से वार्तालाप करते हुए कहते हैं :
          बिन बरसे लौट जाए बदरा 
          या बरसे झूमकर 
          बारिश को नहीं पता 
          कि उसकी बूँदों में है जीवन-राग
          आकाश से धरती तक की यात्रा में 
          नहीं होती उसकी कोई तैयारी 
          उसके आने या न आने के पीछे 
          ज़िम्मेदार है धरती का वह जीवन 
          जो कहीं स्वार्थी है तो कहीं उदार 
          जहाँ बची है उदारता 
          वहीं है बूँदों की फुहार।

कवि की यह दृढ़ता क़ाबिले-तारीफ़ इसलिए है कि कवि जानता है, सत्ता कोई हो, किसी विचारधारा की हो, जो मेहनतकश इंसान है, जो एक गधे के मनमाफ़िक़ रात-दिन खटता है, उसके हिस्से में भूख और बेकारी ही तो आती है। उसके हिस्से में नोटबंदी ही तो आती है। उसके हिस्से में महँगाई ही तो आती है। उसके हिस्से में जीएसटी ही तो आती है। यही सब है, जिससे आदमी का जी दुखता है,
 दरभंगा से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में / थी मज़दूरों की भरमार / 
वे जा रहे थे दिल्ली और पंजाब / काम की तलाश में / 
पहने हुए थे लूँगी और क़मीज़ / बाथरूम से बर्थ तक भरे पड़े थे। 

कवि की नज़र में ऐसे बेरोज़गार और मेहनती लोग किसी सज़ायाफ़्ता क़ैदी की तरह हैं। और सज़ाओं से भरी हुई ज़िंदगी कौन लोग हैं, जो मेहनतकश लोगों को देते आए हैं। इस सवाल का उत्तर हम सबको मालूम है। यह भी मालूम है कि ऐसी सज़ायाफ़्ता ज़िंदगी देकर ही तो वे लोग अपनी आरज़ूएँ पूरी करते रहे हैं, जो चुनावी साल में रोज़ मेहनतकश लोगों की अच्छी ज़िंदगी का वादा करते हैं। 

वेद प्रकाश तिवारी की कविता आसान कविता है। यहाँ शब्द आसान है, भाषा आसान है, शैली आसान है, रचनात्मकता आसान है। इनकी कविता अपने पाठकों से, अपने श्रोताओं से सीधे बतियाती है। यही इनकी कविता का असल स्वभाव है। यही वजह है, यह कविता आपको आतंकित नहीं करती, डराती नहीं, परेशान नहीं करती। वेद प्रकाश तिवारी आपको दिल की बात सुनाते हैं और सुनाते हुए आपके दिल में उतर जाते हैं।

इनकी कविता के किरदार हमारे आसपास के जो हैं। यही इनकी सार्थकता है। इनकी कविता की सार्थकता भी इसी बात में है। इनकी सार्थकता इस बात में भी है कि इनकी कविता में आँधी अंदर-अंदर चलती है और आदमी के शत्रुओं को इस आँधी की ख़बर तब लगती है, इस आँधी के असर से जब वे इधर-उधर गिरने-गिरने को होते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि वेद प्रकाश तिवारी कविता में कहीं-कहीं मिथकीय चरित्रों का सहारा लेते हैं, तब भी यह कवि एक प्रगतिशील चेतना का कवि है और आदमी के पक्ष का कवि है, 
यदि पाँच गाँव पाण्डवों को मिल जाते / 
तो क्या होता भीम की प्रतिज्ञा का? / 
कैसे बँधते द्रौपदी के खुले बाल / 
हो सकता था / कृष्ण सुनाकर शांति का उपदेश / 
कर देते भीम के प्रतिशोध की / 
अग्नि को शांत / और द्रौपदी को मना लेते / 
बताकर युद्ध का दुष्परिणाम / तो क्या दूर्योधन पाण्डवों के प्रति / 
छोड़ देता शत्रुता का भाव?

वेद प्रकाश तिवारी की कविता ऐसे में भी उम्मीद की कविता है जब आज हर तरफ़ डर का जो माहौल है, हर तरफ़ मृत्यु का जो प्रेत घूम रहा है, । उम्मीद इस वास्ते कि कवि के हृदय में अब भी करुणा का भाव बचा हुआ है। इनकी बाज़ार में 'बकरे' शीर्षक कविता का आशय यही है कि जिस तरह गोश्त के बाज़ार में बकरे की हालत होती है, वही हालत अब आदमियों की है। आदमी भी तो जानवरों के नाम पर मार डाले जा रहे हैं। मार भी आदमी ही रहा है आदमी को। और जो मरवा रहा है, वह ख़ुश है अपने इस कृत्य के लिए। लेकिन कवि दुखी है। इस दुःख में भी कवि उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता है, '
प्रेमचंद उदास बैठे हैं / पर निराश नहीं हैं /
 वे कहते हैं अपनी रचनाओं से / मैंने तुम्हें उस वक़्त पंक्तिबद्ध किया /
 जब छुआ-छूत, भेद-भाव, सामंतवाद / था चरम पर / 
पर कुछ समय बाद हुआ बदलाव / तुम भी करो इंतज़ार / 
बदलेगा समय / आएगी क्रान्ति / और बेचेगी मनुष्यता।
.............

समीक्षक - शहंशाह आलम
समीक्षक का ईमेल - shahanshahalam01@gmail.com
समीक्षक का मोबाइल - 09835417537
पुस्तक: बादल से वार्तालाप
कवि : वेद प्रकाश तिवारी
प्रकाशक : संजना बुक्स, D/70 , अंकुर इंक्लेव
करावल नगर, दिल्ली-32
संपर्क : 8860898399

कवि - वेद प्रकाश तिवारी

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