हिन्दी एक-न-एक दिन अवश्य राष्ट्रभाषा बनेगी
"हिंदी का संवैधानिक पद: कितने पास कितनी दूर" संगोष्ठी संपन्न / डॉ पुष्पिता अवस्थी की पुस्तक "मुट्ठी भर सुख" का लोकार्पण
(हर 12 घंटों के बाद एक बार जरूर देख लीजिए- FB+  Bejod India)

आजादी प्राप्त करने के 72  वर्ष बाद भी आज तक हिन्दी को संवैधानिक रूप से राष्ट्रभाषा नहीं घोषित किया जा सका है और इसे मात्र राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। दु:खद तो यह है कि राजभाषा के रूप में भी इसे अब तक व्यावहारिक रूप में पूरी तरह स्थापित नहीं किया गया है और विदेशी भाषा अंग्रेजी जिसे देश के 2% से भी कम लोग समझते हैं , उसे आज भी हिन्दी के ऊपर वर्चस्व प्राप्त है।  देेश में जन्मी और अधिकाधिक क्षेत्र में समझी जानेवाली भाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा का गौरब दिलाने हेतु प्रयास जारी है जो अब एक सशक्त आंदोलन बनता जा रहा है।   तो आइये इसी उद्देश्य से वर्धा (महा.) में सपन्न हुई एक महत्वपूर्ण गोष्ठी की रपट देखिए-
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वर्धा। हिंदी हमारे अंतर्मन की भाषा है। राष्ट्रभाषा के पद पर हिंदी को स्थापित करने के लिए इसे भगिनी भाषाओं का समर्थन  मिलना चाहिए क्योंकि भाषा का प्रश्न,  भाव - भावुकता से जुड़ा हुआ है। इसे मिशन  रूप में लेना चाहिए। लिखित संविधान हिंदी को राजभाषा का दर्जा देता है लेकिन अलिखित स्वरूप में हिंदी सब की राष्ट्रभाषा है ।यह विचार प्रो राममोहन पाठक, कुलपति ,दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा ,चेन्नई ने राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई और राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय  संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में प्रकट किया ।
बीज वक्तव्य में प्रो अनंतराम त्रिपाठी, प्रधानमंत्री राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,वर्धा ने कहा कि हिंदी सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा है क्योंकि वह सबके दिलों में बसी है संवैधानिक रूप से वह एक दिन राष्ट्रभाषा के पद पर अवश्य आरूढ़ होगी ।राष्ट्रभाषा महासंघ, मुंबई की उपाध्यक्ष डॉ सुशीला गुप्ता ने कहा कि  सभी राज्यों को हिंदी को राष्ट्रभाषा मानना चाहिए।
इस मौके पर डॉ पुष्पिता अवस्थी की पुस्तक "मुट्ठी भर सुख" का लोकार्पण हुआ ।संचालन महासंघ के प्रधान सचिव डॉ अनंत श्रीमाली ने किया और आभार संयुक्त सचिव माधुरी वाजपेई ने माना।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ कृपाशंकर चौबे ने की जिसमें डॉ अनवर सिद्दीकी, अनुवाद विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विवि, वर्धा, डॉ रत्ना चौधरी, महासंघ के ट्रस्टी महेश अग्रवाल ने विचार रखे। संचालन डॉ हेमचंद्र वैद्य तथा आभार सुश्री सरोजिनी जैन ने माना ।
द्वितीय सत्र शीतला प्रसाद दुबे, कार्याध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की अध्यक्षता में हुआ जिसमें डॉ अनुपमा गुप्त, डॉ कुसुम त्रिपाठी,  हेमचंद्र वैद्य ने विचार रखे। संचालन डॉ अशोक शुक्ला ने तथा आभार डॉ मेघा श्रीमाली ने माना। समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों ने विचार रखे। संगोष्ठी में वर्धा के कनकमल गांधी,  प्रचार समिति के कोषाध्यक्ष नवरतन नाहर,अरुण लेले, शिवचरण मिश्रा, डॉ भूपेंद्र, डीएन प्रसाद, बीएस मिरगे ,अमित विश्वास ,राष्ट्रभाषा महाविद्यालय के प्राचार्या, शिक्षक, शिक्षिकाएं, किशोर भारती विद्यालय के मुख्याध्यापक सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार, लेखक उपस्थित थे अंत में महाविद्यालय के बच्चों ने  खूबसूरत सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। राष्ट्रगान से  कार्यक्रम समाप्त हुआ।
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आलेख - प्रो. अनंतराम त्रिपाठी (प्रधानमंत्री राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा)
माध्यम - डॉ. अनन्त श्रीमाली
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
 

 
 
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