Tuesday 15 September 2020

"विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर यानी 13.9.2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न

लेकिन हिन्दी से बने भारत की  पहचान

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हिंदी भाषा का दायरा खुला हुआ है इसके निर्माण काल से ही। इसने कभी अपनेआप को बांध कर नहीं रखा सबको अपने में समाहित करती गई।  यही कारण है कि भारत जैसे विशाल और अत्यधिक विविधतापूर्ण देश के हर कोने में यह अपना स्थान बना पाई है।  यह न तो किसी क्षेत्र, संस्कृति वर्ग, जाति या धर्म से कभी बंधी है न इसे बांधा जाना चाहिए

पटना।  साहित्यिक संस्था "विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी आयोजित की गई

“हिंदी भाषा आज पूरी दुनिया में अपना परचम लहरा रही है। इसके पीछे लेखकों-साहित्यकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। हालांकि क्षेत्रीय भाषाओं की उन्नति से ही हिंदी भाषा का भी उत्तरोत्तर विकास संभव हो पाया है।” यह बातें हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और "नई धारा" पत्रिका के संपादक डॉ. शिवनारायण ने कही।

 कार्यक्रम की शुरुआत भागलपुर के कवि राजकुमार ने वाणी वंदना से की। काव्य गोष्ठी में चेन्नई से मंजू रुस्तगी, दुर्ग (छत्तीसगढ़) से सूर्यकांत गुप्ता, समस्तीपुर से हरिनारायण सिंह ‘हरि’, प्रयागराज से अशोक श्रीवास्तव, गया से कुमार कांत, भागलपुर से दिनेश तपन के साथ ही पटना से वरिष्ठ कवि घनश्याम, डॉ. सुधा सिन्हा, पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी, आराधना प्रसाद, अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’ ने हिंदी दिवस पर एक से बढ़कर एक कविताओं का वाचन किया। गूगल मीट ऐप्प के माध्यम से लगभग दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में श्रोता के रूप में भी अनेक सुप्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार जुड़े रहे। काव्य गोष्ठी का संचालन दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चंदन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने किया। 

काव्य संध्या में सुनाई गई कविताओ की एक झलक नीचे प्रस्तुत है :

राजकुमार ने इसे देशवासियों का प्राण बताया -
हम देश वासियों के लिए प्राण है हिन्दी।
नदियों की लहर सुरसरि अभियान है हिन्दी।।
इसकी हरीतिमा से हरित है वसुंधरा,
मां भारती की चिन्मयी मुस्कान है हिन्दी।

कवि घनश्याम ने बहुत महत्वपूर्ण बात रखी कि हिन्दी के प्रसार के लिए आवश्यक है कि हर भाषा का सम्मान किया जाय और साथ ही सब को हिन्दी भी अपनाने को कहा जाय -
हर भाषा का हम करें यथायोग्य सम्मान
लेकिन हिन्दी से बने भारत की  पहचान
हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा सरल, सुबोध
फिर क्यों इसकी राह में है इतना अवरोध
इसकी तुलना में नहीं, कोई भाषा अन्य
हिन्दी को पाकर हुआ, देश हमारा धन्य
दो  हिन्दी  भाषी  करें  अंग्रेज़ी  में  बात
लगता है इस देश के अन्तर को आघात

डॉ. दुर्गा सिन्हा ‘उदार’  की जो अभिलाषा है वह हम सब की भी है -
हिन्दी से प्यार कीजिए,हिन्दी है मन की भाषा
भारत की राष्ट्र भाषा, अमन और चमन की भाषा ।।

मंजू रुस्तगी ने राष्ट्रर-एक्य  की मिसाल कुछ यूँ रखी-
चाहे खेत हों केसर के,
चाहे हो सागर अनंत विशाल,
चाहे तपती रेत मरू की,
या हो सप्त बहनों का भाल।
संस्कृति-सभ्यता की संवाहक,
राष्ट्र-ऐक्य की तू ही मिसाल।

प्रो. डॉ. सुधा सिन्हा ने इसे सर का ताज बनाया -
विश्व हिन्दी दिवस आज है,
हिन्दी की महत्ता बतलायें।
हिन्दी भारत की बिन्दी है,
इसे हम सर का ताज बनायें।
गुलामी की बेड़ियां जकड़ीं थीं,
यह चारों खाने चित गिरी थी।
चौदह सितम्बर की वह तिथि थी,
जब हिन्दी राजभाषा बनी थी।

कुमार कांत ने इसके विविध आयामों को रखा -
 -
यह मूर्तस्वर है, साधना है, ज्ञान है विज्ञान है
यश की पताका व्योम तक, जैसे अडिग हिमवान है।।

सूर्यकांत गुप्ता ने छद्म प्रयास की खिल्ली उड़ाई -
पखवाड़ा  मनता  यहाँ,  मास सितंबर खास।
हिन्दी   के  उत्थान  का  करते  छद्म प्रयास।।
सरकारी  सब  काम, आँग्ल  में करे कबाड़ा।
अद्भुत   हिंदी   प्रेम,   मना    हिंदी    पखवाड़ा।।

पूनम सिन्हा ‘श्रेयसी’ ने आर्य सभ्यता का पक्ष रखा -
कल-कल,छ्ल-छल गंगधार हिन्दी,
दिग दिगन्त सरल विस्तार हिन्दी।
जन-जन का सहज उद्गार हिन्दी,
संस्कृत सुता है उपहार हिन्दी।
हो राष्ट्रभाषा है अभिलाषा!
बने कालजयी यह विश्वभाषा!

हििंिंिंिंदीदीदिद
हिंदी को देशभर में अपनाये जाने का मसला नागरिकों के आपसी रिश्तों पर भी निर्भर है।  इसलिए शिवनारायण ने रिश्तों के बेबस हो जाने पर चिन्ता प्रकट की -
आंगन का हर कोना कोना बेबस है
घर के अंदर घर का रिश्ता बेबस है 
खेत की हर फसल धूप फिर ले गयी
इन किसानों की अब जिन्दगी देखिए

अशोक श्रीवास्तव ने अपना आक्रोश कुछ यूँ जताया -
अपनों से ही छली गई हिंदी
राष्ट्रभाषा न बन सकी हिंदी
साल-दर-साल माह पखवाड़े
फाइलों में ही घुट रही हिंदी

हरिनारायण सिंह ‘हरि’ ने हिंदी को एक भाषा नहीं वरन्  पूरे देश की परिभाषा बताया - 
हिंदी हिंदुस्तान देश की यह परिभाषा है
समझी जाती सभी जगह बोली भी जाती है
हिंदी अब तो बहुत मुखर अब कम शर्माती है
गूँज रही यह भाषा यह तो खूब विदेशों में
पूरी दुनिया इस हिंदी में गाना गाती है

दिनेश तपन ने प्यार जताया -
कितनी प्यार प्यारी हिंदी
लगती आज हमारी हिंदी

आराधना प्रसाद ने शुचित अभिव्यंजना की बात रखी - 
स्वर सुसज्जित व्यंजनों के रूप की परिकल्पना
है सुगम वाचन, सृजन में ;है शुचित अभिव्यंजना

अनीता मिश्रा ‘सिद्धि’ कविताओं को अविराम रचती दिखीं -
हिन्दी भाषा के लिए, करें सभी कुछ काम।
बहुत रचे मिलकर सभी, कविताएं अविराम।।
......

रपट के लेखक - चैतन्य चंदन
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
रपट के लेखक का ईमेल आईडी- luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

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