Tuesday 29 September 2020

"विन्यास साहित्य मंच" द्वारा 27.9.2020 को आभासी मंच पर काव्य संध्या सम्पन्न

दुश्मनी प्यार की तलवार से कट जाती है 

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"मौसम चाहे सलोना हो, या फैला हुआ करोना हो", कोई फर्क नहीं पड़ता- शायर जहाँ रहते हैं माहौल शायराना हो जाना लाज़मी होता है। और जब देश के कुछ जाने-माने शायरों का जमावड़ा हो अपने मिजाज़ के कुछ युवाओं की टोली के साथ तो रंग में अजब निखार आ जाता है। हालाँकि इस महफिल में शृंगार रस पर फोकस बना रहा परन्तु देश-दुनिया के मामलात भी छलकते रहे इस बात को खारिज नहीं किया जा सकता। आइये लुत्फ लेते हैं गोष्ठी-सह-मुशायरे का (सम्पादक)

पटना। "पिछले कई महीनों से ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों/ मुशायरों ने जिस प्रकार देश-विदेश के साहित्यकारों को करीब आने का मौका दिया है, वह सही मायनों मे नवीनतम तकनीकों की वजह से ही संभव हो पा रहा है। सोशल डिस्टेन्सिंग के इस काल में सोशल मीडिया ने जो साहित्यकारों को मंच उपलब्ध करवाए हैं, उससे साहित्य एक नए मुकाम को हासिल करने की तरफ अग्रसर है।" यह बातें साहित्यिक संस्था विन्यास साहित्य मंच द्वारा आयोजित ऑनलाइन काव्य संध्या की अध्यक्षता करते हुये पटना के शायर घनश्याम ने कहीं। काव्य संध्या में देश भर के चर्चित कवि-कवयित्रियों ने एक से बढ़कर एक रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम में गजरौला (उत्तर प्रदेश) से डॉ. मधु चतुर्वेदी, सागर (मध्य प्रदेश) से अशोक मिजाज 'बद्र', आसनसोल (पश्चिम बंगाल) से निगार आरा, कोलकाता (पश्चिम बंगाल) से एकलव्य केसरी के अलावा बिहार के मुंगेर से अनिरुद्ध सिन्हा, मुजफ्फरपुर से डॉ. पंकज कर्ण, पटना से संजय कुमार कुन्दन, नीलांशु रंजन, डॉ. नसर आलम नसर, आराधना प्रसाद, सुनंदा केसरी और मो. नसीम अख्तर ने अपनी गज़लों-नज़मों की बेहतरीन प्रस्तुतियों से समा बांध दिया। कार्यक्रम का संचालन नई दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चन्दन ने किया। लगभग दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम में श्रोता के रूप में भी अनेक सुप्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार जुड़े रहे।

काव्य संध्या में सुनाई गई कविताएँ इस प्रकार हैं:

घनश्याम ने गांधी के प्रेम के धागे के टूटने पर चिंता जाहिर की -
हमारा मन सुबह से खिन्न क्यों है
निगोड़ी धारणा भी भिन्न क्यों है
जिसे जोड़ा था गांधी ने जतन से
वो धागा प्रेम का विच्छिन्न क्यों है

अशोक मिजाज बद्र ने क्यों नहीं घर का ताला बदला, जानिये- 
हमने तकिए में ही सिलवा दिए तेरे सब खत 
और उसी दिन से वो तकिया नहीं बदला हमने।
उसकी इक चाबी तेरे पास रहा करती थी,
इसलिए घर का वो ताला नहीं बदला हमने।

अनिरुद्ध सिन्हा जैसे मंझे शाय्रर की बातों में धार होती है -
उलझनों से  तो कभी प्यार से कट जाती है 
ज़िंदगी वक़्त की  रफ़्तार से  कट  जाती है 
मैं तो क्या चीज़ हूँ परछाई भी मेरी अक्सर 
रोज़  उठती  हुई दीवार  से  कट  जाती है 
यूँ तो मुश्किल है बहुत इसको मिटाना साहब 
दुश्मनी प्यार   की  तलवार से कट  जाती है 

संजय कुमार कुन्दन रूमानी शख़्सियत वाले शायर हैं जिनकी रूमानियत अब एक बड़ी लम्बी दौड़ तय कर चुकी  है -
देख वो किस क़दर दीवाना हुआ
पारा पारा  कोई  अफ़साना हुआ
शाम  का  लम्हा  राज़ का  लम्हा
लेकिन उस बात को ज़माना हुआ

आराधना प्रसाद एक मुकम्मल शायरा हैं मुहब्बत में डूबी हुई -
ऐसी देखी न थी कभी आंखें
रह गई जिनको देखती आंखें
मेज़ पर तेरे छोड़ आयी हूं
लाके दे दे मुझे मेरी आंखें
ज़िक्र कैसे बयां हो उस पल का
उसकी आंखें थीं और मेरी आंखें

नीलांशु रंजन के अंदाज़ में नज़ाकत अहले दर्ज़े की दिखती है - 
" चाहता हूँ 
 दुनिया की सारी ख़ूबसूरत नज़्मे 
किताबों से निकाल कर टांक दूँ उन्हें 
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों में जूही- बेली की तरह।"

मो. नसीम अख्तर वक़्त के दोहरे किरदार को असरदार तरीके से दिखाते नज़र आ रहे हैं -
इधर शम्मे उलफत जलाई गई है
उधर कोई आँधी उठाई गई है
वो घर को नहीं बाँट डालेगी 
दिल कोजो दीवार घर में उठाई गई है

डॉ. मधु चतुर्वेदी की आशिकाना गुज़ारिश गौरतलब है -
जी चाहता है तू मुझे हर पल दिखाई दे
आँखों की ठहरी झील में हलचल दिखाई दे।
इसको फ़रेबे-चश्म का तुम नाम दो तो दो,
मुझ को हवा के पावों में पायल दिखाई दे।

डॉ पंकज कर्ण एक सामाजिक सरोकार वाले इंसान हैं जो भूखे को खिलाकर ही अपना निवाला उठाते हैं -
सबकुछ अपने-आप संभाला जाएगा
अर्थ-प्रबंधन कब तक टाला जाएगा
पहले हर भूखे को उनके हक़ की दें
मेरे अंदर तभी निवाला जाएगा

डॉ. नसर आलम नसर एक इश्क़क़मिज़ाज शायर हैं जो चांदनी रात में सोना नहीं जानते -
आप की मेरे ऊपर नज़र हो गई 
ज़िंदगी खूब से खूबतर हो गाई 
चांदनी  मुस्कुराती रही रात भर 
देखते  देखते ही  सहर हो गई

एकलव्य केसरी रोजगार और प्यार के मुस्तक़िल मसाइल को झेलते दिख रहे हैं -
तेरा दीदार हो जाये, है दिल में ये बड़ी हसरत
मगर रोटी कमाने से नहीं मिलती ज़रा फुर्सत
वो दरवाजे पे आने की मेरे बस राह देखे है
मेरा मन भी तड़पता है मगर छुट्टी पे है आफत
  
सुनंदा केसरी अपने मनमुताबिक मौसम के लिए मुंतज़िर हैं - 
मौसम सारे आते है 
गरमी जाड़ा बरसात 
आता वह एक बसंत नहीं 
मुझको है जिसकी आस

निगार आरा भी अपने प्रिय के ख़्यालों में खोई रहीं - 
हर शब में तुझे देखूं ख्वाबों में ख्यालों में
तस्वीर तेरी जबसे रक्खी है  किताबों में
गुलशन की बहारों को हम देख नहीं पाते
खोए   हुए   रहते  हैं  यूं  तेरे  खयालों में

चैतन्य चन्दन ने माँ पर कशीदे पढ़े - 
दिलों के जख्म पर मरहम लगाना जानती है माँ
अगर रूठे कोई बच्चा, मनाना जानती है माँ
खिला देती है भूखे को वो रोटी अपने हिस्से की
ग़रीबी में भी हर रिश्ता निभाना जानती है माँ

इस तरह से सौहार्दपूर्ण माहौल में इस गोष्ठी का समापन हुआ
...

रपट का मूल आलेख - चैतन्य चंदन 
प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
रपट के मूल लेखक का ईमेल आईडी - luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

2 comments:

  1. शानदार गोष्ठी,सुन्दर संचालन,समग्र एवं संतुलित रिपोर्टिंग तथा लाजवाब प्रस्तुतिकरण।
    बहुत बहुत बधाई और आभार।

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    Replies
    1. आपके शब्द हमारे लिए महतापूर्ण हैं। हार्दिक आभार।

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