सृजनरत रहता हूं मैं, अहर्निश
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पटना. 18/09/2020. "हमारे रेल में राजभाषा की नीति काफी उदार रही है. देवनागरी में लिखे गए लिप्यान्त्ररण को भी हम स्वीकार करते हैं और राजभाषा हिंदी का अधिकाधिक उपयोग करते हैं l राजभाषा हिंदी को रेल कर्मियों से जोड़ने में दानापुर रेल मंडल के राजभाषा द्वारा प्रकाशित रेलवाणी पत्रिका की अहम भूमिका रही है." मंडल रेल प्रबंधक दानापुर के राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित "हिंदी सप्ताह " के अवसर पर, ऑनलाइन गूगल मीट के माध्यम से कवि सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए राजभाषा अधिकारी राजमणि मिश्र ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त कियेl
शायर मो. नसीम अख्तर ने कवि गोष्ठी का संचालन किया जिसमें घनश्याम, संजीव प्रभाकर (गुजरात) मो. नसीम अख्तर, राजमणि मिश्र, मधुरेश नारायण, सुनंदा केसरी, रश्मि गुप्ता, भारत भूषण पांडे एवं सिद्धेश्वर ने सारगर्भित कविताओं का पाठ किया.
वरिष्ठ शायर घनश्याम ने रिश्तो के बीच आपस में मनमुटाव पैदा करने वाले लोगों से सचेत रहने की बात कहते हुए कहा-
"दो दिलों के दरम्यांँ दूरी बढ़ाता कौन है?
हमको आपस में लड़ा कर मुस्कुराता कौन है ?"
लाख मन को भरमा लें लेकिन सच यही है कि आदर्श और नैतिकता ही आदमी को संतुष्ट करता है, इसी संदर्भ में शायर संजीव प्रभाकर ( गुजरात) ने - अपनी ग़ज़ल कही-
"कौन कहता है
ज़माने में रहे, वो शान से !
जी न पाये ज़िन्दगी को
जो कभी ईमान से?"
मां की महत्ता पर तो ढेर सारी कविताएं लिखी गई है, किंतु पिता के महत्व को रेखांकित करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा -
" जमीं है मां तो,
आसमां है पिता!
रोटी, कपड़ा और
मकान है पिता !"
रश्मि गुप्ता ने नारी अस्मिता का बचाव करते हुए उनके आत्मनिर्भर होने की ओर इशारा करते हुए एक मुक्तछंद कविता का पाठ किया -
" बेल नही हूँ मैं
जिसे किसी सहारे की
जरूरत होती है
धरती हूँ मैं !"
पत्थर दिल इंसान और संवेदनहीन समाज के प्रति बेरुखी में एक समय संदर्भित गजल कही चिर-युवा शायर मो. नसीम अख्तर ने -
"हाथ में जब
सभी के ही पत्थर रहे,
किस तरह फिर
सलामत कोई सर रहे !"
अपने सृजन के प्रति गंभीर होने की बात स्वीकारते हुए राजमणि मिश्र ने एक मुक्तछंद की कविता प्रस्तुत की -
"एक सर्जक हूं मैं
अपने संसार में
रमा रहता हूं !...
सृजनरत रहता हूं मैं, अहर्निश!"
ताजगी भरे नवगीत की ज़बरदस्त अदायगी रही भारत भूषण पांडे के इस गीत के द्वारा -
-"रूकती हवा निढाल लहर पर
उतर गया है ज्वार,
जाने कहां गई आंखों की
खींची हुई वह धार !"
पहले राजभाषा से संदर्भित कविताओं के पाठ के बाद रेल से संदर्भित एक अनूठी प्रस्तुति दी -मधुरेश नारायण ने-
-"है यह तुम्हारी गाडी
है यह गाडी हमारी
हम ही है गाडी के सवारी
टिकट लेकर,जाते है बैठ कर
अपने-अपने गंतव्य को."
इसके अतिरिक्त अर्चना त्रिपाठी और सुनंदा केशरी ने भी एक से बढ़कर एक गीत ग़ज़ल कविताओं से श्रोताओं का मन मुग्ध कर दिया!
...
रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का परिचय - भूoपूo सचिव :स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति ( पूर्व मध्य रेल)
प्रस्तोता की चलभाष संख्या - 92347 60365
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - :sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
समस्त कवियों को हार्दिक बधाई।💐💐
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद।
Deleteसार्थक आयोजन
ReplyDeleteबेहतरीन रिपोर्टिंग
सराहना हेतु आभार।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद
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