Monday, 23 September 2019

लघुकथा, हाइकु और काव्य गोष्ठी - अंधेरी (मुम्बई) में 21.9.2019 को पटना, दिल्ली और मुम्बई के कुछ साहित्यकारों की गोष्ठी सम्पन्न

सदाकत में जिया हलकान है तो क्या करें

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दिनांक 21.9.2019 मुम्बई हवाईअड्डे से नजदीक स्थित आलीशान पाँचसितारा होटल, द ललित की पहली मंजिल पर एक साहित्यिक गोष्ठी सम्पन्न हुई जिसमें मुख्यत: हाइकु, वर्ण-पिरामिड और लघुकथा विधा पर विमर्श हुआ और उन विधाओं में रचनाओं के साथ-साथ काव्य-पाठ भी हुआ. 

गोष्ठी का संयोजन पटना से पधारी जानी-मानी हाइकुकार और लघुकथाकार विभारानी श्रीवास्तव ने किया जिन्होंने इन विधाओं पर महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी दीं. अध्यक्षता प्रतिमा चक्रवर्ती ने की, मुख्य अतिथि थे हेमन्त दास 'हिम' और मंजु गुप्ता एवं विशिष्ट अतिथि थे अशवनी 'उम्मीद'. कुछ समय पश्चात डॉ. अरुण कुमार श्रीवास्तव भी विशिष्ट अतिथि के तौर पर शामिल हुए. कार्यक्रम का संचालन मुम्बई के जाने -माने एंकर  और शायर अशवनी 'उम्मीद' कर रहे थे.

'स्पंदन' पत्रिका की सम्पादक और "लेख्य मंजूषा" साहित्यिक संस्था की मुख्य संचालिका विभा रानी श्रीवास्तव द्वारा सम्पादित 125 हाइकूकारों की रचनाएँ सत हाइकूकार - साल शताब्दी हाल ही में प्रकाशित हुई है. 

इस गोष्ठी का एक हिस्सा हाइकू-लघुकथाकार विभारानी श्रीवास्तव द्वारा एक सेमिनार की तरह था जिसमेंं उन्होंने इन लघु-विधाओं के बारे में अनेक बिंदुओं को स्पष्ट किया जैसे-
1. हाइकु या वर्ण-पिरामिड, अनुभव के मात्र एक क्षण का बयान करती है.
2. हाइकु चित्रकारी की चीज है. एक हाइकु पर एक चित्र बन सकता है. 
3. लघुकथा में भी एक क्षण की अभिव्यक्ति होती है किन्तु वहाँ फ्लैश बैक की सहायता से आप वर्णित काल-खंड का इच्छानुसार विस्तार कर सकते हैं. पर हाइकू में बिलकुल नहीं.
4. हाइकु को जापानी विधा माना जाता है. परंतु दावा है कि वेदों में भी अलग-अलग 5 और 7 वर्णों की ऋचाएँ हैं.
4. वर्णक्रम 5-7-5 होता है और हर पंक्ति अपने-आप में पूर्ण वाक्य बन सकती है. 
5. सुरेश बाल वर्मा 'जसला' ने 2012 ई. में वर्ण-पिरामिड विधा का आविष्कार किया जो अब काफी लोकप्रिय हो गया है.

विभारानी श्रीवास्तव ने  अपनी हाइकू भी सुनाई -
मधुयामिनी 
संकेतक रौशनी 
पर्दे के पास.

झड़ता पत्ता 
मैं कब्रों के बीच में 
नि:शब्द खड़ी.

पूर्णिमा चक्रवर्ती ने अपनी एक छोटी रचना सुनाई -
ओ पाखी
एकाकी 
तेरा कहाँ है साथी 
कल रात के तूफान में 
नहीं रहा कुछ बाकी.

अशवनी उम्मीद ने अपना मुक्तक सुनाया -
लेखनी तलवार होनी चाहिए
एक नहीं दो धार होनी चाहिए
जब चले तो जीत हो मजलूम की
जालिमों की हार होनी चाहिए.

निशाने पर हमारी जान है तो क्या करें
सदाकत में जिया हलकान है तो क्या करें.

हेमन्त दास 'हिम' ने उन्मत्त जनप्रवाह से बचने की अपील यूँ की-
एक अजीब से उधेड़बुन
अंतर्मन की ध्वनि सुन-सुन
उन्मत्त जनप्रवाह की धुन
मद्धिम अपनी धार
आओ न करें प्यार.

मंजु गुप्ता ने 'श्रद्धांजलि' शीर्षक लघुकथा सुनाई.  इसमें वृद्धों के प्रति बच्चों के व्यवहार के कटु यथार्थ को उजागर किया गया.

हेमन्त दास 'हिम' ने 'लम्बी लड़ाई' शीर्षक से लघुकथा पढ़ी जिसमें एक नेता को बिल्डर से समझौता करने के न्यायीकरण की स्थिति की चर्चा थी.

अशवनी 'उम्मीद' ने एक लघुकथा सुनाई "फाइनल मैच". इस लघुकथा में यह दिखाया गया कि एक पिता क्रिकेट मैच देखते हुए जो बोल देता है वही हो जाता है. बेटा के टोकने पर बाप अपने अनुभव का डंका बजाता है. बाद में पता चलता है कि बाप दर-असल मैच फिक्सर था इसलिए उसे सब मालूम था.

इस आलेख के अंत में विभारानी श्रीवास्तव द्वारा पढ़ी गई लघुकथा "बदलते समय का न्याय" पाठकों के सामने प्रस्तुत है.

अंत में धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात गोष्ठी की समाप्ति हुई.

"बदलते पल का न्याय"/ विभारानी श्रीवास्तव

"ये यहाँ? ये यहाँ क्या कर रहे हैं?" पार्किन्सन ग्रसित मरीज को व्हीलचेयर पर ठीक से बैठाते हुए नर्स से सवाल करती महिला बेहद क्रोधित नजर आ रही थी.. जबतक नर्स कुछ जबाब देती वह महिला प्रबंधक के कमरे की ओर बढ़ती नजर आई..
"मैं बाहर क्या देखकर आ रही हूँ.. यहाँ वे क्या कर रहे हैं?" महिला प्रबंधक से सवाल करने में भी उस आगंतुक महिला का स्वर तीखा ही था।
"तुम क्या देखकर आई हो, किनके बारे में पूछ रही हो थोड़ा धैर्य से धीमी आवाज में भी पूछ सकती हो न संगी!"
"संगी! मैं संगी! और मुझे ही इतनी बड़ी बात का पता नहीं, तुम मुझसे बातें छिपाने लगी हो?"
"इसमें छिपाने जैसी कोई बात नहीं, उनके यहाँ भर्ती होने के बाद तुमसे आज भेंट हुई हैं। उनकी स्थिति बहुत खराब थी, जब वे यहाँ लाये गए तो समय नहीं निकाल पाई तुम्हें फोन कर पाऊँ…,"
"यहाँ उन्हें भर्ती ही क्यों की ? ये वही हैं न, लगभग अठारह-उन्नीस साल पहले तुम्हें तुम्हारे विकलांग बेटे के साथ अपने घर से भादो की बरसती अंधियारी रात में निकल जाने को कहा था..., डॉक्टरों की गलती से तुम्हारे बेटे के शरीर को नुकसान पहुँचा था, तथा डॉक्टरों के कथनानुसार आयु लगभग बीस-बाइस साल ही था, जो अठारह साल..," आगंतुक संगी की बातों को सुनकर प्रबंधक संगी अतीत की काली रात के भंवर में डूबने लगती है...
"तुम्हें इस मिट्टी के लोदे और मुझ में से किसी एक को चयन करना होगा, अभी और इसी वक्त। इस अंधेरी रात में हम इसे दूर कहीं छोड़ आ सकते हैं , इसे देखकर मुझे घृणा होने लगती है..,"
"पिता होकर आप ऐसी बातें कैसे कर सकते हैं..! माता पार्वती के जिद पर पिता महादेव हाथी का सर पुत्र गणेश को लगाकर जीवित करते हैं और आज भूलोक में प्रथम पूज्य माने-जाने जाते हैं गणेश.. आज हम गणपति स्थापना भी हम कर चुके हैं..,"
"मैं तुमसे कोई दलील नहीं सुनना चाहता हूँ , मुझे तुम्हारा निर्णय जानना है...,"
"तब मैं आज केवल माँ हूँ..,"
"मैडम! गणपति स्थापना की तैयारी हो चुकी है, सभी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं..," परिचारिका की आवाज पर प्रबंधक संगी की तन्द्रा भंग होती है।
"हम बेसहारों के लिए ही न यह अस्पताल संग आश्रय बनवाये हैं संगी...! क्या प्रकृति प्रदत्त वस्तुएं दोस्त-दुश्मन का भेद करती हैं..! चलो न देखो इस बार हम फिटकरी के गणपति की स्थापना करने जा रहे हैं।"
.....

प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
















3 comments:

  1. हार्दिक आभार आपका सभी बातों के लिए
    आयोजन में हर प्रकार से सहयोगी रहे

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    Replies
    1. हमें वहाँ बुलाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद.

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  2. Get up and take a break during marathon gaming sessions. Just push the pause button or wait until you've finished a level, and then get up and walk around. Take about five to ten minutes resting your eyes and hands, and then you can get back to the game where you left off.satta king play bazaar

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