Sunday, 8 September 2019

सुर स्नेही कला म॔च द्वारा कुर्ला (मुंबई) में 7.9.2019 को आयोजित काव्य गोष्ठी संपन्न

मुस्कुराना बावजूद इसके मेरा जारी रहा 
 रेनू गोयल की पुण्यतिथि पर थी कविता गीष्ठी

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कोई  रचनाधर्मी कभी विदा नहीं लेता वह सिर्फ अपना स्थान बदलता है। दुनिया से प्रस्थान करने के बाद भी वह मौजूद रहता है अपनी कृतियों में और रचनाकार्य हेतु शुरू की गई अनंत श्रृंखला में। कुछ ऐसा ही आभास हुआ सुर स्नेही कला मंच की पिछले दिनों आयोजित काव्य गोष्ठी में।

सुर स्नेही कला मंच, दिल्ली की संस्थापक रेनू गोयल की पुण्यतिथि पर सुर स्नेही कला-मंच की मुम्बई शाखा तथा देहरादून शाखा का गठन कर उन्हें काव्य पुष्पों द्वारा श्रद्धांजलि दी गई। सुर स्नेही कला मंच का यह कार्यक्रम सन्तोष आर खण्डेलवाल के निवास कुर्ला (मुंबई) में दिनांक 7.9.2019  को आयोजित किया गया।

कार्यक्रम का आगाज़ रेनू गोयल व उनकी संस्था के परिचय से किया गया। डॉ. शोभा स्वप्निल ने बताया कि उनकी बहन बहुमुखी प्रतिभा की धनी और समाज ,साहित्य और कला को समर्पित एक कुशल गृहिणी तथा राजनेत्री थीं। "जीवन  की टेढ़ी राहों पर मिलकर साथ चलो तो जानूं", "सुन्दरता के सभी पुजारी" आदि रेनू की लोकप्रिय कविताओं में से हैं. 1996 ई.से सुर स्नेही कला-मंच विभिन्न ललित कलाओं को लेकर दिल्ली में समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित करता रहा है। सन 2002 में यह संस्था संवैधानिक रूप से रजिस्टर्ड हुई। किन्तु दुर्भाग्यवश  रेनू गोयल असमय ही सितंबर 2017 ने  दुनिया से विदा ले लिया। स्व. रेनू गोयल ने कला साहित्य का जो पौधा रोपा  है उसे सींच कर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं

तत्पश्चात अरविन्द शर्मा राही की अध्यक्षता और  अवनीश दीक्षित के संचालन में काव्यगोष्ठी सम्पन्न हुई।दिल्ली से पधारीं वरिष्ठ गीतकार नेहा वैद विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं।

अशवनी 'उम्मीद' की किसी भी सूरत में मुस्कुराते दिखे- 
ज़ुल्म, वहशत और सुकूत ए मर्ग भी तारी रहा
मुस्कुराना बावजूद इसके मेरा जारी रहा
हम शुरु से आखिरी तक ऐक ही चेहरा रहे
आपका तो साहिब ए किरदार अय्यारी रहा

प्रमिला शर्मा ने दिवंगत को याद करते हुए कहा -
भरी महफ़िल में भी वो उदास रही
सागर सी आखों में भी प्यास रही
हँसी बोली मगर जब  वो खामोश हुई
चार कांधों ने उठाकर कहा ये लाश रही

दीक्षित ने इस तरह से गमों का इजहार किया -
कहा था किसने की जाओ रेनु
हमें है तुमसे लगाव रेनु

ईप्सा और शोभा स्वपनिल ने भी काव्य के माध्यम से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये।

डॉ. मनोहर अभय ने आधुनिक विडम्बना के दोहे सुनाये -
दाना चुग्गा ढूँढती, गौरैया की जात
चूहे खाली कर गए, मोदक भरी परात

एन बी सिंह नादान ने आगाह किया -
साँप पलते हैं आस्तीनों में
चाक होते हैं जिगर सीनों में

अशोक प्रतिमानी ने गीतों के पत्थर बन जाने की बात की -
तुम ना आये गीत भी पाषाण हो गए
व्याख्यायें रिश्तों की जैसे व्यंग हो गए
डबडबाये चक्षुओं से अश्क मोती से झड़े
सांत्वना के शब्द सब विष-वाण हो गए

शोभा स्वप्निल ने मूर्ति तक ही ईश्वर को सीमित समझनेवालों को झकझोरा -
मैंने मनुष्य को बनाया / मनुष्य अब मुझको बना रहा है
मैंने तो फूँके थे प्राण / पर इंसान बुत बना रहा है
यह जानते हुए भी कि /आदमी जब बुत हो जाए
तो अपने हो जाते पराए

श्रीराम शर्मा ने एक टीस दिखलाई -
वेदों, पुरणों, विद्वानों की
कैसी नारकीय टीस

नेहा वैद ने एक गीत सुनाया -
जिम्मेदार बनाकर छोड़ेगा मौसम
अपनी मनमानी का किस्सा बहुत हुआ

अरविंद राही के हृदय के तार झंकृत हो उठे -
तुम्हें देखा तो हुआ झंकृत हृदय का तार
सखी मधुमास आया

मोहित ने भी अपनी कविता का पाठ किया जो सब ने सराहा।  कार्यक्रम के अंत में संतोष खण्डेलवाल ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्य कला की इस ज्योति को हम बुझने नहीं देंगें और उनकी तरह ही समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित करते रहेंगे
.....

आलेख - डॉ. शोभा स्वप्निल 
छायाचित्र - सुर स्नेही कला मंच
प्रतिर्किया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com


3 comments:

  1. Nice efforts done by Shobha Didi.& Santosh Jijaje

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  2. blogger.com par google password se login karke yahan comment Karne par uska profile pic aur naam yahan dikhenge.

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