Sunday 8 September 2019

कारवाँ संस्थान की पावस संध्या की काव्य गोष्ठी नेरुल (नवी मुम्बई) में 30.8.2019 को संपन्न

जो पत्थर चुभते हैं पिघलते हैं मुहब्बत की जुबां से

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पावस की रिमझिम के बीच तीस अगस्त को आर्य समाज नेरुल और  कारवाँ संस्थानके संयुक्त तत्त्वावधान में पावस ऋतु के अभिनन्दन में काव्य-संध्या का सादगी पूर्ण किन्तु भव्य आयोजन एन.आर. आई कॉलोनी के सभागार  हुआ | 

संयोजन करते हुए अग्रिमान  के संयुक्त सम्पादक  अशोक प्रीतमानी  ने अपने  उदबोधन में  भारत की एकता और अखंडताकी विवेचना करते हुए उपस्थित रचनाधर्मियों का स्वागत किया | कार्यक्रम  वरिष्ठ साहित्यकार लाजपत चावला  अभिलाज की सरस्वती वंदना 'माँ भारती उतारूँ तेरी आरती' से प्रारम्भ हुआ| वंदना को युगल स्वर प्रदान किए अग्रिमान की परामर्शदात्री समिति की सदस्य कविता राजपूत ने| मुख्य अतिथि रहे कविवर  अभिलाज |

राष्ट्रीय बोध की ओजस्वी कविताओं के लिए प्रसिद्ध सेवा सदन प्रसाद की पंक्ति देर तक गूँजती रही|-
 "ईश्वर ने भला बनाया इंसान
तुम क्यों उसे शैतान बनाते हो' 

वहीं वरिष्ठ कवि विश्वम्भर दयाल तिवारी ने साहित्यिक प्रदूषण पर प्रकाश डालती छांदिक प्रस्तुति की |

मेरठ से पधारे डॉ. हरिदत्त गौतम की रसोद्वेलित करने वाली कविता से पावस का अभिनन्दन किया -
"कैसा जादू भरा हुआ है 
वर्षा तेरे पानी में"

गजलकार शिवदत्त अक्स की गजल का अंदाज ही कुछ और था -
तेरा अंदाजे वयां \ फूल खिलने का समां देखा है
प्यार से प्यार जो नापता है \ उन में वो अक्स कहाँ देखा है 

मुम्बई साहित्य समागम की अध्यक्ष मीनू मदान ने नदी और सागर को लक्ष्य कर नारी विमर्श के परिपेक्ष्य  में नदी और सागर को लक्ष्य कर अपनी प्रस्तुति में कहा -
अपना भाग्य सराहो सागर 
मैं तुम से मिलने आई थी

उदीयमान युवा शायर इरफ़ान हुआ कन्नौजी की गजल का मुखड़ा था -
 जो पत्थर चुभते हैं पिघलते हैं मुहब्बत की जुबां से

कविता राजपूत,शोभा स्वप्निल  और वंदना श्रीवास्तव  और सरदार त्रिलोचन सिंह की रचनाओं में  मानवीय वेदना का गहरा स्वर था  जबकि राजेंद्र भट्टर की कविता हास्य और व्यंग्य से परिपूर्ण थी | 

संयोजक अशोक प्रीतमानी ने पूरी तन्मयता से अपनी गजल की प्रस्तुति की | 

अग्रिमानके प्रधान सम्पादक डॉ. मनोहर अभय ने उपस्थित कवियों की प्रस्तुतियों  पर समीक्षात्मक टिप्पणी की जबकि आर्यसमाज नेरुल के प्रधान डॉ.तुलसी राम बांगिया ने  धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि उपस्थित रचनाकारों की कविताओं में जीवन दर्शन की गहराई, प्राकृतिक सौन्दर्य, देशभक्ति, सकारात्मक सोच, वैश्विक उदारीकरण से उपजे नैतिक अपकर्ष को बड़ी संजीदगी के साथ चित्रांकित किया है |

आलेख - विश्वम्भर दयाल तिवारी
छायाचित्र - कारवाँ
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

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