इस वीरान पड़े गुलशन में / लौट के फिर बहार आयेगी
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नये प्रश्न नित कर रहा कालचक्र प्रतिकूल।
अपनी रचनाशीलता है उत्तर माकूल।।
देख आपदा शहर ने मारे ठांव-कुठांव।
बांहें फैलाए खडा पिता सरीखा गांव ।।
आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि बेतिया से शिरकत कर रहे वरिष्ठ कवि डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना ने गीत और प्रीत के रिश्तों को अपनी एक गीत के माध्यम से रेखांकित किया:
जो प्रीत गीत छलकाता है
वह काव्य अमर हो जाता है
कल के आलोकित पन्नों पर
इतिहास उसी को गाता है।
काव्य संध्या में मुंगेर से शिरकत कर रहे प्राध्यापक और कवि अंजनी कुमार सुमन ने हौसलों को गिरने से बचाने का उपाय अपनी ग़ज़ल के माध्यम से बताया -
नये जज़्बात गिरते हौसलों में बो रहे हैं
है छोटी आँख फिर भी लाख सपने ढो रहे हैं।
पटना के साहित्यकार हरेन्द्र सिन्हा ने अपनी कविता के माध्यम से नफ़रत की आंधी को बुझाने का आह्वान किया -
चलो देश का मान बढ़ाएं
खुशियां हम फैलाएं जी
नफरत की आंधी को बुझाएं
सबसे हाथ मिलाएं जी
पटना के भू वैज्ञानिक और पर्यावरण साहित्यकार डॉ. मेहता नगेन्द्र सिंह ने पेड़ों को रहनुमा बताते हुए डर को अपने मन से निकालने की अपील की -
हौसला भी है हुनर भी है तो डर कैसा
सांस की खातिर शजर भी है तो डर कैसा?
राज्य सभा सचिवालय, नई दिल्ली में बतौर उपनिदेशक अपनी सेवा दे रहे युवा शायर पीयूष कांति सक्सेना ने वर्तमान संकट को कुछ इस नज़र से देखा -
क़हर दुनिया पे है बरपा, क्या ख़ुदा नाराज़ है
या सिखाने का नया कुछ, उसका ये अंदाज़ है।
पटना के जाने-माने शायर मधुरेश नारायण ने वर्तमान संकट से जल्द ही उबर जाने की आशा करते हुए कहा -
ये धरा फिर से मुसकुरायगी
त्रासदी से निजात पायेगी
इस वीरान पड़े गुलशन में
लौट के फिर बहार आयेगी..
पटना से सुरीली आवाज़ की धनी कवियत्री आराधना प्रसाद ने किसी भी संकट को धैर्यपूर्वक झेलने का आह्वान करते हुए कहा -
पत्थर को पिघलने में अभी वक़्त लगेगा
हालात बदलने में अभी वक़्त लगेगा
कुछ देर चराग़ों की करो और हिफाज़त
तूफ़ां को ठहरने में अभी वक़्त लगेगा
मुजफ्फरपुर से बज़्म में शिरकत कर रहीं कवियत्री डॉ. भावना ने लोगों को वक्त के हिसाब से ढलने की नसीहत देते हुए कहा -
जो वक्त के हिसाब से ढलता चला गया
हर मोड़ पर वो आगे निकलता चला गया
जैसे कि मोम हूँ मैं, वो जलता हुआ दिया
वैसे मेरा वजूद पिघलता चला गया
पटना से वरिष्ठ शायर और हिंदी ग़ज़लों के हस्ताक्षर कवि घनश्याम ने मानवता की लाचारगी को कुछ इस तरह से बयां किया:
आस्था की टूटती दीवार है
आज मानवता बड़ी लाचार है
मौत का आतंक चेहरे पर लिए
वक़्त की बढ़ती हुई रफ़्तार है
पटना से ही वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने अपनी बेबसी का बयान कुछ इस तरह किया:
कल की रात कयामत की रात थी
मेरा जनाजा तो क्या, किसी की बारात थी।
पल पल मरते रहे हम जिनकी याद में
यह नसीहत उनके लिए थोड़ी सी बात थी ।
बज़्मे हाफ़िज़ बनारसी के संयोजक और वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने बिखरी हुई ज़िन्दगी के मसलों को ग़ज़ल में पिरोते हुए कहा -
बिखरी हुई हयात से सिमटे लिबास थे
हम डूबती सदाओं के कुछ आस-पास थे
आंखों में अपनी मंज़रे-सद-दस्ते-यास थे
हम मौसमे-बहार से यूं रुशनास थे
चंडीगढ़ से काव्य- संध्या में शिरकत कर रहीं संतोष गर्ग ने फूल और कांटों के बीच के रिश्तों को कुछ इस प्रकार शब्दों में पिरोया -
जरा गौर से देखो लोगो फूलों के संग कांटे सोए। चमन जब उजड़ गया तो तब भी देखो कांटे रोए।।
विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चंदन ने ग़ज़ल के माध्यम से अपनी बेबसी को कुछ इस प्रकार उजागर किया -
अरमान अपने दिल में कुचलते रहे हैं हम
बस मोम की मानिंद पिघलते रहे हैं हम
आदरणीय चैतन्य जी आपके आयोजन में उच्चकोटि के साहित्यकारों के साथ काव्य संध्या में भाग लेने का उन्हें सुनने का सुअवसर मिला। हार्दिक बधाई..बेजोड़ इंडिया का धन्यवाद ��
ReplyDeleteआदरणीय चैतन्य जी!आपके काव्य संध्या आयोजन में उच्चकोटि के साहित्यकारोंके साथ भाग लेने का व
ReplyDeleteउन्हें सुनने का सुअवसर मिला। हार्दिक आभार। बेजोड़ इंडिया का धन्यवाद। शुभमंगल कामनाएँ .. ।