Thursday 2 April 2020

सबके अपने-अपने राम / कवि - लक्ष्मीकांत मुकुल

 कविता

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सभी मित्रो को रामनवमी की शुभकामनाएँ!


चित्र साभार - ख्ड्गबल्लभ दास 'स्वजन' रचित "सीता शील" के कवर पेज से


मेरे राम कि तेरे राम, सबके अपने-अपने हैं राम।

राम अवध में मिथिला में भी दिखे कभी मुनि आश्रम में 
समय धार तीखी है होती, घर से वन को निकले राम।

राम केवट के राम सिया के अहिल्या को हक दिलवाए
 बूढ़ी शबरी के जूठे बेरों से, लोक संवाद बढ़ाये राम।

विश्व सुंदरी सम्राट अनुजा शूर्पणखा का प्रणय निवेदन
 परस्त्री संग केलि क्रीड़ा को, घातक कर्म बताये राम।

मित्रता क्या है कौन मित्र, कैसे निभाएगा  मित्र -संबंध 
किष्किंधा का राज दिलाकर, सुख -वर्षा करवाए राम।

प्यार की बातें खूब होती हैं, प्रेम के सच को जाने बगैर
प्रिया- न्याय हेतु सेतु बंधन, लंका ध्वस्त कराये राम।

बाल्मीकि के राम और थे, तुलसीदास के राम प्रभु जी
कबीरा की बानी में था बसता, आत्मबोध राम का नाम

विविध समाजों के मिथक भरे हैं साहसिक गाथाओं से
मूसहर- डोम दावा करते हैं उनके दीना भदरी राम

लोकतंत्र में भी रामराज का सपना पूरा हो सकता है
ताकत, पूंजी के तबके को, श्रम की राह दिखला दें राम
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कवि - लक्ष्मीकांत मुकुल
कवि का ईमेल - kvmukul12111@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

कवि - लक्ष्मीकांत मुकुल

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