एक जंगल हूं मैं गमले में नहीं आऊंगा
साहित्यिक संस्था "विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन में वरिष्ठ और युवा कवियों ने समां बांधा
नई दिल्ली। कोरोना संकट के इस घड़ी में कवि सम्मेलनों का आयोजन स्थगित रहने की वजह से कवियों-कवियत्रियों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर सीमित हो गया है। साथ ही एकदूसरे से मिलना-जुलना भी असंभव हो गया है। ऐसे में ऑनलाइन सम्मेलनों का आयोजन ही एकमात्र विकल्प रह गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन रविवार 19 अप्रैल 2020 को संध्या 6 बजे से किया गया। इस आयोजन में कुल 12 कवियों ने अपनी-अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया। यह कवि सम्मेलन इसलिए भी खास रहा, क्योंकि इसमें वरिष्ठ और युवा शायरों की बराबर की भागीदारी रही। यह ऑनलाइन कवि सम्मेलन स्काईप एप्प के माध्यम से सम्पन्न किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता खगड़िया से वरिष्ठ शायर कैलाश झा किंकर ने तथा संचालन वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने किया। कवि सम्मेलन में अन्य जाने-माने शायरों में मुंगेर से अनिरुद्ध सिन्हा, पटना से कवि घनश्याम, कवि सिद्धेश्वर, मधुरेश नारायण, सुनील कुमार वहीं युवा शायरों में पटना से प्रणय प्रियंवद, डॉ. रामनाथ शोधार्थी, कलकत्ता से एकलव्य केसरी और दिल्ली से सैयद अज़हर हाशमी सबक़त और चैतन्य चंदन ने अपने क़लाम पेश किए।
पटना के मशहूर युवा ग़ज़लकार रामनाथ शोधार्थी ने अपनी ग़ज़ल से अपने तेवर कुछ इस तरह बयान किया:
अय ग़ज़ल मैं तेरे सांचे में नहीं आऊंगा
एक जंगल हूं मैं गमले में नहीं आऊंगा
क़ैद कर लोगे जिसे कोई परिंदा मैं नहीं
आस्मां हूंं किसी पिंजरे में नहीं आऊंगा
पटना से वरिष्ठ शायर मधुरेश नारायण ने अपनी हसरत भरी निगाह को बार-बार उठाते हुए एक खूबसूरत गीत प्रस्तुत किया:
हसरत भरी निगाहें उठती है बार-बार
कब से कर रहा है दिल तेरा इंतजार।
**तारो को भी कहा है, सूरज को भी कहा है,
रौशन कर दे राहें,रहता वह जहाँ. है।
चंदा की आँखों से हरदम करता रहूँ दीदार....
**चलती है जो हवायें हो कर वहाँ से आये।
रहता है कोई अपना,उसकी खबर ले आये।
जीवन में जा कर भर दे,खुशियों की बहार....
दिल्ली से मुशायरे में शिरकत कर रहे युवा शायर सैयद अज़हर हाशमी सबक़त ने अपने किसी अजीम से नाराजगी कुछ इस तरह से जाहिर की -
अब रूबरू अपने मुझे पाओगे नहीं तुम
जब तक के मोहब्बत से बुलाओगे नहीं तुम
हां इसलिए भी तुमसे कभी रूठा नहीं हूं
मैं जानता हूं मुझको मनाओगे नहीं तुम
पटना से युवा पत्रकार एवं कवि प्रणय प्रियंवद ने असमय बारिश से किसानों को हो रहे नुकसान की चिंता कुछ इस प्रकार जाहिर की:
खेत में गेहूं खड़े हैं, क्यों भला बारिश हुई
सोच में हलधर पड़े हैं, क्यों भला बारिश हुई।
क्यों अचानक आसमां से, इस क़दर ओले गिरे
आम सब कच्चे झड़े हैं, क्यों भला बारिश हुई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि एवं कौशिकी पत्रिका के संपादक कैलाश झा किंकर ने दो ग़ज़लें और माहिया सुनाया जिसे अन्य शायरों की भरपूर वाहवाही मिली। उन्होंने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से देश की साम्प्रदायिकता पर चोट करते हुए कहा:
सोचिए सोजे वतन की बात है
हिन्द के उजड़े चमन की बात है
कौन हिन्दू कौन मुस्लिम छोड़िए
प्रीत के रीते चलन की बात है
मन्दिरों के देव! मस्जिद के ख़ुदा !
देश के बदले पवन की बात है
राष्ट्र के उत्थान में मशगूल हों
फालतू क्यों विष-वमन की बात है
पटना से वरिष्ठ शायर कवि घनश्याम ने दोहों के माध्यम से कोरोना को ललकारा:
कोरोना से क्यों भला, दुनिया है भयभीत ।
बस किंचित परहेज से, होगी उसपर जीत ।।
कोरोना तेरी यहां, नहीं गलेगी दाल ।
तू अपने ही देश में, जाकर डेरा डाल।।
रक्तबीज की है अगर, कोरोना संतान ।
तो निश्चय ही चंडिका, लेगी उसकी जान।।
जागरूक हो जाएं गर, दुनिया के सब लोग।
मिट जाएगा खुद-ब-खुद, कोरोना का रोग।।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे पटना के वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने अपनी नज़्म से बज़्म में चार चांद लगा दिया:
आस्थाओं का मुसाफिर खो गया
रास्तों की बत्तियों को क्या हुआ
भावनाओं के समुंदर से परे
अक्षरों के हुस्न ने जादू किया
दिल के दरवाजे की सांकल खुल गई
दस्तकों के साथ एक चेहरा बढ़ा
आदिवासी औरतों के गांव में
थोड़े दिन ही ख्वाब का मौसम रुका
एक शिला थी एक था पत्थर 'कंवल'
दोनों के संघर्ष से चूल्हा जला
कलकत्ता से बज़्म में शिरकत कर रहे युवा कवि एकलव्य केसरी अपने हृदय में प्रेम का दीपक जलाकर बैठे दिखे:
हृदय में प्रेम का दीपक जलाकर कब से बैठा हूँ
तेरे खत को मैं सीने से लगाकर कब से बैठा हूँ
मेरा दिल याद करता है हमेशा तुझको जानेमन
तेरी तस्वीर को दिल में छुपाकर कब से बैठा हूँ
दिल्ली से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे और विन्यास साहित्य मंच के संस्थापक चैतन्य चंदन ने अपने दिल मे इश्क़ के जंजाल को महफूज़ रखने की बात अपनी ग़ज़ल के माध्यम से कुछ इस तरह रखी:
तुम्हारे दिल में मैंने जब से लंगर डाल रक्खा है
तभी से दिल में मेरे दर्द का टकसाल रक्खा है
ज़रा खोलो हमारे दिल का दरवाजा सलीके से
यहां महफूज़ हमने इश्क़ का जंजाल रक्खा है
पटना से वरिष्ठ कवि सिद्धेश्वर ने कोरोना वायरस के खतरे से आगाह करते हुए एक हास्य गीत सुनाया:
"ज्ञान- विज्ञान, धर्म - ग्रंथ, कुछ न काम आवत है।
क्रोध में जब प्रकृति अपना विनाशकारी रूप दिखावत है।।
हैवान बन गईल ई मानव से खतरा हमें जरूर है!
ई तो कह भगवान जी, ई में हमरा का कुसूर है?!"
"कोरोना" वायरस से बचना हमें जरूर है !!
ई तो कह भगवान जी, ई में हमरा का कुसूर है ?!"
पटना से वरिष्ठ कवि सुनील कुमार ने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से कोरोना संकट के जल्द ही टल जाने की आशा जताई:
जो भी करना है उसे वक़्त वो कर जाता है
तू ग़म-ए-जिस्त से घबरा के किधर जाता है
हमने माना कि भयानक है कहर “कोरोना”
हर महामारी का दुनिया से असर जाता है
मैंने ठाना है मुझे घर पे ही रहना है अभी
लॉक डॉउन में भला कौन किधर जाता है
मुंगेर से मुशायरे में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर और आलोचक अनिरुद्ध सिन्हा ने जुगनुओं के तमाशे को कुछ इस तरह से बयान किया:
जब से है एक चाँद घटा में छुपा हुआ
तब से है जुगनुओं का तमाशा लगा हुआ
हिस्सा था एक भीड़ का वो आदमी मगर
रहता है अब हरेक से तन्हा कटा हुआ
करीब पौने दो घंटे तक चले इस मुशायरे के अंत में विन्यास साहित्य मंच के संस्थापक चैतन्य चंदन ने कार्यक्रम में शामिल सभी शायरों का आभार व्यक्त किया और अगले रविवार को फिर से इसी प्रकार की एक गोष्ठी के आयोजन की घोषणा की।
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रपट का आलेख - चैतन्य चंदन
रपट लेखक का ईमेल - luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
अतिसुंदर। बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय हेमंत दास हिम साहिब। बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद शोधार्थी जी. रपट चैतन्य जी की है. मैंने सिर्फ पोस्ट किया है.
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