रमेश प्रसाद से रेशमा प्रसाद तक का संघर्ष
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समाज और परिवार से बहिष्कृत अपने समुदाय के लिए समाज और सरकार से सामाजिक एवं कानूनी सम्मान एवं न्याय के लिए लड़ती तथा समाचार पत्रों में सुर्खी बनी रेशमा प्रसाद आज अपने प्रदेश में अपने समुदाय के लिए रोल मॉडल बन रही है। समाज के मुख्यधारा में अपना स्थान पुनः सम्मान पूर्वक स्थापित करने के लिए सामाजिक कार्यों तथा सामाजिक जागरूकता में बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं । राजनीतिक विषयों पर अच्छी पकड़ होने के कारण बेबाक शैली में सोशल मीडिया या साक्षात्कार इत्यादि के माध्यम से ओछी और गंदी राजनीति करने वाले को मुंहतोड़ जवाब देती है । जिन के उद्देश्यों, कार्यों एवं व्यक्तित्व से प्रभावित होकर इनके कई मित्र इन्हें सहयोग प्रदान कर रहे हैं जो प्रशंसनीय कार्य है ।
एक भयानक किस्म के लैंगिक भेदभाव के शिकार हुई रेशमा जैसे एक बड़ी समुदाय जीवन भर दूसरों के यहां किसी लड़के के जन्म पर या शादी विवाह के मौके पर नाच गान एवं बधाई कार्य से रोजी- रोटी कमाते हैं। न तो इनकी पढ़ाई-लिखाई की चिंता की जाती है, ना ही रोजगार की, ना ही इलाज की। बहुतों को मजबूरी में यौनकर्मी तक बनना पड़ता है । और तमाम किस्म के यौन अपराधों को झेलना पड़ता है, साथ ही पुलिस की ज्यादतियों का शिकार होना भी पड़ता है । किंतु समय , समाज और परिस्थिति के विपरीत चलकर रेशमा प्रसाद आज मगध विश्वविद्यालय, बोधगया ( बिहार ) से समाजशास्त्र में शोध कार्य कर रही हैं । बिहार राज्य कल्याण बोर्ड के सदस्य सह दोस्ताना सफर के सचिव के पद एवं दायित्वों को पूरा करते हुए किन्नर समुदाय (एलजीबीटी समुदाय) के प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । ट्रांसजेंडर साथियों के द्वारा कलात्मक प्रस्तुति कर सड़क सुरक्षा जागरूकता, नशा मुक्ति, समाजिक सुरक्षा, जागरूकता, दहेज प्रथा, दलितों, महिलाओं, पर्यावरण सुरक्षा जैसे मुद्दों एवं समस्याओं पर जन जागरूकता अभियान करते रहती हैं । स्वतंत्र भारत में पहली बार ट्रांसजेंडर कलाकारों द्वारा गांधी मैदान, पटना में स्वतंत्रता दिवस 2019 की झांकी प्रस्तुत कर सम्मान प्राप्ति के साथ ही बिहार में थर्ड जेंडर द्वारा प्राइड परेड, किन्नर महोत्सव तथा सोनपुर मेला महोत्सव 2019 में दोस्ताना सफर के द्वारा कृष्ण लीलामृत प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया । इस तरह के तमाम आयोजन के माध्यम से अपने समुदाय के हक अधिकार एवं सम्मान के लिए कृत संकल्पित हैं ।
समाज में सामाजिक रूप से मुख्यधारा में लाने के हजारों वर्षों के बाद 90 के दशक में ट्रांसजेंडर समुदायों के को सामाजिक पायदान को बढ़ाते हुए एक लंबी लड़ाई की शुरुआत हुई । इन संघर्षों का नेतृत्व सवर्ण जातियों के हाथों में है और रहा । है, लेकिन इसे नेपथ्य में रखा जाय। लैंगिकता के स्तर पर जो संघर्ष ट्रांसजेंडर, तृतीय लिंग समुदाय का संघर्ष है वह एक रास्ते पर आता दिख रहा है ।
"इन्हीं संघर्षों से मैं भी निकल कर के आई और इन संघर्षों के दौर में रमेश प्रसाद से रेशमा प्रसाद तक का जो परिवर्तन का दौर रहा वह बहुत ही संघर्षमय रहा है । मेरा दुख है कि परिवार मुझे मेरी पहचान के साथ अपनाया ही नहीं, लेकिन मैंने इसकी परवाह न की। इस संघर्ष के दौर में लांछनाओं की तो सीमा ही नहीं रही। इस पूरे एक दशक के संघर्ष में बिहार में ट्रांसजेंडर समुदाय के पहचान को स्थापित करने में विजय हासिल हुई । परंतु ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए कुछ न कर पाने का या सरकारों के द्वारा कुछ न हो पाने का दुख निरंतर सालता है।"
मातृ दिवस के अवसर पर लिखी अपनी कविता में इनके दर्द एवं वेदना दिखाई पड़ती है जो अपने मां के प्रति फूट पड़ी है -
मैं किन्नर हूँ
मेरी पहचान मेरी माँ
मैं तुमसे दूर हो गई
यह मेरी कसूर नहीं
मेरा दिल नहीं करता
तुमसे दूर दुनिया में जाऊँ।
हर माँ बच्चे के लिए अपना प्यार
दिल में रखा करती है ।
मां ! तुझे विचार करना होगा !
मर्द को मर्द न बनाओ
औरत को औरत न बनाओ
एक अच्छा इंसान बना दो।
ये अपने दर्द भरी बेदना को दूसरी कविता में लिखती हैं -
हमारे दिल तो पत्थर हो जाते
चंद दो मीठे बोल के लिए
रोटी के चंद टुकड़े के लिए
हमें रोटी भी सकून से नहीं मिलती ।
हमने घर भी छोड़ा, माँ को भी छोड़ा
बाप को छोड़ा, छोड़ दी वो गलियां
उन सारे दोस्तों को छोड़ा पर
हमें न मिली हमारी पहचान।
सामाजिक संघर्षों को बताते हुए कहती है कि " मैं अपने संघर्षों से पीछे नहीं हटने वाली हूं , चाहे मुझे मौत ही क्यों न गले लगाना पड़े। लक्ष्य को हमने निर्धारित किया है कि - किन्नर, ट्रांसजेंडर, समलैंगिक समुदाय, यौनकर्मी समुदाय को सम्मान दिलाना है और उन्हें मुख्यधारा में अपनी जीविका उपार्जन के रोजगार के साथ-साथ एक इज्जतपसंद जिंदगी जीने के लिए लोगों के मन में परिवर्तन लाना है " ।
आज पूरा विश्व ' कोरोना महामारी ' के चपेट में है । जिसके कारण भारत में संपूर्ण बंदी (लॉक डाउन) है। ऐसी परिस्थिति में प्रतिदिन भीख मांगकर और बधाई संदेश देकर गुजारा करने वाला एक बड़े जन-समुदाय के लिए विकट प्रस्तिथि पैदा हो गई है । ऐसी घड़ी में इन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार / जनप्रतिनिधियों तथा आमजन से अपील कर आर्थिक मदत की अपील की है। साथ ही अपने किन्नर समुदाय से शासन,प्रशासन के नियमों को अक्षरस: पालन करने तथा घरों में रहने की अपील की थी । यह साबित करती है कि रेशमा अपने समुदाय के लिए सचेष्ट और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति है ।
समाज के मुख्यधारा में सम्मान पूर्वक जीवन यापन के लिए न ये सिर्फ कृतसंकल्पित है बल्कि समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का खूब निर्वहन करती है। अपने समुदायों के लिए भोजन, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, समाजिक सुरक्षा तथा पुलिस प्रताड़ना से बचाव हेतू बचाव हेतू अग्रसर रहती है। यही वजह है कि - आज अपने समुदाय के लिए रॉल मॉडल बन गई है ।
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आलेख - राज मोहन
लेखक का परिचय - सहायक प्राध्यापक
समाजशास्त्र - विभाग
गुलाबचंद प्रसाद अग्रवाल कॉलेज ,
छत्तरपुर ,पलामू ,झारखंड
8540099122 , 9608833980
नोट - यह ब्लॉग किन्नर समुदाय की सम्पूर्ण समाज में हर तरह से प्रतिष्ठा, सुरक्षा और प्रगति की कामना करता है और समाज से इस हेतु अपील भी करता है । इस लेख में प्रकाशित विचार लेखक के निजी विचार हैं।
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