Wednesday, 15 April 2020

काव्योदय की आभासी कवि-गोष्ठी दिनांक 13.4.2020 को सम्पन्न

क़फ़स बन गया है हमारा घरौंदा


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आज जहाँ एक ओर कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की विनाशकारी विभीषिका ने हम सबको घर के अंदर कैद कर के लाचार कर दिया है वहीं दूसरी ओर कठिन से कठिन दौर में भी सृजन की सकारात्मक ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल करते हुए कवि-कलाकार समाज और प्रकृति को यह शाश्वत संदेश देने में लगे हैं कि 'सृजन' ही इस क़ायनात का सबसे खूबसूरत और सुखद अहसास है। वस्तुतः प्रकृति से तालमेल के हिमायती ये कविगण यद्यपि यह भलीभांति समझते हैं कि ऐसी विभीषिका प्रकृति के अत्यधिक दोहन के परिणाम स्वरूप है तथापि यह इन कवियों की चाहत और ईश्वर से प्रार्थना होती है और तदनुरूप अपने सृजन के माध्यम से वे ईश्वर तक मानव का यह पैग़ाम पहुंचाना चाहते हैं कि जन्मदात्री प्रकृति सृजन  के खूबसूरत पलों को पुनः हितकारी ढंग से सहेजना प्रारम्भ करे और अपनी विनाशलीला बंद करे।

दिनांक 13.4.2020 को कवि-शायर सुनील कुमार के संयोजन-संचालन और काव्योदय के तत्वावधान में तथा इसकी निवर्तमान अध्यक्ष वंदना सिंह की अध्यक्षता में साथ ही वर्तमान अध्यक्ष लक्ष्मी मोहर की उपस्थिति में काव्योदय के कुछ उपलब्ध चुनिंदा कवि-शायरों ने गीत ग़ज़लों छंदों की एक खूबसूरत आभासी महफ़िल सजाई जो बेहद सफ़ल रही। ऑनलाइन लाइव चलने वाली इस कविगोष्ठी ने डेढ़- दो घंटों तक माहौल को ख़ुशनुमा बनाये रखा। इस लाइव कवि गोष्ठी में काव्योदय परिवार के सदस्यों में सर्वप्रमुख अन्य थे सुजाता खन्ना,  अनिल शर्मा,  ओम नारायण सक्सेना, ललिता गहलोत  व  मंजू सिंह आदि।

सुजाता खन्ना ने सरस्वती वंदना करके गोष्ठी का शानदार आगाज़ किया और तत्पश्चात  एक शानदार ग़ज़ल का  उम्दा पाठ किया -
क्यूँ चेहरा छुपाकर गुपचुप निकल रहे हो
कुछ हम बदल रहे हैं कुछ तुम बदल रहे हो
गोष्ठी में शामिल ये सबसे अनुभवी कवयित्री थीं जिनपर समस्त काव्योदय परिजन अपना स्नेह लुटाते हैं।

मंजू सिंह ने बेटी के विदाई की भावुकता को समेटे हुए अपने गीत में बड़े ही भावपूर्ण स्वर में जब अपनी सुरीली प्रस्तुति दी तो सभी मंत्रमुग्ध हुए डूब कर सुनते रहे और "वाह वाह" कर उठे -
बाबा तेरे बाग की रस्में / किसने कठोर बनाई होंगी/ 
किसके सीने में दर्द नहीं था / किसने बिछड़ना बनाया होगा। 
इसके अलावा उन्होंने कुछेक शानदार मुक्तकों की भी प्रस्तुति दी।

बीकानेर में पली बढ़ी किंतु संप्रति सूरत (गुजरात) में रहने वाली कवियत्री  ललिता गहलोत ने गोष्ठी में अपनी भक्तिपूर्ण उपस्थिति दर्ज  की और काव्य पाठ में ईश्वर की आराधना करते हुए कहा - "कर जोड़ द्वय विनती करूँ"

भारतीय रेल में स्टेशन अधीक्षक के पद पर कार्यरत काव्योदय में ग़ज़लों के एक सशक्त हस्ताक्षर  अनिल शर्मा  ने अपनी ग़ज़ल से ख़ूब वाहः वाही लूटी। आज के हालात पर उनकी ग़ज़ल में जमाने का दर्द कुछ यूँ छलका कि -
परिंदा नही मारता पर शहर में 
यूँ लगता है जीने लगे सब क़हर में।
क़फ़स बन गया है हमारा घरौंदा
फँसी है अभी जिंदगी इक़ भँवर में।

काव्योदय में सर्वप्रिय, हर दिल अज़ीज़, हर मर्ज़ की दवा और इसकी वर्तमान अध्यक्ष जब काव्य पाठ को उतरी तो सबों ने तालियां बजाकर उनका इस्तक़बाल किया। लक्ष्मी मोहर की ग़ज़लों में उनका दर्द छलकता दिखा। काव्योदय में यह बात किसी से छिपी नहीं है कि काव्योदय के महत्वपूर्ण स्तंभों में दो बेहद अहम महत्व के मजबूत स्तंभ रही हैं - वंदना सिंह और लक्ष्मी मोहर जिन्होंने काव्योदय को सींचने में अपना पल पल बडी शिद्दत से लगाया है और हाल के  दिनों में जिस तरह वंदना  अपने पारिवारिक उलझनों में घिरी रहीं, दर्द में रहीं - उसने लक्ष्मी मोहर की तड़प को बहुत बढ़ा दिया उनका दर्द उनकी ग़ज़लों में कुछ यूँ छलका -
सनम से होके जुदा हम तो मुस्कुरा न सके
भुला चुके वो हमें और हम भुला न सके
हमें हैं कितनी मुहब्बत कहें तो कैसे कहें
समझ सकें न वो हम भी उन्हें बता न सके

संचालन का दायित्व निभाते हुए अपनी बारी आने पर सुनील कुमार ने  इस कठिन दौर में अपनी ग़ज़ल से लोगों को कुछ नुस्ख़े बताए….
मौका लगा है वक़्त ये घर में बिताइए
जितने भी मसअले हैं अभी भूल जाइए
आया कठिन ये दौर ज़रा मुस्कुराइए
संजीदगी से अपनी मुहब्बत निभाइये
नख़्ल-ए-जदीद दुनियां में हैं लाख उलझनें
फ़ुरसत निकाल गीत ग़ज़ल गुनगुनाइये

और गोष्ठी के अंतिम पड़ाव में गोष्ठी की अध्यक्षता कर रही काव्योदय को अपने खून-ओ-जिगर से सींचने वाली निवर्तमान अध्यक्ष वंदना सिंह ने अपने सुरीले कंठ से गोष्ठी का मधुर समापन सुनिश्चित किया। उनकी शानदार ग़ज़ल कुछ इस प्रकार थी…
बदला हुआ है  सारा संसार हाय तौबा    
हमको भी हो गया है क्या प्यार हाय तौबा
मेंहदी की ये लकीरें जो कुछ छुपा रही हैं          
वो नाम आपका है सरकार हाय तौबा
कल तो मिलेंगे लेकिन तब तक जियेंगे कैसे  
हर एक लम्हा तुम बिन दुश्वार हाय तौबा          
हम क्या जबाव देंगे इजहार को तुम्हारे            
इनकार हाय तौबा इकरार हाय तौबा
आकर जरा सजा दे अपनी नजर बदन पर  
कम कम सा लग रहा है श्रृंगार हाय तौबा       
रोजा रखे हुए हैं दिन भर से मेरी आखें     
दीदार तेरा होगा इफ्तार हाय तौबा
हम हुस्न से भी ऊंचे वो इश्क से भी गहरे     
मिलने को बर्क सी है रफ्तार हाय तौबा          
चाहत में खत लिखा है खत में लिखी है चाहत   
हर लफ्ज़ पढ रही हूँ सौ बार हाय तौबा
….जिसकी उनकी सुरीली कंठ से मधुमय प्रस्तुति के पश्चात सब के मुखमंडल तृप्त भाव में दिखे।

गोष्ठी के अंत में वंदना सिंह  ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सबकी प्रस्तुतियों की मुक्तकंठ से सराहना की और लॉकडॉउन के माहौल में ऐसे आयोजनों की उपादेयता का पुरजोर शब्दों में समर्थन करते हुए इसकी निरंतरता को बनाये रखने की वकालत की। 

यद्यपि काव्योदय के संस्थापक कपिल मणि, कोटा (राजस्थान) के लॉकडाउन में  कोरोना पीड़ितों के मध्य उनके सहायतार्थ समाजिक जिम्मेवारियों के कारण अपने आने में असमर्थता जताते हुए इस गोष्ठी की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं भेजीं।

इस तरह से यह आभासी कवि गोष्ठी लॉकडाउन को धता बताते हुए अपने सफलतापूर्वक आयोजन में सफल रही जो अपनेआप में यादगार रही।
....

आलेख - सुनील कुमार 
रपट के लेखक का ईमेल - sunil21011964@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com













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