Wednesday 6 May 2020

विन्यास साहित्य मंच की आभासी काव्य संध्या 3.5.2020 को संपन्न

मैं खुद से नहीं मिलता ये मेरी कहानी है

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साहित्यिक संस्था "विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में ऑनलाइन काव्य-संध्या में दिल्ली, कलकत्ता, पटना, मुंगेर, समस्तीपुर और सिंगापुर के युवा कवियों ने सुनाईं कविताएँ

पटना। ऑनलाइन काव्य आयोजनों की श्रृंखला में विन्यास साहित्य मंच ने काव्य संध्या-4 का आयोजन रविवार को किया. इस आयोजन में देश-विदेश के 14 युवा कवियों ने शिरकत की. आयोजन की खास बात यह रही कि कार्यक्रम के दौरान देश के कई शहरों से वरिष्ठ कवियों ने ऑनलाइन जुड़कर युवा कवियों का हौसला बढाया. कार्यक्रम में सिंगापुर से लेकर दिल्ली, पटना, कलकत्ता, समस्तीपुर और मुंगेर के युवा कवियों ने अपनी कविताएँ सुनाई. गौरतलब है कि कोरोना संकट की इस घड़ी में कवि सम्मेलनों का भौतिक आयोजन संभव नहीं हो पाने की वजह से ऐसे आयोजन ऑनलाइन करवाना ही विकल्प रह गया है. ऐसे में विन्यास साहित्य मंच इस तरह के आयोजन करवा कर देश-दुनिया के युवा और वरिष्ठ साहित्यकारों को एक मंच प्रदान करने का निरंतर प्रयास कर रहा है.

कार्यक्रम में सिंगापुर से आईटी प्रोफेशनल सैयद काशिफ आज़ाद ने अपनी कहानी कुछ इस तरह बयां की -
आसेब है सदियों का, लम्हों की ज़बानी है
एक उम्र गुज़र जाना, अब्दी है के फानी है
कुछ जौक नहीं शामिल, लज्ज़त ही नहीं मिलती
मैं खुद से नहीं मिलता ये मेरी कहानी है

अपनी शेरो-शायरी से बड़े-बड़ों को लोहा मनवा चुके अक्स समस्तीपुरी ने अपनी मजबूरियों को कुछ इस तरह से देखा -
मैं जब भी पटरियों को देखता हूँ
तेरी-मेरी हदों को देखता हूँ
कभी मैं देखता हूँ तेरी तस्वीर
कभी मजबूरियों को देखता हूँ

दिल्ली से भाषाविद और युवा कवि देवेन्द्र शर्मा ने लोभ को गणितीय काव्य में ढालते हुए कुछ इस प्रकार परिभाषित किया -
दुनिया भर की तमाम सभ्यताओं के पतन का गुणनखंड करने पर
भाजक के रूप में प्राप्त होने वाला चर
लोभ है;
यह सभ्यताओं को विभाजित करता है
और शेष शून्य बचता है।

दिल्ली से विडियो ब्लॉगर प्रेरिका गुप्ता ने पिता का आँचल शीर्षक कविता से पिता का अपनी पुत्री के प्रति प्रेम को एक नई परिभाषा गढ़ी -
पिता अक्सर उलझे होते हैं 
समाज के बनाए नियमों 
और बेटियों के सपनों के बीच 
पर फिर भी कुछ पिता चुनते हैं 
अपनी बेटी और उनके सपनो को
और गढ़ते हैं पितृत्व की नई परिभाषा

दिल्ली से उर्दू के युवा शायर अजहर हाशमी सबक़त ने मंजर की उदासी को अपनी ग़ज़ल के माध्यम से रेखांकित करते हुए कहा -
सुलगती आहें बिखरती सांसें शिकस्ता लम्हें उदास मंज़र।
बना हुआ है कुछ ऐसा यारों अभी मेरे आस पास मंज़र।
अकीदतों में ज़माना उर्यां जहां भी देखूं वहां अयां है।
ये दौर सबक़त दिखा रहा है ख़ुदाओं का बे लिबास मंज़र। 

दिल्ली से इस काव्य-संध्या में शिरकत कर रहे पेशे से पत्रकार और तबीयत से साहित्यकार भागीरथ श्रीवास ने वास्तविक लड़ाई की कामना रखते हुए सिर्फ एक मच्छर से ज़िन्दगी की जंग हार जाने की बात कुछ इस तरह बताई -
हमें लड़ना था
खूंखार भेड़ियों से
गिद्धों से
आदमखोरों से
हमें निकलना था 
विभिन्न मोर्चों पर
बजाना था 
रणभूमि में बिगुल
स्पष्ट था लक्ष्य
महाभारत के 
अर्जुन की तरह
एकदम निशाने पर थी
मछली की आंख
कूच करने की 
तमाम प्रक्रियाएं
हो चुकी थीं पूरी 
लेकिन,
कूच से 
महज एक दिन पूर्व
मारे गए हम
मच्छरों से लड़ते हुए।

कलकत्ता से इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे युवा कवि  एकलव्य केशरी ने गीत के माध्यम से आदमीयत को याद रखने की सलाह देते हुए कहा -
आदमी को आदमी के काम आना चाहिए
आदमी को आदमियत याद रखनी चाहिए
कौन जन्मा संग लेकर टोलियां मुझको बता
और लेकर कौन धन दुनिया से होता है विदा

ग़ज़लों और गीतों का जाना पहचाना नाम सूरज ठाकुर बिहारी ने भी इस बज़्म में शिरकत की. उन्होंने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से इश्क को ख़ुदकुशी की संज्ञा दे डाली -
जाने क्यों ग़म से दोस्ती कर ली
मौत जैसी ये ज़िन्दगी कर ली
एक लड़की के प्यार में पड़ कर
मेरी खुशियों ने ख़ुदकुशी कर ली

पटना से इस काव्य संध्या में शिरकत कर रहीं पेशे से प्राध्यापक ऋचा वर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से अपनी यादों के निशान ढूँढने की कोशिश की -
नंगे पाँव चले थे जो रेट पर साथ-साथ,
आज उन क़दमों के निशान ढूंढ रही हूँ
कुछ हसीन पल जो बिताए थे हम साथ-साथ
आज उन यादों के निशाँ ढूंढ रही हूँ

पटना से ही युवा शायर विकास राज ने अपनी फितरत बदलने की नाकाम कोशिश को कुछ इस अंदाज़ में बयां किया:
लाख कोशिश तो की थी मैंने पर
अपनी फितरत बदल नहीं पाया,
लहर थी वो रुकी नहीं यारों,
मैं किनारा था चल नहीं पाया ।

पटना से ही इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे युवा कवि जयदेव मिश्रा ने प्रकृति की पीड़ा को बयान करती अपनी कविता प्रस्तुत की -
शब्द मेरा निशब्द पड़ा, अब काव्य करुण रस घोल रहा
लिखित लेखनी की रोशनाई, तरुण रक्त सैम खौल रहा
विकृत हुईं हैं आकांक्षाएं, मानव न प्रकृति को छोड़ रहा
व्याकुल प्रकृति खंडित करने को भेड झुंड में दौड़ रहा

मुंगेर से युवा ग़ज़लकार बिकास ने चरागों के हवा पर विजयी होने की कहानी कुछ इस तरह बताई -
मुकम्मल काफिला टूटा पड़ा है
सफ़र में था नया  टूटा  पड़ा  है
चराग़ों   की  नई  तहज़ीब  देखो
हवा  का  हौसला  टूटा  पड़ा  है

कार्यक्रम का संयोजन कर रहे दिल्ली से युवा ग़ज़लकार और विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चन्दन ने जिंदगी के दर्द भरे सफ़र को अपनी ग़ज़ल में पिरोते हुए कहा -
जिंदगानी की हर सफ़र तन्हा
अश्क करता रहा सफ़र तन्हा
बाँट कर मुस्कुराहटें ‘चन्दन’
दर्द सहता रहा मगर तन्हा

करीब दो घंटे तक चले इस कार्यक्रम के अंत में पटना के वरिष्ठ शायर कवि घनश्याम ने काव्य संध्या में शिरकत कर रहे सभी युवा कवियों/कवियात्रियों एवं उनका हौसला अफजाई कर रहे वरिष्ठ कवियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
.......

रपट के लेखक - चैतन्य चन्दन 
रपट लेखक का ईमेल आईडी - 
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