Tuesday, 30 June 2020

विन्यास साहित्य मंच द्वारा आयोजित आभासी ग़ज़ल गोष्ठी 28.6.2020 को सम्पन्न

बदमिजाजी सियासत की इतनी बढी / आग अपने ही घर को लगाने लगी

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आज की ग़ज़ल सिर्फ महबूबा को रिझाने की चीज नहीं रह गई है बल्कि उसका फलक काफी व्यापक हो गया है. अगर कहा जाय कि हिंदी ग़ज़ल ने शुरू से ही ऐसा तेवर दिखाया है तो शायद अतिशयोक्ति न होगी. अगर कोई ऐसी मज़लिस जमे जिसमें जिसे देखें वह नामी ग़ज़लकार ही दिखे तो क्या कहने! विन्यास की इस गोष्ठी में न सिर्फ इंसानियत  और मुहब्बत की बातें हुई बल्कि सियासत, ममता, बालश्रम, गृहबंदी (लॉकडाउन) आदि भी अछूते नहीं रहे. लेकिन जो भी बातें उठी पूरी गम्भीरता और सघनता के साथ. आइये देखते हैं इसमें क्या कुछ हुआ और क्या कुछ पढ़ा गया.  (-हेमन्त दास 'हिम')

पटना/दिल्ली/गाज़ियाबाद/जयपुर/मुंगेर/गोड्डा। कोरोना काल में ऑनलाइन साहित्यिक गोष्ठियों के आयोजन देशभर में परवान चढ़ रहा है. इसी क्रम में विन्यास साहित्य मंच ने रविवार 28 जून 2020 को ऑनलाइन ग़ज़ल गोष्ठी का आयोजन किया जिसमे देश कई राज्यों से वरिष्ठ और युवा ग़ज़लकारों ने शिरकत की. गूगल मीट प्लेटफार्म पर आयोजित इस कार्यक्रम में शायरों ने एक से बढ़कर एक गजलों से समां बाँध दिया. वरिष्ठ शायर और "नई धारा" साहित्यिक पत्रिका के संपादक डॉ शिवनारायण की अध्यक्षता में संपन्न इस ग़ज़ल गोष्ठी में जयपुर से निरुपमा चतुर्वेदी, गाज़ियाबाद से ममता लडीवाल, गोड्डा से वरिष्ठ शायर सुशील साहिल, मुजफ्फरपुर से डॉ भावना, मुंगेर से वरिष्ठ शायर राम बहादुर चौधरी ’चन्दन’ और अनिरुद्ध सिन्हा, भागलपुर से पारस कुंज के अलावा पटना से वरिष्ठ शायर घनश्याम, रमेश कँवल, आरपी घायल, आराधना प्रसाद, ज़ीनत शेख़ और युवा शायर कुंदन आनद ने शिरकत की. कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से युवा शायर चैतन्य चन्दन ने . करीब दो घटे तक चले इस कार्यक्रम में गजलों का लुत्फ़ उठाने कई श्रोता अंत तक जुड़े रहे. 

ग़ाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश से कार्यक्रम में शिरकत कर रहीं शायरा ममता लड़ीवाल ने सुनाया -
वक़्त ने बंदी बना कर रख दिया
सींखचों में क्यों मेरा घर रख दिया
फड़फड़ा कर रह गए हैं हौसले
ख़्वाब पर भी हमने पत्थर रख दिया

जयपुर की चर्चित शायरा निरुपमा चतुर्वेदी ने सुनाया -
इक अजब दर्द जगाती हैं तुम्हारी बातें, 
दिल में सैलाब सा लाती हैं तुम्हारी बातें।
दिल के हालात बताने की कशाकश को लिये,
कुछ सलीक़े से छुपाती हैं तुम्हारी बातें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर डॉ शिवनारायण ने सुनाया -
खेत में बारूद की फसलें उगाई जा रहीं
आंगनों में खौफ का दरिया बहाया जा रहा
बदमिजाजी सियासत की इतनी बढी
आग अपने ही घर को लगाने लगी

पटना से ही वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने सुनाया -
किसी के प्यार में सुधबुध कभी जो खो नहीं सकते
यक़ीनन  वो  जमाने  में किसी  के  हो  नहीं सकते
बचाकर  चाहिए  रखना हमेशा आँख  का  पानी
नहीं  तो दाग़  दामन का कभी हम धो नहीं सकते

पटना की शायरा आराधना प्रसाद ने सुनाया -
हौंसलों को मेरी मंजिल का पता है शायद
अब मेरी राह में  कंकड़ नहीं आने वाला
जिसकी हर बात पे सब लोग हँसा करते हैं
आज सर्कस में वो जोकर नहीं आने वाला

बरियारपुर मुंगेर से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर रामबहादुर चौधरी ‘चन्दन’ ने सुनाया -
इस तरह अक्सर हमें काटा गया है 
टुकड़े करके फिर उसे साटा गया है
लाश बनकर रह गई जो जिंदगानी
चील-कौओं में उसे बांटा गया है 

मुंगेर से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे ग़ज़लकार और आलोचक अनिरुद्ध सिन्हा ने कहा -
जब से  है  एक  चाँद  घटा में  छुपा हुआ 
तब  से है जुगनुओं  का  तमाशा लगा हुआ 
हिस्सा था एक भीड़ का कल तक जो आदमी 
रहता  है अब  हरेक  से  तन्हा  कटा हुआ

मुज़फ्फरपुर से जुडीं डॉ भावना ने कहा -
जिसे पढ़ने को जाना है,उसे नौकर बनाती है
हर इक छोटू के बचपन को गरीबी लील जाती है
नदी के द्वार पर जाकर बसेरा मत बना लेना 
बचाती है ये जीवन को तो सबकुछ भी डुबाती है

पटना से वरिष्ठ शायर रमेश कँवल ने कहा -
कभी बुलाओ, कभी मेरे घर भी आया करो
यही है रस्मे मुहब्बत इसे निभाया करो

भागलपुर से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर पारस कुंज ने कहा -
आदमी के नाम पर क्यों मर रहा है आदमी
इसलिए कि आदमी से डर रहा है आदमी

गोड्डा से वरिष्ठ शायर सुशील साहिल ने सुनाया :-
मैं रोज मान के बादल कहाँ से लाऊंगा
ख़ुशी उधार के हरपल कहाँ से लाऊंगा
सितारे-चाँद तो क़दमों में हैं मगर ऐ माँ
रफू किया तेरा आँचल कहाँ से लाऊंगा

पटना से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे वरिष्ठ शायर कवि घनश्याम ने सुनाया 
हमें वे खुद वे खुद आगे कभी आने नहीं देते
तरक्की की कोई तरकीब अपनाने नहीं देते
हमारी ज़िन्दगी पर हो गए वो इस कदर काबिज़
हमें अपने मसाइल आप सुलझाने नहीं देते 

पटना की चर्चित शायरा ज़ीनत शेख़ ने सुनाया 
अब मेरी ग़ज़लें रंग लाई हैं
मैंने कुछ शोहरतें कमाई हैं
कोई बादल यहाँ बरसता नहीं
यूं तो हरसू घटाएँ छाई हैं

पटना से युवा शायर कुंदन आनद ने सुनाया -
हम उजालों में जो आने लग गये
हमको  अंधेरे  दबाने  लग  गये
घर की हालत जब नहीं देखी गई
हम शहर जाकर कमाने लग गये

दिल्ली से कार्यक्रम का संचालन कर रहे युवा शायर और विन्यास साहित्य मंच के संयोजक चैतन्य चन्दन ने सुनाया -
जब भी इंसानियत ने ठानी है
नफरतों ने भी हार मानी है
अश्क आखों से बह रहे हैं या
दिलफरोशी की यह निशानी है.

इस तरह से सौहार्द और प्रेम की भावना के साथ इस कार्यक्रम का समापन हुआ. अंत में धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने किया.
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रपट के लेखक - चैतन्य चंदन
रपट के लेखक का ईमेल आईडी -
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Saturday, 27 June 2020

अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का 46वाॉ ऑनलाइन कवि सम्मेलन 11.6.2020 को संपन्न

पर्यावरण हमें कहे, मत काटो तुम पेड़ 

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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का ऑनलाइन कवि सम्मेलन दि. 11.6.2020 (कुछ अंश 7.6.2020 को भी हुए) सफल  रहा जिसमें कुल मिलाकर 35 प्रतिभागी सम्मिलित हुए अग्निशिखा के संग इस बार पर्यावरण के रंग  देखने को मिले 

मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया की लाकडाऊन और कोरोना जैसी महामारी के दौर में पर्यावरण पर कवि सम्मेलन ले कर जागृति लाने व देश को सुंदर  संदेश देने का काम तो घर बैठ कर आभासी (ऑनलाइन )कवि सम्मेलन के जरिए कर सकते है ,, बस इस लिये विभिन्न विषयों पर रोज़ काव्य सम्मेलन के साथ  " पर्यावरण " पर आयोजन  किया गया , लाकडाउन कुछ कुछ ढीला हो गया, लोग बाहर जाने लगे पर कवियों  के मंच इतनी जल्दी नहीं शुरु होंगे  तो घर रहकर देश विदेश में बैठे साहित्यकारों को एक मंच पर लाना हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार नित्य नया सृजन और नव साहित्यकारों को मार्गदर्शन देना

अग्निशिखा के संग काव्य के विविध रंग में हर बार नया विषय होता है ।इस बार का विषय था "पर्यावरण", मुख्य अतिथि थे  निहाल चंद शिवहरे (झांसी), विषेश अतिथि थे  महेश राजा (छतीसगढ़) डॉ अलका पाण्डेय  समारोह अध्यक्ष  थीं आशा  (इंदौर) और अतिथि निर्णायक समीक्षक थीं हेमलता मिश्रा  'मानवीडॉ अलका पाण्डेय।

मंच संचालन  किया डॉ अलका ने मुंबई से और रिशू  पाण्डेय ने नासिक से  माँ शारदे की वंदना की अर्चना पाण्डेय ने दिल्ली से 

पढ़ी गई रचनाओं की झलकी प्रस्तुत है - 

डॉ अलका पाण्डेय - 
प्रदूषण ओज़ोन परत को डँस रहा 
दिन पर दिन बढ़ रहा नहीं कोई अंत 
आओ मिलकर प्रदूषण को रोके प्रकृति की करे रक्षा 
वृक्षारोपण का प्रण ले , धरा की करे सुरक्षा 

बिगड़ता पर्यावरण
पर्यावरण बिगड़ता है सुन ले ऐ मनुष्य
अपना ही नुकसान कर ,क्यों होते हो खुश
काटते हो पेड़, ऑक्सिजन भी हुई है कम 
अफ्फान,निसर्ग, सूखा,ये कर देंगे तुमको खत्म

नीरजा ठाकुर पलावा,  डोंबीवली -
अबकी बरस संगी साथी सहित जब  तुम प्रवासी घर आओगे
झरझर बहते  झरने कल कल करती नदियों  निर्मल पाओगे
  
निहाल चन्द्र शिवहरे (झाँसी) -

हेमलता मिश्र "मानवी "
हम हकीकत से नजरें चुराते रहे
और समंदर को मीठा बताते रहे

ओमप्रकाश पांडेय -
फुहारें ही तो नया जीवन  देती दुनिया को,
 फुहारें ही तो पहनाती हरी चूनर धरा को.

चंदेल साहिब हिमाचल -
धरती है तो खेत है खेत है तो फ़सल है फ़सल है तो जीवन है तो हम हैं*
पानी है तो प्यास है प्यास है तो जीवन की आस है आस है तो हम हैं*

पल्लवी झा (रूमा) रायपुर छत्तीसगढ़ - 
अब रूठी प्रकृति को मनाना ही होगा
प्रकृति का हरित नव-श्रृंगार करके,
दुल्हन की तरह सजाना होगा
पर्यावरण के सुप्तप्रेम को
जन-जन में जगाना होगा ।
वर्षा को घटाओं का,
ग्रीष्म को तपन का,
शीत को शीतलता का,
अहसास कराना होगा।
रूठी प्रकृति को
मनाना होगा  ।

अनिता शारदेंदु शेखर झा -
बीज मंत्र से रोपित संसार है 
पर्यावरण साँसों का नाम हैं ।

शोभा किरण जमशेदपुर झारखंड -
आज प्रदूषण का संकट ये,सबको बहुत सताता है
शुद्ध हवा भी ना मिलती है,सांस न लेने पाता है
फिर क्यों बना है मूढ़ तू मानव,पेड़ो को कटवाता है
वन न होंगे जल न होगा,वर्षा दूर भगाता है।

डॉ पूर्वा शर्मा, कांकेर -
यूं उसका रोना चिल्लाना सहमना और चुप हो जाना।
जब इंसानों द्वारा चीरा जाता है उसके वृक्षों की डालियों को,
हाथ जोड़ कहती है रोक लो अपने हथियार 
और दे दो मुझे जीवनदान।

छगनराज राव "दीप" जोधपुर -
हर जगह पर पेड़ पौधें
मिलकर सब खूब लगाओ
स्वस्थ रहकर के जीवन
जीने की आस जगाओ

दीपा परिहार जोधपुर (राज) -
पर्यावरण हमें कहे, मत काटो तुम पेड़ |
बाग, बगीचे हो भरे, पेड़ लगे  हर मेड़ ||

चंद्रिका व्यास खारघर नवी मुंबई -
पलको में ख्वाब लिए प्रवासी
लौटकर जब तुम आओगे
वर्षा का मधुर संगीत लिए
सुख का प्रतीक बन
हरे रंग की चादर ओढ़े
वसुंधरा को तुम्हारा स्वागत करते पाओगे!

पदमा तिवारी दमोह -
हिंद देश यह भारत प्यारा
इसको हरा भरा बनाना है
प्रकृति की करके रक्षा पर्यावरण बचाना है
             
मधु तिवारी ,कोंडागाँव, छत्तीसगढ़ -
पल पल बदल रही प्रकृति भेष
सबको देती यह सन्देश

प्रिया उदयन,   केरला -
प्रकृति की पुकार
महानगर की भीड़भाड़ में
सुनाई दे रही है पुकार
प्रकृति का रुदन
नदियों का क्रंदन

 डा राजलक्ष्मी शिवहरे- 
आज आकाश  ने
   धरती से कहा--
   तूफान  आने वाला है।
   तो मैं  क्या करूँ ।
  बढ़ रही है  आबादी 
  मैं  कैसे सहन करूँ ।
 प्रेरणा सेन्द्रे (म. प्र. ) -
पर्यावरण बनता है जैसे पौधों से 
घर संसार बनता है वैसे बेटी से
 बेटी बचाओ का प्रयास जैसे हो रहा
वैसे ही पर्यावरण का विकास मानव कर रहा।

डा.साधना तोमर -
आओ सब संकल्प करें
पर्यावरण बचायें हम।
सुन्दर पुष्पों और पेड़ों से
आओ इसे सजायें हम।।
घने वृक्ष और वन बचाकर
पशु-पक्षी  बचायें  हम।
पर्यावरण बचायें हम।

ऐश्वर्या जोशी -
पर्यावरण की आवाज
पर्यावरण शब्द सुनते ही
ऑखों के सामने आता है 
सुंदर झाड़ियॉ हरतरफ हरियाली
निर्मल नदियों का पानी
पंछियों के गीत
ओ हो कहॉ गए ओ हसीन दिन
यह कैहने के लिए भी

नीना छिब्बर -
सूर्य सब के दादा हैं
सुबह उठ, करो प्रणाम
पाओ ऊर्जा का वरदान |
चंदा भी है मामा सबका

अंजली तिवारी छत्तीसगढ़ -
पेड पौधे की जगह कारखाने है
शुद्ध वायु की जगह काला उठता धूआं है
जो पर्यावरण को दूषित कर रहा है
जब मै कालेज से दोस्तों के साथ आया करता था ।

सब ने एक दूसरे को सुना व सराहा निर्णायकों ने शपष्ट टिप्पणी दी सबको बहुत कुछ सीखने व समझने को मिला
इस कार्यक्रम की विशेषता यह थी की महिलाओं की संख्या अधिक रही  यहां कोई छोटा बड़ा नहीं सब एक-दूसरे से सीखने की इच्छा रखते हैं व मार्गदर्शन करते हैं ।

सबको बधाई और शुभकामनाएं देकर कार्यक्रम में सबका आभार नीरजा ठाकुर ने किया । सभी अतिथियों ने दो-दो शब्द कहे मंच को आशिर्वाद दे कर अभिभूत किया ।डॉ हेमलता बहुत सुंदर समीक्षा की सबको सराहा 
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रपट की लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय
लेखिका का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com






Wednesday, 24 June 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद का लघुकथा सम्मलेन 21.6.2020 को संपन्न

जीवन की प्रभुता की संवेदनक्षम अभिव्यक्ति - डॉ. शिव नारायण
लघुकथा मानवीय संवेदना को झाकझोरनेवाले क्षणांशों की अभिव्यक्ति -भगवती प्र. द्विवेदी 

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(पद्य में ग़ज़ल और गद्य में लघुकथा पिछले कुछ दशकों से काफी ज्यादा लोकप्रिय हुईं हैं और दिन-प्रतिदिन और भी अधिक लोकप्रिय होती जा रहीं हैं इसका कारण सिर्फ उनके आकार का छोटा होना ही नहीं बल्कि उनकी मारक क्षमता का अधिक होना भी है। लघुकथा में कोई भूमिका की जरूरत नहीं होती और लेखक सीधा अपने कथ्य को सम्प्रेषित करता है बिना किसी ताम-झाम के। सिर्फ पात्रों और कथानक का ताना-बुना रचकर लघुकथाकार पाठक को उस बिंदु पर लाकर छोड़ देता है जहाँ पाठक सन्न रह जाता है अथवा गहरे सोच में पड़ जाता है। ये सब तो हमारे पाठकीय विचार रहे इस विधा पर पटना के अत्यधिक सक्रिय साहित्यकार श्री सिद्धेश्वर ने पुन: अपनी संस्था के माध्यम से एक आभासी गोष्ठी आयोजित कर विद्वानों के विचार लेकर वृहद जनसमुदाय तक पहुँचाने का अत्यंत सराहनीय काम किया है। आप भी विद्वानों के विचारों से आप्यायित होइये। - हेमन्त दास 'हिम')

पटना:21/06/2020! भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में, फेसबुक के" अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका " के पेज पर," हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन" के सप्ताहिक लाइव कार्यक्रम  में, देश-विदेश के दो दर्जन से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी नवीनतम लघु कथाओं की लाइव प्रस्तुति दी।

संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि - " लघुकथाओं में घटनाओं और स्थितियों का चित्रण  सांकेतिक रूप में उभरता है, तब वह अधिक प्रभावकारी बन पड़ती है। धार्मिक आडंबर से लेकर सारी सामाजिक विसंगतियों तक समकालीन लघुकथाओं को देखी जा सकती है।. 
         
लघुकथा सम्मेलन के मुख्य अतिथि विकेश निझावन(हरियाणा) ने कहा कि-" ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी का आयोजन बहुत ही सार्थक प्रयास है, जो खासकर लघुकथा के विकास में दोहरी भूमिका निभा रही है और इसे व्यापक फलक पर ला खड़ा किया है।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि - "लघुकथा हालांकि क्षणांशों की अभिव्यक्ति होती है, पर यह क्षण विशेष में ही मानवीय संवेदना को झकझोर कर रख देती है। आज की अधिकांश लघुकथाएं इस कसौटी पर खरी उतरती हैं ।प्रतिष्ठित एवं नवोदित रचनाकारों ने एक साथ गहरा प्रभाव छोड़ा और चोट व कचोट से लबरेज़लघुकथाओं की मार्फत श्रोताओं को उद्वेलित-आह्लादित किया ।इस अभिनव पेशकश के लिए संयोजक-संचालक सिद्धेश्वर को साधुवाद!

लघुकथा सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि, नई धारा के संपादक, डाॅ शिवनारायण ने कहा कि - "समकालीन हिंदी लघुकथा का वर्तमान अपने समय और संस्कृति की सार्थक चिंताओं की संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के कारण उज्ज्वल है। देखा जाए तो लघुकथा लघुता में जीवन की प्रभुता की संवेदनक्षम अभिव्यक्ति ही तो है।एक विधा के रूप में लघुकथा ने न केवल अपनी स्थिति मजबूत कर ली है,बल्कि अपने समय और समाज के यथार्थ को अधिक से अधिक व्यक्त करने के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय भी है।लघुकथा को अपनी वेब संगोष्ठी में केन्द्रीयता देकर आप भी इसके विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

लगभग दो घंटे तक ऑनलाइन चली इस  लघुकथा सम्मेलन में, विभा रानी श्रीवास्तव (अमेरिका) ने" वृद्धाश्रम", प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र' ने'जागरूक इंसान", डाॅअनिता राकेश ने "मैं हूं लघुकथा", पूजा गुप्ता (चुनार) ने "पापा", सिद्धेश्वर ने "बूढ़ा होना पाप तो नही! ", भगवती प्रसाद द्विवेदी ने" प्रणय ", डाॅ शिवनारायण ने" आजकल", मधुरेश नारायण ने "दरियादिली", विकेश निझावन ने" आचारसंहिता", ", और जयंत ने " परिचय",  तपेश भौमिक ने " (पश्चिम बंगाल) ने" बेदर्दी" डाॅ कमल चोपड़ा (नई दिल्ली) में" खेलने दो!",विजयानंद विजय (मुजफ्फरपुर) ने "झूठा सच", डाॅ सतीश राज पुष्करणा ने 'इक्कीसवीं सदी", डाॅ संतोष गर्ग (चंडीगढ) ने" विचार बदल गया, डाॅ  ध्रुव कुमार ने -" कलंक धुल गया", ", मीना कुमारी परिहार ने' जख्म", प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर) ने 'परिणाम', पुष्परंजन कुमार ने 'पढी-लिखी नहीं हो! ",गीता' चौबे (रांची) ने" नारी", ऋचा वर्मा ने"पापा आप सही हैं! "राजप्रिया रानी( रांची) ने पिताजी", नीतू सुदीप्ति नित्या' (भोजपुर) ने" 'मछली " और विनोद प्रसाद (खगौल) ने" रिश्ते " लघुकथाओं का पाठ किया!
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.प्रस्तुति: सिद्धेश्वर
पता - अवसर प्रकाशन / हनुमान नगर/ कंकड़बाग, पटना 800026 (बिहार) 
मोबाइल - 92347 60365 
ईमेल:sidheshwarpoet.art@gmail.com
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अखिल भारतीय अग्निशिखा काव्य मंच का 48वां आभासी कवि सम्मेलन हुआ 21.6.2020 को सम्पन

देश पर कुर्बान कर दी हंसते हंसते जवानी 

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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का ऑनलाइन कवि सम्मेलन बहुत ही सफल  रहा! जिसमें कुल मिलाकर 90 प्रतिभागी सम्मिलित हुए,
अग्निशिखा के संग विषय:- स्वतंत्र एवं "स्वतंत्रता" के ख़ूब रंग , देखने व सुनने को मिलेमंच की अध्यक्षा अलका पाण्डेय जी ने बताया की लॉकडाउन और कोरोना जैसी महामारी के दौर में यह जरुरी था की हम स्वतंत्रता पर बात करें पर चीन की दादागीरी  के कारण इस समय हम और कुछ भले ही न कर पायें पर जो बहादुर सैनिक सीमा पर लड़ते लड़ते शहीद हुए हैं उन्हें श्रद्धांजलि तो दे ही सकते हैं साथ ही आनलाइन कवि सम्मेलन के साथ जागृति लाने व देश को सुंदर संदेश देने का काम तो घर बैठ ही कर सकते है 

आज सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारी सोच को हम सकारात्मक कैसे रखें व समय का सदुपयोग कैसे करें एक रचनाकार को लिखने से अच्छा और काव्यपाठ से अच्छा कुछ लग ही नहीं सकता बस इस लिये विभिन्न विषयों पर रोज काव्य सम्मेलन के क्रम में इस दिन विषय "स्वतंत्र व स्वतंत्रता" पर आयोजन किया गया, लाकडाउन अब कुछ कुछ ढीला हो गया है, लोग बाहर तो जाने लगे पर कवियों के बाह्य मंच इतनी जल्दी नहीं पुनः चालू होंगे इसलिए घर पर  रहकर देश विदेश में बैठे साहित्यकारों को एक मंच पर लाना हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार नित्य नया सृजन और नव साहित्यकारों को मार्गदर्शन देना तथा कोरोना योद्धाओं को सम्मान व सरहद पर शहीद हुए वीरों को बहादुरी उनकी निष्ठा व सहयोग का अभिनंदन करना हम सभी साहित्यकारों का दायित्व बनता है। सब की रचनाएं सुनना व समझना एक नहीं अनेकों रचनाओं को एक ही मंच पर पढ़ना सुनना  ये संस्था की बहुत बड़ी उपलब्धि है ।

इस दिन की गोष्ठी के मुख्य अतिथी थे -
१. डॉ. अवधेश अवस्थी- शिशुरोग विशेषज्ञ- रेल्वे बलसाड़
२. श्री सुनिल दत्त मिश्रा- छत्तीसगढ (फिल्म कलाकार)
३.  डा अंरविद श्रीवास्तव असीम - दतिया ...
४. संजय मालवी - इॉदौर
मंच संचालन  किया डॉ अलका पांडेय ,मुंबई से  चंदेल साहिब (विक्की चंदेल) ने हिमाचल प्रदेश से  रिशू पाण्डेय  ने  नासिक से  और  डा प्रतिभा पराशर , शोभा रानी तिवारी , चंदेल साहिब , जनार्दन शर्मा, सुरेन्द्र हरड़े ने विभिन्न स्थानॉ से किया। माँ शारदे की वंदना की-शुभा शुक्ला निशा ने

सबने सरस्वती वंदना के बाद चीन बॉर्डर पर शहीद हुए जवानों और कोरोना योद्धाओं का सलामी दी!

डा अलका पाण्डेय मुम्बई ने देशभक्ति पूर्ण कविता पढ़ी - 
देश के वीर जवानों देते तुम्हें सलामी
देश पर कुर्बान कर दी हंसते हंसते जवानी 
बताया तुमने देश के तिंरगे का मान
दुश्मन को मार गिराया, देते तुम्हें सलामी 

चंदेल साहिब ने  बिलासपुर से पढ़ा -
क्यों सूख गया वो पनघट
बावड़ी कुँए सब हुए ख़त्म
आधुनिकता के इस दौर ने
ख़त्म किया सादा सरल जीवन

 डॉ .प्रतिभा कुमारी पराशर ने पढ़ा -
कह रही है आज प्रतिभा धैर्य अब तो हम रखें
संकटों से तंग हो इसको ना मिटाना चाहिए

बलरामसोनी, विशिख, - 
पर विशिख मन जानता मुश्किल सफर हो जाएगा।
आते जाते रास्ते में याद  कितना आएगा। 

सम्पूर्णा नन्द द्विवेदी -
जो दस को मारा एक ने ..
मारकर भले गए 
तेरे अनर्थ सोच को समाप्त कर चले गए

डा. साधना तोमर -
अपनी स्वतंत्रता का उपयोग
दूसरों की आज़ादी छीनने के लिये कभी मत कीजिये ।
यही मेरी प्रार्थना है ।

मीरा भार्गव सुदर्शना-
सफल सुफल मलयानिल सुखकर,
फहरे मुक्त तिरंगा नभ  पर।
 शक्ति समुन्नत  समुचित  वैभव, 
निष्कंटक  हो  चलन  देश  का।

आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश -
राष्ट्र हमारा है स्वतंत्र, संविधान भी स्वतंत्र है
बढ़िया बना रखी व्यवस्था,
सजा हुआ गणतंत्र है ।

प्रतिभागी थे:-
1) शकुंतला पावनी - चंडीगढ़
2) शोभा रानी तिवारी
3) दिनेश शर्मा
4) ज्योति जलज
5) सीमा दुबे
6) मुन्नी गर्ग
7) इंद्राणी साहू साँची
8) छगनराज राव "दीप" जोधपुर
9) मंजुला वर्मा हिमाचल प्रदेश
10) डॉ अंजुल कंसल"कनुप्रिया"
11) अनिता झा
12) दीपा परिहार दीप्ति जोधपुर
13) रानी नारंग
14) डॉ दविंदर कौर
15) ओमप्रकाश पांडेय नवी मुंबई
16) डॉ गुरिंदर गिल मलेशिया
17) डॉ पुष्पा गुप्ता मुजफ्फरपुर बिहार
18) गरिमा लखनऊ
19) डॉ ज्योत्सना सिंह लखनऊ
20)डॉ रश्मि शुक्ला प्रयागराज
21)सुषमा शुक्ला इंदौर
22) आशा जाकड़
23) रागिनी मित्तल
24) सुनीता अग्रवाल इंदौर मध्यप्रदेश
25)पदमा ओजेंद्र तिवारी दमोह
26) सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश
27)मधु वैष्णव मान्या जोधपुर
28)द्रोपती साहू सरसिज छत्तीसगढ
29)डॉ नेहा इलाहाबादी दिल्ली
30)अर्चना पाठक
31)सीमा निगम रायपुर छत्तीसगढ़
32)मधु तिवारी कोंडागांव छतीसगढ़
33) रानी अग्रवाल मुंबई
34) वंदना रमेश चंद्र शर्मा देवास
35)ऐश्वर्या जोशी पुणे
36) डॉ संगीता पाल गुजरात
37) गोवर्धन लाल बघेल छत्तीसगढ़
38) वन्दना श्रीवास्तव
39) डाॅ0 उषा पाण्डेय कोलकाता
40)कवि आनंद जैन अकेला कटनी मध्यप्रदेश
41)शुभा शुक्ला निशा
रायपुर छत्तीसगढ़
42)अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर झारखंड
43) रजनी अग्रवाल जोधपुर
44) कल्पना भदौरिया स्वप्निल उ प्र
45) सुरेंद्र हरड़े कवि नागपुर
46) पद्माक्षी शुक्ल, पुणे
47) शेखर रामकृष्ण तिवारी, आबू धाबी
48)ज्ञानेश कुमार मिश्रा
49) संजय कुमार मालवी आदर्श
50) जीवन खोबरागड़े नागपुर
51) डा राम स्वरुप साहू मुंबई
52) विजय बाली जोधपुर
53) शोभा किरण
54) नीलम पांडेय गोरखपुर
55) वैष्णो खत्री जबलपुर
56)डॉ मीना कुमारी परिहार'पटना
57)हीरा सिंह कौशल हिमाचल प्रदेश
58)गणेश निकम  चाळीसगाव महाराष्ट्र
59) उपेंद्र अजनबी गाजीपुर उत्तर प्रदेश
60)डा. महताब आजाद
उत्तर प्रदेश
61) डा साधना तोमर, बागपत, यू.पी.
62) विजय कान्त द्विवेदी मुंबई
63) रविशंकर कोलते नागपुर
64) गीता पांडेय बेबी जबलपुर
65)इला श्री जायसवाल
नोएडा
66) राजीव श्रीवास्तव
लखनऊ
67)रामेश्वर प्रसाद गुप्ता मुंबई
68)डॉ शैलजा करोडे
69)प्रिया उदयन, केरला
70)अश्मजा प्रियदर्शिनी पटना बिहार
71) हर्षिता वर्मा गाजियाबाद
72) कवि शरद अजमेरा वकील
73) ज्योति भाष्कर ज्योतिर्गमय (बिहार)
74)आशा गर्ग
75) सुरेंद्र कुमार जोशी देवास
76)डॉ भावना एन सावलिया राजकोट गुजरात
77) मीरा भार्गव सुदर्शना कटनी
78)बलराम सोनी ,विशिख। झांसी
79) सम्पूर्णानंद द्विवेदी - लखनऊ
80)कुमारी भारती हिमाचल प्रदेश
81) डॉ लीला दीवान जोधपुर
82) अरविंद श्रीवास्तव"
83) प्रतिभा कुमारी पराशर"
84) जनार्दन शर्मा आशू कवि"
85) डॉ अल्का पांडेय मुंबई"
86) चंदेल साहिब" बिलासपुर हि. प्र.

सब ने एक दूसरे को सुना व सराहा, निर्णायकों ने स्पष्ट टिप्पणी दी सबको बहुत कुछ सीखने व समझने को मिला। इस कार्यक्रम की विशेषता यह थी की महिलाओं की संख्या अधिक रही यहां कोई छोटा बड़ा नहीं सब एक दूसरे से सिखने व सिखाने की इच्छा रखते हैं व एक दूसरे का भरपूर मार्गदर्शन भी करते हैं

सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देकर कार्यक्रम में सबका आभार सजय मालवी ने किया। सभी अतिथियों ने दो-दो शब्द कहे।  सम्मिलित प्रतिभागियों और अतिथियों का आभार संजय मालवी जी ने व्यक्त किया। अग्निशिखा के संग काव्य के विविध रंग के अगले २८/६/२०२० के काव्यपाठ का विषय है “मजदूर "।
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रपट की लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय
लेखिका का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com






Tuesday, 23 June 2020

तूफान में कश्ती है / अर्जुन प्रभात की दो ग़ज़ल और एक कविता

1. ग़ज़ल

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      तूफान में कश्ती है, भगवान बचा लेना 
   मिट जाए न इन्सान की पहचान बचा लेना।

      कश्ती है समंदर में लहरों का थपेड़ा है 
    खतरे में आज आदमी की जान बचा लेना।

     मल्लाह ने कश्ती को मझधार में छोड़ा है 
     तेरे ही आसरे सब समान बचा लेना ।

     इस त्रासदी के आगे लाचार हम सभी हैं 
     तुम जिंदगी के सारे अरमान बचा लेना ।

    नफरत की क्यारियों ने बांटा है आदमी को
       'अर्जुन' ये इल्तज़ा है, इंसान बचा लेना ।
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 2. आईना 

  यारों नहीं नफ़रत का है हकदार आईना 
   पत्थर नहीं मारो, न गुनाहगार आईना ।

 ये दिन को दिन कहा है, क्या इससे खफा हो
   इतनी  सी बात का ये सज़ावार आईना ।

     ये आईना रखता है टूटने का हौसला 
     सच बोल के टूटा है कई बार आईना ।

    यह टूट भले जाए, पर झुक नहीं सकता
    टूटा भी मगर सच का है श्रृंगार आईना ।

    क्या आईने को तोड़ के सच को छुपाओगे?
    अर्जुन न छोड़ पायेगा अधिकार  आईना ।
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3. नपी तुली परिभाषा 

सोये मन के भाव सभी हैं 
मूक हृदय की भाषा ।
कौन गढ़े मानव जीवन की 
नपी तुली परिभाषा ? 

युगद्रष्टा ने बंद कर रखी 
अपनी दोनों आँखें 
मानो अब गतिहीन हो गयीं 
मन मधुकर की पाँखें 
आज न उसके मन में है 
कुछ करने की अभिलाषा।

युगस्रष्टा सुविधा भोगी है 
आज न सच्चा साधक 
सरस्वती को छोड़ बना है 
लक्ष्मी का आराधक 
दिनानुदिन बढ़ती जाती है 
उसकी अर्थ पिपासा ! 

आज क्रौंच वध की गाथाएँ 
विचलित उसे न करतीं 
बाल्मीकि के अंतःस्थल को
नहीं भाव से भरती 
आज वधिक के आगे नत 
ले कुछ पाने की आशा !

हाथ जोड़कर कलम खड़ी 
शक्तिशालियों के आगे 
बिके हुए हैं कलमकार 
कर्तव्य भाव निज त्यागे 
अंधकार का राज हो गया 
लगता दिवस अमा सा !

लुप्त हुआ सहितस्य भाव 
बढ़ गयी आज गुटबंदी 
कविता की हत्या कर हँसती
आज छुद्र तुकबंदी 
मंचों पर प्रपंच हावी है 
करते भाट तमाशा !

आत्ममुग्ध साहित्यकार है 
खुद अपना यश गाता 
सम्मानित करता खुद को 
अभिनंदन ग्रंथ छपाता 
है छपास की भूख उसे 
वह तो है यश का प्यासा !

अपना कंधा अपनी चादर 
अपना माईक माला 
जो भी जी में आये कर लो 
कौन रोकने वाला 
जाति बहिष्कृत करो उसे 
जो कहता सत्य जरा सा !

शब्द कार अपने को यूँ ही 
कब तक भला छलेगा 
बिना साधना कहो सृजन का 
कैसे दीप जलेगा 
बनना है साहित्यकार को 
अब कबीर दुर्वासा !

करो साधना सच्ची तुम तो 
सिद्धि स्वयं आयेगी 
आने वाली पीढ़ी निश्चय 
यश तेरा गायेगी 
चमकोगे साहित्य गगन में 
तुम भी तो दिनकर सा !
कौन गढ़े मानव जीवन की 
नपी तुली परिभाषा ? 
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कवि - अर्जुन प्रभात
पता - मोहीउद्दीन नगर, समस्तीपुर (बिहार)
ईमेल आईडी - -arjunprabhat1960@gmail.c