Saturday 27 June 2020

अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का 46वाॉ ऑनलाइन कवि सम्मेलन 11.6.2020 को संपन्न

पर्यावरण हमें कहे, मत काटो तुम पेड़ 

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अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच का ऑनलाइन कवि सम्मेलन दि. 11.6.2020 (कुछ अंश 7.6.2020 को भी हुए) सफल  रहा जिसमें कुल मिलाकर 35 प्रतिभागी सम्मिलित हुए अग्निशिखा के संग इस बार पर्यावरण के रंग  देखने को मिले 

मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया की लाकडाऊन और कोरोना जैसी महामारी के दौर में पर्यावरण पर कवि सम्मेलन ले कर जागृति लाने व देश को सुंदर  संदेश देने का काम तो घर बैठ कर आभासी (ऑनलाइन )कवि सम्मेलन के जरिए कर सकते है ,, बस इस लिये विभिन्न विषयों पर रोज़ काव्य सम्मेलन के साथ  " पर्यावरण " पर आयोजन  किया गया , लाकडाउन कुछ कुछ ढीला हो गया, लोग बाहर जाने लगे पर कवियों  के मंच इतनी जल्दी नहीं शुरु होंगे  तो घर रहकर देश विदेश में बैठे साहित्यकारों को एक मंच पर लाना हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार नित्य नया सृजन और नव साहित्यकारों को मार्गदर्शन देना

अग्निशिखा के संग काव्य के विविध रंग में हर बार नया विषय होता है ।इस बार का विषय था "पर्यावरण", मुख्य अतिथि थे  निहाल चंद शिवहरे (झांसी), विषेश अतिथि थे  महेश राजा (छतीसगढ़) डॉ अलका पाण्डेय  समारोह अध्यक्ष  थीं आशा  (इंदौर) और अतिथि निर्णायक समीक्षक थीं हेमलता मिश्रा  'मानवीडॉ अलका पाण्डेय।

मंच संचालन  किया डॉ अलका ने मुंबई से और रिशू  पाण्डेय ने नासिक से  माँ शारदे की वंदना की अर्चना पाण्डेय ने दिल्ली से 

पढ़ी गई रचनाओं की झलकी प्रस्तुत है - 

डॉ अलका पाण्डेय - 
प्रदूषण ओज़ोन परत को डँस रहा 
दिन पर दिन बढ़ रहा नहीं कोई अंत 
आओ मिलकर प्रदूषण को रोके प्रकृति की करे रक्षा 
वृक्षारोपण का प्रण ले , धरा की करे सुरक्षा 

बिगड़ता पर्यावरण
पर्यावरण बिगड़ता है सुन ले ऐ मनुष्य
अपना ही नुकसान कर ,क्यों होते हो खुश
काटते हो पेड़, ऑक्सिजन भी हुई है कम 
अफ्फान,निसर्ग, सूखा,ये कर देंगे तुमको खत्म

नीरजा ठाकुर पलावा,  डोंबीवली -
अबकी बरस संगी साथी सहित जब  तुम प्रवासी घर आओगे
झरझर बहते  झरने कल कल करती नदियों  निर्मल पाओगे
  
निहाल चन्द्र शिवहरे (झाँसी) -

हेमलता मिश्र "मानवी "
हम हकीकत से नजरें चुराते रहे
और समंदर को मीठा बताते रहे

ओमप्रकाश पांडेय -
फुहारें ही तो नया जीवन  देती दुनिया को,
 फुहारें ही तो पहनाती हरी चूनर धरा को.

चंदेल साहिब हिमाचल -
धरती है तो खेत है खेत है तो फ़सल है फ़सल है तो जीवन है तो हम हैं*
पानी है तो प्यास है प्यास है तो जीवन की आस है आस है तो हम हैं*

पल्लवी झा (रूमा) रायपुर छत्तीसगढ़ - 
अब रूठी प्रकृति को मनाना ही होगा
प्रकृति का हरित नव-श्रृंगार करके,
दुल्हन की तरह सजाना होगा
पर्यावरण के सुप्तप्रेम को
जन-जन में जगाना होगा ।
वर्षा को घटाओं का,
ग्रीष्म को तपन का,
शीत को शीतलता का,
अहसास कराना होगा।
रूठी प्रकृति को
मनाना होगा  ।

अनिता शारदेंदु शेखर झा -
बीज मंत्र से रोपित संसार है 
पर्यावरण साँसों का नाम हैं ।

शोभा किरण जमशेदपुर झारखंड -
आज प्रदूषण का संकट ये,सबको बहुत सताता है
शुद्ध हवा भी ना मिलती है,सांस न लेने पाता है
फिर क्यों बना है मूढ़ तू मानव,पेड़ो को कटवाता है
वन न होंगे जल न होगा,वर्षा दूर भगाता है।

डॉ पूर्वा शर्मा, कांकेर -
यूं उसका रोना चिल्लाना सहमना और चुप हो जाना।
जब इंसानों द्वारा चीरा जाता है उसके वृक्षों की डालियों को,
हाथ जोड़ कहती है रोक लो अपने हथियार 
और दे दो मुझे जीवनदान।

छगनराज राव "दीप" जोधपुर -
हर जगह पर पेड़ पौधें
मिलकर सब खूब लगाओ
स्वस्थ रहकर के जीवन
जीने की आस जगाओ

दीपा परिहार जोधपुर (राज) -
पर्यावरण हमें कहे, मत काटो तुम पेड़ |
बाग, बगीचे हो भरे, पेड़ लगे  हर मेड़ ||

चंद्रिका व्यास खारघर नवी मुंबई -
पलको में ख्वाब लिए प्रवासी
लौटकर जब तुम आओगे
वर्षा का मधुर संगीत लिए
सुख का प्रतीक बन
हरे रंग की चादर ओढ़े
वसुंधरा को तुम्हारा स्वागत करते पाओगे!

पदमा तिवारी दमोह -
हिंद देश यह भारत प्यारा
इसको हरा भरा बनाना है
प्रकृति की करके रक्षा पर्यावरण बचाना है
             
मधु तिवारी ,कोंडागाँव, छत्तीसगढ़ -
पल पल बदल रही प्रकृति भेष
सबको देती यह सन्देश

प्रिया उदयन,   केरला -
प्रकृति की पुकार
महानगर की भीड़भाड़ में
सुनाई दे रही है पुकार
प्रकृति का रुदन
नदियों का क्रंदन

 डा राजलक्ष्मी शिवहरे- 
आज आकाश  ने
   धरती से कहा--
   तूफान  आने वाला है।
   तो मैं  क्या करूँ ।
  बढ़ रही है  आबादी 
  मैं  कैसे सहन करूँ ।
 प्रेरणा सेन्द्रे (म. प्र. ) -
पर्यावरण बनता है जैसे पौधों से 
घर संसार बनता है वैसे बेटी से
 बेटी बचाओ का प्रयास जैसे हो रहा
वैसे ही पर्यावरण का विकास मानव कर रहा।

डा.साधना तोमर -
आओ सब संकल्प करें
पर्यावरण बचायें हम।
सुन्दर पुष्पों और पेड़ों से
आओ इसे सजायें हम।।
घने वृक्ष और वन बचाकर
पशु-पक्षी  बचायें  हम।
पर्यावरण बचायें हम।

ऐश्वर्या जोशी -
पर्यावरण की आवाज
पर्यावरण शब्द सुनते ही
ऑखों के सामने आता है 
सुंदर झाड़ियॉ हरतरफ हरियाली
निर्मल नदियों का पानी
पंछियों के गीत
ओ हो कहॉ गए ओ हसीन दिन
यह कैहने के लिए भी

नीना छिब्बर -
सूर्य सब के दादा हैं
सुबह उठ, करो प्रणाम
पाओ ऊर्जा का वरदान |
चंदा भी है मामा सबका

अंजली तिवारी छत्तीसगढ़ -
पेड पौधे की जगह कारखाने है
शुद्ध वायु की जगह काला उठता धूआं है
जो पर्यावरण को दूषित कर रहा है
जब मै कालेज से दोस्तों के साथ आया करता था ।

सब ने एक दूसरे को सुना व सराहा निर्णायकों ने शपष्ट टिप्पणी दी सबको बहुत कुछ सीखने व समझने को मिला
इस कार्यक्रम की विशेषता यह थी की महिलाओं की संख्या अधिक रही  यहां कोई छोटा बड़ा नहीं सब एक-दूसरे से सीखने की इच्छा रखते हैं व मार्गदर्शन करते हैं ।

सबको बधाई और शुभकामनाएं देकर कार्यक्रम में सबका आभार नीरजा ठाकुर ने किया । सभी अतिथियों ने दो-दो शब्द कहे मंच को आशिर्वाद दे कर अभिभूत किया ।डॉ हेमलता बहुत सुंदर समीक्षा की सबको सराहा 
....

रपट की लेखिका - डॉ अलका पाण्डेय
लेखिका का ईमेल आईडी - alkapandey74@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com






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