Wednesday 3 June 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के द्वारा 31.5.2020 को आभासी कवि गोष्ठी सम्पन्न

गलतियां भी दिखें तो अनजान बन कर देख

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श्री सिद्धेश्वर एक अत्यंत सक्रिय साहित्यकार हैं जो पटना की बहुत सारी साहित्यिक गतिविधियों के संयोजन में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। वे पटना स्थित भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के अध्यक्ष भी हैं. इस लम्बे लॉकडाउन की अवधि में ढेर सारी  साहित्यिक गोष्ठियों का उन्होंने आयोजन किया जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से और कुछ ने तो अमेरिका एवं सिंगापुर जैसे विदेशी भूमि से भी इसमें उत्साहित सहभागिता दिखाई। इन कार्यों के लिए वे निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे हैं उनके द्वारा भेजी गई पिछले रविवार को सम्पन्न कविता गोष्ठी की रपट। (-हेमन्त दास 'हिम')

प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को अखिल भारतीय हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन के तहत, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में , फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" पेज पर आन लाइन कवि सम्मेलन में, देश भर के नए-पुराने कवियों ने कविता की रसधारा बहायी

लाइव संचालन करते हुए कवि सिद्धेश्वर ने कहा कि - "लाक डाउन के इस विकट समय में, इंटरनेट हम साहित्यकारों के लिए वरदान साबित हुआ है। देश भर के साहित्यकार अपनी सृजनशीलता को जीवंत बनाए रखने में सफल हुए हैं।"

कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार संतोष गर्ग (चंडीगढ़) ने कहा -"  ऐसे विकट स्थिति में, कविता के माध्यम से, जीवन को एक दिशा देने का सकारात्मक पहल अभिनन्दनिय हैऔर जरुरी भी।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि - "आज की आभासी कविगोष्ठी जिंदगी को संपूर्णता में देखने की एक कामयाब कोशिश कही जा सकती है। कवियों ने समकालीन कविता, गीत, गजल, मुक्तक की मार्फत जीवन के इंद्रधनुषी रंग बिखरे और मानवीय संवेदना जगाने की सकारात्मक पहल की।

इस कवि सम्मेलन में शामिल कुछ कविताओं के काव्यांश :

चैतन्य चंदन(नई दिल्ली)
 "आसमां में जब छिटकती चांदनी रह जाएगी! /
तम छंटेगा, जग में केवल रोशनी रह जाएगी

सिद्धेश्वर :
" दूसरों के लिए यहां सोचता है कौन?
दिल का दरवाजा खोलता है कौन?
बंद हैं पड़ोस की सारी खिड़कियां।
इंसानियत का नब्ज टटोलता है कौन? "
**समंदर के उफान को रोकने से क्या होगा?
 बंजर धरती में बीज रोपने से क्या होगा !?
चाहत थी  उजड़े चमन में फूल खिलाने की!
ख्वाहिशें बहुत है मगर सोचने से क्या होगा?

सुशील साहिल (झारखंड) :
" दिल करे तो कभी ख़फ़ा होना
हाँ, मगर मुझसे मत जुदा होना।
इक नई फ़िक्र को हवा देगा
ज़र्द पतों का फिर हरा होना।"

भगवती प्रसाद द्विवेदी - 
"मेहनतकश मजदूर चले।
महानगर से दूर चले।"

अमलेंदु आस्थाना :
"कोई यूं ही नहीं हारा होगा दोस्तों,
कोई वजह होगी उसके हारने की,
ऐसे कोई हारना नहीं.चाहता,
जरा पता तो करो,
जरूर लड़ा होगा वह जी तोड़,,,,,!"

हरिनारायण सिंह हरि:
"रख न सके तुम हमको संकट के दिन में,
इससे तो सचमुच ही अपना गाँव भला!

आस्था दीपाली(नई दिल्ली) -
" ज़िंदगी मुझसे ही जुदा क्यूँ है?
मेरी खातिर ही हर सज़ा क्यूँ है!? "

पूजा गुप्ता (चुनार) :
"ये लॉकडाउन भी हमें बहुत कुछ सीखा जायेगा,
/जाते-जाते ये जीने का सही मतलब बता जायेगा!"

पुष्प रंजन कुमार :
"शर्त मंजूर है तो बोलो-
मां हंसती रही मेरी
तो रो सकता हूं मैं ,
ऊंचा रहा सर बाबूजी का
तो झुक सकता हूं मैं !"

सविता मिश्रा माधवी-बेंगलूर)
"मन खुश रहे चाहे उदास बिन रुके
गुजर जाती है जिंदगी.
धूप-छाँव का ओढ़ आवरण कर्मपथ
निकाल जाती है जिंदगी.
ओह! फूल नहीं, काँटों की चुभन पर
सो जाती है जिंदगी.!"

बी एल प्रवीण (डुमरांव) :
"अपने ही घर में कभी  मेहमान बन  कर देख
गलतियां भी दिखें तो अनजान बन कर देख
दिखे  चेहरे  भी  हों   तो  भूल  जाना  बेहतर
कभी अपनी  छत को आसमान बन कर देख।

संतोष गर्ग (चंडीगढ़) :
"नकली रंगों से /कुदरत के रंग अच्छे /प्रेम की भाषा /
हर कोई समझे /समझें नाजुक बच्चे।

मधुरेश नारायण:
" कर्म ही जीवन का आधार।
कर्म से ही जीवन पार। "

डॉ.पुष्पा जमुआर :
 " -क्या  विडम्बना है /लाॅकडाउन है, घर में शोर भरी शांति है, 
/लाॅकडाउन है/  दो महिलाऐं आपस में दूर हैं/, पर दोनों चुप हैं/
 भाई लाॅकडाउन है /बर्तनों की टंकार,/ वयां करती है,/ 
घर की कहनी ,/भाई लाॅकडाउन है! ""

मित्तल बबलू:
"जब आँख खुली तो माँ के /   गोदी का एक सहारा था 
/उसका नन्हा सा आँचल मुझको / भूमंडल से प्यार था/उ
सके चेहरे की एक झलक देख/ चेहरा फूलो से खिल जाता था!!"

ऋचा वर्मा :
"ईश्वर/जब निभाना ही नहीं था,/तो वादा किया क्यों?/
जब पूरे करने ही नहीं थे,/तो सपने जगाये क्यों?
/रेंगती थी जिंदगी,/तुमने पंख उगाये क्यों?/पंख दिये तो शक्ति भी दो! "

कु प्रियंका त्रिवेदी (भोजपुर) :
" रास्तों की अपनी कोई मंजिलें नहीं होती
हर शख्स की कहानी एक सी नहीं होती।
जो डर जाते है जिन्दगी के इम्तहानों से।
उन्हें हासिल कभी अपनी मंजिल नहीं होती।

 हरेन्द्र सिन्हा :
"आओ,हम तुम दोनों मिलकर/बात    करें   मन   की। 
/रे सजनी बात करें मन की ।/
कभी तुम रूठी,कभी मैं रूठा/अब गांठ खोलें मन की/   रे सजनी......!" ..

इसके अतिरिक्त जिन कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया, उनमें प्रमुख हैं- सर्व श्री गोरखनाथ मस्ताना (समस्तीपुर) /कवि घनश्याम /विनोद प्रसाद (खगौल) /डॉक्टर नूतन सिंह (जमुई) /मीना कुमारी परिहार/ पूनम सिन्हा श्रेयसी /सुधीर यादव (खगड़िया) /शरद रंजन शरद /प्रियंका श्रीवास्तव/ नीतू नवगीत /सुधांशु कुमार चक्रवर्ती /सुजीत/ सुरेश अवस्थी( नई दिल्ली) /दिनेश चंद्र (मुगलसराय)!
....
प्रस्तुति : सिद्धेश्वर
प्रस्तोता का पता-  अवसर प्रकाशन/
प्रस्तोता  का मो -  :9234760365 
प्रस्तोता का ईमेल-   :sldheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
























2 comments:

  1. धन्यवाद बेजोड़ इंडिया का,आदरणीय सिद्धेश्वरजी का जो फेसबुक के माध्यम से भारत के तमाम कवियों को जोड़ने का काम कर रहे हैं। हृदय से आभार शुभ कामनाएँ ...।

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    Replies
    1. सुंदर टिप्पणी हेतु बेजोड़ इंडिया की ओर से और श्री सिद्धेश्वर जी की ओर से भी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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