Monday, 15 June 2020

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् की आभासी गोष्ठी 14.6.2020 को संपन्न

जड़ हो गए हमारे समाज में तमाशबीन बने मित्र और पड़ोसी

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एक मानव अपने जीवन को जैसा जीना चाहता है उसकी एक लय होती है अर्थात वह पद्यमय होता है और जैसा उसे जीना पड़ता है वह बिलकुल अव्यवस्थित अर्थात गद्यमय होता है। कहानी सिर्फ घटनाक्रमों के एक संयोजन मात्र को नहीं दिखाती है बल्कि वह उसके ऐसे प्रस्तुतीकरण में भी निहित होती है जिससे मानव जीवन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण अभिप्राय स्पष्ट होते हों। कहानी में जिस विस्तार से आप किसी परिस्थिति को दर्शा सकते हैं वह कविता या पद्य की किसी विधा के द्वारा या तो असंभव है या उसे उसके सौन्दर्य और सुग्राह्यता पर गंभीर आधात किये बिना संभव नहीं है। अतः इस परिप्रेक्ष्य में भा. युवा साहित्यकार  परिषद के द्वारा आयोजित "आभासी कहानी के पाठ का कार्यक्रम" का भी अपना महत्व है। (-हेमन्त दास 'हिम'')

14/06/2020! भारतीय युवा साहित्यकार परिषद, पटना के तत्वावधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के पेज पर "हेलो फेसबुक कथा संगोष्ठी" में कुछ लब्ध प्रतिष्ठित कथाकारों  के साथ युवा साहित्यकारों ने भी अपनी  कहानियों का पाठ कर अपनी- अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज की

गोष्ठी के संयोजक थे कवि- कथाकार सिद्धेश्वर ! साहित्य सृजन के क्षेत्र में,पिछले 40 वर्षों से भी अधिक से कार्यरत भगवती प्रसाद द्विवेदी ने अपनी कहानी "बाट जोहते हुए" में सच्चाई और नैतिकता को और अपने जीवन का आदर्श समझने वाले पात्रों को, बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जड़ हो गए हमारे समाज में तमाशबीन बने मित्र और पड़ोसियों की शर्मसार स्थिति को बड़ी बेबाकी के साथ, अपनी कथा में उन्होंने  पिरोया है।

दूसरी तरफ चर्चित कथाकार जयंत की कहानी "वह शाम" युवाओं को गुदगुदाती है, तो प्रबुद्ध पाठकों के लिए एक सकारात्मक सोच भी दे जाती  है। उनकी कहानी की प्रासंगिकता स्वयंसिद्ध है।

युवा लेखिका नीतू सुदीप्ति 'नित्या' ने अपनी मात्र एक कथा संग्रह- "छंटते हुए चावल" से कथा जगत में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई है। उनकी कहानी "कमी नहीं कामयाबी" स्त्री विमर्श को विस्तार तो देती ही है समाज को भी एक नई दिशा देने में सक्षम है। नीतू की कहानी में आरंभ से अंत तक जिजीविषा बनी रहती है।

कथा-गोष्ठी के सशक्त स्तम्भ अशोक प्रजापति ने अपनी कथा पुस्तक "मंगेतर का मोबाइल" से चर्चा में आए उनकी कहानी  "श्यामली की साईकिल" समकालीन जीवन की जड़ता के प्रमुख कारकों की शिनाख्त करने के साथ-साथ उसे तोड़ने की मिथ्या और बेचैनी को रेखांकित करती है। उन्होंने अपनी कहानी के माध्यम से सामाजिक विसंगतियों को स्त्री विमर्श के केंद्र में लाने का प्रयास भी किया है।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि-"यह सुखद संयोग है कि आज पढ़ी गई चारों कहानियां स्त्री विमर्श का सच उद्घाटित करती हैं। ये सकारात्मक सोच की प्रभावी कथाएँ हैं, जो सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर अपनी मंजिल हासिल करने का आह्वाहन करती हैं और संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों में भी आत्मग्लानि के भाव भर कर एक आईना दिखाती हैं। गहरी संवेदना से लबरेज़ यह कथा-पाठ का कार्यक्रम इस मायने में भी यादगार रहा कि इसमें नये-पुराने कथाकारों की एक साथ प्रस्तुति हुई और सबने अपनी चुनिंदा कहानियाँ पेश कीं। अच्छे संयोजन के लिए मंच को भी साधुवाद!

इस कथा संगोष्ठी में, गोरखनाथ मस्ताना, सुशील साहिल, विनोद प्रसाद,पूनम आनंद, ऋचा वर्मा, नूतन सिंह, मधुरेश नारायण, संजीव कुमार, घनश्याम 'कलयुगी', पुष्प रंजन कुमार, प्रियंका श्रीवास्तव'शुभ्र आदि ने भी अपनी हिस्सेदारी और भागीदारी दी।
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संयोजक - सिद्धेश्वर
परिचय = अध्यक्ष :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद मोबाइल नं
मोबाइल - 92347 60365 
ई-मेल: sidheshwarpoet.art@gmail.com







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