Tuesday 18 December 2018

'आखर' के अंतर्गत भोजपुरी-हिंदी के लेखक कृष्ण कुमार से जीतेन्द्र वर्मा की बातचीत पटना में 15.12.2018 को संपन्न

भोजपुरी साहित्य में समाज की चिंता कलात्मक रूप से अभिव्यक्त 



साहित्यकार सबसे पहले अपना रोजी रोटी का जुगाड़ कर लें तभी उनका साहित्य गम्भीर होगा। ये बातें भोजपुरी - हिंदी के प्रसिद्ध लेखक कृष्ण कुमार ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित एंव श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर नामक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही। उनसे बातचीत करने के लिए भोजपुरी के युवा लेखक जीतेन्द्र वर्मा मौजूद थे। दिनांक 15.12.2018 को आयोजित यह कार्यक्रम बी.आई.ए. सभागार, छाज्जुबाग, पटना में संपन्न हुआ.

बातचीत करते हुए लेखक जीतेन्द्र वर्मा ने बताया कि कृष्ण कुमार वैचारिक रूप से प्रखर है। स्त्री विमर्श, भ्रूणहत्या , पर्यावरण, दहेज और ग्रामीण जीवन की स्थिति इनके साहित्य में अभिव्यक्त होता है। लेखक कृष्ण कुमार ने अपने भाषा लगाव पर बात करते हुए कहा कि भोजपुरी भाषा से प्रेम गांव में रहने के कारण हुआ। मैंने सर्वप्रथम चर्चित कथाकार मिथलेश्वर जी हिंदी रचना को भोजपुरी में अनुवाद किया। मैं कथा में शिल्प से ज्यादा उसके कथानक को तहरीज देता हूँ। 

2009 में छत्तीसगढ़ में अपने कथा के पांडुलिपि को पुरस्कार मिला।  लिंगभेद भाव पर कहते हुए उन्होंने कहा कि बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता है इस अंतर को शिक्षा से ही खत्म किया जा सकता है। भ्रूण हत्या का सबसे बड़ा कारण है दहेज।  इसी विषय पर लिखी उन्होंने अपनी कविता "सोनोग्राफी" भी पढ़ी।

सरकार में बदलाव सरकारी कानून से नहीं, बदलाव तो जनसमान्य के हृदय में होना चाहिए।

उन्होंने अपनी कथा "नैना के बाबूजी" का पाठ किया।

लेखक कृष्ण कुमार ने बताया कि मैं लिखने से ज्यादा खूब पढ़ता हूँ। मैंने कई हिंदी लेखकों को पढा है। रचनाकर्म में अपने आदर्श पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि लेखन मैं मेरे आदर्श कोई नहीं माँ और भगवान ही मेरे आदर्श है। 

कोई आदमी बड़ा या छोटा नहीं होता सब कथाकार होते है। जबतक आदमी बड़ा नहीं होगा उसकी लेखनी बड़ी नहीं होगी।

भोजपुरी भाषा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि भोजपुरी में भी गम्भीर लेखन हो रहा है। भोजपुरी की छवि जो मीडिया में बनी है वो पूरी तरह से सही नहीं है। भोजपुरी साहित्य में समाज की चिंता कलात्मक रूप से व्यक्त हो रहा है। 

रचनाकर्म पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि कहानी चैक है और जैसे बैंक के पास चैक रहता है तो समय आने पर चैक काटा जाता है उसी तरह अगर आपके भाव रहता है तो समय आने पर उसे किसी भी शिल्प में उतारा जा सकता है।

इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया। इस कार्यक्रम में तुषारकान्त उपाध्याय, महामाया प्रसाद, प्रो. वीरेंद्र झा, विनीत कुमार, रंगकर्मी जय प्रकाश, अन्विता प्रधान, मार्कण्डेय शारदेय, रजनीश प्रियदर्शी, सागर सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
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आलेख- सत्यम कुमार 
छायाचित्र- आखर 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
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