Sunday 30 December 2018

खारघर चौपाल के "साहित्य सफ़र" की गोष्ठी नवी मुंबई में 29.12.2018 को संपन्न

... सैनिक और पत्थरबाज निकले सगे भाई 




महीने का आखरी शनिवार होता है खारघर चौपाल का दिन और यह तो वर्ष का ही अंतिम शनिवार था. खारघर के साहित्यप्रेमी इकट्ठे हुए शाम में राहुल अपार्टमेंट, सेक्टर 12 के पीआईएमएस स्कूल के कमरे में. साहित्य सफ़र के नाम से चली इस गोष्ठी की अध्यक्षता की सतीश शुक्ल ने और मुख्य अतिथि थे सत्य प्रकाश श्रीवास्तव. इसका कुशल सञ्चालन किया विशम्भर दयाल तिवारी ने. 

कार्यक्रम दो चरणों में चला. पहला चरण लघुकथाओं का था और दूसरा कविता-पाठ का.

सबसे पहले वंदना श्रीवास्तव ने अपने लयबद्ध मधुर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की और माहौल को साहित्य सफ़र की ओर उन्मुख किया. सेवा सदन प्रसाद ने कश्मीर में हो रही पत्थरबाजी पर एक मार्मिक लघुकथा प्रस्तुत की जिसमें एक पत्थरबाज सैनिक के हाथों मारा जाता है लेकिन यह पता चलता है कि वह सैनिक और पत्थरबाज वास्तव में अपने सगे भाई हैं. बड़े ही सरल प्रतीकों के माध्यम से एक सामयिक समस्या की विवेचना की गई.

फिर प्रकाश सी झा ने "मुस्कुराना मना है" शीर्षक से एक ललित निबंध प्रस्तुत किया जिसमें मुस्कुराहटों के हर प्रकार की गंभीर किन्तु मनोरंजक व्याख्या की गई. 

ओमप्रकाश पाण्डेय ने 'सोच' शीर्षक से एक लघुकथा सुनाई जिसमें एक बेटे के फेल हो जाने पर माँ इस तरह से उसे राहत देती है मानो कुछ हुआ ही न हो. 

विजय कुमार भटनागर ने दो लघुकथाएँ सुनाई. पहली में माँ के पास रहने के महत्व को पुनर्प्रतिष्ठित किया गया और दूसरी में पत्नी की शवयात्रा से लौटे हुए पति की मनःस्थिति का विश्लेषण हुआ.

रमेश चन्द्र पन्त ने प्रवासी लोगों के महत्व पर अपने विचार प्रकट किये और बताया की देश में युगांतकारी परिवर्तन लानेवाले अधिकांश महापुरुष प्रवासी ही थे. अतः उन्हें स्नेह और आदर की दृष्टि से देखा जाना चाहिए. हर प्रवासी अपने साथ एक सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास लेकर आया है. हमें उस धरोहर से स्वयं को समृद्ध करना चाहिए. 

मुख्य अतिथि सत्य प्रकाश श्रीवास्तव ने विमान के लैंडिंग की एक अनोखी घटना का वर्णन किया जिसमें पायलट ने पहले से बिना किसी कारण के अधिक ईंधन रखवा ली थी और वही अतिरिक्त ईंधन आकस्मिक लैंडिंग में काम आया वरना 366 यात्रियों की जान खतरे में आ जाती. 

वंदन श्रीवास्तव ने एक लम्बी कहानी का पाठ किया जिसमें दहेज़ के लोलुप माँ बाप से विद्रोह करते एक सुशिक्षित युवक अपनी मर्जी से बिना कोई दहेज़ के एक पसंद की युवती से विवाह करने का संकल्प लेते हुए घर से विद्रोह कर बैठता है. 

विशम्भर नाथ तिवारी ने मौखिक सहानुभूति पर एक लघुकथा सुनाई और विश्वनाथ पाण्डेय ने अपना एक संस्मरण सुनाया. 

इसके पश्चात काव्य पाठ का सत्र चला जिसका आरम्भ "बेजोड़ इण्डिया" ब्लॉग ( bejodindia.blogspot.com ) के हेमन्त दास 'हिम' ने किया. उन्होंने अपनी दो कवितायेँ सुनाईं. एक कविता 'हवाएं' बहुत सराही गई जिसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार थीं -
काश कोई समझा पाए हमें 
कि हवाएं यूं ही नहीं बहतीं 
और हम आदमी हैं आदमी 
हवाओं के खिलौने नहीं.

ओमप्रकाश पाण्डेय ने एक भीख मांगती वृद्ध पर हृदयस्पर्शी कविता का पाठ किया-
लोकतंत्र की नीव वही है
सरकारें बांटती है उसे अनुदान 
सबकी चिंता-चिंतन में वो है
सबके भाषण में भी वो है
फिर भी सब ने देखा 
भीख मांगती उस बूढ़ी  को.

प्रकाश चन्द्र झा ने अपनी व्यंग्यात्मक कविता "कुत्तों का नसीब" सुनाकर सबको लोटपोट कर दिया-
इंसानों को तो फूटपाथ न मिलता 
उनके लिए नर्म विस्तर है 
कुछ कुत्तों का नसीब 
इंसानों से बेहतर है.

फिर कार्यक्रम को समापन की ओर अग्रसर कराते अपने अध्यक्षीय भाषण में सतीश शुक्ल ने पढ़ी गई रचनाओं पर अपनी संक्षित टिपण्णी की फिर अपनी रचना का पाठ किया. एक लघुकथा "सरकारी लाठी" सुनाइ जिसमें अपने पूर्व हाकिम नेता पर ही विरोध करते जुलूस में लाठी चलानेवाले के माध्यम से सरकारी कारिंदे और नेता के बीच अंतर्संबंध को बड़ी साफगोई से प्रतिबिंबित किया गया है. फिर उन्होंने एक कविता भी सुनाई जिसकी पंक्तियाँ कुछ यूं थीं - 
वह दिन दूर नहीं जब,  सारे मतदाता पछतायेंगे 
खेत चुगेगी चिड़िया और हम हाथ मलते रह जाएंगे.

अंत में पीआईएमसी संस्थान के संचालक ने आये हुए सभी साहित्यकारों को धन्यवाद ज्ञापित किया और आनेवाले नए वर्ष की शुभकामना दी.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
























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