Saturday 29 December 2018

श्रीलाल शुक्ल कृत "राग दरबारी" के आरा में 24 से 27 तक मंचन की दिवस वार रपट / अरुण शीतांश

निहित स्वार्थियों के हाथों अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण 





व्यंग्य से सराबोर उपन्यास श्रीलाल शुक्ल रचित "राग दरबारी" एक अनोखी कृति है. स्त्री-पुरुष संबंधों के सन्दर्भ  में पुरुष की पाशविक मनोवृति को पूरी तरह से उधेड़ता हुआ यह उपन्यास 1968 ई. में प्रकाशित हुआ और अगले ही वर्ष इसे साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ. 1986 ई. में उस समय के एकमात्र टेलीविजन चैनल दूरदर्शन ने जब इसपर धारावाहिक चलाया तो यह देश भर में और भी चर्चित हुआ. 

24 से 27 दिसंबर 2018 तक आरा के नागरी प्रचारिणी द्वारा चार दिनों तक लगातार इसका मंचन किया जाना एक सराहनीय कार्य है. शहर के जाने माने साहित्यकार और कवि अरुण शीतांश ने चारों दिन इस नाटक को देखा और अपनी प्रतिक्रिया भी दी जो नीचे दी जा रही हैं. किन्तु उसके पहले उपन्यास में उद्धृत पुरुष की धृष्ट, भ्रष्ट और पाशविक कामुकता को उजागर करती हुई कुछ पंक्तियाँ इस उपन्यास से प्रस्तुत हैं.  यह एक ऐसी कामुकता है जिसमें स्त्री की सहमति या सम्मति के लिए कोई स्थान नहीं -  

1. ट्रक का जन्म होता है केवल सड़कों के साथ बलात्कार करने के लिए। 

2. आपरेशन टेबल पर पड़ी हुई युवती को देखकर वे ;देश के निवासी, जो डॉक्टर बन जाते हैं- मतिराम-बिहारी की कविताएँ दुहराने लगते हैं। 

3. पुरातत्व का विद्यार्थी बौद्धविहार, गोपुरम और स्तूप को संभव है सही तरह से न समझ पाए किन्तु नारी मूर्ति और पुरुष मूर्ति को पहचानने में भूल नहीं कर सकता क्योंकि कि उसे तो गले के नीचे पहाड़ देखने की आदत पड़ी हुई है। 

4. “अगर तुम्हें स्वप्नदोष की बीमारी है या शीघ्रपतन होता है या बचपन की कुटेव के कारण तुममें नपुंसकता व्याप्त हो गई है तो यकीन रखो, मेरे नुस्खे का एक बार प्रयोग करके तुम एक हजार स्त्रियों का मान-मर्दन कर सकोगे।
............

(नीचे है प्रसिद्ध साहित्यकार अरुण शीतांश की नाटक को देखने के बाद की गई उनकी टिप्पणियां - 



24.12.2018
नाटक शुरु है - राग दरबारी । बहुत ही रोचक।

सांउड की तकनीकी खराबी अवरोध कर रही है।
कल से ठीक हो श्रीधर शर्मा जी! शनिचरा बेचारा दम भर आवाज़ निकाल रहा था इसलिए उसका संवाद आ गया।साग्रह।
शुभकामना!!

25.12.2018
आज नाटक का दूसरा दिन था। वैध जी कल से लेकर आजतक लगभग ड्रेस बदल लिए फिर प्रिंसिपल को बदलने में कोताही क्यों!

वैध के पास तो बकुली नहीं है।दवा है। लेकिन उसका इस्तेमाल न होना भारतीय किसान के लिए दिक्कत की बात है।
राग दरबारी भारतीय उपनिवेश का एक बड़ा उपन्यास है।जो आज भी शत-प्रतिशत प्रासंगिक है।उपन्यास के पचास साल पुरा होने के बाद भी यक्ष प्रश्न बना हुआ है।
आज सबकुछ ठीक रहा। बशर्ते ड्रेसिंग सेंस को तब्दील कर दिया गया होता। कुछ दर्शक तो स्थायी हैं। जैसे कल पहलवान की मूंछ काली थी आज सफेद देख अच्छा लगा। जैसे वैध जी का टिका कल सीधे थी जबकि आज गोल था। मुझे तो लगता है कि शनिचरा का भी ड्रेस बदलना चाहिए ।हाफ पैंट के बदले फटा पजामा वगैरह।नाड़ा वैसा ही इस एकरसता से चारों दिन बचा जा सकता है। रुपा से लेकर सारे पात्रों का ड्रेस बदल जाए ।उनके किरदार के अनुसार ही।फिर और कमाल होगा।

आज दर्शकों की अपार भीड़ रही ‌।
श्रीधर शर्मा और तमाम कलाकारों को शुभकामना!कल फिर मिलेंगे।

26.12.2018
आज नागरी प्रचारिणी सभागार ,आरा में " राग दरबारी" पर परिचर्चा है। हो सकता है कि ठीक दो बजे आ जाऊं। 
कोशिश जारी है...!
'राग दरबारी एक ऐसा उपन्यास है जो कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है।शुरु से आखिर तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिंदी का शायद यह पहला वृहत उपन्यास है।

फिर भी राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है। इसका संबंध एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे हुए गांव की जिंदगी से है,जो इतने प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थों और अनेक अवांछनीय तत्वों के सामने घिसट रही है।यह उसी जिंदगी का दस्तावेज है।

१९६८ में राग दरबारी का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।१९७० में इसे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और १९८६ में एक दूरदर्शन- धारावाहिक के रुप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना पर्याप्त हुई।
वस्तुत: राग दरबारी हिंदी के कुछ कालजयी उपन्यासों में एक है।(फ्लैप से)
एक प्रसंग:

...लड़के ने पिछले साल किसी सस्ती पत्रिका से एक प्रेम -कथा नक़ल करके अपने नाम से कॉलिज की पत्रिका में छपा दी थी। खन्ना मास्टर उसकी इसी ख्याति पर कीचड़ उछाल रहे थे।उन्होंने आवाज़ बदलकर कहा ,"कहानीकार जी, कुछ बोलिए तो,मेटाफर क्या चीज़ होती है?"
लड़के ने जांघें खुजलानी शुरु कर दीं ।मुँह को कई बार टेढ़ा -मेढ़ा करके वह आखिर में बोला," जैसे महादेवीजी की कविता में वेदना का मेटाफ़र आता है...।"
खन्ना मास्टर ने कड़ककर कहा " शट-अप ! यह अंग्रेजी का क्लास है।" लड़के ने जाँघे खुजलानी बन्द कर दीं।.....

26.12.2018
आज राग दरबारी  नाटक का तीसरा दिन।

सभागार में मच्छरों का प्रकोप है।इस बीच दर्शकों का इतनी देर तक बैठे रहना बड़ी बात है।
आज कोई टिप्पणी नहीं करुंँगा;क्योंकि जो कुछ भी कहना था कलाकारों को उनके ही समक्ष कह दिया, जब नाटक खत्म हुआ और मुझे मंच पर बुलाया गया था।

आज के नाट्य रूपांतरण से लगा कि दिल्ली को बेचैन किया होगा ! तकनीकी तौर पर मुझे कुछ कमियांँ दिखाई दीं थी।जैसे नेपथ्य से आवाज़ ,ग्रीन रुम से मंच पर आगमन के तरिके प्रस्थान करने की स्टाईल।

चेहरे का हाव-भाव!समयांतराल में संवाद संयोजन और भंगिमा को लेकर उहापोह भी रहा।आज पुन:लंगड़ा की भूमिका श्लाघनीय रही ।जबरदस्त। एक नं।और खन्ना साहब भी कमाल किए। वहीं पहलवान की भूमिका में कोई दिक्कत नहीं है ।वे बहुत ईमानदारी से रोल अदा कर रहे हैं।

चिल्लाने से बात भी सही नहीं होती न संवाद ही संप्रेषणिय होता।शनीचरा के संवाद में सख्त लोच की जरुरत जान पड़ी ।यह मेरी व्यक्तिगत राय है। अन्यथा न लेते हुए।

आज कुछ कलाकारों ने ड्रेसिंग सेन्स में तब्दीली लाकर मन को हर्षित किया।मुझे एक बात कहनी है लेकिन श्रीधर शर्मा जी से मिलकर कहूँ तो बेहतर।

27.12.2018
"राग दरबारी " देखते हुए। चौथा दिन।
साथ में पत्रकार मित्र शमशाद प्रेम।
बधाई ! सभी को।
निशि कान्त कुमार!बधाई! काश!आपका संवाद हिंदी में होता! इतने कम समय में । लंगड़ की भूमिकामें। छोटे संवाद के साथ मंच से दिल में उतरना एक बड़ी घटना है। आज के दिन - रात के लिए।और जो यह पल गुजर रहा है।
.............
रपट  आलेख - अरुण शीतांश 
छायाचित्रकार -  संजीव सिन्हा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com






















No comments:

Post a Comment

Now, anyone can comment here having google account. // Please enter your profile name on blogger.com so that your name can be shown automatically with your comment. Otherwise you should write email ID also with your comment for identification.