Thursday, 27 December 2018

मिथिला चित्रकला के बाजार के पिछड़ने के कारण - एक विश्लेषण / रवीन्द्र दास

विश्वप्रसिद्ध मिथिला कला के लिए भारत में अभी तक आर्ट गैलरी और उचित बाजार का अभाव 


गंगा देवी ,सीता देवी और यमुना देवी की कलाकृतियां नीलामियों में जरूर लाखों में बिकी मगर आज भी अधिकतर मिथिला कलाकार अपनी पेंटिंग कम कीमतों में बेचने को मजबूर हैं l मेरा मानना है की इसकी कुछ महत्वपूर्ण वजहें है जैसे --

1.संख्या - चूँकि सम्पूर्ण मिथिला में यह बनाया जाता है इसीलिए भारतीय लोक और पारम्परिक कला के कलाकारों में मिथिला के चित्रकारों की संख्या सबसे ज्यादा है l हालाँकि व्यवसायिक दृष्टिकोण से कुछ ही गावों में बनाया जाता है जिनमे अधिकतर कलाकार मात्र प्रचलित चित्र ही बनाते हैं l

2. बाजार- अभी तक इसके लिए आर्ट गैलरी या उचित बाजार बन नहीं पाया है l शायद यही वजह है की अधिकतर चित्रकार दिल्ली हाट जैसे कला बाजारों में कम कीमतों पर अपनी कलाकृतियां बेचने को मजबूर हैंl 

3. पुनर्बिक्रय - अधिकतर कलाकृतिया तभी मंहगी होती हैं जब उनका पुनर्बिक्री शुरू होता है l

4. चर्चा - कोई खास कलाकृतिया तभी मंहगी होती हैं जब उनपर मिडिया , पुस्तकों या सेमिनारों में उनपर चर्चा होती है l

5. शुद्धता - अधिकतर कलाकारों की कलाकृतियां एक जैसी लगती हैं उनमे से कलाकार विशेष की कलाकृति पहचानना मुश्किल होता है l

6. नक़ल - अधिकतर कलाकार एक दूसरे की नक़ल करते हैं उन्हें मौलिकता का महत्व ही नहीं पता l

7. नीलामी - मिथिला के जिन कलाकारों की कलाकृतियां नीलामी में नीलाम भी की जाती है उनकी ज्यादा चर्चा नहीं होती l

8. ब्रांडिंग - निवेशकर्ता द्वारा अभी तक मिथिला के कलाकारों की कोई ब्रांडिंग नहीं की गयी l

9. सम्मान - अभी तक मिथिला के धनी मानी लोगों में भी अपनी कला और कलाकारों के प्रति सम्मान नहीं है l किसी के घर या संग्रह में दस पेंटिंग भी नहीं देखी जा सकती है l

10. शोध - इसपर शोध करनेवाले अधिकतर शोधकर्ता विदेशी हैं जिनकी पुस्तके भी अंग्रेजी में छपी हैं जिनका लाभ इन कलाकारों को नहीं मिल पाता l
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आलेख - रविन्द्र दास 
छायाचित्र सौजन्य - रवीन्द्र दास 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com

लेखक का परिचय - रवीन्द्र दास एक जाने माने कला विशेषज्ञ और लेखक हैं.. ये स्वयं भी एक बेहतरीन चित्रकार हैं. 
रवीन्द्र दास 





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