Monday, 5 August 2019

आईटीएम, नवी मुम्बई 100 वाँ काव्योत्सव खारघर (नवी मुम्बई) में 4.8.2019 को सम्पन्न

सौ उत्सव क्या देखना होंगे अभी सहस्त्र 

(हर 12 घंटों पर एक बार जरूर देख लें - FB+ Watch Bejod India)



"सौ उत्सव क्या देखना / होंगे अभी सहस्त्र
आज विजय का पर्व है / लोग मनायें हर्ष"

आईटीएम काव्योत्सव की शतकीय गोष्ठी खारघर (नवी मुम्बई) स्थित प्रबंधन संस्थान के सभागार में हर्षोल्लास के साथ मनाई गई. इस  विशेष  कवि-गोष्ठी के अध्यक्ष थे मनोहर अभय एवं संचालन कर रहे थे इस काव्योत्सव समूह के संयोजक विजय भटनागर. ध्यातव्य है कि आईटीएम विगत 8 वर्षों से बिना किसी रुकावट के लगातार हर महीने काव्योत्सव का आयोजन करता आ रहा है जहाँ नवी मुम्बई ही नहींं मुम्बई के भी रचनाकार आकर अपनी कविताओं से श्रोताओं को आप्यायित करते हैं. 

रचनाकारों के लिए यह उल्लास का पर्व था जब वे सौवीं बार वहीं काव्यपाठ हेतु इकट्ठे हुए. मंचासीन अन्य साहित्यकार  थे अलका पांडे,  चंदन अधिकारी, रामस्वरूप साहू और शैलेश वफा. इस अवसर पर कुछ चुने हुए रचनाकारों को सम्मानित किया गया जिनमें "बेजोड़ इंडिया ब्लॉग" के हेमन्त दास 'हिम' को भी उनकी सराहनीय सांस्कृतिक पत्रकारिता हेतु सम्मानित किया गया.

सबसे पहले गणमान्य साहित्यकारों ने दीप जलाकार कार्यक्रम का उद्घाटन किया. फिर वंदना श्रीवास्तव के मधुर कंठों से सरस्वती-वंदना का गायन हुआ. तत्पश्चात सभी साहित्यकारों ने खड़े होकर राष्ट्रगाण का विधिवत गान किया. फिर कार्यक्रम आरम्भ हुआ.

विशेष बात यह रही कि वरिष्ठ कवियों के साथ इस प्रबंधन संस्थान के छात्र-छात्राओं ने भी पूरे जोर-शोर से इस काव्य पाठ में भाग लिया और अपनी बेहतरीन रचनाएँ प्रस्तुत कर लोगों की वाहवाही लूटी. इस अवसर पर दंतचिकित्सक डॉ. बनाने तथा अन्य श्रोतागण भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.  हम कवि/ कवयित्रियों द्वारा पढ़ी गई रचनाओं की एक झलक प्रस्तुत कर रहे हैं -

अशोक वशिष्ट –
सम्बंधों को अनुबंधों को परिभाषाएँ देनी होगी
अधरों संग नयनों को भी कुछ भाषाएँ देनी होगी

अक्षय जाधव -
हर आँख नम हो जाती है / और हर दिल भी रो पड़ता है
न जाने क्यों कोई अपना सा / दूर होने लगता है
जब कोई खबर सरहद से / घर दस्तक दे जाती है

डॉ. हरिदत्त गौतम-
इन्होंने एक देशभक्ति पूर्ण रचना सुनाई.

त्रिलोचन सिंह अरोड़ा –
न हिंदु बुरा है न मुसलमान बुरा है
आपस में जो लड़ाये वो इंसान बुरा है

चंदन अधिकारी-
आ जा  बदरिया तू आ जा तू आ जा
झमझम बरस के धरती पे छा जा

विश्वम्भर दयाल तिवारी –
मत करो आखेट उनका / जो तुम्हारे पास हो
जंगलों मन अब कहीं / पखेरू कोई खास हो

बिमल तिवारी –
कौन कहता है धरा पर प्रीत पग थमने लगे
है अंधेरे रास्ते पर, पद मेरे बढ़ने लगे

मीनू मदान –
बहुत दिनों से  / कविता नहीं हुई

शिवि श्रीवास्तव –
तेरा होना माँ / मेरी जिंदगी में
एक नया वजूद दिलाता है

शोभना ठक्कर –
मैं खुद  को भूल जाती हूँ / याद रखती हूँ तुझे
रोज तेरी यादें ले जाती है / किसी ओर मुझे

रामस्वरूप साहू –
अपनी गिरह में हरदम झाँकते रहो / शीशा हो या मन माँजते रहो
रिश्तों में दरार पर न जाये कहीं / सम्बंधों को हमेशा जाँचते रहो (1)
मूर्तिकार ने / एक पत्थर तराशा
पूजारी ने / मंदिर में सजा दिया
हमारी आस्था ने / पूजा
और उसे देवता बना दिया. (2)

हर्षिता-
क्योंकि
सच्ची हँसी की कोई उम्र नहीं होती.

ललित –
और अब क्या चाहिए  / इस जिंदगी में दोस्तों
वो हमेशा खूबसूरत / ख्वाबों को ले आते रहे.

वर्षा –
अपने कलम के जरिये
कुछ जख्म हैं / जिन्हें कुरेदा करती हूँ
कभी हर मर्ज की दवा मिल जाती है
कभी हर मर्ज दवा बन जाती है.

डॉ. सतीश शुक्ल –
सपने सलोने क्यों आते हैं?

प्रकाश चन्द्र झा –
सोशल मीडिया पर निर्भर / हो गई इस कदर
कि जिंदगी में निजता ना रही / हम सार्वजनिक हो गए.

अनिल पूर्वा –
मजहब के इन पाटों के बीच
आज आदमी पिस रहा

अशोक प्रतिमानी –
एक बगल में रोटियाँ / एक बगल में महजबीं
इससे ज्यादा और क्या / चाहता है आदमी?

नजर हयातपुरी –
न तेरे काम के ये न मेरे काम के / बंदे ये जर-गुलाम है रुतबे हैं नाम के
साकी तिरी निगाह में जब सब हैं बराबर / छोटे बड़े फिर क्यूँ हैं पैमाने जाम के.

शैलेश वफा –
अब परस्तिश में असर रहे न रहे / वो रहे कुछ अगर रहे न रहे
मेरे हक में दुआ तो की उसने / अब दुआ में असर रहे न रहे (1)
राख हुआ जलकर अलाव सा वो
भर गया पुराने घाव सा वो (2)

हर्ष कुमार दूबे –
मैं अधूरा सा कोई गीत हूँ
तुम सरगम कोई संगीत हो.

अभिनव यादव –
ने भी एक कविता पढ़ी.

मो. हनीफ –
गुजर रही है जिंदगी अगरचे मिस्तेख्वाब हैं
कदम कदम फरेब हैं इस्तेराब हैं.

कुलदीप सिंह –
माँ के बहादुर लाल थे वो
कद के छोटे मगर दिल के विशाल थे वो

वंदना श्रीवास्तव –
कोख में मारकर मुझे वो खुश होते हैं
मंदिरों में मेरी मूर्तियाँ सजाने वाले

सत्य प्रकाश श्रीवास्तव –
“अप्प दीपो भव” का भाव जलाना है
अपने हिस्से की रोटी से / किसी भूखे की भूख मिटाना है

दीपाली सक्सेना –
यूँ कहाँ आ गए हम साथ चलते चलते
बटर चिकन से चले थे अब मिलेंगे रोज दलिये

दिलबाग सिंह –
कभी बुलबुल, कभी भौंरा, कभी परवाना हूँ

जीतेंन्द्र जगताप –
इन्होंने अपनी एक कविता पढ़ी.

अलका पांडे –
नारी हूँ  मैं नारी का सम्मान चाहिए
नहीं चाहिए पुतली सा नर्तन / चेतना हूँ चेतना का मान चाहिए

दिलीप ठक्कर –
नैन में सपने सजाना सीख लो / रेत पे भी घर बनाना सीख लो
चाहते हो गर खुशी शामिल रहे / गैर को अपना बनाना सीख लो

चन्द्रिका व्यास –
पावस तेरे आने से / गरज बरस जब वर्षा आती
भींगे वस्त्र में वो भी सँकुचाती

राजेन्द्र भट्टर –
मुझको छोड़ अकेले घर में
गई परीक्षा के चक्कर में

जे पी सहरनपुरी –
नींद आये या न आये / ख्वाब आ जाते हैं
यूँ तो हैं राहे-हयात में / गम के अंधेरे मगर
याद आये वो तो / मेहताब आ जाते हैं

भारत भूषण शारदा –
आज आपके शुभागमन से भाग्य कमल हरसाया है
तीन लोक का वैभव मानो सिमट द्वार पर आया है

सेवा सदन प्रसाद –
ढूँढते ढूँढते थक गए हैं मेरे पाँव
पत्थरों के शहर में खो गया है मेरा गाँव

लता तेजेश्वर रेणुका –
झूला झूले न सखियाँ अपने गाँव में
देखो आया है अब शहर अपने गाँव में

रामप्रकाश विशवकर्मा –
इस तृषित हृदय की यदि मृत्यु कभी सुनना
तुम कभी रोना नहीं, मत सिर कभी धुनना

पुष्पा उपाध्याय -
बागों की खुशियाँ बहार रंगीन फूलों से है
तालाब की खूबसूरती रंगीन कमलों से है
लेकिन यह रेगिस्तान ही भाता है हमको
क्योंकि यह वीरान सा है

अभिलाज –
जब भी पढ़ता हूँ नमाज पहले तुझे सलाम करता हूँ
बाद उसके उसकी तारीफ में लिखा / कलाम पढ़ता हूँ

हेमन्त दास ‘हिम’ –
हूँ ईमानदार पर कमजोर नहीं हूँ
अपने गले की फाँसवाली डोर नहीं हूँ
लाख बचने पर भी जो कोई ललकारे
तो प्राण दे दूँ प्रण में रणछोड़ नहीं हूँ

विजय भटनागर –
तेरी जुदाई / है कविताकी अंगड़ाई
तेरा रूठना / कविता की प्रसव वेदना
तेरे विरह मे जो भाव उमड़ते है / हम कागज पर लिख लेते है
जनता के  सामने पढ देते है / जाने क्यों लोग हमे कवि कहते है?

काव्य पाठ का सिलसिला अपनी परिणति पर पहुँचा तो इस गोष्ठी के अध्यक्ष मनोहर अभय आये. उन्होंने इस पिछले आठ वर्षों से चल रहे इस अथक प्रयास की सराहना की और अपनी बधाइयाँ श्री भटनागर और पूरे समूह को दीं -
सौ उत्सव क्या देखना / होंगे अभी सहस्त्र
आज विजय का पर्व है / लोग मनायें हर्ष

अध्यक्ष ने कविता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा - 
कविता निठल्लेपन का कार्य नहीं. कविता उस बूढ़े चौकीदार का दर्द है जिसे ठोकर मारकर उसके मालिक ने फेंके दिया. कविता पसीना है, पीड़ा है, दर्द है.

डॉ. हरिदत्त गौतम ने भी कार्यक्रम के संचालन में सहयोग किया.

अंत में आये हुए रचनाकारों, श्रोताओं और आयोजक संस्थान को धन्यवाद  पूर्ण उद्गार अर्पित करने के बाद अध्यक्ष की अनुमति से इस ऐतिहासिक साहित्यिक गोष्ठी के समापन की घोषणा की गई. एक चिरस्थायी सुखद स्मृति को लेकर लोगों ने वहाँ से प्रस्थान किया. 
.....

प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - अनिल पुर्वा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
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