Tuesday, 6 August 2019

मित्रता दिवस (4 अगस्त) भाग-2 / राकेश रंजन की कविता और प्रकाश रंजन 'शैल' की लघुकथा


(मित्रता दिवस भाग -1 हाइकु -  यहाँ क्लिक कीजिए / हर 12 घंटों पर देखिए - FB+ Watch Bejod India)




बजरंगी / कवि - राकेश रंजन
ताटंक छंद में




बचपन की बस्ती में मेरा एक अनोखा संगी था
काला मोटा जबरदस्त हिम्मती नाम बजरंगी था
दरबे-से घर में रहता था बिरादरी का भंगी था
कभी लपटता कभी डपटता कुछ नेही कुछ जंगी था

मैं था उसका हृदय जानता कभी न उससे डरता था
उसके साथ सदा सारी बस्ती में मुक्त बिहरता था
तुंग शृंग पर चढ़ता था, खाई में कभी उतरता था
उसकी अगुआई में दिनभर चरम चकल्लस करता था

काला अच्छर भैंस बराबर मेरा गुरु अलबेला था
मैं पंडित-कुल-दीपक उसका परम समर्पित चेला था
उसके साथ बड़ा सुख पाया, दुख-दर्दों से खेला था
बीच धार में भेला ठेला गहन सरोवर हेला था

वही आज दुनियादारी की दुश्वारी से ऊब गया
संग छोड़कर जीवन का प्यारा मलंग मनसूब गया
भग्न भीत-सा भहराकर वह चट्टानी महबूब गया
मुझे तैरना सिखलाकर खुद बीच भँवर में डूब गया.

(नोट- कवि राकेश रंजन, हाजीपुर के रहनेवाले एक प्रतिष्ठित समकालीन रचनाकार हैं जो समकालीन गम्भीर विषयों पर नये नये छंदों के प्रयोग करने के लिए जाने जाते हैं. उनकी यह कविता 30 मात्राओं के 'ताटंक' छंद में है। यह वही छंद है, जिसमें सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा 'झाँसी की रानी' कविता लिखी गई है।कवि का ईमेल - rakeshranjan74@gmail.com )
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सेकुलर दोस्त / प्रकाश रंजन 'शैल'
लघुकथा





वे दोनो बाढ मे बह गये थे, दूर-दूर तक कोई नही, ना धर्म और ना ही धर्म के ठेकेदार, बस पानी ही पानी। पानी का कोई रंग नही, ना ही हरा ना ही भगवा। डूबते-उतराते एक दूसरे को संभालते जैसे-तैसे वे किनारे लग गये किनारे लगने पर पहले ने कहा भगवान ने बचा लिया। दूसरे ने कहा अल्लाह ने जिन्दगी बख्श दी। पानी मे बहते, जीवन के लिए लड़ते, वे सेकुलर थे। किनारे लगने पर फिर से सांप्रदायिक हो गये थे।
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(लघुकथाकार प्रकाश रंजन 'शैल', पटना में रहते हैं और उच्च न्यायालय में कार्यरत हैं.लघुकथाकार का ईमेल - prakashphc@gmail.com)
रचनाओं पर प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com




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