Wednesday, 7 August 2019

प्रगतिशील लेखक संघ, पटना द्वारा प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा और कवि गोष्ठी 4.8.2019 को पटना में सम्पन्न

प्रेमचंद ने धन से दुश्मनी को अपनी सबसे महत्वपूर्ण कृति बताया : डा. खगेंद्र ठाकुर
प्रगतिशील लेखक संघ, पटना का आयोजन "इस अंधेरे समय में प्रेमचंद"

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प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई ने प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा के बहाने पटना के अदालतगंज स्थित जनशक्ति भवन के सभागार में 4.8.2019 को एक बड़ा आयोजन किया। इस मौक़े पर प्रेमचंद को याद किया गया, चर्चा-गोष्ठी की गई, कविता-पाठ किया गया और सांगठनिक बैठक की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ आलोचक डा. खगेंद्र ठाकुर ने की। "इस अँधेरे समय में प्रेमचंद" विषयक विचार-गोष्ठी का संचालन कवि राजकिशोर राजन ने किया। वहीं कविता-पाठ का संचालन कवयित्री डा. रानी श्रीवास्तव ने किया।

वरिष्ठ आलोचक डा. खगेंद्र ठाकुर ने प्रेमचंद के साहित्य के बहाने अपनी बातों को विस्तारपूर्वक रखते हुए कहा, "प्रेमचंद का साहित्य जीने की प्रेरणा देता है। परिवर्तन का आह्वान करता है" डा. खगेंद्र ठाकुर ने प्रेमचंद की साहित्य-यात्रा पर कहा, "बनारसीदास चतुर्वेदी ने एक इंटरव्यू में प्रेमचंद से पूछा कि आपकी सबसे महत्वपूर्ण कृति का नाम बताएँ। इस प्रश्न के उत्तर में प्रेमचंद ने किसी रचना का नाम न बताकर कहा कि "धन से दुश्मनी"। डा. खगेंद्र ठाकुर ने अपने वक्तव्य में यह भी बताया कि प्रेमचंद गांधीजी हृदय-परिवर्तन से सहमत नहीं थे। बीसवीं सदी के पूर्वार्ध का इतिहास गुम हो जाए तो प्रेमचंद की रचनाओं के आधार पर इतिहास को लिखा जा सकता है, क्योंकि प्रेमचंद स्वाधीनता संग्राम के लेखक थे।

कार्यक्रम को आगे बढ़ाने से पहले कवि राजकिशोर राजन ने कहा, "प्रेमचंद को पढ़कर हम आज की परिस्थितियों का आकलन कर सकते हैं। सबसे बड़ी सच्चाई इस आधुनिक समाज की यही है कि इस समाज में इतने मंझे हुए लोग हैं कि वे रोज़ हमारा शोषण कर रहे हैं। प्रेमचंद हमारे देश की इस संरचना को बख़ूबी समझते थे। हम देख सकते हैं कि सर्वहारा वर्ग के पास खोने और खाने के लिए कुछ भी नहीं है और देश का पूँजीपति वर्ग ख़ूब खा रहा है और अपने घर के कुत्तों को भी ख़ूब खिला रहा है।"

डा. रानी श्रीवास्तव ने कहा, "आज प्रेमचंद के समय से अधिक अँधेरा बढ़ा हुआ दिखाई देता है, तभी हम प्रेमचंद को आज भी याद करते हैं ताकि प्रेमचंद के साहस को हम अपना साहस बना सकें। सच यही है कि आज हमारी समस्याओं को ग़ैरज़रूरी बातों से ढाँक दिया जा रहा है। एक सच यह भी है कि स्त्री और पुरुष की कोमल भावनाएँ भी इस अँधेरे में रोज़ अपना दम तोड़ रही हैं। प्रेमचंदक़ालीन स्त्रियाँ कहाँ थीं और आज की स्त्रियाँ वैचारिक स्तर पर कहाँ हैं, इस पर गंभीरता से समझने की आवश्यकता है।"

कवि प्रभात सरसिज ने प्रेमचंद को याद करते हुए कहा, "रानी श्रीवास्तव जी का आशय यह है कि आज की औरतों के साथ प्रेमचंद के समय की औरतों से समस्याएँ ज़्यादा उत्पन्न हो गई हैं। इन समस्याओं से लेखक समाज रोज़ लड़ रहा है और यह अच्छी बात है।’

युवा कवयित्री ने कहा, "प्रेमचंद के शब्दों को हम उधार लें तो हम बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं करते। प्रेमचंद ने बदलाव का जो रास्ता दिखाया है, वह काफ़ी आगे का है। सच कहिए तो साहित्य का असल समाजवाद प्रेमचंद ने लाया।"

कवि और विचारक सत्येन्द्र कुमार ने कहा, ‘कि सत्ता हमेशा प्रपंच करती रहती है। सन 1992 की त्रासदी हो या गुजरात का दंगा, इससे पूरे देश में अँधेरा बढ़ा है। यह प्रपंच अभी रुका नहीं है। हमको सचेत रहकर लेखन करना है, प्रेमचंद ने यही सिखाया है।’

सामाजिक कार्यकर्ता और रंगकर्मी जयप्रकाश ने काफ़ी गहराई से चीज़ों को समझाते हुए कहा, "समस्याएँ वैश्विक हैं। इन समस्याओं को गंभीरता से हमें समझने की ज़रूरत है क्योंकि शत्रु एकजुट हैं और हम बिखेर हुए हैं। लेखकों के बीच एका महत्वपूर्ण है।"

इन सबके अलावे प्रेमचंद के जीवन और साहित्य पर अमरनाथ सिंह, वेदप्रकाश तिवारी, मनोज कुमार आदि वक्ताओं ने भी अपने विचारों को रखा।

कार्यक्रम का दूसरा सत्र कवि-गोष्ठी का था। कविता-पाठ का आरंभ कवयित्री लता प्रासर की कविताओं से किया गया। 

लता प्रासर ने सुनाया, ‘पैर का जहाज़ उड़ा ले जाता है / धरती के कोने-कोने तक।’ 


कवयित्री श्वेता शेखर अपनी कविताओं के माध्यम से उम्मीद ज़ाहिर की, ‘एक दिन जीत उसी की होगी / जो सच के साथ खड़े हैं।’ 


वहीं कवि सिद्धेश्वर ने वर्तमान समय पर चोट किया, ‘पेट का रिश्ता रोटी से है / पेट को चाहिए रोटी / छोटी हो या मोटी / पेट को चाहिए रोटी।’ 


अपने कविता-संग्रह ‘बादल से वार्तालाप’ से चर्चे में आए कवि वेदप्रकाश तिवारी ने प्रेमचंद के विचारों को मज़बूत यह सुनाकर किया, "आज मुंशी प्रेमचंद उदास बैठे हैं / पर निराश-निराश नहीं हैं / वे कहते हैं अपनी रचनाओं से / मैंने तुम्हें उस वक़्त रचा / जब विषमताएँ चरम पर थीं व्याप्त।"


कवयित्री बासबी झा ने अपनी कविताओं के माध्यम से सबका दिल जीत लिया, "तुम दोनों को अपनी कोख से / जना है मैंने / मैं किसी की भी रहूँ / परवाह नहीं / नहीं देखना चाहती हूँ तो बस / वह रक्तपात / जिस पर चल चुका है / सन सैंतालीस का हिंदुस्तान।" 


कवि मधुरेश नारायण ने सुनाया, "न जाने साहित्य को अपने कंधे पर लटकाए / कब से घूम रहा था / न तो उसको ज़मीन मिली / ना सीधी ही।"


समकालीन हिंदी कविता में अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले कवि राजकिशोर राजन ने अपनी कविताओं के मध्यम से सबको आकृष्ट किया, "हमने अपने समय में / बड़े से बड़ा काम किया / भाषा में क्रांतिकारी बने / भाषा में देशभक्त।"


जबकि कवि शहंशाह आलम का कहना था, ‘आज दुनिया में हरेक चीज़ बेची जा रही है बेशर्मी से / एक अच्छा आदमी होने के नाते / बाज़ार में बिक रहे मोहनदास करमचंद गांधी को ख़रीदा / बुरा आदमी होने के नाते उन्होंने नाथूराम गोडसे को।’ 


कवयित्री डा. रानी श्रीवास्तव ने इस अवसर पर अपनी कई कविताओं का पाठ किया, "अंधियारी रात में / शहर के कोने में बैठी / सहमी हुई लड़कियों ने / माँगा है जवाब अपने कुचले वजूद का।"

इस कवि-गोष्ठी की ख़ास बात यह रही कि डा. खगेंद्र ठाकुर ने भी अपनी चुनी हुई कविताओं का पाठ किया, ‘अँगोछे में लिपटा बच्चा है पीठ पर / और माथे पर है लकड़ी का भारी गट्ठर।’

कार्यक्रम के अंत में नामवर सिंह, केदारनाथ सिंह, गिरीश कर्नाड, विष्णु खरे, कृष्णा सोबती, रमणिका गुप्ता, अर्थशास्त्री गिरीश मिश्र, ‘जनशक्ति’ के सम्पादक उपेन्द्रनाथ मिश्र, दूधनाथ सिंह, रामेश्वर प्रशांत, कामरेड गया सिंह, कामरेड जलालुद्दीन अंसारी, शीला दीक्षित, प्रो. विजेंद्र नारायण सिंह, कवि ग़ुलाम खंडेलवाल, गोविंद पनसारे, नरेंद्र दाभोलकर, गौरी लंकेश, डा. रामविनोद सिंह, डा. दीनानाथ सिंह, कथाकार मधुकर सिंह, गोपाल शरण सिंह के अतिरिक्त पुलवामा हमले में शहीद जवान और सोनभद्र के नरसंहार में मारे गए आदिवासियों को सादर नमन किया गया।

धन्यवाद ज्ञापन शहंशाह आलम ने किया।
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आलेख - शहंशाह आलम

छायाचित्र - प्रगतिशील लेखक संघ
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com






















3 comments:

  1. बेजोड़इंडिया-परिवार का आभार

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    1. आपकी रपट काफी उच्च कोटि की है। सब को पढ़ना चाहिए।

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    2. भाई का शुक्रिया।

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