Sunday 11 August 2019

'आगमन' के प्रथम वार्षिकोत्सव पर आयोजित कवि गोष्ठी 10.8.2019 को पटना में सम्पन्न

वतनपरस्त हर इंसा हो, सरहद पे ना हो कोई बलि
'रेनकोट' और "भावों का चितेरा" का लोकार्पण भी

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शनिवार 10 अगस्त 2019 का दिन और बिहार उर्दू अकादमी पटना के सभागार में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था आगमन के प्रथम वार्षिकोत्सव पर आयोजित काव्योत्सव एवं सम्मान समारोह का आयोजन एक सुखद कार्यक्रम रहा।

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई जिसमें आगमन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन जैन, मुख्य अतिथि  ख़ुर्शीद अकबर, विशिष्ट अतिथि कुमार अरुणोदय, रेशमा प्रसाद एवं जनाब इम्तियाज़ अहमद करीमी ने हिस्सा लिया। इसके पश्चात सदस्यों के द्वारा सरस्वती वंदना किया गया।

इस समारोह में अनेक नामचीन और युवा शायरों और कवियों ने शिरकत किया। रचनाओं की प्रस्तुति के बाद अतिथियों का सम्मान एवं सदस्यों को प्रमाण पत्र भी प्रदान दिए गए।

आगमन के तीन आजीवन सदस्य रश्मि अभय का काव्य संग्रह "रेनकोट", सोमा आनन्द गुप्ता का काव्य संग्रह "भावों का चितेरा" और राजमणि मिश्र के निबंध संग्रह 'चाँद खोल पर थाप' का दुबारा लोकार्पण भी हुआ। 

आगमन वार्षिकोत्सव में आगमन सदस्यों का उत्साह देखने योग्य रहा। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री राजीव कुमार सिंह ने किया तो कुशल मंच संचालन वीणाश्री हेंमब्रम एवं नसीम अख्तर ने किया।

एक देश है एक तिरंगा एक ही है विधान हुआ
धरती पर है स्वर्ग कहीं तो फिर इसका निर्माण हुआ
इन पंक्तियों से संजय संज अपनी प्रस्तुति दी तो पूरा सभागार ना सिर्फ तालियों से बज उठा बल्कि पूरा माहौल देशभक्ति के जोश से भी भर गया।

कारी कारी रतिया में, कारे कारे बदरा जो
साय साय पूरुआ भी जिया डेरवाय है
गणेश जी बागी ने इस हास्य रस को सुनाकर माहौल को बहुत गुदगुदाया

वीणाश्री ने सुनाया कि -
ना चाहूँ कश्मीरी कली, ना चाहूँ ज़मीं या गली
वतनपरस्त हर इंसा हो, सरहद पे ना हो कोई बलि!

विभूति कुमार ने यथार्थवादी कविता सुनाई -
हे रचयिता ! क्यों रच रहे हो मुझे, मैं कहाँ जाऊँ
किस शहर किस गॉंव, दिल्ली या उन्नाव !

सुनील कुमार ने ग़ज़ल कही कि -
वो हमको आजमाना चाहते हैं, न जाने क्यों सताना चाहते हैं
मिलेगा क्या उन्हें यूँ आजमाकर, कोई तोहमत लगाना चाहते हैं।

छपरा से आए 'ऐनुल' बरौलवी साहब ने सुनाया -
सोया नहीं हूँ तेरी मुहब्बतों में रात भर 
खोया रहा हूँ मैं तेरी यादों में रात भर 
आओ न यार मेरे झरोखे पे ख़्वाब के 
भटका हूँ राह में तेरे वादों के रात भर ।

नेहा नूपुर ने गीत गाया कि -
...मैं काली घटा बन छाऊँ तुम पुरवईया बन जाओ

ट्विंकल कर्मकार ने तंज कसते हुए कविता सुनाया - 
तुम खुद हो सियासत के भूखे, इसलिए आज हर एक कातिल जिंदा हैं

तो रितु सिंह ने सुनाया - 
'सेंक लेना तुम सियासत की रोटियां, अभी चूल्हा गर्म हैं..'

शिक्षाविद् एवं कवयित्री कृष्णा सिंह ने कविता में कहा -
'महाभारत कथा आज फिर याद आ गयी, आकाश से भी बड़ा है कौन,युधिष्ठिर ने कहा पिता और कौन, और पृथ्वी से महान, माता कहलाती है..'

दिलीप कुमार खान ने गीत के बोल रहे -
ओ गोरी सुन ले हमरी विनती सुन ले, पायल ये रुनझून तेरी मुझे घायल किया जाए है..'

कवयित्री पूनम श्रेयसी ने पढ़ा  -
'खांसता हुआ यौवन स्वतः हो जाता है, जिंदगी से बाहर..'

नेहा नारायण सिंह की कविता रही  -
'सत्ता तोड़ कल सत्ता बनाएंगे, शह और मात का यह खेल बहुत पुरानी है..'

पुष्पा जमुआर की रचना रही -
एक और दर्द दे गया, सीने के आर-पार,
बिना चीरा लगाए, बिना खून का एक कतरा गिराए..

आराधना प्रसाद ने सुनाया कि-
'उसके पहलू को किसी दिन, मेरा घर होने दो..'

शाइस्ता अंजुम की पंक्तियां देखिए -
'बहला कर छोड़ देते हो, बूढ़े मां-बाप का ख्याल कौन रखता है..

कवि सिद्धेश्वर ने एक प्रेरक कविता प्रस्तुत किया - 
'पंख कट जाने के बाद भी हम उड़ना नहीं भूले, 
पेड़ों पर लगे सैंकड़ों फल, मगर झूकना नहीं भूले..

सुधांशु कुमार ने कहा कि 'बंद होगा हैवानियत का दरवाजा..

रांची से आईं युवा कवयित्री नंदिनी प्रणय ने पढ़ा कि -
 'जीत बदलाव की, जीत साहस की, जीत सपनों की, जीत अपनों की..

जीनत ने इश्क़ की बात कही कि  -
'यूं इश्क के शुरुर में हम चूर हो गए, 
उनसे हुए करीब, सबसे दूर हो गए..'

नसीर आलम की ग़ज़ल भी खूब रही कि -
चला गया है, बहुत दूर प्यार का मौसम, 
चलो समेट लो अब भी खुमार का मौसम..

राजमणि मिश्र ने चाय की गर्माहट की बात कही कि 
'एक प्याली चाय सी है जिंदगी, 
चुस्कियों में जी लिया तो जी लिया..'

मनीष राही ने कविता के माध्यम से कहा कि 
अपना बना के दगा दे रही हो, 
वफाओं का कैसा सिला दे रही हो..

पूर्णिया से आईं कुमारी रचना ने समाज से सवाल किया कि
कब तक करोगे बलात्कार, 
योनि पर करोगे प्रहार..

अमित कुमार आजाद ने सुनाया कि
इलाहाबाद कहता है / मैं संगम का मेला हूॅ॑, 
मैं तुम्हारा प्रेम पाना चाहता था / मैं तुम्हें रास्ता दिखाना चाहता था..

रमेश कंवल की गजल थी कि -
मोबाईल, टी वी से सजाई है जिंदगी,
न जाने कहां-कहां गंवाई है जिंदगी..

शकील ने ग़ज़ल सुनाया कि -
किसी ने ये पूछा मेरे पास आकर, बता मुझे तेरा धर्म क्या है,
मैंने कहा मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत..'

अतिथियों में से जो प्रस्तुति रही वो इस प्रकार है

प्रेम किरण ने सुनाया कि -
नशे में अच्छे-बुरे की तुम्हें तमीज नहीं
मलाल होगा बहुत जब सुरूर उतरेगा

प्रसिद्ध गज़लकार नीलांशु रंजन ने जब श्रृंगार रस को प्रस्तुत किया तो लोग को गए
'जब चांद अपने गलिचे में गेसू खोल रहा था, कल जहाँ रखी थी उंगली, वहां निकल आया है एक तिल..'

शुभचंद्र सिन्हा ने ग़ज़ल पेश किया -
दीवारों से भी मिल कर रहा करो /  कोई नहीं सुनेगा, इनसे कहा करो..

कुमार अरुणोदय ने प्रेम रस सुनाया -
हर पल हर क्षण चमके बिजुरिया, 
चिहुंक-चिहुंक काग बोले, आज आएंगे मोरे सजनिया..'

शायर खुर्शीद ने कहा -
 'समंदर के अंदर था, घर जल गया कैसे..

अपने अध्यक्षीय उद्बबोधन में राजीव कुमार सिंह ने कहा कि समाज में समरसता पैदा करना साहित्य का काम है। उन्होंने दिनकर की बात भी कही कि साहित्य राजनीति के आगे-आगे चलने वाली मशाल है और पवन जैन का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि आगमन के सदस्यों ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी है।

ट्विंकल कर्मकार और रितू सिंह को युवा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम में मुख्य रूप से शायर खुर्शीद अकबर, रमेश कँवल,नसर आलम नसर, शमीम शोला ,प्रेम किरण और शायरा तलत परवीन नें अपनी शायरी से जहाँ वाह वाही लूटी वहीं आगमन के उपस्थित सभी सदस्यों नें पूरे जोशो-खरोश के साथ अपनी रचनाएं प्रस्तुत की जिनमें अन्य नाम हैं भागलपुर से आईं सोमा आनन्द गुप्ता, ज्योति मिश्रा, पिंकी चौधरी, निकहत आरा, सरिता गुप्ता, अनीता मिश्रा सिद्धि, पूर्णेन्दु चौधरी, निधि राज, मुकेश ओझा आदि।
.....

आलेख - संजय संज
छायाचित्र सौजन्य - संजय संज
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
(नोट- कुछ नाम अगर छूट गए हैं इसके लिए मुझे माफ़ करें और अपनी पंक्तियां ऊपर दिये गए ईमेल पर भेजिए.)







 





   









5 comments:

  1. वाह, बहुत धन्यवाद।

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    Replies
    1. आपकी रपट काफी अच्छी है. बधाई!

      Delete

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