जिससे लिखता है चिट्ठी प्यार की / उससे कभी हिसाब न लिख
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साहित्य समागम के एक वर्ष पूरा होने पर उसके द्वारा हिंदी विभाग, मुम्बई विश्ववि. तथा विश्व हिन्दी संस्थान के सहयोग से एक शानदार काव्य-महोत्सव का आयोजन दिनांक 22.8.2019 को मुम्बई विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित जे.पी. नाईक भवन सभागृह में हुआ जिसमें देश के अनेक नामचीन शायरों और कवियों ने भाग लिया. अध्यक्षता प्रो. नंदलाल पाठक ने और संचालन अनंत श्रीमाली ने किया. मुख्य अतिथि हस्तीमल हस्ती और विशिष्ट अतिथि क़ैसर ख़ालिद थे. ध्यातव्य है कि प्रो. नंदलाल पाठक, हरिवंश राय 'बच्चन' के नजदीकी मित्र रहे हैं और क़ैसर साहब उम्दा शायर होने के साथ साथ महाराष्ट्र पुलिस में आई.जी. के पद पर भी तैनात हैं.
कार्यक्रम के आरम्भ में वंदना श्रीवास्तव ने अपने मधुर कंठ से सरस्वती वंदना का गायन किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन राजेश कुमारी राज ने किया. इस पूरे कार्यक्रम का संयोजन साहित्य समागम की अध्यक्षा कवयित्री मीनू मदान ने किया.
इसमें बड़ी संख्या में कवियों ने अपनी एक-एक रचना का पाठ किया. इनमें से कुछ की पंक्तियाँ कुछ इस तरह से थीं-
सोना चांदी बँट गए, बँटे खेत खलिहान
माँ-बापू के नाम से, हो रही खींचातान
(- अशोक वशिष्ट)
हम आपके घर में बिछे बिस्तर नहीं
पिघल जाएँ ठोकरों से राह के पत्थर नहीं
हम विजय के दुर्ग हैं आँखें उठा कर देखिए
जुगनुओं से झमझमाते रनिवास के खंडहर नहीं
(- डॉ. मनोहर अभय)
है अगर हुनर आग पे पानी लिख दे
मौज कोई तेरे अल्फाज़ मिटाने से रही.
(- राजेश कुमारी राज)
जीवन क्या है - आना, जाना
मुरझाने के पहले होगा
अपनी खुशबू को बिखरान
(- मीनू मदान)
निर्भया का पुनर्जन्म
(- अतुल अग्रवाल)
लेखनी तलवार होनी चाहिए
इक नहीं दो धार होनी चाहिए
जब चले तो जीत हो मजलूम की
जालिमों की हार होनी चाहिए
(- अशवनी 'उम्मीद')
वो हमें मिल गया जिसकी ख्वाहिश हुई
ज़िंदगी की कुछ ऐसी नवाजिश हुई
(- ओबैद आ. आजमी)
*जिससे लिखता है चिट्ठी प्यार की
उससे कभी हिसाब न लिख
*फीकी है हर चूनरी, फीका हर बंधेज
जो रंगता हि रूह को, वो असली रंगरेज
(- हस्तीमल हस्ती)
*कहते हैं जिसको इश्क हम
वो है सरापा गम ही गम
*ऐसी मनाफिकत की फ़िज़ा थी राह में
मैंने ही सच कहा था सो मेरा ही सर गया
(- क़ैसर ख़ालिद)
सानेहा उससे बिछुड़ने का बड़ा है लेकिन
देर तक ये भी तो सदमा नहीं रहनेवाला
उसके खत मेरे इश्क की निशानी है 'शकील'
होके तन्हा मैं तन्हा नहीं रहनेवाला
(- अतहर शकील)
दायरे से बाहर आ रहा हूँ मैं
आसमाँ को नीचे ला रहा हूँ मैं
इश्क़ की लहरों में लिपटा हूँ जब से
ख़ुद से आगे चला जा रहा हूँ मैं.
(- जे पी सहारनपुरी)
*वो अपने तन की मालिक है, वो अपने मन की मालिक है
अहिल्या आज की
उद्धार की चिन्ता नहीं करती
*मुंतज़िर तो किसी का नहीं था मैं
ये चाय क्यों ठंढी हो गई?
(- प्रो. नंदलाल पाठक)
इनके अतिरिक्त इन कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया - डॉ कमर सिद्धिकी, अरविंद शर्मा 'राही', ओम प्रकाश तिवारी, ओबेद आज़म आज़मी, नज़र बिज़नौरी, शिवदत्त अक्स, डॉ ज़ाकिर खान, नज़र हयातपुरी, अलका जैन 'शरर', कुमार जैन, प्रोफेसर हूबनाथ पांडे, मदनलाल, और सतीश शुक्ला रकीब. कार्यक्रम में हेमन्त दास 'हिम', सीमा रानी आदि भी उपस्थित थे.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
शेष चित्रों का लिंक - यहाँ क्लिक कीजिए
(जिन भाग लेनेवाले कवियों की रचनाएँ या चित्र नहीं सम्मिलित हो पाए हैं वे कृपया अपनी रचनाओं की पंक्तियाँ और चित्र, ऊपर दिये गए ईमेल पर भेजें.)
इसमें बड़ी संख्या में कवियों ने अपनी एक-एक रचना का पाठ किया. इनमें से कुछ की पंक्तियाँ कुछ इस तरह से थीं-
सोना चांदी बँट गए, बँटे खेत खलिहान
माँ-बापू के नाम से, हो रही खींचातान
(- अशोक वशिष्ट)
हम आपके घर में बिछे बिस्तर नहीं
पिघल जाएँ ठोकरों से राह के पत्थर नहीं
हम विजय के दुर्ग हैं आँखें उठा कर देखिए
जुगनुओं से झमझमाते रनिवास के खंडहर नहीं
(- डॉ. मनोहर अभय)
है अगर हुनर आग पे पानी लिख दे
मौज कोई तेरे अल्फाज़ मिटाने से रही.
(- राजेश कुमारी राज)
जीवन क्या है - आना, जाना
मुरझाने के पहले होगा
अपनी खुशबू को बिखरान
(- मीनू मदान)
निर्भया का पुनर्जन्म
(- अतुल अग्रवाल)
लेखनी तलवार होनी चाहिए
इक नहीं दो धार होनी चाहिए
जब चले तो जीत हो मजलूम की
जालिमों की हार होनी चाहिए
(- अशवनी 'उम्मीद')
वो हमें मिल गया जिसकी ख्वाहिश हुई
ज़िंदगी की कुछ ऐसी नवाजिश हुई
(- ओबैद आ. आजमी)
*जिससे लिखता है चिट्ठी प्यार की
उससे कभी हिसाब न लिख
*फीकी है हर चूनरी, फीका हर बंधेज
जो रंगता हि रूह को, वो असली रंगरेज
(- हस्तीमल हस्ती)
*कहते हैं जिसको इश्क हम
वो है सरापा गम ही गम
*ऐसी मनाफिकत की फ़िज़ा थी राह में
मैंने ही सच कहा था सो मेरा ही सर गया
(- क़ैसर ख़ालिद)
सानेहा उससे बिछुड़ने का बड़ा है लेकिन
देर तक ये भी तो सदमा नहीं रहनेवाला
उसके खत मेरे इश्क की निशानी है 'शकील'
होके तन्हा मैं तन्हा नहीं रहनेवाला
(- अतहर शकील)
दायरे से बाहर आ रहा हूँ मैं
आसमाँ को नीचे ला रहा हूँ मैं
इश्क़ की लहरों में लिपटा हूँ जब से
ख़ुद से आगे चला जा रहा हूँ मैं.
(- जे पी सहारनपुरी)
*वो अपने तन की मालिक है, वो अपने मन की मालिक है
अहिल्या आज की
उद्धार की चिन्ता नहीं करती
*मुंतज़िर तो किसी का नहीं था मैं
ये चाय क्यों ठंढी हो गई?
(- प्रो. नंदलाल पाठक)
इनके अतिरिक्त इन कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया - डॉ कमर सिद्धिकी, अरविंद शर्मा 'राही', ओम प्रकाश तिवारी, ओबेद आज़म आज़मी, नज़र बिज़नौरी, शिवदत्त अक्स, डॉ ज़ाकिर खान, नज़र हयातपुरी, अलका जैन 'शरर', कुमार जैन, प्रोफेसर हूबनाथ पांडे, मदनलाल, और सतीश शुक्ला रकीब. कार्यक्रम में हेमन्त दास 'हिम', सीमा रानी आदि भी उपस्थित थे.
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - बेजोड़ इंडिया ब्लॉग
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
शेष चित्रों का लिंक - यहाँ क्लिक कीजिए
(जिन भाग लेनेवाले कवियों की रचनाएँ या चित्र नहीं सम्मिलित हो पाए हैं वे कृपया अपनी रचनाओं की पंक्तियाँ और चित्र, ऊपर दिये गए ईमेल पर भेजें.)
शानदार, बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद, महोदय!
Deleteअत्यंत सूक्ष्म एवं शानदर विवरण 👌👌👌💐💐
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महोदया।
DeleteGreat program I missed it please inform me for the next program.iwill come Dilbag Singh Virk from Mulund colony Mumbai tel no. 9769109658
ReplyDeleteSir, thanks for appreciation. You are requested to contact Mrs. Meenu Madan, Convenor of Sahitya Samagam. She is available on facebook.
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