Wednesday 1 July 2020

भा. युवा साहित्यकार परिषद का आभासी कवि सम्मेलन 28.6.2020 को सम्पन्न

 अपना वजूद फिर भी बचाए हुए हैं हम
कविता सिर्फ अंतरात्मा को ही नहीं जगाती है बल्कि वह हमारी जिंदगी का प्रतिनिधित्व भी करती है - सिद्धेश्वर 

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किसी भी समाज में हर समय अधिकांश जनता मूक होती है। न तो अच्छे कामों में साथ देने आगे आती है न अन्याय होने पर प्रतिरोध करती है। मगर ऐसे में तो अच्छाई करनेवालों का मनोबल टूटेगा और बुराई करनेवालों का बढेगा। आखिर किसी को तो जनता की आवाज बनाकर आना होगा। और इसलिए कवियों को गूंगे की जुबान कहा जाता है।  एक कवि हर चीज के प्रति संवेदनशील होता है - स्वयं के प्रति, समाज के प्रति और देश के प्रति भी। किसी भी स्तर पर जब उसे विरूपता नजर आती है तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है। वह समाज और राष्ट्र का सबसे सजग और जिम्मेवार व्यक्ति होता है। यह जिम्मेवारी लॉक डाउन काल में और बढ़ जाती है क्योंकि परस्पर दूरस्थ कवियों को एक आभासी मंच पर लाना और कार्यक्रम संचालित करवाना अपने आप में सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। इन दिनों पटना से  इस जिम्मेवारी को निभाने वालों में सिद्धेश्वर जी महत्वपूर्ण हैं जो पूरे देश और अक्सर विदेशों से भी साहित्यकारों से संपर्क कर एक मंच पर इकट्ठा करते हैं वह भी नियमित रूप से।.आइये देखते हैं उनके नवीनतम कार्यक्रम की रपट (- हेमन्त दास 'हिम') 

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में. फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के पेज पर आनलाइन अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। देश- विदेश के नए-पुराने कवियों ने अपनी गीत- गजल और समकालीन कविता से सबको मन मुग्ध कर दिया।.   

कवि सम्मेलन के संयोजक ने संचालन के क्रम में सिद्धेश्वर ने कहा कि -"ऑनलाइन कविताओं की प्रस्तुति ने समकालीन कविता को आम पाठकों- दर्शकों से जोड़ने का सकारात्मक पहल किया है। हमारी संस्था की इस पहल ने देश भर की संस्थाओं को इस इंटरनेट के मंच पर उतारा है, जो कविता और लघुकथा के लिए शुभ संकेत माना  जा सकता  है।" उन्होंने कहा कि कविता सिर्फ अंतरात्मा को ही नहीं जगाती है, बल्कि वह हमारी जिंदगी का प्रतिनिधित्व भी करती है। "

कवि सम्मेलन की  मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर सुशील साहिल (झारखंड) ने कहा कि-" आनलाईन कवि सम्मेलन ने एक जबरदस्त साहित्यिक महौल पूरे देश भर बनाया है। देश - विदेश के लगभग पचीस कवियों और कवयित्रियों का एक मंच पर आकर काव्य पाठ करना, अनोखा और अद्भुत है। ।अन्य आनलाइन की अपेक्षा, अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका का बहुत बड़ा पाठकवर्ग है जिसके पीछे सिद्धेश्वर जी की मेहनत है।
                              
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, वरिष्ठ कवयित्री संतोष गर्ग (चंडीगढ़) ने  कहा कि - इंद्रधनुषी कविताओं के रंग सभी कवियों ने बिखेरे। कवियों की रचनाएं बहुत ही हृदय स्पर्शी, प्रेरक, संदेश वाहक थीं और खूबसूरत भी..! उनमें वीर रस, हास्य रस, करुण रस कई प्रकार के रस ...वर्तमान स्थितियों पर संदेश देती रचनाएं प्रस्तुत की गई। 
कवि-गोष्ठी  में शामिल कवियों में प्रमुख थे - सुशील साहिल, अमलेंदु आस्थाना,  नूतन सिंह, मधुरेश नारायण, सिद्धेश्वर,  शमां कौसर शमां, सम्राट समीर, दिलीप कुमार,  भारत भूषण पांडेय, घनश्याम, विजय किशोर मानव,  सुषमा बेदी (न्यूयार्क), मीना कुमारी परिहार, राजकुमार कुंभज, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, संजीव प्रभाकर (गांधीनगर), प्रियंका श्रीवास्तव "शुभ्र" सम्राट समीर, जया शुक्ला,  डी एन पटेल . प्रियंका त्रिवेदी (भोजपुर) , कुंदन आनंद  , पुष्प रंजन कुमार , वीणाश्री हेम्ब्रम आदि।

 कवि सम्मेलन में शामिल कवियों की कुछ कविताओं का अंश -

सुशील साहिल (झारखंड) :(मुख्य अतिथि) ने  हर  बूँद के भंवर हो जाने सी स्थिति बताई -
"जब मौन मुखर हो जाए
    हर बूंद भंवर हो जाए
    हमको अल्लाह, उन्हें
     भगवान का डर हो जाए! "

अमलेंदु आस्थाना (विशिष्ट अतिथि)  ने मायूस होकर अपने प्रिय को पूरा शहर ही लौटा दिया - 
 "चलो यह शहर तुम्हारे नाम करता हूं
जहां के लोग तुम्हारे हों
सारे  लोग तुम्हारे हों
सारे पेड़ तुम्हारे हो
 तुमको तुम्हारा शहर मुबारक
 मैं अपनों के साथ लौट रहा हूं ।"

 वीणाश्री हेम्ब्रम  बच्चो को मजदूरी करते देख संवेदित दिखीं -
    मैं देखती हूं नन्हे पांव को
   उनमें पड़े घाव को/ थके चले आते मजदूर   
      बोझ उठाते हैं माओं को !"

नूतन सिंह :(विशिष्ट अतिथि), जमुई ने संसाधनों के सही जगह इस्तेमाल न कर दूसरी जगह इस्तेमाल करने पर कटाक्ष किया - 
" गगन का लगता जो फेरा  है बादल
   समझता तू खुद को चितेरा है बादल।
    गरजता कहीं है, बरसता कहीं है। 
    ठिकाना नहीं कुछ भी तेरा है बादल ।"

मधुरेश नारायण ने अपने प्रिय को शाम की तन्हाइयों में लौट आने का आमंत्रण दिया -
 शाम की तनहाइयों में तुम चले आओ।
जाओ कहीं भी दूर मगर ,लौट के आ जाओ...!"

 सिद्धेश्वर नफ़रत के समंदर को पार करके प्यार करते रहे -
"कर्म  किए जा , और  जीए  जा 
   सुकरात की तरह जहर पिए जा।
     नफरत का समंदय तैर पाओ तो
 सारे जग से    प्यार  किए  जा.। "

शमां कौसर शमां ने इश्क के बड़े नाज़ुक जज़्बात रखे- 
    जज्ब-ए-इश्क को यारों ने संभाले रखा
     जैसे खुशबू को गुलाबो ने संभाले रखा।" 

 सम्राट समीर कोरोना काल में भी बिंदास रहनेवाले शायर हैं -
    जिंदगी में आज कुछ खास है
     अब रहना हर दम बिंदास है। "

 दिलीप कुमार ने जिंदगी के फलसफे को गाड़ी में यात्रा करने के अलफ़ाज़ में बयाँ किया- 
" बड़े-बड़े शिकायतों के साथ
  शुरू होता है लंबा सफर
   कभी गाड़ी देर/ कभी गाड़ी में अंधेर।

 भारत भूषण पांडेय - एक सूक्ष्मदर्शी कवि हैं जो जानते हैं कि उड़ने के लिए पंख ही नहीं आकाश भी चाहिए होता है 
       " बस खुदी में आस देना
          जीत का विश्वास देना।-
            पंख जो तूने दिए हैं 
             उड़ने को आकाश देना।

घनश्याम एक मंझे शायर ही नहीं नागरिक भी हैं जो सताने के बावाजूद भी बचना जानते हैं -
" यह बात सही है कि सताए हुए हैं हम
   अपना वजूद फिर भी बचाए हुए हैं हम। "  🌓 

विजय किशोर मानव  अपनी कविता देनेवाले हैं.

  , सुषमा बेदी (न्यूयार्क)  को न्यूयार्क से भारत में कोई परिवर्तन नहीं दिख रहा है - 
      "सब तो वैसा का वैसा है!
         वही मंदिर के कलश
           वैसे ही गुंबद!"

 राजकुमार कुंभज ने अपनी उलझन को कुछ यूं बयां किया -
        कटी पतंग सा /बिजली के तारों पर    
          उलझा पड़ा हूं मैं!"

संजीव प्रभाकर (गांधीनगर) :ने आशावादिता का परचम लहराया -
"मोहब्बत रंग लाएगी वफाओं का असर होगा
  यकीनन चांद तारों से सजा अपना सफर होगा। "

प्रियंका श्रीवास्तव" शुभ्र " ने महिला बाल श्रम पर बहुत मार्मिक पंक्तियां पढ़ी -
 आंखों में आंसू लेकर मुनिया
  ढोती है माथे पर दुनिया । "

मीना कुमारी परिहार  ने धर्म की सीख का पालन करने की बात की जिसमें शरणागत की रक्षा शामिल है -
" सभी मज़हब सिखाते हैं
शरण में गर कोई आये
तो अपनी जान से ज्यादा
हिफाज़त कीजिये साहब
अगर कर पायें तो इतनी सी
इनायत कीजिये साहब! "

प्रियंका त्रिवेदी (भोजपुर) अपने ग़मों को भूलकर भी खुशियाँ बांटनेवालों में से हैं -
 सफर - ए-जिंदगी सबकी /आसान नहीं होती
जो भूलकर के अपने गमों को /औरौं में बांटते खुशी।

बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता  ने धर्म के नाम पर सामाज में आग लगानेवालों की पोल खोल दी -
 " यह कैसा धर्म है?
  जिसकी कोख में जन्म लेता है     
  साप्रंदायवाद, अराजकता और आतंकवाद    
   और बेच डाले हैं, अपने ही संस्कार!! 

 कुंदन आनंद  जवांदिल शायर हैं तो नज़रें तो मिलेंगी है -
" दिल पर होता है जब एक अजब सा असर 
तुम मिलाते हो जब भी नजर से नजर !" 

  पुष्प रंजन कुमार  ने वृक्ष रोपने की विधि का चित्रण किया -
      काटा  मिट्टी फाड़ से
      निकाला पानी पाताल से.!
 मिलाया गुत्था दोनों का 
    डाल ठूंसा, सांच. में। "
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रपट की प्रस्तुति - सिद्धेश्वर / हेमन्त दास 'हिम'
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - 
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com





























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