Friday 17 July 2020

अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर कथाकार सिद्धेश्वर द्वारा कहानियों का पाठ 12.7.2020 को सम्पन्न

आज के जीवन की समस्याओं को दर्शाती कहानियाँ 

FB+ Bejod  -हर 12 घंटे पर देखिए / ब्लॉग में शामिल हों- यहाँ क्लिक कीजिए  / यहाँ कमेंट कीजिए






(सिद्धेश्वर बहुमूखी प्रतिभा के धनी हैं।   वे न सिर्फ रेखाचित्रों के राष्ट्रीय स्तर के कलाकार हैं बल्कि पूरे बिहार के जाने-माने कहानीकार, लघुकथाकार, कवि और सबसे बढ़्कर नई उभरती प्रतिभाओं के साथ-साथ स्थापित साहित्यिक प्रतिभाओं को एक मंच पर लाकर साहित्यिक गतिविधियों को तीव्र रखनेवले एक अनोखे संयोजक हैं। इनमें जो साहित्यिक ऊर्जा है वह सेवानिवृति के बाद कम लोगों में होती है।  यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नि:स्वार्थ भाव से सहित्य की विशुद्ध साधना में जुटा यह व्यक्ति अपने-आप में एक संस्था है जिससे पूरा साहित्यकार समुदाय लाभांवित ही नहीं होता वरन एक आश्वस्ति भी पाता है कि उसके लिए एक मंच तो कम से कम क्रियाशील है ही।  अभी हाल ही में उनके एकल कहानी-पाठ का आभासी कार्यक्रम हुआ जिसकी रपट प्रस्तुत हैं।  - हेमन्त दास 'हिम')

12/07/2020 "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के फेसबुक पेज पर, भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित एकल पाठ के तहत, आज चर्चित कवि-कथाकार सिद्धेश्वर ने अपनी दो कहानियो, "घरोंदा" और "दूल्हा बाजार"का लाइव पाठ किया। 

गोष्ठी के मुख्य अतिथि चर्चित कवि और अनुगूंज के संपादक लवलेश दत्त (बरेली) ने कहा कि - "सिद्धेश्वर की दोनों कहानियाँ सामयिक और अर्थपूर्ण है। पहली कहानी 'घरौंदा' में किराएदारों की स्थिति का बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है। वहीं दूसरी कहानी 'दूल्हा बाजार' में, एक अधिक आयु की लड़की की मनोदशा और उसके अतीत में उसके साथ हुए छल का बहुत ही मर्मस्पर्शी चित्रण किया गया है। उनकी  अपनी दोनों कहानियों में  संवेदना और मनोविज्ञान को बखूबी अभिव्यक्ति प्रदान की गई है। सच पूछिए तो जीवन की तल्ख हकीकत को बयां करती है सिद्धेश्वर की कहानियां।"

गोष्ठी के मुख्य वक्ता युवा साहित्यकार विजयानंद विजय (मुजफ्फरपुर) ने विस्तार से कहा कि - " एकल कहानी पाठ में कथाकार सिदेश्वर द्वारा दो कहानियों - घरौंदा और" दुल्हा बाजार" का पाठ किया गया।कहानी " घरौंदा " किराए के मकान में रहने वाले एक परिवार द्वारा भोगी जा रही कठिनाईयों, परेशानियों, दुश्वारियों और मुश्किलों की यथार्थ बयानी है, जहाँ किराएदार आए दिन अपने मकान मालिक द्वारा की जा रही ज्यादतियों और बदतमीजियों का शिकार होता रहता है।. 

अंततः प्रताड़ित होकर, कष्ट से मुक्ति पाने के लिए वह मकान छोड़ देता है। यह कथा बताती है कि सच्चा सुख और आनंद अपने ही घर में है। वहीं जीवन का सच्चा सुकून है।

"दुल्हा बाजार " समाज में व्याप्त दहेज प्रथा की त्रासद स्थिति का मनोवैज्ञानिक निरूपण है, जहाँ दहेज लोभियों ने विवाह को एक व्यापार बना दिया है।यह विपरीत परिस्थितियों में नायिका किरण के जीवट, साहस, दृढ़ निश्चय और जिजीविषा की जीवंत कहानी भी है, जो समाज में विवाह नामक संस्था के विद्रूप चेहरे को दिखाती है। यह कथा इतनी रोचक है कि जहाँ यह समाप्त होती है, वहाँ से युवतियों के लिए एक नयी शुरूआत की संभावना और संकेत छोड़ जाती है।

इस आनलाइन कथा संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि कथाकार,फिल्म अभिनेत्री डाॅ सविता मिश्रा मागधी ने कहा कि - "सिद्धेश्वर की दोनों कहानी हमारे समाज का प्रतिबिंब है। पहली कहानी "घरौंदा" के माध्यम से उन्होंने किरदार के दर्द को उकेरा है। कहानी के माध्यम से यह संदेश भी दिया गया है कि माँ-बाप के स्वभावानुसार उनके बच्चे प्रतिछाया बन जाते हैं। अच्छे माँ-बाप के बच्चे बचपन में ही धीर गंभीर और लड़ाकू प्रवृत्ति के अभिभावकों के बच्चे बचपन से ही लंपट।

वहीं दूसरी कहानी "दूल्हा बाजार " में दहेज के साथ बड़ी उम्र की अनब्याही लड़कियों का दर्द बड़ी शिद्दत से उकेरा है सिद्धेश्वर ने। । किरण के जीवन में तीन लड़के आते हैं जिनसे उसका विवाह बस तय होता है, पहला डॉक्टर जिसका परिवार चार साल बाद दहेज बढ़ा देता है। दूसरा ऑनलाइन वाला जो प्रत्यक्ष देख बड़ी उम्र होने के कारण शादी से इंकार करता  है। तीसरा निठल्ला जिसके कारण उसकी नौकरी और घर से हाथ धोने की नौबत आ जाती है। मेरे अनुसार किरण को शादी से इंकार कर अपने अस्तित्व को बचाना चाहिए।  कहानी एक नई सोच को जन्म देती है। "
....

प्रस्तुति : बीना गुप्ता
परिचय - सह-संयोजक,/भारतीय युवा साहित्यकार परिषद  (पटना) 
मो: 9234760365


No comments:

Post a Comment

Now, anyone can comment here having google account. // Please enter your profile name on blogger.com so that your name can be shown automatically with your comment. Otherwise you should write email ID also with your comment for identification.