Tuesday 21 July 2020

राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच' की बिहार इकाई की कवि गोष्ठी 19.7.2020 को सम्पन्न

फूल नहीं खिलते उपवन में काँटे बोने से / खुशियाँ नहीं मिला करती हैं जादू-टोने से

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दिनांक 19.7.2020 को 'राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच' की बिहार इकाई की ओर से दोपहर तीन बजे से रात्रि नौ बजे तक ऑनलाईन काव्य गोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। यह गोष्ठी मंच के संस्थापक नरेश नाज़ की उपस्थिति  में हुई।

गोष्ठी की अध्यक्षत, मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष एम.एस.जग्गी  ने की। विशिष्ठ अतिथि; संस्था की राष्ट्रीय उपाध्यक्षा सविता चड्ढ़ा  तथा राष्ट्रीय सलाहकार राजेंद्र निगम रहे। मंच का संचालन पूर्वी उत्तर प्रदेश की अध्यक्षा  मणिबेन द्विवेदी  ने किया।नरेश नाज़  द्वारा मां सरस्वती की वन्दना से कवि गोष्ठी का शुभारंम्भ हुआ।

गोष्ठी में भारत के बीस राज्यों के कवि-कवयित्रियों ने भाग लिया। सबने अपनी कविताएं, गीत, गजल, कजरी ; ऑडियो के माध्यम से सुनाईं ।

इक्कीस राज्य जिसमें, ओड़िसा, पंजाब,चंडीगढ, हरियाणा, दिल्ली, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड, आसाम, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, और कर्नाटक से 52 कवि,कवयित्रियों एवं  गजलकारों ने भाग लिया। सभी ने बहुत हीं सुन्दर, सुमधुर स्वर में समां बांधा और माहौल को गुलजार कर दिया ।

हरेंद्र सिन्हा ने मिलकर बातें की -
आओ हमतुम दोनों मिलकर बात करें मन की ,रे सजनी
गांठ खोलें मन की।
कभी तुम रूठी,कभी मैं रूठा 
अब बात करें मन की ,रे सजनी ।

किरण गर्ग (पटियाला) ने आजकल दूर कर लिया है खुद को एक नशे से -
मोहब्ब्त की बातें अब हमसे न किया करो
आजकल हम इस नशे से बहुत दूर रहते हैं
कभी रहते थे डूबे इश्क़ की मस्ती में
आजकल हर दर्द ओ गम से दूर बैठे है,,,,

डॉ.प्रणव भारती ने उम्र की रवानगी को कुछ यूँ बयां किया -
चिंदी चिंदी समय की कतरन,
देख देख घबराता ये मन।
आड़ी तिरछी सी रेखाएं ,
पोंछ पोंछकर जाता ये मन ।

डॉ श्रीलता सुरेश, बैंगलोर, कर्नाटक कोई बंधन नहीं मानती प्रेम में -
इस पर नहीं है बंधन
       किस पर कब आ जाएं
मनोभावों से सृजन कर
              अपना इसे बनाए

राशि श्रीवास्तव, चंडीगढ़ ने बड़ी मार्मिकता से कहा -
जीवन जो देती हमको 
उसे देंगे क्या भला 
मां मांगती कहां है कुछ 
दुआओं के सिवा

राजेन्द्र निगम 'राज' ने आंखें खोलीं भटके हुए लोगों की -
  गुरुग्राम
फूल नहीं खिलते उपवन में 
काँटे बोने से
खुशियाँ नहीं मिला करती हैं
जादू-टोने से

जिधर देखो सब सिर्फ माँ  की महिमा गाने में लगे हैं।  लेकिन डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार' जानते हैं कि पिता भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं -
पिता पर्वत है सूरज है,
सुबह की भोर लाली है 
पिता है घर में तो,हर रोज़ होली है दीवाली है ।
पिता ही दोस्त, साथी, मित्र
बंधु ,  है सखा अपना 
‘उदार’ हमने हैं देखे सब,
वही बगिया का माली है।


डॉ. मंजु रुस्तगी, चेन्नई उस सावन को बेकार मानती हैं जो साजन के बिन हो -
बिन साजन के आया सावन 
क्या क्या करूँ जतन, 
कैसे धीर धरे ये मनवा, 
चैन न पाए तन--- 

महेन्द्र जैन, हिसार हर सजा को तैयार हैं कोई उनका ज़ुर्म तो बताए -
ज़ुर्म क्या है मेरा ये बता दीजिए
फिर जो चाहे मुझे वो सजा दीजिए
आ गया तेरे मयख़ाने में साक़िया
आज जी भर के मुझको पिला दीजिए

अरुण दुबे  मध्यप्रदेश ने शायरी के करीब आने का राज बताया - 
सच से ऐसा हुआ सामना बेख़ुदी के करीब आ गए
इश्क़ में चोट खा खा के हम शायरी के करीब आ गए

     
डाः नेहा इलाहाबादी (दिल्ली) ने देश की हिफाज़त में लगे लोगों को गम्भीर होने को कहा -
अँधेरे कूकते  हैं बागबाने,
          दिल  की  गलियों  में ।
कहर  बरपा  न हो  जाए,
         कहीं मासूम कलियों में ।।
हिफा़जत देश की है आज ,
         जिन लोगों के काँधे पर ।
वही  खोए  हुए  हैं आज ,
           बहशी  रंग  रलियों  में ।।

सरला विजय सिंह 'सरल' चेन्नई ने देशभक्ति की मशाल जलाई -
हिंद के निवासी हैं तो हिंदी के लिए दिलों में 
गीत वंदे मातरम जीवंत होना चाहिए 

भारती जैन 'दिव्यांशी' ने गीत को सरगम पर ढाला -
मेरे गीत तुम्हारी सरगम,  अधर -अधर पर जब महकेंगे
कितने ही मन व्याकुल होंगे, कितनों की उर पीर हरेंगें

विजय मोहन सिंह, चेन्नै मे सीमा की स्थिति का जायजा लिया - 
उनसे कह दो कि ना देखें वो,  इस तरह से बदगुमान.. 
सीमाएं हमारी चाक-चौबंद हैं, 
डटे खड़े हैं वीर जवान..

मंजु महिमा भटनागर, अहमदाबाद ने बढ़ती उम्र की दास्तां बताई -
ज्यूं ज्यूं उम्र बढ़ती है, मन पीछे लौटता है,
किसे ढूँढता है? कुंआरी क्यारियों में छिपे,
संजीवनी के बीज या फिर अग्नि- कुसुम. -- 

राजेश अनुभव  झारखंड आसपास चल रहे महाभारत की बात कही -
हमारे आसपास भी
एक महाभारत पल रहा है।
अनजाने शत्रुओं से
हमारा एक युद्ध चल रहा है।

डॉ सुमन दहिया, जयपुर राजस्थान ने पुराने  दिनों की बात बताई -
यह तब की बात है ........
जब जीना सीखा न जाता था
हम यूं ही बिंदास जिया करते थे 
हम भी रईस हुआ करते थे
यह तब की बात है.........…

सुधा सिन्हा सावन के झूलों को खूब पसंद करती दिखीं -
सावन के झूले लगने लगे
गुलशन फूलों से सजने लगे 

धन्यवाद ज्ञापन मणिबेन द्विवेदी  ने किया।  गोष्ठी के समापन की घोषणा मंच के राष्ट्रीय महासचिव  हरेंद्र सिन्हा ने की।
.......

रपट के प्रस्तोता - हरेंद्र सिन्हा /  हेमन्त दास 'हिम'
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - 
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com


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