Thursday 23 July 2020

भा.युवा साहित्यकार परिषद द्वारा आभासी लघुकथा सम्मेलन 19.7.2020 को संपन्न

सृजनात्मकता की प्रासंगिकता कभी प्रश्नों के सलीब पर नहीं टँगती
लघुकथा समीक्षक निशांतर की मृत्यु पर शोक प्रकट किया गया 

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पटना :"समयगत सच्चाईयों  को पूरी शिद्दत के साथ बयां कर रही हैं, नए मूल्यों को प्रतिस्थापित कर रही हैं समकालीन लघुकथाएं। "भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आयोजित तथा अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर ऑनलाइन आयोजित हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया। 

यह सारस्वत समारोह वरिष्ठ लघुकथा समीक्षक स्व निशांतर की स्मृति को समर्पित था। इस  लघुकथा सम्मेलन में पढ़ी गई लघुकथाओं में लवलेश दत्त (बरेली) ने "नेकी की दीवार", प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र 'ने  'तितलियां', विजयानंद विज(मुजफ्फरपुर)'', ने' प्यासी नदी', राजप्रिया रानी ने ' परिवेश', पुष्परंजन कुमार ने'पॉर्न वीडियो', पूनम सिन्हा श्रेयसी  ने ' इंतजार', प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर) ने "दहेज प्रथा", मीना कुमारी परिहार ने 'औरत तेरी यही कहानी', मधुरेश नारायन ने 'बिखरते रिश्ते', बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता ने' प्रतिक्रिया' लघुकथाओं का पाठ किया। इसके अतिरिक्त डॉ सतीशराज पुष्करणा, डॉक्टर शिवनारायण, डाॅअनिता राकेश, सिद्धेश्वर, पुष्पा जमुआर, सविता मिश्रा मागधी आदि ने भी लघुकथाओं का पाठ किया।

मुख्य अतिथि में डॉ सतीशराज पुष्करणा ने लघुकथा की सृजनात्मक प्रासंगिकता विषय पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि- "  सिद्धेश्वर द्वारा आयोजित ऑनलाइन. लघुकथा सम्मेलन, अपने आप में समकालीन लघुकथा की प्रासंगिकता को नए अर्थ से अभिव्यक्त करने का प्रयास है। इसके पहले उन्होंने लघुकथा समीक्षक निशांतर की आकस्मिक मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की। 

विशिष्ट अतिथि डॉ. शिव नारायण ने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि इधर के वर्षों में अनेक रचनाकार सामने आये हैं जो अच्छा लिख रहे हैं |

विजयानंद विजय ने कहा-" मुझे खुशी है कि मेरी लघुकथा पर लघुकथा मर्मज्ञों की सकारात्मक टिप्पणियाँ आईं।यह लघुकथा अभी कुछ दिनों पहले अनुभव पत्रिका में प्रकाशित हुई है और मेरे सद्यः प्रकाशित लघुकथा संग्रह " संवेदनाओं के स्वर" का हिस्सा है।"

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर अनिता राकेश ने कहा कि सृजनात्मकता की प्रासंगिकता प्रश्नों के सलीब पर नहीं टंगती। लघुकथा की कृतियों में बहुरंगी पुष्पों का विकसित होना ही लघुकथा  के महत्व को रेखांकित करता है। सृजनात्मकता की प्रासंगिकता कभी प्रश्नों के सलीब पर नहीं टँगती | चाहे वह किसी भी विधा  की सृजनात्मकता हो | रचनाकार सदैव अपने समकालीन परिवेश से संचालित होता है, प्रभावित होता है  - यह अकाट्य सत्य है| लघुकथा की बगिया में  बहुरंगी पुष्पों का विकसित होना उसकी समृद्धि का ही द्योतक है | पुष्प छोटे ,बड़े ,सुगंधित, गैर सुगंधित रंगीन सभी प्रकार के हो सकते हैं और सब का अपना महत्व है | आवश्यक नहीं ये सभी फूल देवों पर ही चढ़ाए जाएं |कुछ बगिया की सुंदरता के लिए भी आवश्यक है |

इस संगोष्ठी में संजय राॅय, आलोक चोपड़ा, ऋचा वर्मा,पुष्पा जमुआर, वीणाश्री हेम्ब्रम, विनोद प्रसाद, घनश्याम समेत बड़ी संख्या में रचनाकारों ने अपनीउअपस्थ्तिति दर्ज की। 
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प्रस्तुति -  सिद्धेश्वर 
प्रथम प्रस्तोता का चलाभाष - 9234760365
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

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