क्या ईश्वर / इतनी भाषाएँ जानता है ?
"निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष"- जयशंकर प्रसाद *BEJOD INDIA (Main page)* बेजोड़ इंडिया/ بیجوڑ انڈیا - A blog in English, हिन्दी, اردو and other Indian languages/ Devoted to Indian art, culture and literature keeping a distance from political or other disputes./Please don't send your content until requested by us. Use Contact Form on desktop version of this blog to contact us. /(Our link supported by Twitter & WhatsApp but not by Facebook)
Monday, 31 August 2020
विन्यास साहित्य मंच" के द्वारा समकालीन कविताओं पर केन्द्रित ऑनलाइन काव्य संध्या 30.8.2020 को सम्पन्न
Saturday, 29 August 2020
अ. भा. सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के पटल पर वाहिद अली वाहिद का काव्यपाठ 26.8.2020 को संपन्न
जब पूजा अज़ान में भेद न हो..
रपट के लेखक - पुरुषोत्तम नारायण सिंह |
Friday, 28 August 2020
अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक / कुमार पंकजेश की गज़लें संपादकीय टिप्पणी के साथ ( Poems by Kumar Pankajesh with Editor's comments)
तीन गज़लें
( FB+ Bejod -हर 12 घंटे पर देखिए )
Editor's comment -
Kumar Pankajesh is basically a romantic poet though the tinge of his romance traverse the realms of the all sorts of harsh realities in the world. The realities prevailing in family, society and in the all spheres of life. His language is lucid and connotations are comprehensible yet they are neither simplistic nor light-hearted. He would never flinch back from touching thorns in an attempt to looking at the magical beauty of the flowers. The beauty of stark contrast makes the imagery more sedate - 1.मुदावा का बहुत था वादा जिनका /कुरेदें ज़ख़्म वो चारागरी में. 2.बहुत ही संगदिल है हुस्न तेरा / मगर होती है उल्फ़त बेरह्मी में
The romance is soft, shy and in undertone - 1. छुपा के अपने घाव भी रखेंगे इस तरह '/ कि देखने में घाव भी हरा नहीं लगे 2. ख़ता तेरी जहाँ नज़र में सब के है चुभे / हमें तेरी ख़ता बुरी ज़रा नहीं लगे
And no true poet can shirk from the social discourse. He provokes a person to show his maximum potential and that too at a time when it is badly needed - 1. अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक /वो सच नहीं समय पे जो खरा नहीं लगे. If you don't act when it is required then you are bound to live in your misery - हज़ारों बार मरता है ये इंसां / फ़क़त एक ही अदद इस ज़िंदगी में.
With an aim to arouse the inner determination for the betterment of the society the poet almost challenges a person that he has no capacity to do good - दूर कर दे फ़रेबे तारीकी / दीप ऐसा जला नहीं कोई
And then there is a final grumble at the nonchalant garrulous souls - लतीफ़ा था कि ताना ये न समझा / बहुत पोशीदा था संजीदगी में.
मज़ाक़ ऐसा कीजिए बुरा नहीं लगे
छुपा के अपने घाव भी रखेंगे इस तरह
कि देखने में घाव भी हरा नहीं लगे
अगर है तू गुहर अभी ज़रूरी है चमक
वो सच नहीं समय पे जो खरा नहीं लगे
किया है तुमने प्यार इस तरह कभी हमें
भरा हो जाम भी मगर भरा नहीं लगे
कहो कहाँ असर तेरी दुआओं में रहा
हसद से की गयी दुआ, दुआ नहीं लगे
ख़ता तेरी जहाँ नज़र में सब के है चुभे
हमें तेरी ख़ता बुरी ज़रा नहीं लगे
सितम किया हक़ीर जानकर हमें तो क्या
मुख़ालफ़त है की मरा हुआ नहीं लगे
ग़ज़ल 2
नहीं है इतनी शिद्दत तिश्नगी में
तो रक्खा क्या तुम्हारी बंदगी में
हज़ारों बार मरता है ये इंसां
फ़क़त एक ही अदद इस ज़िंदगी में
बदल जाती है पल में जैसे ये रुत
यही फ़ितरत है हर एक आदमी में
मुदावा का बहुत था वादा जिनका
कुरेदें ज़ख़्म वो चारागरी में
बहुत ही संगदिल है हुस्न तेरा
मगर होती है उल्फ़त बेरह्मी में
लतीफ़ा था कि ताना ये न समझा
बहुत पोशीदा था संजीदगी में
दोस्त अब तक मिला नहीं कोई
दुश्मनों से गिला नहीं कोई
मार दे मेरी पीठ पर ख़ंजर
इतना प्यारा दिखा नहीं कोई
मानता हूँ कि ऐब हैं मुझमें
दूध का पर धुला नहीं कोई
बाँट लेता किसी से दुख अपना
मुझसे इतना खुला नहीं कोई
जो बुराई से रोक ले मुझको
दोस्त इतना भला नहीं कोई
दूर कर दे फ़रेबे तारीकी
दीप ऐसा जला नहीं कोई
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Thursday, 27 August 2020
"लघुकथा के रंग" द्वारा आयोजित अ.भा. ऑनलाइन लघुकथा सम्मेलन 21.6.2020 से 23.8.2020 तक चलकर सम्पन्न
लघुकथाकारों का अनोखा ऑनलाइन जमघट
महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, प. बंगाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़ के लघुकथाकारों ने लिया भाग
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भाग लेने वाले लघुकथाकारों में सेवा सदन प्रसाद- महाराष्ट्र, चंद्रिका व्यास- महाराष्ट्र, कनक हरलालका, आद्या प्रसाद मिश्र, रीटा जय हिंद दिल्ली, दिनेश प्रसाद दिनेश कोलकाता, पश्चिम बंगाल, बजरंगी लाल यादव -बिहार, अलका पांडे - महाराष्ट्र, रेखा बोरा -उत्तर प्रदेश, के 0पी0 सक्सेना "दूसरे"-छत्तीसगढ़, पीहू पपीहा- पश्चिम बंगाल, चंचला राठौर- गुजरात, आलोक कुमार सिंह-उत्तर प्रदेश, उर्मि भट्ट, - गुजरात, पूजा नबीरा- मध्य प्रदेश, वंदना श्रीवास्तव- महाराष्ट्र, हेमलता मिश्र मानवी- महाराष्ट्र, शेख शहजाद उस्मानी -मध्य प्रदेश, डॉक्टर वर्षा महेश -महाराष्ट्र, संजय कुमार श्रीवास्तव -बिहार, डॉक्टर दीपिका राव- राजस्थान, विश्रवम्भर दयाल तिवारी- महाराष्ट्र, सुधा तारे- मध्य प्रदेश, रामेश्वर प्रसाद गुप्ता- महाराष्ट्र, तनुजा दत्त -उत्तर प्रदेश, स्वप्निल यादव -उत्तर प्रदेश, डिंपल गौड़ - गुजरात, कुमकुम वेद सेन - महाराष्ट्र, डॉ ममता पाठक- नई दिल्ली, श्रुति कीर्ति अग्रवाल -बिहार, प्रवीणा राही -उत्तर प्रदेश, अंजु सिंह- उत्तर प्रदेश, रशीद गौरी- राजस्थान, व्यंजना आनंद मिथ्या, कृष्ण कुमार क्रांति- बिहार, संध्या श्रीवास्तव, -उत्तर प्रदेश, महेश राजा- छत्तीसगढ़, लता तेजेश्वर रेणुका- महाराष्ट्र, सीमा निगम- छत्तीसगढ़, अंजु अग्रवाल लखनवी -महाराष्ट्र, डॉ अंजु लता सिंह -नई दिल्ली, शकुंतला तिवारी -छत्तीसगढ़, प्रज्ञा गुप्ता -राजस्थान, डॉक्टर लता अग्रवाल, भोपाल -मध्य प्रदेश ने अपनी-अपनी लघुकथाओं का वाचन किया.
पूरे कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार सेवा सदन प्रसाद -मुंबई, महाराष्ट्र ने कहा कि - इस आयोजन से लोगों में उत्सुकता पैदा हुई,आत्मविश्वास बढा , झिझक दूर हुई और अपनी लेखनी पर गर्व महसूस हुआ।
बहुत ही खूबसूरत तरीके से समारोह का समापन, नए प्रोग्रामों का एलान, आत्मीयता एवं नम आंखों से विदाई पर जुदाई नहीं कह सकते हैं।
पहुंचने के पहले हम हो जायें मशहूर।
"लघुकथा के रंग" मंच के संस्थापक अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन के संयोजक अंदाज़ अमरोही ने कहा कि यह कार्यक्रम लॉकडाउन और कोरोना के चलते ऑनलाइन किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य था पूरे भारत के लघुकथा कारों को एक मंच प्रदान करना तथा उनकी प्रतिभा के रंग को दुनिया भर से अवगत कराना इस मंच पर वरिष्ठ और कनिष्ठ साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से जो रंग बिखेरे हैं उसका असर देर तक दिखाई देगा. लॉकडाउन के बुरे दौर को जब कभी हम याद करेंगे तब इस सम्मेलन की सुनहरी यादें हमारे दिल दिमाग को सुकून देंगी. रचनात्मकता से भरपूर यह दिन हमारी यादों का हमेशा हिस्सा रहेंगे.
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रपट के प्रस्तोता - सेवा सदन प्रसाद
Monday, 24 August 2020
अजगैबीनाथ साहित्य मंच सुल्तानगंज भागलपुर की आभासी कवि-गोष्ठी 23.8.2020 को सम्पन्न
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Friday, 21 August 2020
भा. युवा साहित्यकार परिषद का आभासी लघुकथा सम्मेलन 17.8.2020 को सम्पन्न
विशिष्ट लघुकथाओं के सारांश के साथ पूर्ण रपट
समकालीन लघुकथा की प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि "इन्टरनेट के इस आधुनिक युग में लघुकथा की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। एक कमरे में बंद होकर लघुकथा पाठ करने के बजाए व्हाइटस एप या फेसबुक पर लघुकथा का पाठ करना और अधिक सावधानी बरतने की अपेक्षा करता है। क्योंकि इस मंच पर दुनिया भर के लोग और कोई भी, कहीं भी, कभी भी देख सुन सकता और त्वरित प्रतिक्रिया भी व्यक्त करने के लिए वह स्वतंत्र होता है।
उन्होंने कहा कि - "अपनी संस्था द्वारा लघुकथा को पहली बार हमने आनलाइन प्रस्तुति देकर, इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने का प्रयास किया है, कुछ दिनों पूर्व प्रख्यात सहित्यकारों द्वरा इसके उद्घाटन के बाद से हमने लगभग हर माह लघुकथा की आनलाइन चर्चा और पाठ करवाकर, लघुकथा को जन समुदाय से जोड़ने का प्रयास किया है। देश - विदेश के साहित्यकारों का सहयोग अतुलनीय है। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में और "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर आनलाइन आयोजित "हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन" के संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया।
मुख्य अतिथि की भूमिका में योगेंद्रनाथ शुक्ल के अलावा, देश-विदेश के कुछ जाने-माने लघुकथाकार जैसे विभा रानी श्रीवास्तव, रामयतन यादव और कमल चोपड़ा जैसे देश के लब्ध प्रतिष्ठित लघुकथाकारों ने भी अपनी लघुकथा बांची।
मुख्य अतिथि योगेंद्रनाथ शुक्ल (जो 7वें दशक से लघुकथा लेखन में सक्रिय रहे हैं) ने कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें साझा की। उन्होंने बताया कि " खलील जिब्रान पहले लघुकथाकार हैं, जिन्होंने विधिवत लघुकथा लेखन की शुरुआत की। लघुकथा के विषय में उनका कहना था कि -" लघुकथा का सृजन करना, समुद्र को अंजलि में भरने का काम है। और उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि - "हमें भरपूर अध्ययन करना चाहिए। तभी हम अच्छी लघुकथा या कविता लिख सकते हैं। उनके अनुसार लघुकथा की भाषा सहज और सरल होनी चाहिए, उसकी पहुंच आमजन तक होनी चाहिए। वरना लघुकथा का भी वही हश्र होगा जो कविताओं का हुआ है, उनके क्लिष्ट भाषा के कारण।
इस आन लाइन लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, लेखिका ऋचा वर्मा ने, लगभग पचीस लघुकथाकारों की पढ़ी गई लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा कि - "समकालीन लघुकथाओं में सकारात्मक सोच उभरकर सामने आ रही है, जो कुछ बेहतर करते हुए प्रगतिवादी है। कुछ लघुकथा, लघु कहानी जैसी है, इससे बचने की जरूरत है।"
पठित लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए उन्होंने कहा कि - " आज के कार्यक्रम में सबसे पहली प्रस्तुति विजय आनंद विजय (मुजफ्फरपुर) की लघुकथा 'नुमाइश' थी, जिसमें उन्होंने एक व्यक्ति को अपनी होने वाली बहू को किसी भी तरह के कपड़े पहनने की अनुमति देने की बात कही है, यह समाज में होने वाले परिवर्तन की ओर इशारा करती है कि अब लोग बहू के रूप में कोई नुमाइश करने वाली लड़की की खोज नहीं कर रहे हैं।
दूसरी प्रस्तुति संजय कुमार अविनाश (लक्खीसराय ) की 'एफ आई आर' जिसमें सिस्टम की खामियों और भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार किया गया है। सविता मिश्रा मागधी (बेंगलुरु) की रचना 'लोरी' जिसमें एक मां कोरोना के कारण अपने मरे हुए बेटे को देख कर उसे सोया हुआ समझती है और इसी विक्षिप्तता की अवस्था में सड़क पर आकर लोरी सुनाती है, क्योंकि उसकी बहू के वर्क फ्रॉम होम में बाधा ना पड़े। विनोद प्रसाद (खगौल) की रचना 'पश्चाताप' जिसमें किसी के बहकावे में आकर एक महिला किसी डॉक्टर को पत्थर मारती है, बाद में वही डॉ उस कोरोना संक्रमित महिला का इलाज कर उसे ठीक भी कर देता है। यह धर्म के आधार पर भेदभाव न करने का संदेश देती हुई लघुकथा है।
डाॅ योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौर) की लघुकथा 'बेचारी तख्तियां' इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि कैसे किसी भी किसी बड़े साहित्यकार का फोटो हिंदी दिवस के दिन बस एक दिन के लिए सम्मान पाता है और उसके बाद उसे कोई नहीं पूछता। प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर) की लघुकथा 'स्वार्थ "' बताती है कि जिस बाप को पेंशन नहीं मिलता उसकी जिंदगी का कोई महत्व नहीं रहता। पूनम सिन्हा श्रेयसी की लघुकथा 'शिकारी' सोशल मीडिया पर फैले झूठ, व्यभिचार और दोस्ती के नाम पर महिलाओं के शोषण पर प्रकाश डालती है। संतोष गर्ग(चंडीगढ़) की लघुकथा 'छोटी सी बात' हमें अपने माता-पिता को समय देने के लिए प्रेरित करती है। नरेंद्र कौर छाबड़ा (म प्र) की 'पतंग' यह बताती है कि हमें बुजुर्गों को भी अपने खेल-कूद और मनोरंजन में भाग लेने का अवसर देना चाहिए और साथ ही बुजुर्गों को भी अपने अपना आत्मविश्वास कायम रखना चाहिए। ऋचा वर्मा की लघुकथा 'विवशता' और राजप्रिया रानी की 'आजादी' स्वतंत्रता दिवस पर जिन बच्चों को स्कूल जाना चाहिए उनके द्वारा द्वारा झंडे बेचे जाने पर सवाल उठाती है।
सिद्धेश्वर की लघुकथा 'अंधी दौड़' में साहित्य में पुरस्कारों को रेवड़ी की तरह बांटे जाने पर व्यंगात्मक रूप में एक सवाल उठाती है। मीना कुमारी परिहार अपनी रचना द्वारा 'पावनी' की प्रतिभा को सामने लाने की बात करती हैं बजाय इसके कि पावनी के घर वाले ऐसा नहीं चाहते। प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र की लघुकथा 'अकेला कमरा' जिसे हम लघु नाटिका भी कह सकते हैं बहुत ही अच्छी प्रस्तुति और बहुत ही अच्छे विषय को लेती है जो आज के समाज और सरकार का बेहद प्रिय नारा है 'घर घर शौचालय' और 'कोई भी खुले में ना जाए' इस तरह वह मनोरंजन के साथ एक सुंदर सामाजिक और सरकारी संदेश भी दे देती हैं। विभा रानी श्रीवास्तव (अमेरिका) की लघुकथा 'एकांत का दंश' बुढ़ापे में किए गए पुनर्विवाह की पैरवी करती है। डाॅ सतीश राज पुष्करणा (बरेली) की लघुकथा "पत्नी की इच्छा" एक मनोवैज्ञानिक तथ्य को रेखांकित कर्ता है। प्रेमलता सिंह की 'बिछोह' एक बेटी के मन का संताप बताती है जो अपने बीमार पिता को पानी नहीं पिला सकी, क्योंकि डॉक्टर ने मना किया था, और वह पिता मर गये। कमल चोपड़ा (नई दिल्ली) की 'खेलने का दिन" बच्चों के 'खेलने के दिन' घर में बेकार पड़े खिलौनों को गरीब बच्चों में बांटने की बात की पैरवी करती है। और रामयतन यादव(फतुआ) की लघुकथा 'विधवा' यह बताती है कि एक बच्चे को *शराबी बाप* के साये से ज्यादा जरूरी है कि उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों, इसके लिए वह बच्चा बिना बाप का भी होना पसंद करता है।
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० ऋचा वर्मा (सचिव) /भारतीय युवा साहित्यकार परिषद (पटना) (मो:9234760365)
Wednesday, 19 August 2020
"विन्यास साहित्य मंच" के तत्वावधान में ऑनलाइन गीत गोष्ठी 16.8.2020 को सम्पन्न
चेन्नै, दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद और बिहार के प्रखर गीतकार शामिल
गीतों में गहरी संवेदना और मनुष्यता के प्रति पक्षधरता - भगवती प्र. द्विवेदी
( FB+ Bejod -हर 12 घंटे पर देखिए )
पटना। “गीत लोगों को न सिर्फ संवेदनशील बनाने में सहायक होता है बल्कि समय-समय पर यह लोगों में जोश भी भरता है. स्वाधीनता संग्राम के दौरान भी जो गीत रचे गए, उसने स्वतंत्रता संग्राम में नई जान फूंकी. वर्तमान समय में भी गीतकार ऐसे गीतों की रचना कर रहे हैं, जो सिर्फ प्रेम की अभिव्यक्ति ही नहीं, वरन लोगों को अपने अधिकारों और राष्ट्र के प्रति जागरूक भी करते हैं. ”कुछ यही भाव विन्यास साहित्य मंच के तत्वावधान में रविवार 16 अगस्त को आयोजित गीत गोष्ठी में गीतकारों ने अपने गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ गीतकार और सुप्रसिद्ध साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि “कविता अगर देह है, तो गीत उसकी आत्मा है। कविता यदि जिंदगी है, तो गीत उसकी धड़कन है । आज पठित अधिकांश गीतों में गहरी संवेदना और मनुष्यता के प्रति पक्षधरता परिलक्षित होती है।”
करीब तीन घंटे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारम्भ भागलपुर के गीतकार राजकुमार ने वाणी वंदना से किया। कार्यक्रम में देशभर के कई राज्यों से शामिल चर्चित गीतकारों ने राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत और प्रेम गीतों की प्रस्तुति दी। गीत गोष्ठी में गाज़ियाबाद से पीयूष कांति सक्सेना, गजरौला (उप्र) से सुविख्यात गीतकार एवं वरिष्ठ कवियित्री मधु चतुर्वेदी, मुंगेर से शिवनंदन सलिल, दिल्ली से शैल भदावरी, कुसुमलता कुसुम, बिहारशरीफ से अल्पना आनंद, पटना से आचार्य विजय गुंजन, मधुरेश नारायण, सुभद्रा वीरेंद्र, चंडीगढ़ से हरेंद्र सिन्हा, चेन्नई से ईश्वर करुण, समस्तीपुर से हरिनारायण सिंह 'हरि' और पूर्णिया से डॉ मंजुला उपाध्याय ने एक से बढ़कर एक गीत सुनाए।
कार्यक्रम के अंत में पिछले दिनों दिवंगत तीन साहित्य विभूतियों कैलाश झा किंकर, मृदुला झा एवं शायर राहत इंदौरी के सम्मान में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गीत गोष्ठी का संचालन दिल्ली से युवा साहित्यकार चैतन्य चंदन ने तथा धन्यवाद ज्ञापन विन्यास साहित्य मंच के अध्यक्ष पटना के वरिष्ठ शायर घनश्याम ने किया। गूगल मीट ऐप्प के माध्यम से सम्पन्न इस कार्यक्रम में अंत तक दर्जनभर श्रोता जुड़े रहे और सुरीले गीतों का रसास्वादन करते रहे।
गीत गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे पटना के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने वर्तमान परिवेश पर अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा”
मुक्तछंदी इस नगर में गीत बंजर हो गया है
गाछ सूखे सर्जना-संवेदना के कौन सींचे,
कंकरीटी फ्लैट में सहमे कबूतर आँख मींचे
साँस खूँटी पर टँगी तन अस्थिपंजर हो गया है.
गाज़ियाबाद से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे कवि और गीतकार पीयूष कांति ने राष्ट्र की आराधना कर निज गौरव बढ़ने की बात की -
हर घडी हम राष्ट्र की आराधना के गीत गाएं
कृत्य से अपने सदा निज राष्ट्र का गौरव बढाएं
मुंगेर के वरिष्ठ कवि शिवनंदन सलिल ने सुनाया:
सांझ होते ही नभ के सितारे जगे
कुछ हमारे लिए, कुछ तुम्हारे लिए
गीतकार मधु चतुर्वेदी ने अपने गीत के माध्यम से राष्ट्रहित में जीने-मरने की बात कही -
राष्ट्र आराधना, राष्ट्र की अर्चना, राष्ट्र की वंदना हम करें
राष्ट्र ही कर्म हो, राष्ट्र ही धर्म हो, राष्ट्रहित हम जिएं और मरें
समस्तीपुर से प्रसिद्ध कवि हरिनारायण सिंह ‘हरि’ ने अपने किसी प्रिय को याद करते हुए सुनाया -
जाने कितने आए कितने चले गए
मगर तुम्हारी याद सदा ही बनी रही
तुम ही मेरे मन में गहरे उतर सकी
मेरे मन की पीडाओं को कुतर सकी
दिल्ली से कवयित्री कुसुमलता ‘कुसुम’ ने प्रेम को परिभाषित करने में असमर्थता जताते हुए कहा -
प्रेम क्या है लिख सकूं मैं है नहीं सामर्थ्य मेरी
‘छंद-शब्दों में समेटूं है असंभव है असंभव
एक घट में हो भला कैसे समाहित प्रेम वैभव
पूर्णिया से कवियित्री डॉ. मंजुला उपाध्याय ने प्रेम में सुख-दुःख बांटने की बात कही:
आओ चलो हम लव-लव खेलें
सुख बाँटें और दुःख सब ले लें
चेन्नई से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे गीतकार और कवि ईश्वर करुण ने भारत देश को विश्व का सिरमौर बताया -
विश्व की संस्कृति का जो सिरमौर है
मुल्क ऐसा जहाँ में कहाँ और है
ये उठाता है गिरते हुओं को
पोंछता है दुखी आंसुओं को
इसकी रहमत से वाकिफ हरेक दौर है
भागलपुर से गीतकार राजकुमार ने एक दीपक के संघर्ष को चित्रित करते हुए कहा -
दीप हूँ मैं, जला हूँ जला आ रहा
जल रही अनबुझी मौन तनहाइयाँ
सिलसिला जूझने का रहा स्याह से
घन घिरे मौत ले लाख अंगड़ाइयाँ
पटना से वरिष्ठ गीतकार आचार्य विजय गुंजन ने गीत के बोल को पुकारा -
आ जा मेरे पास गीत के बोल
अमिय-कण पोर-पोर में घोल
कई दिन बीत गए हैं ...
दिल्ली से गोष्ठी में शिरकर कर रहे हिंदी गौरव संस्था के संस्थापक कवि शैल भदावरी ने अपने गीत से इतिहास बदलने के तरीके को बताया -
ईर्ष्या भरे प्रयास करोगे,सिर्फ कयास बदल पाओगे|
तन के बदलावों में उलझे,सिर्फ लिवास बदल पाओगे|
कथनी, करनी, सत्य मिलाकर, दृढ़ता संग विश्वास लिये,
खून पसीना एक करोगे, तब इतिहास बदल पाओगे|
पटना से कवि और गीतकार मधुरेश नारायण ने अपने गीत के माध्यम से मानव जीवन को अनमोल बताया -
ये मानव जीवन कितना अनमोल है,तुम इसे यूँ न जाया करो
जो मिला है तुमहें,ये तो रब की दुआ इसे दिल से लगाया करो।
कभी किसी का वक्त यहाँ एक सा न रहा, जाते हुए लम्हों ने कानों में ये कहा।
चंडीगढ़ से कवि हरेन्द्र सिन्हा ने सपनों में अमृत घोलने की बात कही:
यह जीवन है अनमोल सखी, मीठे मीठे तू बोल सखी
मैं जीवन गीत सुनाता हूं, सपनों की बात बताता हूं ।
सपनों में तू अमृत घोल सखी, मीठे मीठे तू बोल सखी।
बिहारशरीफ से युवा कवियित्री अल्पना आनंद ने अपने गीत में देश के लिए शहादत की बात की -
खून से लथपथ इस धरती को फिर से हरा कर जाना
देश तकेगा राह तुम्हारी लौट के जल्दी आना।
पाना अगला जन्म तो फिर इस धरती पर ही पाना
देश तकेगा राह तुम्हारी लौट के जल्दी आना।
पटना से गीतकार सुभद्रा वीरेंद्र ने विरह की वेदना को गीत में पिरोते हुए कहा -
तुमसे बिछड़ के हम बहुत रोये
छलका रहा मौसम बहुत रोये।
इस तरह से यह देशभक्ति गीत पर आधारित यह विशेष कार्यक्रम देशभक्ति का अलख जगाते हुए एक अत्यंत सौहार्दपूर्ण माहौल में सम्पन्न हुआ।
......
रपट की प्रस्तुति - चैतन्य चंदन
प्रस्तोता का ईमेल आईडी - luckychaitanya@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वार 15.8.2020 को कवि सम्मेलन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न
विश्व शीर्ष पर सदा भारत विराजमान रहेगा
( FB+ Bejod -हर 12 घंटे पर देखिए )
मुम्बई अग्निशिखा के जश्न-ए-आजादी पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम राष्ट्रभक्ति से रंगा हुआ रहा. मुख्य अतिथि श्रीराम राय, समारोह अध्यक्ष हरिप्रसाद शर्मा, विशिष्ट अतिथि आशा जाकड और डॉ रश्मिनायर थीं.
संरस्वती वंदना पद्माक्षी शुक्ला व शोभारानी तिवारी ने की. मंच संचालन - डॉ अलका पाण्डेय, चंदेल साहिब, डॉ प्रतिभा परासर, विजेन्द्र मेव, सुरेश हेगड़े ने दो सत्रों में किया. ऑनलाइन इस कार्यक्रम के बारे में मंच की अध्यक्ष अलका पाण्डेय ने बताया की सबको तिंरगे के साथ रख कर काव्य पाठ व नृत्य या "74 वर्ष आजादी के बाद क्या खोया क्या पाया" पर मत देना था.
आठवीं क्लास की आद्रिका शर्मा ने सुदंर काव्यपाठ किया आबूदबी से शेखर तिवारी. मलेशिया से गुरविन्द्र गील यूएस से पूर्णिमा ने राष्ट्र ध्वाजा को सलामी दे देश को याद किया. ऐसा लग रहा था कि हम घर पर ही वास्तविक कार्यक्रम का आन्नद ले रहे थे. पाँच घंटे कार्यक्रम चला सबने बहुत आनंद लिया देश भर के 90 लोगों ने भाग लिया.
मीना पराशर व रश्मि शुक्ला रानी अग्रवाल, सुषमा शुक्ला, अलका पाण्डेय ने नृत्य प्रस्तुत किया तो ढोलक थाप पर गोवर्धन लाल बंघेल ने और गीत गया पूरी तरह तिंरगे की तरह बनकर शुभा शुक्ला, साधना तोमर और गीता पाडेंय ने.
जागृति वशिष्ठ देहरादून -
मगर न भूलो ये,
न जाने कितनी मां के लालो का लहू शामिल
शुभा शुक्ला निशा, रायपुर, छत्तीसगढ़ -
पंछी है बोल पाए कब
दर्द उसका है वहां ।
शेखर तिवारी -
ऐ वतन वतन मेरे आबाद रहे तू
मैं जहां रहूं जहां में याद रहे तू
स्मिता धीरसरिया, बरपेटा -
सफ़ेद शांति का धागा पहनूं
प्रेम का सुरमा लगाऊं
हरियाली की चादर ओढ़
अमन शांति सबको सिखाऊं
पद्माक्षी शुक्ल -
हर आहट पे मां राह देख रही
सूनी गलियां अश्रु से, भिगोती रही,
ज्योति भाष्कर 'ज्योतिर्गमय', सहरसा (बिहार) -
हे पूज्य जननी, हे जन्मभूमि भारत
पतित-पावन-पुष्पित तेरे चरण हैं!
अमर-अतुल-अमिट इति आलोकित
लक्ष-लक्ष, कोटि-कोटि तुझे नमन है!
मीरा भार्गव सुदर्शना -
याद करो उन बलिदानों को, वीरों को शीश नवाओ ।
विश्व शीर्ष पर सदा भारत विराजमान रहेगा
न जाएगा व्यर्थ अमर सपूतों का बलिदान
सदा अमर ये मेरा हिंदुस्तान रहेगा...
बात करें जो इतिहास के पन्नों की,
तो लहू से लिखे हुए दिखते हैं।
आजादी के संघर्ष को बयां करते,
अश्रु आँखों में नहीं टिकते हैं
सुनीता चौहान हिमाचल प्रदेश
जांबाज सिपाही बंदूक तान
देश की रक्षा कर रहे
भेज रही बहना रक्षा सूत्र
माथे चंदन टीका लगाया
भाई की सुरक्षा करे देश की रक्षा
डा अंजुल कंसल"कनुप्रिया" इंदौर मध्यप्रदेश -
तिरंगे में लिपट आए जो वीर
वह देश की शान है
सुरेश हेंगडे -
मै कारगिल पर लिख नही पाया कविता
नहीं दे सका जवानों को शाबशी!
डाॅ.पुष्पा गुप्ता, मुजफ्फरपुर बिहार -
हे भारत के वीर सपूतों, तेरे ही कारण
आजाद है वतन
भारत माँ के रणबांकुरे शत-शत तुम्हें नमन ...
रागिनी मित्तल, कटनी, मध्यप्रदेश -
1947 की वो आजादी याद है
भारत किन मूल्यों पर स्वतंत्र हुआ
हमको बर्बादी याद है।
डा. महताब आज़ाद -
मेरे दिल पूरा यह अरमान हो
प्यारा तिरंगा मेरे कफन की शान हो!
जहा देश प्रेम की भावना हो,
अपने झंडे के प्रति सम्मान हो,
अपने देश के नियम कायदे कानून का पालन हो
अपने नागरिकों,बुजुर्गो के प्रति सदभावना हो,
,शहादत देने वालों की,
खून पसीना बहाने वालो की,
आजादी का सच्चा सम्मान,
तभी होगा उनका सार्थक बलिदान
*जय हिंद , जय भारत , वन्देमातरम
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Saturday, 15 August 2020
ऐ जन्मभूमि तुमको सादर नमन हमारा / कवि - अर्जुन प्रभात
कवि - अर्जुन प्रभात |