Monday 24 August 2020

अजगैबीनाथ साहित्य मंच सुल्तानगंज भागलपुर की आभासी कवि-गोष्ठी 23.8.2020 को सम्पन्न

 हैं मुश्किलें हजार लबों पर हँसी तो है

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दिनांक 23/8/2020 को अजगैवीनाथ साहित्य मंच सुलतानागंज भागलपुर के तत्वावधान में आभासी (ऑनलाइन) अंतरराष्ट्रीय कवि गोष्ठी का आयोजन मंच के संस्थापक सदस्य डॉ. श्यामसुंदर आर्य की अध्यक्षता मशहूर ब्रह्मदेव बंधु के समन्वयन और अध्यक्ष भावानंद सिंह प्रशांत के संचालन में हुआ। कार्यक्रम में  महाराष्ट्र, नेपाल, झारखण्द, राजस्थान, यूपी और बिहार के कवियों ने अपनी साहित्यिक उपस्थिति दर्ज करायी । विभिन्न प्रदेशों के अनेक कवियों को मंच की ओर से साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। 

मुंबई से कवियित्री कुसुम तिवारी ने कविता सुनाकर रिश्तों के किरदार पर अपनी भावनाओं को यूँ रेखांकित किया - 
ये माना कि नाता छूट गया 
शाखों से रिश्ता टूट गया 
मन से बाँधी डोर प्रीत की 
सको तोड़ न पाओगे 
मधुकर तुम वापस आओगे। 

वहीं पटना से वरिष्ठ गजलकार घनश्याम ने अपनी गजल से चिरपरिचित अंदाज में कहा - 
कोठी नहीं है एक अदद झोपड़ी तो है 
हैं मुश्किलें हजार लबों पर हँसी तो है। 

बदायू  यु पी से मनोज कुमार मुन ने अपनी गजल में कहा - 
हम तो बस गम के गुबारों को गजल कहते हैं 
तेरे संग चलती बहारों को गजल कहते हैं 
जिसपे चढ़के हम तुझे खूब सताते थे कभी 
उन्हीं टूटी सी दीवारों को गजल कहते हैं। 

जयपुर राजस्थान से कवियित्री शोभना ऋतु ने प्रेम की प्रज्ञा को परिभाषित किया- 
उसे हम हाले दिल अपना सुनाकर चले आये 
मुहब्बत उसके दिल में हम जगाकर चले आये 
न उनको नींद आती है न उनको चैन आता है 
हमीं तो आग पानी में लगाकर चले आये । 

राँची झारखंड से पुष्पा सहाय ने कहा -
हम तो सपनों को हकीकत बनाए बैठे हैं ...,

भागलपुर से कवि पारस कुंज ने कहा -
भुलाता नहीं कोई एहशां किसी का
कोई हो तो उसका पता दीजिये

अंगिका और हिन्दी के कवि सुधीर कुमार प्रोग्रामर ने कहा - 
पाँव जमी पर रख देने से धरती पुत्र नहीं होता 
चंदन को घसना पड़ता है पौधा इत्र नहीं होता ..

वहीं खड़गपुर से राजकिशोर केशरी ने अपनी रचना में आँगन की प्रासंगिकता को रेखांकित किया - 
बार -बार आँगन को चीरा जाना 
गाड़ देना उसके सीने पर दीवार ...।

काठमांडू नेपाल से कवियित्री अंजु डोकानिया ने अपने गीत के माध्यम से कहा -
विभावरी नींद न आए 
प्रभाकर नित्य उग आए 
श्रवण सुत भानु कर परित्याग 
अकार्यम पीर तडपाए । 

खडगपुर से कवि व शतदल पत्रिका के संपादक प्रदीप पाल ने कहा - 
सबसे बुरे दिनों में भी आसरा है प्रेम  
है प्रेम ही जो देता है साहस 
बाँटता है संबल 
तो तय है इस बुरे दिनों मे भी 
सबसे बेहतर दिनों का एहसास जीवित रहेगा ।

गजलकार दिलीप कुमार सिंह दीपक ने कहा - 
फूलों का मुरझाना कहाँ अच्छा लगता है 
हया के नूर का जाना कहाँ अच्छा लगता है । 

कार्यक्रम का संयोजन कर रहे वरिष्ठ  गजलकार ब्रह्मदेव बंधु ने अपनी गजल में कहा - 
इश्तहार हो गये लगते हो 
अखबार हो गए लगते हो 
बेच रहे हो जिस्म और इमां 
बाजार से  हो गए लगते हो ।

कवि मनीष कुमार गूंज ने अंगिका में कोरोना पर कहा -
कोरोना बहुत खतरनाक लागै छै 
जेकरा धरै छै खौफनाक लागै छै।

वरिष्ठ कवि रामस्वरूप मस्ताना ने कविता में अजगैवीनाथ की महिमा पर बेजोड बखान किया -
ये अजगैवीनाथ दरबार है, 
यहाँ की महिमा है बड़ी न्यारी 
डमरु वाले है त्रिपुरारी ।

मंच के संस्थापक सदस्य डॉक्टर श्यामसुंदर आर्य ने अपने गीत में कहा - 
उम्रभर की बात है कहो कैसे कटेगी 
बीती हुई जो बात है, यादें से भी कैसे हटेगी । 

वहीं संचालन कर रहे मंच के अध्यक्ष भावानंद सिंह प्रशांत ने कहा - 
तुम्हारा दर्द मेरे अंदर क्यों है 
मेरी आँखें आज समंदर क्यों है 
जिनके हाथों मे थी कभी कलम 
आज उनके हाथों में खंजर क्यों है। 

अंत में राष्ट्रीय कवि गोपाल सिंह नेपाली को उनके जन्मशती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। यह कार्यक्रम उनको ही समर्पित था।
...

रपट की प्रस्तुति - भावानंद सिंह प्रशांत
प्रस्तोता का ईमेल आईडी -
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