विशिष्ट लघुकथाओं के सारांश के साथ पूर्ण रपट
समकालीन लघुकथा की प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि "इन्टरनेट के इस आधुनिक युग में लघुकथा की प्रासंगिकता और बढ़ गई है। एक कमरे में बंद होकर लघुकथा पाठ करने के बजाए व्हाइटस एप या फेसबुक पर लघुकथा का पाठ करना और अधिक सावधानी बरतने की अपेक्षा करता है। क्योंकि इस मंच पर दुनिया भर के लोग और कोई भी, कहीं भी, कभी भी देख सुन सकता और त्वरित प्रतिक्रिया भी व्यक्त करने के लिए वह स्वतंत्र होता है।
उन्होंने कहा कि - "अपनी संस्था द्वारा लघुकथा को पहली बार हमने आनलाइन प्रस्तुति देकर, इसे अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने का प्रयास किया है, कुछ दिनों पूर्व प्रख्यात सहित्यकारों द्वरा इसके उद्घाटन के बाद से हमने लगभग हर माह लघुकथा की आनलाइन चर्चा और पाठ करवाकर, लघुकथा को जन समुदाय से जोड़ने का प्रयास किया है। देश - विदेश के साहित्यकारों का सहयोग अतुलनीय है। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में और "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के फेसबुक पेज पर आनलाइन आयोजित "हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन" के संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया।
मुख्य अतिथि की भूमिका में योगेंद्रनाथ शुक्ल के अलावा, देश-विदेश के कुछ जाने-माने लघुकथाकार जैसे विभा रानी श्रीवास्तव, रामयतन यादव और कमल चोपड़ा जैसे देश के लब्ध प्रतिष्ठित लघुकथाकारों ने भी अपनी लघुकथा बांची।
मुख्य अतिथि योगेंद्रनाथ शुक्ल (जो 7वें दशक से लघुकथा लेखन में सक्रिय रहे हैं) ने कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण बातें साझा की। उन्होंने बताया कि " खलील जिब्रान पहले लघुकथाकार हैं, जिन्होंने विधिवत लघुकथा लेखन की शुरुआत की। लघुकथा के विषय में उनका कहना था कि -" लघुकथा का सृजन करना, समुद्र को अंजलि में भरने का काम है। और उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि - "हमें भरपूर अध्ययन करना चाहिए। तभी हम अच्छी लघुकथा या कविता लिख सकते हैं। उनके अनुसार लघुकथा की भाषा सहज और सरल होनी चाहिए, उसकी पहुंच आमजन तक होनी चाहिए। वरना लघुकथा का भी वही हश्र होगा जो कविताओं का हुआ है, उनके क्लिष्ट भाषा के कारण।
इस आन लाइन लघुकथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, लेखिका ऋचा वर्मा ने, लगभग पचीस लघुकथाकारों की पढ़ी गई लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए कहा कि - "समकालीन लघुकथाओं में सकारात्मक सोच उभरकर सामने आ रही है, जो कुछ बेहतर करते हुए प्रगतिवादी है। कुछ लघुकथा, लघु कहानी जैसी है, इससे बचने की जरूरत है।"
पठित लघुकथाओं पर समीक्षात्मक टिप्पणी देते हुए उन्होंने कहा कि - " आज के कार्यक्रम में सबसे पहली प्रस्तुति विजय आनंद विजय (मुजफ्फरपुर) की लघुकथा 'नुमाइश' थी, जिसमें उन्होंने एक व्यक्ति को अपनी होने वाली बहू को किसी भी तरह के कपड़े पहनने की अनुमति देने की बात कही है, यह समाज में होने वाले परिवर्तन की ओर इशारा करती है कि अब लोग बहू के रूप में कोई नुमाइश करने वाली लड़की की खोज नहीं कर रहे हैं।
दूसरी प्रस्तुति संजय कुमार अविनाश (लक्खीसराय ) की 'एफ आई आर' जिसमें सिस्टम की खामियों और भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार किया गया है। सविता मिश्रा मागधी (बेंगलुरु) की रचना 'लोरी' जिसमें एक मां कोरोना के कारण अपने मरे हुए बेटे को देख कर उसे सोया हुआ समझती है और इसी विक्षिप्तता की अवस्था में सड़क पर आकर लोरी सुनाती है, क्योंकि उसकी बहू के वर्क फ्रॉम होम में बाधा ना पड़े। विनोद प्रसाद (खगौल) की रचना 'पश्चाताप' जिसमें किसी के बहकावे में आकर एक महिला किसी डॉक्टर को पत्थर मारती है, बाद में वही डॉ उस कोरोना संक्रमित महिला का इलाज कर उसे ठीक भी कर देता है। यह धर्म के आधार पर भेदभाव न करने का संदेश देती हुई लघुकथा है।
डाॅ योगेंद्रनाथ शुक्ल (इंदौर) की लघुकथा 'बेचारी तख्तियां' इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि कैसे किसी भी किसी बड़े साहित्यकार का फोटो हिंदी दिवस के दिन बस एक दिन के लिए सम्मान पाता है और उसके बाद उसे कोई नहीं पूछता। प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर) की लघुकथा 'स्वार्थ "' बताती है कि जिस बाप को पेंशन नहीं मिलता उसकी जिंदगी का कोई महत्व नहीं रहता। पूनम सिन्हा श्रेयसी की लघुकथा 'शिकारी' सोशल मीडिया पर फैले झूठ, व्यभिचार और दोस्ती के नाम पर महिलाओं के शोषण पर प्रकाश डालती है। संतोष गर्ग(चंडीगढ़) की लघुकथा 'छोटी सी बात' हमें अपने माता-पिता को समय देने के लिए प्रेरित करती है। नरेंद्र कौर छाबड़ा (म प्र) की 'पतंग' यह बताती है कि हमें बुजुर्गों को भी अपने खेल-कूद और मनोरंजन में भाग लेने का अवसर देना चाहिए और साथ ही बुजुर्गों को भी अपने अपना आत्मविश्वास कायम रखना चाहिए। ऋचा वर्मा की लघुकथा 'विवशता' और राजप्रिया रानी की 'आजादी' स्वतंत्रता दिवस पर जिन बच्चों को स्कूल जाना चाहिए उनके द्वारा द्वारा झंडे बेचे जाने पर सवाल उठाती है।
सिद्धेश्वर की लघुकथा 'अंधी दौड़' में साहित्य में पुरस्कारों को रेवड़ी की तरह बांटे जाने पर व्यंगात्मक रूप में एक सवाल उठाती है। मीना कुमारी परिहार अपनी रचना द्वारा 'पावनी' की प्रतिभा को सामने लाने की बात करती हैं बजाय इसके कि पावनी के घर वाले ऐसा नहीं चाहते। प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र की लघुकथा 'अकेला कमरा' जिसे हम लघु नाटिका भी कह सकते हैं बहुत ही अच्छी प्रस्तुति और बहुत ही अच्छे विषय को लेती है जो आज के समाज और सरकार का बेहद प्रिय नारा है 'घर घर शौचालय' और 'कोई भी खुले में ना जाए' इस तरह वह मनोरंजन के साथ एक सुंदर सामाजिक और सरकारी संदेश भी दे देती हैं। विभा रानी श्रीवास्तव (अमेरिका) की लघुकथा 'एकांत का दंश' बुढ़ापे में किए गए पुनर्विवाह की पैरवी करती है। डाॅ सतीश राज पुष्करणा (बरेली) की लघुकथा "पत्नी की इच्छा" एक मनोवैज्ञानिक तथ्य को रेखांकित कर्ता है। प्रेमलता सिंह की 'बिछोह' एक बेटी के मन का संताप बताती है जो अपने बीमार पिता को पानी नहीं पिला सकी, क्योंकि डॉक्टर ने मना किया था, और वह पिता मर गये। कमल चोपड़ा (नई दिल्ली) की 'खेलने का दिन" बच्चों के 'खेलने के दिन' घर में बेकार पड़े खिलौनों को गरीब बच्चों में बांटने की बात की पैरवी करती है। और रामयतन यादव(फतुआ) की लघुकथा 'विधवा' यह बताती है कि एक बच्चे को *शराबी बाप* के साये से ज्यादा जरूरी है कि उसके जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हों, इसके लिए वह बच्चा बिना बाप का भी होना पसंद करता है।
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० ऋचा वर्मा (सचिव) /भारतीय युवा साहित्यकार परिषद (पटना) (मो:9234760365)
धन्यवाद बहुत बहुत बधाई सिद्वेश्वर जी आप देश भर के लघुकथाकारों को एक मंच पर लाने का बड़ा सराहनीय कार्य कर रहे हैं। हृदय से आभार शुभकामनाएं 🙏💐🙏🇮🇳🙏
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteपुनः एक सफल आयोजन के लिए सिद्धेश्वर जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteरपट लेखक ऋचा वर्मा जी को भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !