कविताएँ
रक्षाबंधन / डॉ अलका पाण्डेय
रक्षा बंधन का पर्व है आया
कुमकुम अक्षत थाल सजाया
भाई को प्रेम से तिलक लगा
सबने मिलकर यह पर्व मनाया
रक्षा का अनमोल वादा पाया
भाई पर अटूट प्रेम बरसाये
बहनों के मन खूब हर्ष समाये
रक्षा की डोर कलाई में सजाई
बचपन का वो लड़ना झगड़ना
पुरानी यादों से मन हर्षाये
भाई बहन रिश्ता होता खास है
कोई फ़र्क़ नहीं दूर है या पास है
हृदय से जब एक दूजे से प्रेम हो
हर दिन ही होता फिर ख़ास है
घर आँगन में ख़ुशियाँ छाई
बहनें अक्षत, रोली, राखी, ले आई
सजी हुई थाली प्रेम की हाथो मे
अधरो पर मुस्कान सजाकर आई
ह्रदय गगरी ममता रस छलके
प्रीत डोर के प्यार में में बँधके
हरदम दूर रहे विपदाऐ
दुख न हो सुख के अंकुर फूटे
मस्तक चंदन तिलक लगाकर
रक्षा का अनमोल वादा पाकर
बहना की ख़ाली झोली भर जाएँ
धूमधाम से यह पर्व मनाएँ.
...
कभी डांटे कभी मनाए / चन्देल साहिब
क़भी डांटे क़भी मनाए.
प्यार से जो गले लगाए,
बहन वही है।
रात को ज़ब नींद न आए
लोरी सुनाकर मुझे सुलाए
बहन वही है।
सुबह नींद से मुझको जगाए
कोमल हाथों से सर सहलाए
बहन वही है।
अपने हाथ की चाय पिलाए
पापा की डांट से भी बचाए
बहन वही है।
रक्षाबंधन पर मिलने आए
कलाई पर राख़ी सजाए
बहन वही है।
मस्तक पर तिलक लगाए
लड्डुअन का भोग लगाए
बहन वही है।
गिफ़्ट की आस न लगाए
मुझे ख़ुश देख ख़ुश हो जाए
बहन वही है।
...
रचनाकार - डॉ. अलका पाण्डेय, चन्देल साहिब
प्रतिर्क्रिया हेतु इस ब्लॉग का इमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
कवयित्री - अलका पाण्डेय |
कवि चन्देल साहिब अपनी एक बहन के साथ |
कवि चन्देल साहिब अपनी एक बहन के साथ |
बहुत खूबसूरत रचना। चंदन का टीका, रेशम की डोर, भाई की उम्मीद और बहन का प्यार, बधाई हो रक्षाबंधन का त्योहार।
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