Tuesday, 4 August 2020

आईटीएम काव्योत्सव का नौवाँ वार्षिकोत्सव 2.8.2020 को व्हाट्सएप्प ग्रुप में सम्पन्न

नौ बरस पूरे होने पर काव्योत्सव कर रहा अभिनंदन

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बरसों पहले साहित्य जगत में सुंदर एक फूल खिलाया था
सकल समाज की सेवा करने का मन में उद्देश्य बनाया था। 
वही फूल अब विकसित होकर आगे बढ़ता जाता है
अपने सौरभ से धरती के हर कोने में खुशबू फैलाता है। 
भारत भूषण शारदा के इन शब्दों में आईटीएम के नौ वर्षों की गौरव गाथा का सारांश है। इतना आसान नहीं होता नौ वर्षों के लम्बे अंतराल में इतनी सुव्यवस्थित ढंग से विशाल संख्या में इतने उत्तम कवि-कवयित्रियों को लेकर इतने प्रेम और मिल्लत के साथ काव्योत्सव करते चले जाना और वह भी हर महीने । पढ़ी जानेवाली रचनाओं का स्तर सामान्य से काफी ऊंचा रखनेवाले और हर विचारधारा के लोगों के लिए मंच खुला रखनेवाले इस काव्योत्सव के पीछे मूल संकल्पना और संयोजन एक उम्रदराज किन्तु समत्कारी व्यक्तित्व वाले कवि विजय भटनागर की सर्वप्रमुख भूमिका रही है। इन्हें सहयोग देनेवाले भी असाधारण रूप से क्षमतावान जीवट प्राणी हैं जिनमें अनिल पुरबा, विश्वम्भर दयाल तिवारी, सेवा सदन प्रसाद, सतीश शुक्ल आदि प्रमुख रहे हैं। स्त्री पक्ष से उतना ही सशक्त समर्थन इन्हें प्राप्त है जिनमें माधवी कपूर (अध्यक्ष), वंदना श्रीवास्तव आदि शामिल हैं। निश्चित रूप से नवी मुंबई की यह अनूठी साहित्यिक संस्था बधाई की पात्र है  

दिनांक 2.8.2020 को नवी मुम्बई की सबसे सक्रिय काव्य संस्था का यह स्थापना दिवस होने के कारण  विशेष कवि गोष्ठी ऑनलाइन मनाई गई जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध लघुकथाकार सेवा सदन प्रसाद ने की. कुल सैंतीस लोगों ने रचनाएँ पढ़ी. इस गोष्ठी के सफल निर्वहन में इसके प्रमुख संस्थापक सदस्य विजय भटनागर और कार्यक्रम प्रबंधक अनिल पुरबा जी का प्रमुख योगोदान रहा  

इस वार्षिकोत्सव के अवसर पर कुछ चुने गए साहित्याकारों को उनकी विशिष्ट सेवाओं हेतु साहित्यिक गौरव पत्र देकर सम्मानित भी किया गया। सम्मानित होने वाले साहित्यकार हैं - किशन तिवारी, विश्वम्भर दयाल तिवारी, सेवा सदन प्रसाद, अनिल पुरबा,  हेमन्त दास 'हिम' एवं  प्रकाश चन्द्र झा।

पढ़ी गई रचनाओं की झलक नीचे प्रस्तुत है- 

अनिल पुरबा / महाकुंभ -
काव्योत्सव का यह हमारा महाकुटुंब, 
है, शायरों और कवियों का महाकुंभ  I
माधवी माँ का आशीर्वाद, जानकी मैय्या का प्यार, 
लगता कवियों का मेला, हर माह के पहले रविवार I
दिपालीजी की हंसी ठिठोली, प्रमिलाजी की अद्भुत ब्रजबोली, 
विजयाजी ने झूठ की पोल खोली, चन्द्रिका जी की मृदु बोली, 
भर देती हम सबकी, खुशियों से झोली I
भारत के हम भूषण, सत्य का ऊजला प्रकाश, 
इनकी भावनाओं से ना होते, कभी हम निराश  I
रामेश्वर, राम प्रकाश, सतीश, शामिल होते सारे इश, 
विशम्बर जी की प्रगाढ़ भाषा, कहती नित विशेष I 
गौतम जी का अंदाज़ अनुपम, अनिल के अंदाज़ में दम-ख़म,  
सेवा सदन जी के अंदाज़ में भरा जोश, हेमंत का तकनिकी जुलूस I
मधु श्रृंगी जी का अनोखा अंदाज़, है कलम की वे सिपहसालार, 
वंदना जी का कोई नहीं सानी, करती शब्दरूपी तीखा वार,
अशोक, विजयकांत, ओम प्रकाश भी अब तो आते, 
रचनायें अपनी नयी-नवेली पढ़कर हमे सुनातेI
निरुपमा जी के काव्य-पाठ में अनूठा एहसास, 
राम स्वरुप जी की प्रस्तुति में विशेष उल्हास I
अलकाजी की रचनाओं में होता सामाजिक संदेश, 
कुमकुम जी की रचनाओं में ज्ञान का समावेश I
दिलीप भाई, नज़र, त्रिलोचन, दिलशाद, चारों शायरी के उस्ताद, 
ग़ज़ल, शेर, और मिसरे, करते मीठी उर्दू को जिंदाबाद  I
अधिकारी जी कराते अध्यात्म का आभास,
पुरषोत्तम जी की रचना में होता विश्वास I
प्रकाश चन्द्र  कराते मुद्दों पर गौर, विमल का अपना अलग ठौर, 
कटु सच कहते हमेशा ही, बुरा लगे तो बदल दो अपना तौर I
विविध विचार, विभिन्न उचार, कभी कल्पनाओं की नयी उड़ान, 
शब्दों के कैनवास पर, साधते इन्द्रधनुष से रंगीन बाण I
गीत, कविता, दोहे, ग़ज़लों का छलकता नया रंग, 
विचारों और विचारधाराओं का होता काव्योत्सव में संग I
श्रोताओं की कमी तो है, पर ना गिला, ना शिकवा ना नुक्सान, 
क्योंकि किशन तिवारी जी के रूप में, स्वयं आ जाते भगवान्  I
सरस्वती माँ से है आग्रह, शारदा माँ से है बिनती, 
फले फुले हमारा महाकुटुंब, हो काव्योत्सव की उन्नति I
साहित्य की सेवा हेतु, शब्दों की फसल बोई, 
किस के अथक प्रयास से, जीत हमारी हुई  
मित्रों इस अपार सफलता का किसे दें हम श्रेय, 
एक ही नाम है, विजय, विजय, विजय I
......

भारत भूषण शारदा  - 
(काव्य उत्सव की नोवी वर्षगांठ पर)
बरसों पहले साहित्य जगत में सुंदर एक फूल खिलाया था,
सकल समाज की सेवा करने का मन में उद्देश्य बनाया था। 
वही फूल अब विकसित होकर आगे बढ़ता जाता है,
अपने सौरभ से धरती के हर कोने में खुशबू फैलाता है। 
कभी ना हिम्मत हारी इसने आगे ही आगे कदम बढ़ाया,
हर बाधा से हर मुश्किल से साहस से बढ़कर टकराया। 
भटनागर जी की सकल साधना माधवी जी का शुभ आशीष,
मानो मिलकर आज कह रहे कृपा करें सब पर जगदीश। 
नौ बरस पूरे होने पर काव्योत्सव कर रहा अभिनंदन,
हर चेहरे पर खुशियां दमके रहे महकता जीवन उपवन।
.....

विश्वम्भर दयाल तिवारी -
● बिन भय जीवन कब रहे ,
जग से कब मिटे व्याधि ।
ईश्वर की ही कृपा वश ,
सुख वर्षा गृह साधि ।।
● माँ वाणी की वन्दना , राष्ट्रगान जयघोष ।
मधु श्रँगी स्वर साधना ,
भारत भूषण जोश ।। 
● अनिल बहाए मन महक ,
विजय संगठन शक्ति ।
पथ पर सत्य प्रकाश है ,
साथ नीति गुण युक्ति ।।
● सेवा सदन अध्यक्ष पद ,
करें सुशोभित आज ।
एक कुटुम्ब हैं साथ सब ,
रचना सुधि सिर ताज ।।
 ● शमर विमल पुरुषोत्तम , 
कुमकुम वेद सेन ।
उन्हें बधाई जन्म दिन ,
भगवद्कृपा सुदेन ।।
● सैंतीस रचनाएँ पढ़ें ,
कवि कवयित्री साथ ।
नेह भाव आदर लिए ,
पर न मिल रहे हाथ ।।
 ● रचनाएँ प्रेषित सकल ,
उत्तम प्रकृति विचार ।
आभासी संगोष्ठी ,
कोशिश दमन विकार ।।
● हटे व्याधि बैरी हटें ,
बरसें बादल नीर ।
मिटे प्रदूषण *विश्व* से
जीवन रहे सुधीर ।।
● धन्य भूमि माँ भारती ,
धन्य देह परमार्थ । 
सेवा निष्ठा प्रेम धन ,
धन्य प्रकृति सत्यार्थ ।।
...

दिलीप ठक्कर "दिलदार" -
वो मेरा हमसफ़र जिस रोज़ मेरे साथ हो लेगा,
हमारे दरमियां जो राज़ है हर राज़ खोलेगा!
हमारा फैसला इंसाफ के पलड़े में तोलेगा,
फिर उसके बाद जो बोलेगा वो हक बात बोलेगा!
मेरे गम को हमेशा ही वो अपना गम समझता है,
मेरे आंसू जो देखे गा तो मेरे साथ रो लेगा!
नहीं आता मुझे गैरों की थाली पे नज़र रखना,
किसी के माल पे 'दिलदार'क्या ईमान डोलेगा!
.....

किशन तिवारी भोपाल  -
बहुत बेचैन हूँ मैं आजकल अच्छा नहीं लगता
कठिन ही ठीक है जीवन सरल अच्छा नहीं लगता 
घरों के साथ सन्नाटे शहर में भी चले आए 
इन्हें डर हादसों का कोई पल अच्छा नहीं लगता 
नदी सूखी है जलती रेत जंगल कट गए सारे 
है मृगतृष्णा कहाँ से लाएँ जल अच्छा नहीं लगता 
कभी बस्ती कभी जंगल चले हम बन के बंजारे 
तुम्हारा प्यार तुम रक्खो ये छल अच्छा नहीं लगता 
किशन तिवारी भोपाल
.......

विजय भटनागर - 
अपने जीवन की डोर 
खींचो तुम मन कीओर।
कट जायेगे कष्ट तिहारे 
नही मचेगा मन मे शोर।
विजय जबये रचना सुनाए
श्रोता कह उठे वन्स मोर।
.....

हेमन्त दास 'हिम' - 
दोस्तों की महफ़िल में 'हिम'आइये जाइये
पर कानून हाथ में लेनेवालों को न बचाइए
जात पर, धर्म पर देश को, समाज को
जो बांटे उनकी तरफदारी में कभी न जाइये
इतिहास में जुल्म हुए औरत, दलित, धर्म पर
बदला न लेकर समानता को ही लागू कराइये

हनीफ मोहम्मद -
खुद को खुद  से मैं ने जब जोड़ दिया
मुकम्मल हुई बेखुदी कलम जब तोड़ दिया
हर परवेज हो यादगार  जरूरी तो नहीं
हर याद को  पीछे  सनम के कब छोड़ दिया।
खुद को खुद से मैं ने जब जोड़ दिया। ।
........

रजनी साहू "सुधा" -
जलराशि को धरती पर 
नुपूर बाँधकर नाचती देखती हूँ
तब मैं भी मयूर बनकर
नृत्य करना चाहती हूँ
........

सत्यप्रकाश श्रीवास्तव -
पूजा काल में पूजा करें,
कर धारण मन श्री राम।
स्वप्न पूर्ण होंगे सभी के,
जो हों दिल में भाव निष्काम
......

कुमकुम वेद सेन -
देखते देखते
बेटी से बहू बन गई
मां से दादी नानी बनी
बना अनुभवों का एक अनोखा सफर
हर सुबह एक
नया रंग है जीवन का
कई सपने हुए नहीं पूरे
बिन चाहे मिले नए सपने
.......

शमर देवबन्दी 'जुगाड़' / अनुवाद : विश्वम्भर दयाल तिवारी -
हम जो सरसों को हथेली पे जमाने लग जायें 
आप सोचें भी जो ऐसा तो ज़माने लग जायें ।
भेद खुल जायेंगे सब दूधिया पोशाकों के 
हम भी अगर लोगों पे दाग लगाने लग जायें ।
बे गहरी दर बदरी बे सरो सामानी है 
शायरी छोड़ के कुछ पैसे कमाने लग जायें ।
सोच के सोते हैं कि सुबह को जब आँख खुले 
खाली हाथों में किसी रोज खजाने लग जायें ।
वो तो शायर भी गायक भी अदाकार भी हैं 
भैरवी बोलें तो मल्हार सुनाने लग जायें ।
दोस्तों ने तो बजाया है ले तबला अपना 
और दुश्मन भी अगर ढोल बजाने लग जायें ।
....

शोभना ठक्कर -
मैं चूप हुं गुमसुम ये शमाँ है 
उसकी भी खामोश ज़ुबाँ है
तुम गम से बेजान हुए हो
तो मुझमे भी जान कहाँ है
चूमा था कभी प्यार से तुमने
हर गुल पे वो अब भी निशां है
अम्न का घर-द्वार जिसे कहिए
वो तो मेरा हिन्दुस्ताँ है
पाइ हुँ तहजीब जहाँ से
वो मक्तबो मेरी माँ है
"शोभना" जाने उसको पता है 
कौन छुपा है कौन अयाँ है।
....

डॉ. रामस्वरुप साहू 'स्वरुप, कल्याण मुंबई -
भाई बहन का प्यार अनोखा रक्षाबंधन।
माथे तिलक लगा भाई के करती अभिनंदन,
आजीवन रक्षा वृत्त वरदान अभय पाती है।
प्रेम उमड़ता आंखों से गले लग जाती।
पवित्र खून का रिश्ता अभिनव भव बंधन।
स्नेह भरा पूजा आराधना सुरभित चंदन।
सुखी रहे परिवार सदैव आशीष बहना का,
जीवन की सौगात अनोखा रक्षाबंधन।
जब कलाई पर सजते कच्चे प्रेम के धागे,
जन्मों की मुराद पूरी होती है बिन मांगे।
आनंद विभोर हृदय कमल खिल जाते।
कुसुमित स्नेह लता, महके नंद नंदन।
......                                                                                              
प्रकाश चंद्र झा -
या फिर गुल्ली- डंडे का खेल|
पेड़  से   कूद तालाब नहाते,
तोड़ते  अमिया  मार  गुलेल|
होली,   दिवाली,  ईद, मुहर्रम,
और  भी  कितने तीज त्योहार||
मिलजुल   कर सब मनाते ऐसे,
जैसे  पूरा  गाँव  हो एक परिवार||
....

चंद्रिका व्यास, खारघर नवी मुंबई -
भाई होने का
फर्ज वह निभाता है !
सरहद पर जब भाई होता 
 राखी भेजती चिट्ठी में
मेरी उम्र तुझे लग जाये भैया
ऐसा वरदान ईश्वर से वह लेती !
कोरोना  की दूरी  में भी
रेशम के कच्चे धागों से
सदा बंधा रहे भाई बहन का प्यार
   राखी धागों का त्यौहार 
   राखी धागों का त्यौहार !
   ....

विजयकान्त द्विवेदी -
 दिवस का मार्तण्ड नहीं
किन्तु अभी" उजास " है।
है अभी लोहित  गगन
व्योम में भरा प्रकाश  है।।१!
प्रेम के पावन पंथ पर
है खड़ी वह  द्वार मेरे !!
समर्पिता, अनुरागिनी
है उसे ,जज्बात घेरे ।‌।२!
....

पुरुषोत्तम चौधरी 'उत्तम', मुम्बई -
    जिन्दगी किस क़दर बे-वफ़ा हो गई 
    हर खुशी आजकल  बेमजा हो गई ।
    तेरे पहलू में आकर बहुत शाद थे
    तुम ख़फ़ा हो गए जाँ कज़ा हो गई ।
    तिश्नगी लब पे है चश्म पुरआब है 
    जीस्त तेरे बिना इक  सजा हो गई ।
    इश्क बरहक़ है कैसे दिलाऊँ यकीं
    हक़ बयानी मिरी जब जफ़ा हो गई ।
.....

राम प्रकाश विश्वकर्मा, खारघर नवी मुंबई -
नेह की डोर से,
प्रीति के छोर से,
भावों की गांठ बांध,
मन की पतंग उड़ी। 
खींचो न रे, डोर खींचो न रे।। 
प्रियतम के गांव में,
तारों की छांव में, 
मधुबन में प्रेम के, 
अंसुवन की बेल चढ़ी।
सींचो न रे, और सींचो न रे।।
मन की उमंग पर, 
तन की तरंग पर, 
धड़कन की ताल पर, 
स्वर की पुकार बढ़ी। 
नाचो न रे, आज नाचो न रे।।  
हिरदय की पीर पर, 
नदिया के तीर पर, 
कल्पना के पृष्ठ पर, 
पाती सप्रीति लिखी। 
बांचो न रे, आज बांचो रे।।
....

डा० हरिदत्त गौतम "अमर" -
हम कितने सौभाग्यवान जो घड़ी दिव्य पाई
राम लला का मन्दिर बनता देता दिखलाई
पुरी अयोध्या दुलहिन जैसी सज धज इतराई
वाल्मीकि के श्लोक मुग्ध तुलसी की चौपाई
(भयंकर विवाद क बाद सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय होने पर मंदिर निर्माण हो रहा है। इस विवाद के लम्बा खिंचते चले जाने से किसी पक्ष का कोई लाभ नहीं था अत: हम सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हैं,  साथ ही इस विवाद से सम्बंधित सभी पक्षों की भावनाओं का सम्मान करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार मस्जिद का निर्माण भी होना है। अगर गौर से देखा जाय तो यह फैसला सामाजिक सौहार्द कायम रखने का प्रयास भी लगता है और एक हमेशा चलनेवाले विवाद को पूर्ण विराम दिया गया है जो कि एक अच्छी बात है। देश में आज आवश्यकता है और जैसा कि वर्तमान सरकार और पहले की सरकारें भी कहती रही हैं कि हमें धार्मिक विषयों की बजाय विकासात्मक मुद्दों जैसे -  गरीबी, अशिक्षा और स्वास्थ्य आदि पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।)
......

विमल  तिवारी, खारघर  नवी  मुंबई -
हुई शाम,  और हुआ आगमन कुछ प्यालों के सेट का,
खुला बॉक्स और चेहरा  चमका  माथा दमका सबका !
प्याले भी तब धन्य दिखे थे पावन  घर के  आँगन  में, 
कृतियां, प्रतिमा बन कर उभरें उन चमकीले भाजन में !
......

डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई -
रक्षा बंधन का त्यौहार ,भाई बहन का प्यार ,
भाई बहन का वादा , रेशम का यें धागा !!
ख़ुशियाँ  लाए अपार , प्रेम सुत्र में जोड़े  !!
 राखी का अटूट बंधन , भाई बहन का रिश्ता ।। 
.......

ओमप्रकाश पाण्डेय -
( रक्षा बंधन के अवसर पर बहनों को समर्पित )
मै तो  आज भी हूं तुम सबका प्यारा भईया
मां बाबू के बाद तो  तुम सब  से ही मिला 
अधाह मधुर  प्यार जीवन भर मुझको
आज भी रखा है दिल में मेरे वे सब यादें
मेरी प्यारी बहना हो या  हो वो बड़की दीदी .......१
.....

रामेश्वर प्रसाद गुप्ता, कोपरखेराने, नवी मुंबई -
राखी के पवित्र त्योहार में,
यह काला कोरोना क्यो आया।
दूरियां बनाकर, मास्क पहनकर,
कोरोना को कैसे लताड़ भगाया।।
राखी..........................3
प्रकृति हमारी मित्र है सारी,
करेगी कोई चमत्कार यारा।
फिर खिल जायेगा पुष्प मनोहर,
कोरोना जायेगा थक ये सारा।।
राखी...........................

 इस तरह से अत्यंत सौहार्दपूर्ण माहौल में इस काव्य वार्षिकोत्सव का समापन हुआ। 






























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