Monday 12 October 2020

अजगैवीनाथ साहित्य मंच, सुलतानगंज भागलपुर द्वारा अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाईन गजल गोष्ठी 11.10.2020 को संपन्न

बुग्ज नफरत को मिटाओ तो कोई बात बने

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दिनांक 11.10.2020 को अजगैवीनाथ साहित्य मंच, सुलतानगंज भागलपुर के बैनर तले अंतर्राष्ट्रीय आनलाईन गजल गोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता, मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य और संचालन मंच के अध्यक्ष भावानन्द सिंह प्रशांत ने किया। कार्यक्रम का संयोजन खड़गपुर के मशहूर शायर ब्रह्मदेव बंधु ने किया । कार्यक्रम में काठमांडू, भोपाल सोनीपत, कटनी, लुधियाना, कानपुर, बाराबंकी, पटना, मुंगेर, भागलपुर, कोलकाता ,से दर्जनों कवियों ने अपनी साहित्यिक सहभागिता निभाई। सर्वप्रथम सभी आमंत्रित कवियों को मंच की ओर से सम्मान पत्र से सम्मानित किया गया।

सबसे पहले गजल की शुरुआत सागर, मध्य प्रदेश से गजलकार अशोक मिजाज बद्र ने देश के धरतीपुत्र किसानों की बेबसी पर प्रकाश डालते हुए कहा -
बला की धूप में क्या -क्या किसान देखते हैं ,
कभी जमीं कभी आसमान देखते हैं ,
जवानों तुमको हमारी उम्र लग जाए,
तुम्हारे दम से ही हिन्दुस्तान जिन्दा है ।

ततपश्चात बाराबंकी यूपी से मशहूर शायर आचार्य मो. मूसा खान अशांत ने मानवीय संवेदनाओं को मुहब्बत की लफ्जों में यूँ पिरोया -
प्यार की श्मआ जलाओ तो कोई बात बने ,
बुग्ज नफरत को मिटाओ तो कोई बात बने।

पटना से गजलकारा अराधना प्रसाद ने अपनी गजल में कहा- 
काम क्या बुत तराश करते हैं
देवता हम तलाश करते हैं 
खेल शतरंज का ही तय है जनाब ,
आप क्यों  ताश- ताश  करते हैं ।

सोनीपत से राधिका राधा ने प्रेम की प्रज्ञा को कुछ यूँ रखा -
 खुदा मेरे ये पागल दिल ,धड़कने को बना है क्यूँ ,
धड़कने को बना है तो ,तड़पने को बना है क्यूँ ।

कटनी मध्यप्रदेश से राजेश प्रखर ने जिन्दगी को अपनी गजलों से परिभाषित किया -
कौन कहता है फरेबी बे-मजा है जिन्दगी 
पूछिये हमसे हमारी दिलरुबा है जिन्दगी ।

वहीं लुधियाना से शायर अशोक कीर्ति ने कहा - 
अपने अन्दर समंदर सा गहरा सन्नाटा लिए हुए,
एहसास की खामोशी को आवाज लगाने लगते हैं ।

नेपाल काठमांडू से अंजू डोकानिया ने गजल को कुछ यूँ उछाला - 
कुछ इस तरह से हसरत निकाल दी ,
तेरे नाम की गजल हवा में उछाल दी ।

मुंगेर से राष्ट्रीय स्तर के गजलकार अनिरुद्ध सिन्हा ने जिन्दगी के फलसफों को अपनी गजल मे पिरोकर कहा - जिन्दगी के मंच पर मेयार देखा जाएगा 
लोग परखे जाएंगे किरदार देखा जाएगा ,
मुल्क की सरहद में जब घुस जाएगा दुश्मन
 तो फिर ,कौन है इस मुल्क का गद्दार देखा जाएगा ।

भोपाल से ख्यातिप्राप्त शायर हरि बल्लभ शर्मा हरि ने कहा -
 उम्र भर जियारती रहा देखने को नूर आपका ,
कौन से फलक पे हो बसे क्यों मकाम दूर आपका ।

मुजफ्फरपुर से डा. आरती कुमारी ने अपनी खतों में मुहब्बत का कुछ इस तरह इजहार किया - 
तुम्हें दुनिया की नजर से बचाकर साथ रखना है ,
मेरी चाहत का खत हो तुम छुपाकर साथ रखना है ।

कानपुर से नीरू श्रीवास्तव निराली ने प्रेम का पैगाम कुछ यूँ भिजवाया - 
तुम मेरी पलकों की तन्हाई पर चेहरा रख दो ,
या मेरी आँखों में इक नींद का फाहा रख दो ,
मुझको मालूम है मजबूरी है खत का लिखना , 
तुम मेरे हाथों में खाली ही लिफाफा रख दो ।

पटना से नामचीन गजलकार घनश्याम ने कहा - 
अपाहिज आस्थाएँ दौड़ती तकदीर के पीछे ,
मगर तकदीर चलती है सदा तदबीर के पीछे ।
 पराजित सदा होते रहे विक्षिप्त उन्माद ,
विजय चलती सुमन-माला लिए रणधीर के पीछे ।

अध्यक्षता कर रहे मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य ने कहा -
किस्ती को छोड़ दी है भंवर में ,
अब तो वो डगमगाने लगी है ।  

मनीष कुमार गुंजने कहा - 
यादें तेरे प्यार की डसती है बहुत , 
मिलने को आँखें तरसती है बहुत ।।

 कार्यक्रम की समाप्ति पर मुहब्बत के प्रतिनिधि गजलकार कुणाल कनौजिया ने अपनी गजल से हुश्न और इश्क के अप्रतिम मिलन को रेखांकित किया -  
दर्दे दिल बख्शा है जो वही चारागर   हो ,
हमें इश्क है उनसे कुछ तो समरवर हो ।

वहीं मुंगेर के युवा गजलकार विकास ने प्यार में खाए धोके पर कहा - 
ये जो उलझी हुई कहानी है 
,प्यार की आखिरी निशानी है 
उसकी महफिल में कौन जाएगा,   
उम्रभर किसको चोट खानी है ।

कोलकाता से गजलगो कृष्ण कुमार दूबे ने कहा -
 इस जमाने में कोई ऐसा हमारा होता ,
जिन्दगी भर के लिए अपना सहारा होता ,
उसकी उल्फत में सराबोर रहा हम करते ,
जान भी उस पे लुटा देना गंवारा होता ।

 लखीसराय सूर्यगड़ा से गजल कार राजेंद्र राज ने अपनी गजल में कहा -
 ये नदी सैलाब में आकाश से पानी माँगे ,
अपने होठों को जलाया हुआ आया है कोई ।

वहीं बरियारपुर से दिलीप कुमार सिंह दीपक ने कहा -
फूलों का मुरझाना कहाँ अच्छा लगता है ,
हयात नूर का जाना किसको अच्छा लगता है।

कार्यक्रम का संयोजन कर रहे मशहूर शायर ब्रह्मदेव बंधु ने जिन्दगी की आहट को इक आशा भरी   साँस देने की बात करते हैं -
जो बुझा दे दीप वो ना आँधियाँ रख छोड़िये ,
हवा के वास्ते कुछ खिड़कियां रख छोड़िये ।

मंच के अध्यक्ष व कार्यक्रम का  संचालन कर रहे कवि भावानन्द सिंह प्रशांत ने कहा
इक बार मिलो गैरों की तरह ,
हम नजर आएंगे अपनों की तरह। 
फूल की बानगी खुद में ढ़ूढा करो ,
पेश आएंगे हम भौरों की तरह।
इक बार मिलो गैरों की तरह 
हम नजर आएंगे अपनों की तरह।
 फूल की बानगी खुद में ढ़ूढा करो ,
पेश आएंगे हम भौरों की तरह।

अध्यक्षता कर रहे मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य ने कहा -
किस्ती को छोड़ दी है भंवर में ,
अब तो वो डगमगाने लगी है ।  

मनीष कुमार गुंजने कहा - 
यादें तेरे प्यार की डसती है बहुत ,
 मिलने को आँखें तरसती है बहुत ।। 

कार्यक्रम की समाप्ति पर मुहब्बत के प्रतिनिधि गजलकार कुणाल कनौजिया ने अपनी गजल से हुश्न और इश्क के अप्रतिम मिलन को रेखांकित किया - 
 दर्दे दिल बख्शा है जो वही चारागर   हो ,
इश्क है उनसे कुछ तो समरवर हो ।
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रपट का आलेख -  भावानंद सिंह प्रशांत 
रपट के लेखक का ईमेल आईडी -
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com

6 comments:

  1. सुन्दर और विस्तृत विवरण के लिए बहुत बहुत बधाई

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