बुग्ज नफरत को मिटाओ तो कोई बात बने
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सबसे पहले गजल की शुरुआत सागर, मध्य प्रदेश से गजलकार अशोक मिजाज बद्र ने देश के धरतीपुत्र किसानों की बेबसी पर प्रकाश डालते हुए कहा -
बला की धूप में क्या -क्या किसान देखते हैं ,
कभी जमीं कभी आसमान देखते हैं ,
जवानों तुमको हमारी उम्र लग जाए,
तुम्हारे दम से ही हिन्दुस्तान जिन्दा है ।
ततपश्चात बाराबंकी यूपी से मशहूर शायर आचार्य मो. मूसा खान अशांत ने मानवीय संवेदनाओं को मुहब्बत की लफ्जों में यूँ पिरोया -
प्यार की श्मआ जलाओ तो कोई बात बने ,
बुग्ज नफरत को मिटाओ तो कोई बात बने।
पटना से गजलकारा अराधना प्रसाद ने अपनी गजल में कहा-
काम क्या बुत तराश करते हैं
देवता हम तलाश करते हैं
खेल शतरंज का ही तय है जनाब ,
आप क्यों ताश- ताश करते हैं ।
खुदा मेरे ये पागल दिल ,धड़कने को बना है क्यूँ ,
धड़कने को बना है तो ,तड़पने को बना है क्यूँ ।
कटनी मध्यप्रदेश से राजेश प्रखर ने जिन्दगी को अपनी गजलों से परिभाषित किया -
कौन कहता है फरेबी बे-मजा है जिन्दगी
पूछिये हमसे हमारी दिलरुबा है जिन्दगी ।
वहीं लुधियाना से शायर अशोक कीर्ति ने कहा -
अपने अन्दर समंदर सा गहरा सन्नाटा लिए हुए,
एहसास की खामोशी को आवाज लगाने लगते हैं ।
नेपाल काठमांडू से अंजू डोकानिया ने गजल को कुछ यूँ उछाला -
कुछ इस तरह से हसरत निकाल दी ,
तेरे नाम की गजल हवा में उछाल दी ।
लोग परखे जाएंगे किरदार देखा जाएगा ,
मुल्क की सरहद में जब घुस जाएगा दुश्मन
तो फिर ,कौन है इस मुल्क का गद्दार देखा जाएगा ।
उम्र भर जियारती रहा देखने को नूर आपका ,
कौन से फलक पे हो बसे क्यों मकाम दूर आपका ।
तुम्हें दुनिया की नजर से बचाकर साथ रखना है ,
मेरी चाहत का खत हो तुम छुपाकर साथ रखना है ।
कानपुर से नीरू श्रीवास्तव निराली ने प्रेम का पैगाम कुछ यूँ भिजवाया -
तुम मेरी पलकों की तन्हाई पर चेहरा रख दो ,
या मेरी आँखों में इक नींद का फाहा रख दो ,
मुझको मालूम है मजबूरी है खत का लिखना ,
तुम मेरे हाथों में खाली ही लिफाफा रख दो ।
पटना से नामचीन गजलकार घनश्याम ने कहा -
अपाहिज आस्थाएँ दौड़ती तकदीर के पीछे ,
मगर तकदीर चलती है सदा तदबीर के पीछे ।
पराजित सदा होते रहे विक्षिप्त उन्माद ,
विजय चलती सुमन-माला लिए रणधीर के पीछे ।
किस्ती को छोड़ दी है भंवर में ,
अब तो वो डगमगाने लगी है ।
मनीष कुमार गुंजने कहा -
यादें तेरे प्यार की डसती है बहुत ,
मिलने को आँखें तरसती है बहुत ।।
कार्यक्रम की समाप्ति पर मुहब्बत के प्रतिनिधि गजलकार कुणाल कनौजिया ने अपनी गजल से हुश्न और इश्क के अप्रतिम मिलन को रेखांकित किया -
दर्दे दिल बख्शा है जो वही चारागर हो ,
हमें इश्क है उनसे कुछ तो समरवर हो ।
वहीं मुंगेर के युवा गजलकार विकास ने प्यार में खाए धोके पर कहा -
ये जो उलझी हुई कहानी है
,प्यार की आखिरी निशानी है
कोलकाता से गजलगो कृष्ण कुमार दूबे ने कहा -
इस जमाने में कोई ऐसा हमारा होता ,
जिन्दगी भर के लिए अपना सहारा होता ,
उसकी उल्फत में सराबोर रहा हम करते ,
जान भी उस पे लुटा देना गंवारा होता ।
ये नदी सैलाब में आकाश से पानी माँगे ,
अपने होठों को जलाया हुआ आया है कोई ।
वहीं बरियारपुर से दिलीप कुमार सिंह दीपक ने कहा -
फूलों का मुरझाना कहाँ अच्छा लगता है ,
हयात नूर का जाना किसको अच्छा लगता है।
जो बुझा दे दीप वो ना आँधियाँ रख छोड़िये ,
हवा के वास्ते कुछ खिड़कियां रख छोड़िये ।
मंच के अध्यक्ष व कार्यक्रम का संचालन कर रहे कवि भावानन्द सिंह प्रशांत ने कहा
इक बार मिलो गैरों की तरह ,
हम नजर आएंगे अपनों की तरह।
फूल की बानगी खुद में ढ़ूढा करो ,
पेश आएंगे हम भौरों की तरह।
हम नजर आएंगे अपनों की तरह।
फूल की बानगी खुद में ढ़ूढा करो ,
पेश आएंगे हम भौरों की तरह।
अध्यक्षता कर रहे मंच के संस्थापक सदस्य डा. श्यामसुंदर आर्य ने कहा -
किस्ती को छोड़ दी है भंवर में ,
अब तो वो डगमगाने लगी है ।
मनीष कुमार गुंजने कहा -
यादें तेरे प्यार की डसती है बहुत ,
मिलने को आँखें तरसती है बहुत ।।
कार्यक्रम की समाप्ति पर मुहब्बत के प्रतिनिधि गजलकार कुणाल कनौजिया ने अपनी गजल से हुश्न और इश्क के अप्रतिम मिलन को रेखांकित किया -
दर्दे दिल बख्शा है जो वही चारागर हो ,
इश्क है उनसे कुछ तो समरवर हो ।
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रपट का आलेख - भावानंद सिंह प्रशांत
रपट के लेखक का ईमेल आईडी -
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com
सुन्दर और विस्तृत विवरण के लिए बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद.
Deleteसुंदर आयोजन
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद.
DeleteBahut khoob
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद.
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