रचना पर वाहवाही के समय निष्पक्षता आवश्यक
कर्नाटक, उ.प्र.,म.प्र.,प. बंगाल, झारखंड, बिहार, दिल्ली और बिहार के रचनाकारों ने भाग लिया
कर्नाटक, उ.प्र.,म.प्र.,प. बंगाल, झारखंड, बिहार, दिल्ली और बिहार के रचनाकारों ने भाग लिया
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पटना :" रचना पर प्राप्त प्रतिक्रिया और मूल्यांकन पर टिप्पणी से संबंधित रचनाकार की रचनाशीलता, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है lलेखक का उत्साहवर्धन तो आवश्यक है, लेकिन आंख मूंदकर की गई वाह वाही घातक सिद्ध हो सकती है lइंटरनेट या प्रिंट मीडिया में बेसिर पैर की कोरी अतिरंजीत वाहवाही की निरर्थकता असंदिग्ध है जहां पर किसी भी रचनाकार को सीधे प्रेमचंद, रेणु, निराला जैसे महान साहित्यकारों के सिहासन पर बैठा देते हैं !" भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के "अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका" के पेज पर रचनाओं पर "रचनाकारों की वाह वाही कितनी और कहां तक?" विषय परिचर्चा पर अपना विचार प्रस्तुत करते हुए, इस ऑनलाइन संगोष्ठी के मुख्य अतिथि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l
ऑनलाइन कार्यक्रम के संयोजक और संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने कहा कि- "किसी भी रचना पर रचनाकार की वाहवाही करने में आत्मसंयम नहीं खोना चाहिए और न ही दोस्ती या खेमेबाजी के प्रभाव में आना चाहिए l वाहवाही पुरस्कार का ही दूसरा रूप हैl किसी की रचना के मूल्यांकन के समय पाठक को एक निष्पक्ष और निर्भीक निर्णायक की भूमिका अदा करनी चाहिए! "
अध्यक्षता कर रही बेंगलुरु से डॉक्टर सविता मिश्रा मागधी ने पठित विचारों पर विस्तृत प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि - "ज्यादातर मामले में देखने को मिलता है कि जिनके पास पद, प्रतिष्ठा, पैसा और ऊपरी पहुंच है, वे अपनी किसी भी प्रकार की रचना पर, वाह-वाही बटोरने में सफल हो जाते हैंl ढेर सारे ऐसे पाठक भी है, जो फेसबुक व्हाट्सएप ग्रुप या कवि सम्मेलनों में बिना पढ़े सुने लाइक और वाह वाही करने में सबसे आगे रहते हैं l वाहवाही और नित्य दिन छद्म पुरस्कार बटोरने के फेर में कई रचनाकार तो रचनाओं की चोरी भी करने लगे हैं l
कुंदन आनंद जो कि "एक साहित्यिक पत्रिका के संपादक भी हैं,ने कहा कि - " प्रशंसा करने वाले लोगों से पूछना चाहिए कि उन्हें रचना क्यों पसंद है? रचना में उन्हें कौन सा गुण दिखाई दिया? जिसकी वे प्रशंसा कर रहे हैं।"
दिनेश चंद, जो हावड़ा से थे, उन्होंने कहा कि ताली मिलती है तो उत्साह बढ़ता है। और, जब उत्साह बढ़ता है तो रचना अपने आप निखर जाती है।
झारखंड से युवा कथाकार अजय के अनुसार रचना का सही आकलन होना चाहिए रचना पर आलोचना होनी चाहिए तथा रचनाकार को ख़बर होनी चाहिए कि आपकी रचना में कौन सा गुण व दोष है।
विजययानंद विजय के विचारानुसार - "ना पढ़े तारीफ करना लेखक के साथ अन्याय है। अगर सही लेखन है तो वह दिल तक अपनेआप पहुंच जाती है।
गीतकार "डॉ शांति जैन ने कहा कि गुरु और वैद्य को कठोर होना चाहिए। सही बात है। अगर गुरु कठोर नहीं होगा तो, उसका शिष्य कभी सफल नहीं होगा। चाणक्य अगर कठोर नहीं होते तो चंद्रगुप्त कभी मगध का शासक नहीं बनता। उसी तरह वैद्य अगर कठोर नहीं होगा तो रोगी कभी ठीक नहीं होगा। शायद उनकी नजर में श्रोता या पाठक को गुरु या वैद्य की भूमिका निभानी चाहिए प्रतिक्रिया देते समय।
प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने अपने विचार कुछ हटकर रखे। उनके अनुसार- "किसी की भी रचना छोटी या बड़ी नहीं होती। छोटी और बड़ी उसकी गुणवत्ता से होती है। गुणवत्ता की ही प्रशंसा चाहिए।"
राजप्रिय रानी ने बताया कि आजकल फेसबुक व्हाट्सएप पर भेड़ चाल की चलन बढ़ गया है। सही बात है जिसके मन में जो आता है वह डाल देता है और यह गलत है उसमें हम लोग देखते की बहुत सी चोरी की रचना भी होती है।"
छत्तीसगढ़ से रमाकांत श्रीवास्तव का कहना है कि - "बहुत परिश्रम से कोई भी रचना निकलती है। बस ध्यान देना होगा कि रचना अपाहिज ना हो। अपाहिज है तो उसकी प्रशंसा नहीं कर सकते हैं कितना भी कोई सुंदर बच्चा हो उसकी अगर आंखें फूटी हुई है तो मुंह से निकल ही जाता कि बहुत सुंदर बच्चा है, काश! इसकी आंखें भी अच्छी होतीं।"
माधवी भट्ट ने सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त किए।
डॉ. संगीता तोमर ने वरिष्ठ रचनाकारों पर दोषारोपण किया। उनका कहना था कि-"वरिष्ठ रचनाकार नवोदित रचनाकारों के मनोबल को तोड़ते हैं। "
सिद्धेश्वर का कहना था कि, "किसी भी रचना का निर्णायक पाठक होता है। असली रचना वही है जो पाठक के दिल को छू जाए। वाह वाही को मूर्त रूप देने के लिए ही पुरस्कारों का प्रचलन किया गया। पुरस्कार एक तरह से टॉनिक है जो हमें बल प्रदान करता है।
अध्यक्ष उद्बोधन के बाद, मुख्य वक्ता पद्मश्री डॉ शांति जैन ने कहा कि - "मेरा व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि बिना पढ़े-सुने, वाह वाही करने वाले लोगों की कमी नहीं है l मंचों पर तो स्वयं रचनाकार और संचालक एक-दूसरे से गप्पे करते रहते हैं, और रचना सुने बिना वाह-वाह करते रहते हैं ! "
कथाकार जयंत ने मौलिकता पर ध्यान दिलाया । उन्होंने कहा कि रचना पर व्यक्त प्रतिक्रिया ही वाहवाही है l किंतु यह वाह वाही रचनाकारों के लिए तब घातक होती है, जब वह पुरस्कार और प्रशंसा को विज्ञापित रूप से ग्रहण करता हैl अच्छी रचनाओं की प्रशंसा वाह वाही जरूर होनी चाहिए, इससे सृजनात्मक सक्रियता बढ़ती है, लेकिन एक मर्यादित सीमा में l आलोचना भी हो तो सकारात्मक हो, उसमें हतोतसाह के तत्व नहीं छुपे हो l "
आधारशिला (नैनीताल) के संपादक डॉ दिवाकर भट्ट ने कहा कि - "डिजिटल मीडिया के दौर में, लेखक अपनी रचनाओं को लेकर गंभीर नहीं दिख रहे हैं ! इस आभासी दुनिया में वाह वाही बटोरने के पीछे,, अपनी सृजनात्मक जीवंतता जीवंतता को दरकिनार कर रहे हैं ! "
दो घंटे तक लाइव चली इस ऑनलाइन परिचर्चा में, देशभर के एक दर्जन से अधिक रचनाकारों ने, अपने- अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए, जिनमें प्रमुख हैं - " संगीता तोमर( इंदौर ) ,कुंदन आनंद , ऋचा वर्मा, अपूर्व कुमार (हाजीपुर), नीतू सुदीप्ति नित्या (भोजपुर), विजयानंद विजय (मुजफ्फरपुर), दिनेश चंद्र (हावड़ा), अजय ( झारखंड), अंजली श्रीवास्तव( मुंबई), रमाकांत श्रीवास्तव(छत्तीसगढ़), राज प्रिया रानी, प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र आदि l
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रपट की प्रस्तुति - ऋचा वर्मा
प्रस्तोता का परिचय - सचिव, 'भारतीय युवा साहित्यकार परिषद
यह रपट श्री सिद्धेश्वर के माध्यम से प्राप्त हुई.
माध्यम का ईमेल आईडी - sisheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी- editorbejodindia@gmail.com
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