लघुकथा के विकास में पुष्करणा का विशिष्ट योगदान
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*हिंदी लघुकथा के बारे में थोड़ी भी जानकारी रखनेवाले को डॉ. सतीशराज पुष्करणा का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है. वे हिंदी लघुकथा के विकास पथ पर एक ज्योति स्तम्भ का काम करनेवाले मीनार की तरह हैं जो तीन-चार दशकों के लम्बे अंतराल में लघुकथा को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने के संघर्ष में काफी महत्वपूर्ण योगदान देते आ रहे हैं. मुझे भी पटना में रहने के दौरान इनकी गरिमामयी उपस्थिति में अनेक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिल चूका है. अब वे अपने 75 वर्ष पूरा करके अपने गृह नगर में लौटने का मन बना चुके हैं. उनके जन्मदिन के अवसर पर पटना में रहनेवाले कई राष्ट्रीय स्तर के साहित्यकारों ने उनका अभिनन्दन समारोह मनाया जिसमें कोविड के हालात के वावजूद नियंत्रित संख्या में अनेक लोग उपस्थित हुए ताकि सोशल डिस्टेंशिंग का पालन सही तरीके से हो पाए. डॉ. पुष्करणा को बेजोड़ इंडिया ब्लॉग की ओर से भी हार्दिक शुभकामनाएँ! आइये इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की रपट देखते हैं जिसे तैयार किया है जाने-माने साहित्यकार सिद्धेश्वर ने जो राष्ट्रीय स्तर के विलक्षण रेखाचित्रकार भी हैं. - हेमन्त दास 'हिम')
आधुनिक हिंदी लघुकथा के विकास में डॉ सतीशराज पुष्करणा का विशिष्ट योगदान रहा है ! सृजन, आलोचना, आंदोलन, इन क्षेत्रों में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही हैl इन तीनों क्षेत्रों में उन्होंने अविश्मरणीय कार्य किया हैl"
75वें वर्ष पूरे होने पर एवं पटना से स्थाई रूप से अपने घर की ओर प्रस्थान करने के पूर्व, उनके अभिनंदन में अमृत महोत्सव का आयोजन "साहित्य कला संसद, बिहार "और "थावे विद्यापीठ" की ओर से आयोजित एक समारोह में मुख्य अतिथि भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया.l
समारोह की अध्यक्षता करते हुए "नई धारा" नामक एक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक डॉक्टर शिवनारायण ने कहा कि पटना से जाने के बाद भी वह हमलोगों के बहुत करीब रहेंगे! उन्होंने कई लघुकथाकारों को आगे बढ़ने में सहयोग किया है. उनके आवास पर साहित्यकारों का जमघट लगा रहता थाl"
आरंभ में संस्था के सचिव और संचालक डॉ पंकज प्रियम ने पुष्पगुच्छ देते हुए डॉ पुष्करणा का अभिनंदन भी किया. अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के महासचिव डॉ ध्रुव कुमार ने उनके जीवन और साहित्य पर एक आलेख का पाठ भी किया जिसमें उन्होंने कहा कि -" डॉ पुष्करणा ने सोलह सौ लघुकथाओं की रचना की है, जिनका केंद्रीय भाव मानवउत्थान रही हैl.
डॉक्टर पुष्करणा के नेतृत्व में लघुकथा आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले लघुकथाकार सिद्धेश्वर ने कहा कि -" अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच के माध्यम से, पूरे देश भर के लघुकथाकारों का ध्यान, लघुकथा के विकास की ओर आकर्षित करने में, डॉ सतीशराज पुष्करणा के योगदान को नकारा नहीं जा सकताl उनके परामर्श पर मैंने लगातार लघुकथा सम्मेलन में अपनी लघुकथा पोस्टर प्रदर्शनी के आयोजन के रूप में सहयोग देता रहा l
सिद्धेश्वर ने उनके व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कि -" साहित्यकार से बड़ा व्यक्तित्व होता है और डॉ पुष्करणा, एक साहित्यकार के साथ-साथ व्यक्तित्व के भी धनी रहे हैं l "
वरिष्ठ लघुकथाकार रामयतन यादव ने कहा कि - " उन्होंने देश भर में सैकड़ों लोगों को लघुकथा से जोड़ने का महत्वपूर्ण काम किया है !उन के सानिध्य में मैंने लघुकथा पर कई महत्वपूर्ण आयोजन भी किए हैं l"
इस भव्य समारोह में डॉक्टर गोपाल शर्मा,, डॉक्टर नीलू अग्रवाल, राजमणि मिश्र, सिंधु कुमारी, डॉक्टर रुपेश सिंह और सुनील कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए!अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया, डॉक्टर गौरी गुप्ता ने l
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मधुर यादें.. साधुवाद
ReplyDeleteसराहना हेतु धन्यवाद.
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