Wednesday, 21 October 2020

गोरखनाथ मस्ताना रचित "धूप की लकीरें " कथा पुस्तक का लोकार्पण 18.10.2020 को पटना में सम्पन्न

फूल बचाना हो तो / पंखुड़ियों को मत मसलो !

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(विभिन्न सरकारी विभागों, बैंकों, सरकारी निगमों आदि के द्वारा लगभग 4-5 वर्ष पूर्व स्थापित किंतु नियमित रूप से सक्रिय साहित्यिक संस्था है "वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच पटना". इसके संस्थापक सदस्यों में भगवती प्रसाद द्विवेदी, मधुरेश शरण, हरेन्द्र सिन्हा, सिद्धेश्वर आदि शामिल हैं. मुझे 2018 तक पटना में रहने के दौरान वहाँ जाकर कई बार उनके कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग करने का अवसर प्राप्त हुआ. अक्सर इस संस्था की गोष्ठियाँ चाँदमारी रोड, पटना में स्थित मधुरेश शरण के आवास पर संचालित होती हैं. ध्यातव्य है कि मधुरेश जी स्वयं एक वरिष्ठ रंगकर्मी और सक्रिय कवि हैं. - हेमन्त दास 'हिम')

"बेतिया जिले के अप्रतिम हस्ताक्षर श्री गोरखनाथ मस्ताना बहूयामी व्यक्तित्व के धनी है l मंचो पर अपने गीतों के माध्यम से पहचान बनाए मस्ताना जी,  एक सफल कथाकार भी  हैं l"

वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच के बिहार इकाई के तत्वावधान में, वरिष्ठ गीतकार मधुरेश नारायण के चांदमारी रोड पटना स्थित आवास पर, आयोजित, "धूप की लकीरें " कथा पुस्तक  का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l

उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना काल  में, सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुए, साहित्यिक आयोजनों को सक्रिय रखना है खासकर ऐसी छोटी -छोटी गोष्ठियों में रचनाएं बहुत अच्छी तरह से पढ़ी और सुनी जाती हैl"

पूरी संगोष्ठी का संचालन करते  हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि -"गीतकार गोरखनाथ मस्ताना का "धूप की लकीरें"  लोकार्पित कथा संग्रह, उनके भीतर की सृजनात्मक क्षमता के विस्तार का परिचय देता है l "

पूरे समारोह के संयोजक मधुरेश नारायण  ने आगत अतिथियों साहित्यकारों के प्रति आभार प्रकट किया और धन्यवाद दिया 

आइये इस संगोष्ठी में पढ़ी गई कुछ कविताओं की बानगी देखते है -

भगवती प्रसाद द्विवेदी- 
         "फूल बचाना हो तो 
          पंखुड़ियों को मत मसलो !
          मत नीलाम करो खुशबू को
          जहर न तुम घोलो !
          जहर घोलकर मासूमों पर 
          कहर न ढाना जी !
          बचपन अगर बचाना हो
           फूल बचाना जी 

 घनश्याम -
          सिर पर रखकर पांव कहां तक  भागोगे? 
          जान  हथेली  पर  लेकर  चलना    होगा !
          जुल्मों की ज्वाला घर आंगन तक पहुंची, 
          उसे   बुझा   डालो  वरना  जलना  होगा !

 मधुरेश नारायण -
          बहते अश्कों के वेग ने हर बाँध को  तोड़ दिया,
          पत्थर दिल को भी संवेदना की ओर मोड़ दिया।
          नियति  के प्रादुर्भाव जब देखने  को मिले यहाँ,
          अपने इष्ट के आगे लोगो  ने माथा टेक दिया।

सिद्धेश्वर -
        "चील को आदमी नहीं 
         आदमी को चील नहीं, 
          उसका पेट खाता है !
          यह है अभाव /जिसने  बना दिया है 
          भूखे पेट को चांडाल !"

मो. नसीम अख्तर -
         हम नशेमन नया फिर बनाने चले हैं।
         लोग आँधी और तुफाँ उठाने चले हैं।

मनोज कुमार अम्बष्ठ -
         अवसर मिले तो मेरी बात मानिए,
          कभी-कभी अपनों का हाल जानिए!
          किस तरह बाट जोह रही निगाहें उनके 
          मिलने की तड़प देखने तो आईए।

गोरखनाथ मस्ताना -
         देश एक मंदिर है, तो सम्मान होना चाहिए 
         देवी इसकी भारती,  गुणगान होना चाहिए !
         गांव इसके देवालय, कृषक है इस के पुजारी 
         मिलेगा भारत यहां,  दो रात जिसने गुजारी.. !
         कब तलक पढ़ते रहेंगे राजपथ की कहानी !
         गांव की पगडंडियों का,  मान होना चाहिए!" 
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प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
मोबाइल -92347 60365 
ईमेल- Sidheshwarpoet.art @gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु इस ब्लॉग का ईमेल आईडी - editorbejodindia@gmail.com













3 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं

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