फूल बचाना हो तो / पंखुड़ियों को मत मसलो !
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वरिष्ठ नागरिक काव्य मंच के बिहार इकाई के तत्वावधान में, वरिष्ठ गीतकार मधुरेश नारायण के चांदमारी रोड पटना स्थित आवास पर, आयोजित, "धूप की लकीरें " कथा पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी जी ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया l
उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना काल में, सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुए, साहित्यिक आयोजनों को सक्रिय रखना है खासकर ऐसी छोटी -छोटी गोष्ठियों में रचनाएं बहुत अच्छी तरह से पढ़ी और सुनी जाती हैl"
पूरी संगोष्ठी का संचालन करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि -"गीतकार गोरखनाथ मस्ताना का "धूप की लकीरें" लोकार्पित कथा संग्रह, उनके भीतर की सृजनात्मक क्षमता के विस्तार का परिचय देता है l "
"फूल बचाना हो तो
पंखुड़ियों को मत मसलो !
मत नीलाम करो खुशबू को
जहर न तुम घोलो !
जहर घोलकर मासूमों पर
कहर न ढाना जी !
बचपन अगर बचाना हो
फूल बचाना जी
घनश्याम -
सिर पर रखकर पांव कहां तक भागोगे?
जान हथेली पर लेकर चलना होगा !
जुल्मों की ज्वाला घर आंगन तक पहुंची,
उसे बुझा डालो वरना जलना होगा !
मधुरेश नारायण -
बहते अश्कों के वेग ने हर बाँध को तोड़ दिया,
पत्थर दिल को भी संवेदना की ओर मोड़ दिया।
नियति के प्रादुर्भाव जब देखने को मिले यहाँ,
अपने इष्ट के आगे लोगो ने माथा टेक दिया।
"चील को आदमी नहीं
आदमी को चील नहीं,
उसका पेट खाता है ! यह है अभाव /जिसने बना दिया है
भूखे पेट को चांडाल !"
मो. नसीम अख्तर -
हम नशेमन नया फिर बनाने चले हैं।
लोग आँधी और तुफाँ उठाने चले हैं।
मनोज कुमार अम्बष्ठ -
अवसर मिले तो मेरी बात मानिए,
कभी-कभी अपनों का हाल जानिए!
किस तरह बाट जोह रही निगाहें उनके
मिलने की तड़प देखने तो आईए।
देश एक मंदिर है, तो सम्मान होना चाहिए
देवी इसकी भारती, गुणगान होना चाहिए !
गांव इसके देवालय, कृषक है इस के पुजारी
मिलेगा भारत यहां, दो रात जिसने गुजारी.. !
कब तलक पढ़ते रहेंगे राजपथ की कहानी !
गांव की पगडंडियों का, मान होना चाहिए!"
प्रस्तुति - सिद्धेश्वर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद.
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