आप सब को दुर्गा पूजा की शुभकामनाएँ!
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(दुर्गा पूजा का सम्पूर्ण भारत में विशेष महत्व है. यह पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, दिल्ली आदि में माँ दुर्गा के भव्य पांडाल सजाकर तो गुजरात, महाराष्टृ आदि में नवरात्र महोत्सव के अवसर पर भव्य सामूहिक गरबा नृत्य आयोजित करके मनाया जाता है. इतना ही नहीं विजयादशमी के अवसर पर रावण की प्रतिमा का विशाल समारोह में पुतला दहन होता है और बिहार, बंगाल आदि में दुर्गा प्रतिमा के विर्सर्जन के अवसर पर भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है. ये सब के सब अत्यधिक धूमधाम से,उल्लासपूर्वक और भावावेश के साथ सम्पन्न होते हैं.
देवी दुर्गा वस्तुत: शक्ति का ही दूसरा रूप है और इसे नारी रूप इसलिए दिया गया है ताकि हम नारी के असली महत्व को समझ सकें. आइये इस अवसर पर हम पूजा को मात्र कर्म कांड में सीमित न समझ कर सम्पूर्ण नारी जगत के प्रति सम्मान विकसित करें और यह मानें कि उनकी शक्ति के बिना संसार जीने लायक नहीं रह जाएगा. संसार में चहुँओर पनप रहे महिसासुरों के मर्दन के लिए देवी दुर्गा को बार बार अवतरित होना पड़ेगा और वह होती रहेगी कभी विधि-व्यवस्था के रूप में तो कभी जनचेतना के रूप में. विभिन्न क्षेत्रों में पनप रहे भ्रष्टाचार और वैचारिक संकीर्णता रूपी महिषासुर के मर्दन के लिए हमें देवी दुर्गा के दो प्रजातांत्रिक रूप का वंदन करना है अर्थात विधि-व्यवस्था का आदर करना है और अपनी चेतना को जाग्रत रखना है. - सम्पादक)
1. दुर्गा वंदना / विजय भटनागर
कदम कदम पर मां दुर्गा तूने मुझे समझाया
मां मैं ही नादान था, तेरा इशारा समझ न पाया।
मैं करता रहा मनमानी, बढती रहीं परेशानी
मां तू दयालू है पग पग पर रस्ता दिखाया।
जब भी मिली कामयाबी मैं हुआ इतना पागल
भूले जबां पर मां तेरा नाम न आया।
गम ने जब जब सताया, दोष दिया तकदीर को
कर्मों का दोष नहीं, तकदीर को दोषी ठहराया।
दुख में तेरा नाम ले,किया तुझे बहुत परेशान
मां दुख में हर पल तेरा ही ध्यान काम आया।
विजय को अंतरयामी दुर्गे का हरदम रहता है ध्यान
जब भी कदम लड़खड़ाये, मां तुझे सामने पाया।
2. मां दुर्गा प्यारी / विजय भटनागर
अंतरध्यान में खुद को खो कर
पहुंच गया मैं नभ के उस छोर पर।
सामने बैठी थी मां दुर्गा न्यारी
पूर्ण कर रही थी,सबकी मन्नतें सारी
मां ने पूछा तुम यहां कैसे आ गये
जैसे ही मां तेरे ध्यान में खो गये।
मां बोली नित ध्यान में खोया करो
ये दिव्य ज्ञान औरों को भी दिया करो।
कवि - विजय भटनागर
कवि का ईमेल आईडी - bijatkbhatnagar@gmail.com
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दुर्गा के रूप / चन्द्रिका व्यास
(1) समस्त ब्रम्हाण्ड की कल्याणी मां
दुख भंजनी संकट हरणी मां
दिव्य ज्योत की ज्वाला से
प्रकाश-पुंज तू भरती मां!
(2) तू ही आद्यशक्ति भगवती मां
तू ही विंध्येश्वरी मां
चैत्र नवरात्र की बेला में
नौ रूप धारण करती मां!
(3) कभी चण्डी कभी काली बन
दुष्टों का करती संहार
शक्ति-रूप में नारीत्व को
निरूपित करती है तू मां!
(4) अन्तर्मुख शक्ति का शिव है
तो बहिर्मुख शिव की शक्ति है
शिव-शक्ति की अर्चना, उपासना
एक दूजे की पूरक है!
(5) त्रिदेवी को अपने में समा
मां शक्ति-स्वरूपिणी कहलाती है
कर दुर्ग दैत्य का तू नाश
मां दुर्गा देवी कहलाती है!
(6) विंध्याचल पर्वत पर मां
विन्ध्यवासिनी कहलाती है
महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती
का संगधर,
स्त्री शक्ति कहलाती है!
(7) आनंद-स्वरूपिणी प्रेरक शक्ति, महाशक्ति
प्राण-जीवन दात्री मां
दे एैसा वरदान मुझे
करूं अर्चन दिन रात्रि मां!
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कवयित्री - चन्द्रिका व्यास
कवि का ईमेल आईडी - cb.vyas12@gmail.com
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दुर्गा के रूप / डॉ. हरिदत्त गौतम 'अमर'
शैलपुत्री बन किया तप का महत्तम आचरण।
हरड़ सम हर रोग तापों दोष सब करतीं हरण।।
शुद्ध भजन उपवास व्रत वातावरण विचार।
हर नारी दुर्गा लखें हो सबका उद्धार।।
शैलपुत्री बन किया संसार में गंगा सृजन।
अमृत वितरण में निरत पूज्या शिवाम्बा को नमन।।
द्वितीया ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचर्य ही सब लक्ष्यों का है सर्वोत्तम साधन।
ब्रह्मचर्य से ही हो पाता पूर्ण सफल विद्यार्जन।
ब्रह्मचर्य से वृद्धावस्था में भी झलके यौवन।
ब्रह्मचर्य ही परब्रह्म का सर्वश्रेष्ठ आराधन।
ब्रह्मचारिणी माता श्वेताम्बरधृत अक्ष कमण्डल।
स्वाधिष्ठान चक्र जागृति का दिवस दिव्य परमोज्ज्वल।
शैलसुता ही ब्रह्मचारिणी बनकर हमें बताती।
दृढ़ निश्चय संयम कर्मठता से विजयश्री आती।।
तृतीया "चन्द्रघण्टा" या
अस्त्रशस्त्रमण्डित तेजस्वी, प्रबला दसों भुजाएं।
लाल कमलमुख सुखदात्री, आलोकित दसों दिशाएं।
मंगल ही मंगल करतीं मंगलदा मंगलरूपा,
पूर्ण "चन्द्र घंटा" सा सिर पर मन्द मन्द मुस्काएं।
शुभ "मणिपुर"चक्र संचालित साधक का झट होता,
नाभिकुंड में अमृतसरोवर डुबकी भक्त लगाएं।।
चतुर्थ दिवस "कूष्माण्डा देवी"
समुचित ऊष्मा ब्रह्माण्ड स्वस्थ सप्राण त्राण किया करती।
सिंहस्था अष्टभुजा कूष्माण्डा मति, तन शक्ति दिया करती।
पा उच्च मनोबल सुदृढ़ भक्त कर हृदयस्थान ध्यान अविचल,
सुनता है दिव्य "अनाहत" ओम् ध्वनि आनन्द मग्न अविरल।।
पंचम दिवस स्कन्दमाता
परमेश्वर त्र्यम्बक मृत्युंजय शिवपरमशक्ति मम प्रिय माता।
दो विजय सदा शुभ क्षेत्रों में जय जयअतिदिव्य"स्कन्दमाता"
सुरसेनापति कुमार षण्मुख श्री कार्तिकेय विश्रुत जननी।
विजयिनी चतुर्दश भुवनों की अरिजेत्री षड्विकारहननी।।
हो सिद्ध "विशुद्धि चक्र"झट से
वाणी में अद्भुत शक्ति"अमर"।
सम्मोहन भाषण में अमेय रण सर्वजयी हुंकार प्रखर।।
षष्ठ सिवस कात्यायिनी
वैज्ञानिक ऋषियों की रक्षाहित कात्यायन की कुटिया आईं।
शुभ स्वर्णवर्ण करुणार्द्रहृदय शोधार्थी को अति वरदाईंं।।
देतीं पुरुषार्थ चतुष्टय भी अक्षय यश साथ साथ देतीं
भक्तों के"आज्ञा चक्र"सजग जगमग जग मग कर मुस्काईं।
ब्रजमण्डल की भी अधीश्वरी देतीं वर रूप कृष्ण तक को
कालिन्दी स्नानव्रता कन्याओं के अतिशय मन को भायीं।
महिषासुर वधहित सिंह बैठ प्रलयंकर अस्त्रशस्त्र बरसा
कर मेंं तलवार त्रिशूल लिये षष्ठी पूज्या वरदा माईं।
अतिशय भास्वर हैं चतुर्भुजा शुभ अभय वरद मुद्रा दोनों
माॅं"कात्यायनी"अनी लेकर अवनी पर कमनीया छायीं।।
अनी=सेना, अवनी=भूमि
सप्तम दिवस माता कालरात्रि
रूप भयंकर, बन प्रलयंकर भूत-प्रेत कुग्रहनाशक।
रासभवाहन पर आरूढ़ा राक्षस दैत्य दनुजनाशक।।
शुभंकरी कहलातीं अपने भक्तों का शुभ शुभ करतीं।
पल न लगातीं महाकाल सी काली बन ताण्डव करतीं।।
बाल बिखेरे, लाल लाल अंगारों सी आँखें फाड़े।
"कालरात्रि"माता दयालु ने सदा विजय झण्डे गाड़े।।
वज्र, खड्ग, थप्पड़, त्रिनेत्रधर श्यामवर्ण धर बाघाम्बर।
घोर नाद कर बिजली सी टूटा करतीं हैं दुश्मन पर।।
"कालरात्रि"सब सुख विधातृ श्री मातृप्रमुख की जय जय जय।
हरती हैं जो त्रास, ह्रास, भय अभयंकर कर नि:संशय।।
चक्र, भुशुण्डी, खड्ग, परिघ, कोदण्ड चण्ड चण्डी धारे।
चण्ड-मुण्ड के मुण्ड काटतीं चामुण्डा के जयकारे।।
शुम्भ निशुम्भ कुम्भ से फोड़े फाड़े झट से मधु कैटभ।
रक्तबीज के रक्तपान में अविरत रत गुंजित भू नभ।।
रक्त दन्त मुख अग्नि उगलतीं माॅं त्रिनेत्र धर वेग प्रखर।
सिंह दहाड़ों से कम्पित कर क्षण में जीतें सदा समर।
अष्टमी में महागौरी
"महागौरी" महादेवी महेश्वर की महामाया।
महातप कर हिमालयजा हुईं शिव-शंभु की जाया।।
अपर्णा बन उमा तन था हुआ तप से परम श्यामल।
शिवा गंगा नहायीं तो महागौरी हुई काया।।
सुनयनाजा परमदक्षा सदा रक्षा किया करतीं,
गणेशाम्बा जगज्जननी सदय कल्याण ही करतीं।।
दिलाये जानकी को पति परम आदर्श ( राम) पुरुषोत्तम
कराया रुक्मिणी से प्राणप्रिय श्री कृष्ण का संगम।।
करेंगे यदि महत्तम तप परमदृढ़ पूततम बन कर,
रहेंगे धर्मवृष आरूढ़ पायेंगे परमशंकर।।
सभी की वरप्रदात्री हैं, सदा ही असुरतानाशक,
उठातीं शस्त्र निज कर में मिटातीं दैत्य जगत्रासक।।"
"अमर" की पूज्य आराध्या सजीं वृष सिंह प्रिय वाहन,
जुटातीं वीर पुरुषों को अमरपुर के सभी साधन।।
पूर्णिमा चन्द्र सी स्मितमयी,गुणमयी,तपमयी,
यशमयी मम हृदयस्वामिनी।
चाॅंदनी हारश्रृंगार बेला कमल कुंद शंखेन्दु सम गौर शिवभामिनी।
शूल डमरूधरा श्वेतपट्टाम्बरा,वरप्रदा,भास्वराशुभ्र ज्यों दामिनी।
जानकीपूजिता रुक्मिणी कूजिता श्री गणेशाम्बिका श्वेतवृषवाहिनी।।
नवमी में सिद्धिदात्री रूपा माॅं
सज रहीं "सिद्धिदात्री" सहस्रार पर
नव नवल सिद्धि सन्नद्ध नव द्वार पर।
शंख, अरविन्द,कौमोदकी प्रिय गदा
हैं सुदर्शन महाचक्र कर धार कर।
पूर्ण विकसित सहस्रार सिर चक्र से
सिन्धु आनन्द उमगा अमित ज्वार भर।
हों स्फुरित ज्ञान विज्ञानमय भक्ति सब
राम अनुरक्त हों चित्त अधिकार कर।
पूर्ण संतुष्ट जीवन नियम यम सधें
नाचता चित्त-प्रह्लाद अंगार पर।
व्यास कोकिल स्वरित,शुक पढ़ें भागवत
हरि अजामिल मिलें नाम उच्चार कर।
एक पल में करें विश्वभर का भ्रमण
शंकराचार्य सब सिद्धियाॅं धार कर।
अन्नपूर्णा तुम्हीं शारदा मंगला
मधु महिष चंड से सब असुर मार कर।
नारियों में करें मातृदर्शन सदा
हो सुखी विश्व नारीत्व सत्कार कर।
झूमते राम का नाम लेकर "अमर"
धन्य मानव हो निस्वार्थ उपकार कर।।
रचयिता कवि- डॉ० हरिदत्त गौतम "अमर"
कवि - डॉ. हरिदत्त गौतम 'अमर'
कवि का ईमेल आईडी - hariduttgautam53@gmail.com
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हर रूप करामाती / कवयित्री - नेहा वैद्य
देखे रूप अनेक मैया के, हर रूप करामाती।
रहस्य-भरी इसकी महिमा का दुनिया यश है गाती।।
जब आकाल पड़ा धरती पर प्राणों पर बन आई
शाक उगाकर तन पर मैया शाकम्भरी कहलाई
एकदन्तिका, भीमा, विंध्या ये ही कहलाती।
देखे रूप अनेक मैया के, हर रूप करामाती।।
शेर-सवारी कर जगदम्बे, दुर्गति दूर करे
रूप धरे लक्ष्मी का, घर सुख से भरपूर करे
भरे झोलियाँ सबकी, सब कहते इसको दात्री।
देखे रूप अनेक मैया के, हर रूप करामाती।।
कवयित्री - नेहा वैद्य
कवयित्री का ईमेल आईडी - poetessnehavaid@gmail.com
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