Thursday 3 January 2019

दूसरा शनिवार मंच की साहित्यिक गोष्ठी 30.12.2018 को टेक्नो हेराल्ड, पटना में संपन्न

युद्ध वहाँ होते हैं / रक्त के छींटे यहाँ पड़ते हैं




यह साल जिस गति से खिसकता चला गया, उस गति से दूसरा शनिवारअपनी संगत नहीं बैठा सका जिसका हमें खेद है। साल के अंतिम दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित दूसरा शनिवारकी गोष्ठी 30 दिसंबर 2018 को अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार टेक्नो हेराल्ड, बुद्ध पार्क के सामने स्थित महाराजा काम्प्लेक्स, फ़्रेजर रोड, पटना में शुरू हुई। गोष्ठी में अवधेश प्रीत, डॉ. विनय कुमार, मंजु कुमारी, रानी श्रीवास्तव, शिवनारायण, प्रभात सरसिज, राजकिशोर राजन, शहंशाह आलम, प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा, एम. के. मधु, बी. एन. विश्वकर्मा, कौशलेंद्र कुमार, श्याम किशोर प्रसाद, सुशील कुमार भारद्वाज, नरेन्द्र कुमार, अविनाश अमन, अमित एवं आरा से आए अरुण शीतांश सम्मिलित हुए। गोष्ठी का संचालन प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा कर रहे थे। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. विनय कुमार द्वारा लिखित पुस्तक एक मनोचिकित्सक के नोट्ससे हुई।

आज की गोष्ठी सामूहिक कविता-पाठ के लिए आयोजित थी और सबसे पहले नरेन्द्र कुमार को पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने अपनी दो कविताएं नीलामीघरएवं लुकाछिपीशीर्षक से सुनायी।
ऐसा नहीं है कि
इन चेहरों की जरूरत
शहर को नहीं है
पर, वह अपने सपनों की ईंट
थोड़ी और सस्ती जोड़ना चाहता है
और ये चेहरे..!
अपने भूख की कीमत पूरी चाहते हैं” (नीलामीघर)

उन्होंने भी
महसूस किया है इधर ...
बिटिया की आँखों ने 
देखना अधिक,
बोलना कुछ कम कर दिया है” (लुकाछिपी)

अगले आमंत्रित कवि थे, अरुण शीतांश। उन्होंने कैमरामैनऔर हवाई अड्डाशीर्षक वाली कविताएं सुनायी।
न वैसा विचार
न वैसा घर
न वैसा क्रोध
एक फोटो देखकर सोच रहा हूँ
मुक्तिबोध ….!” (कैमरामैन)

हर आदमी लौटता है
इस तरह धीरे-धीरे
नदी को छूते हुए
जैसे पक्षी … … (हवाई अड्डा)

उनके पश्चात शिवनारायण, शहंशाह आलम, डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा, राजकिशोर राजन, एम. के. मधु, रानी श्रीवास्तव, अमित एवं संचालन कर रहे कवि प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा ने अपनी कविताएं सुनायीं। डॉ. बी. एन. विश्वकर्मा ने तुम, हो एकएवं मनुष्यता का लोपशीर्षक से कविताएं पढ़ी। शायर अविनाश अमन द्वारा ग़ज़लों का पाठ किया गया। सुशील कुमार भारद्वाज नर एक लघुकथा का पाठ किया।

घर जिसे चूहों दीमकों ने बनाया
चींटियों मधुमक्खियों ने बनाया
साँपों ने भी बनाया बहुविध बहुरंगा” – शहंशाह आलम

आखिर लोकतंत्र में
क्यों काबिज़ है लोक पर तंत्र?
क्यों सत्ताधारी दल, सरकार
कर रहे हैं असहमतियों पर हमले?
सत्तर पार के जनतंत्र में
कैसे होंगे फिर 
आम आदमी के सपने साकार!
क्या यही है सुशासन की सरकार?” – शिवनारायण

आखिर में चिड़िया, नदी, पोखर
सभी ने कहा
करते रहो कागज़ पर लफ़्फ़ाजी
इससे हमारी दुनिया में क्या फर्क पड़ता है
राजकिशोर राजन (कागज़ पर लफ़्फ़ाजीकविता का अंश)

नये साल मेम
हम रचेंगे शब्द
प्रेम के, स्नेह के, सद्भाव के
नये साल में
बनाएंगे हम भित्ति-चित्र
हंस के, कबूतर के और गुलाब के
उगायेंगे पेड़
नीम के, पीपल के और तुलसी के नये साल में
डॉ. एम. के. मधु

उफनती हुई नदी है
अमावस की रात
हर कोई हो
महुआ घटवारिन
कोई जरूरी तो नहीं” – रानी श्रीवास्तव

वक्त ने इतनी चालाकियां हम सब को बक्शी थी 
कि सब मगन थे अपने रोजमर्रे में और दूर सफलता की कुण्डी 
बारी-बारी से खटखटाते गरियाने लगते सरकार को
नये ज़माने ने हमें दोस्तों की इतनी इनायत बक्शी
कि पुराने दोस्त अब वक्त के तहखाने में पड़े मिलते हैं.
प्रत्यूष चन्द्र मिश्रा (पुराने दोस्तकविता का अंश)

उसके पश्चात बारी थी डॉ. विनय कुमार के कविता-पाठ की, जो हमें यक्षिणीश्रृंखला से अपनी कविताएं सुननेवाले थे। कविताओं की यह श्रृंखला शीघ्र पुस्तक रूप में पाठकों के समक्ष आनेवाली है। तो लीजिए, पहली कविता यह रही।
घोड़े वहाँ दौड़ते हैं
धूल यहाँ उड़ती है 
युद्ध वहाँ होते हैं 
रक्त के छींटे यहाँ पड़ते हैं
अग्नि वहाँ भड़कती है 
लपटें यहाँ उठती हैं 
आँधियाँ वहाँ चलती है
भोजपत्र यहाँ फड़फड़ाते हैं 
बारिश वहाँ होती है 
आत्मा यहाँ भींगती है 
हे कथावाचक
तुम किसकी कथा सुनाते हो 
कि घायल वह होता है 
और पीड़ा मुझे होती है 
उसे देखता हूँ तो लगता है 
कि जैसे मैं ही हूँ 
उसे सुनता हूँ तो लगता है 
जैसे अपना ही स्वर 
कैसी कथा के बीच खड़ा हूँ मैं 
जो उसकी भी है और मेरी भी 
जो सच भी है और झूठ भी 
जैसे क्षितिज 
जो है भी और नहीं भी !

इसके पश्चात तो सभी मंत्रमुग्ध! कवि एक के बाद एक कविता पढ़ते जा रहे थे और श्रोताओं में कोई ऊबकहीं जाने की कोई जल्दबाज़ी नहीं।

इसके पश्चात गोष्ठी के अध्यक्ष प्रभात सरसिज द्वारा कविताएं पढ़ी गयी। पढ़ी गयी कविताओं पर बात करते हुए अवधेश प्रीत ने कहा कि आज के कवियों के पास प्रतिरोध एवं प्रतिपक्ष की कविताएं हैं। आज की गोष्ठी सार्थक रही और डॉ. विनय कुमार द्वारा यक्षिणी श्रृंखला से पढ़ी गयी कविताएं इसकी महत्वपूर्ण उपलब्धि रही। उन्होंने दूसरा शनिवारकी गोष्ठी की आवृत्ति बढ़ाने और निरंतरता कायम रखने की सलाह दी। उन्होंने सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं दी।

साल के अंतिम दिवस की पूर्वसंध्या पर आयोजित गोष्ठी में एक ऐसा माहौल था जो किसी शानदार कविता-पाठ के लिए अपेक्षित होती है। ऐसी गोष्ठियों की आज के दौर में बड़ी जरूरत है।
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आलेख- नरेन्द्र कुमार 
छायाचित्र - दूसरा शनिवार
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com






  


    
  
  




  

  






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