Tuesday, 8 January 2019

मैथिली साहित्‍य संस्‍थान द्वारा आयोजित ‘मैथिली दिवस’ कार्यक्रम 7.1.2019 को पटना में संपन्न

गुजरात में ‘याज्ञवल्‍क्‍य’ गोत्र है तो मिथिला में ‘शांडिल्‍य
मैथिली के साथ साथ उर्दू फारसी पर भी चर्चा


मौक़ा था मैथिली दिवस का लेकिन मैथिली के साथ-साथ उर्दू और फारसी की भी खूब चर्चा हुई. कहा गया की इस सभी भाषाओं की प्रगति नहीं हो पा रही हैं और उन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। मिथिला की संस्‍कृति और परंपरा के विकास में तिरहुता, कैथी, फारसी और उर्दू का काफी योगदान है और इतिहास लेखन में इन सब का उपयोग अत्‍यंत आवश्‍यक है। अध्‍यक्षता करते हुए पद्मश्री डॉ. उषा किरण खान ने कहा कि ’ गोत्र है जो याज्ञवल्‍क्‍य की पत्‍नी ‘संडिला’ के नाम पर ही है। साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार से सम्‍मानित होनेवाली प्रो. डॉ. वीणा ठाकुर को सम्‍मान में ‘खोईंछ’ भरते हुए डॉ. खान ने कहा कि भाषा, साहित्‍य, संस्‍कृति और लिपि का अध्‍ययन एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। इस अवसर पर प्रो. डॉ. रत्‍नेश्‍वर मिश्र ने प्रो. डॉ. वीणा ठाकुर के पति डॉ. दिलीप कुमार झा को भी पाग एवं अंगवस्‍त्र देकर सम्‍मानित किया।

1976-80 के मैथिली आंदोलन के अपने रोचक संस्‍मरण सुनाते हुए गणपति नाथ झा ‘वैद्य’ ने 9 दिसम्‍बर, 1980 को डाक बंगला चौराहा पर धरना देने के क्रम में वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ और सुभद्र झा का प्रकरण सुनाया। उन्‍होंने कहा कि बैनर पर ‘ ई अमरुख जनता सरकार, तकरा घर-घर सँ ललकार’ पर सुभद्र झा द्वारा ‘अमरुख’ शब्‍द को नकारते हुए बैनर उतरवा दिया था। उनके जाने के बाद यात्रीजी ने अमरूख शब्‍द को रूढ़ शब्‍द एवं पहले भाषा और उसके बाद व्‍याकरण की उत्‍पति बताकर फिर से बैनर टंगवा दिया था। आगे उन्‍होंने 4 नवंबर, 1978 को गांधी मैदान के प्रदर्शन का संस्‍मरण भी सुनाया।

मिथिला में फारसी लिपि के उद्भव, विकास और अवसान पर शोधालेख पढ़ते हुए डॉ. सादिक हुसैन ने कहा कि मैथिली भाषा के ग्रंथों पर फारसी शब्‍दों के प्रभाव का विस्‍तृत अध्‍ययन करने की आवश्‍यकता है। ज्‍योतिरीश्‍वर के वर्ण रत्‍नाकर एवं विद्यापति के पदावली में फारसी शब्‍दों को स्‍थान दिया गया है। मिथिला में सूफी संत, खानकाह, मदरसा सहित कई हिन्‍दू विद्वानों ने भी फारसी को समृद्ध किया। उन्‍होंने कहा कि औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा मखीं के गुरु मुल्‍ला अबुल हसन दरभंगा के ही थे जिनके नाम पर आज भी वहां हसन चौक है। आई.सी.एच.आर. के सीनियर फेलो डॉ. अवनीन्‍द्र कुमार झा ने तिरहुता एवं कैथी लिपि का मिथिला में हुए विकास पर प्रकाश डाला।
भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण के अधिकारी डॉ. जलज कुमार तिवारी ने मिथिला के कोर्थु, पकौली, पिपरौलिया, भच्‍छी एवं कन्‍दाहा आदि शिलालेखों के आधार पर ऐतिहासिक विवरण प्रस्‍तुत किया। उन्‍होंने कहा कि पिपरौलिया अभिलेख जो दसवीं शताब्‍दी की है, में किसी महिला द्वारा अपने पिता की स्‍मृति में विष्‍णु की प्रतिमा दान किया गया है।

डॉ. वीणा ठाकुर ने कहा कि जब तक मैथिली भाषा को प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा एवं बच्‍चों को कम उम्र से ही तिरहुता लिपि का ज्ञान नहीं होगा, संस्‍कृति और परंपरा का विकास संभव नहीं है। उन्‍होंने मैथिली भाषा के मानकीकरण की आवश्‍यकता पर भी बल दिया। कार्यक्रम को सम्‍बोधित करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. डॉ. रत्‍नेश्‍वर मिश्र ने कहा कि भाषा को राजनीतिक सीमा क्षेत्र से हमेशा अलग रखने की कोशिश की जानी चाहिए क्‍योंकि यह एक उन्‍मुक्‍त विषय है।

खुदाबक्‍ख ओरिएंटल लाईब्रेरी के पूर्व निदेशक प्रो. डॉ. इम्तियाज अहमद ने कहा कि फारसी और उर्दू के पाण्‍डुलिपियों के साथ-साथ उसके जाननेवालों का संरक्षण भी आवश्‍यक है। उन्‍होंने यह भी कहा कि आज फारसी के जितने विशेषज्ञ भारत में बचे हुए हैं उससे कई गुना अधिक अमेरिका, मध्‍य पूर्व एवं ईरान आदि देशों में हैं। यदि पाकिस्‍तान की सरकारी भाषा उर्दू नहीं होती तो शायद उर्दू भाषा भी विलुप्‍त होनेवाली भाषा की श्रेणी में आ चुकी होती। उन्‍होंने मैथिली के साथ-साथ उर्दू के पुस्‍तकों के ग्राहकों की संख्‍या पर चिन्‍ता व्‍यक्‍त किया।

स्‍वागत भाषण एवं संचालन मैथिली साहित्‍य संस्‍थान के सचिव भैरव लाल दास ने किया और धन्‍यवाद ज्ञापन कोषाध्‍यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र ने किया। कार्यक्रम में पटना उच्‍च न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायाधीश अमरेश कुमार लाल, प्रो. डॉ. लेखनाथ मिश्र, प्रो. डॉ. वासुकीनाथ झा, प्रसिद्ध रंगकर्मी डॉ. प्रेमलता मिश्र ‘प्रेम’,  चेतना समिति के अध्‍यक्ष विवेकानन्‍द झा, सचिव उमेश मिश्र, डॉ. वीणा कर्ण, योगेन्‍द्र नाथ मल्लिक, सुनील कुमार कर्ण, प्रो. डॉ. नवल किशोर चौधरी, डॉ. रमानन्‍द झा ‘रमण’, प्रो. डॉ. वीरेन्‍द्र झा, प्रो. डॉ. जयदेव मिश्र, प्रो. डॉ. समरेन्‍द्र नारायण आर्य, डॉ. उमेश चन्‍द्र द्विवेदी, डॉ. चितरंजन प्रसाद सिन्‍हा, डॉ. विद्या चौधरी, प्रसिद्ध पत्रकार सुकान्‍त सोम, भारत भूषण झा, संदीप,  मनोज मनुज, मणिकान्‍त ठाकुर, सुमन कुमार दास, डॉ. चन्‍द्रप्रकाश, राजेश कुमार, रत्‍नेश वर्मा,  डॉ. शंकर सुमन सहित बड़ी संख्‍या में विद्वतजन उपस्थित थे। इस अवसर पर बासुदेव मल्लिक द्वारा लिखित ‘ मैथिल कर्ण कायस्‍थक पंजी प्रकाश’ नामक पुस्‍तक का विमोचन भी किया गया।

यह कार्यक्रम पटना के आईआईबीएम सभागार में 7.1.2019 को आयोजित हुआ. 
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आलेख- बेजोड़ इंडिया ब्यूरो 
छायाचित्र सौजन्य - शिव कुमार मिश्र 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com




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