Thursday 26 September 2019

प्रलेस एवं कालेज ऑफ कामर्स एंड साइंस द्वारा शंभु पी सिंह के कथा संग्रह "दलित बाभन" का लोकार्पण पटना में 24.9.2019 को सम्पन्न

"प्रेम और करुणा का बोध कराती है, शंभु पी सिंह की कहानियां"

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"प्रगतिशील लेखक संघ एवं कालेज आफ कामर्स एंड साइंस के संयुक्त तत्वावधान में, चर्चित कथाकार शंभु पी सिंह के कथा संग्रह " दलित बाभन" का लोकार्पण एवं विचार गोष्ठी (समकालीन हिन्दी कहानियां और बिहार) का आयोजन, कालेज आफ कामर्स के सभागार में आयोजित की गई।

शिवनारायण, डॉ. रामवचन राय, शैलेश्वर प्रसाद सिंह, अंकुश, जयप्रकाश, रामयतन प्रसाद यादव, सिद्धेश्वर, घनश्याम, नीतू नवगीत आदि की इस कार्यक्रम में उपस्थिति रही।

विशिष्ट अतिथि कालेज आफ कामर्स के प्राचार्य तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि - "दलित की भावनाओं को सकारात्मक रुप से सोचने को मजबूर करती है कथाकार शंभु पी सिंह की लोकार्पित पुस्तक "दलित बाभन" में प्रकाशित कहानियां!"

वरिष्ठ शायर कासिम खुर्शीद ने कहा कि - "लेखक की आंतरिक शब्द-यात्रा चलती रहती है। 'एक्सिडेंट', 'खेल-खेल में' इनकी श्रेष्ठ कहानियां रही है। अपनी खामोशी को तोड़ने की कोशिश की है शंभु जी ने अपनी कहानियों के माध्यम से। जातीय वर्गभेद पर लम्बी चर्चा हो सकती है। किंतु सच यह है कि हमारे समाज में दो ही जातियां हैं- 'अमीर' और 'गरीब'! जिस पर कम ही विचार किया जाता है। तुम ब्राह्मण हो कर अछूत हो और मैं दलित हो कर अछूत हूं। शंभू जी कहते हैं अपनी कहानियों में कि क्या समाज इसे स्वीकार करता है? क्या समाज सो रहा है?

संचालन करती हुईं रानी श्रीवास्तव ने कहा कि - "सिर्फ बदलाव के लिए कोई राह बदल ले, ऐसा भी नहीं होना चाहिए। सिर्फ कंटाव बाभन की कहानी इस पुस्तक में नहीं है बल्कि दहेज की विसंगतियों पर प्रहार कर लेखक ने नारी विमर्श को नए ढंग से सामने रखा है।"

नारी मन को छूने वाली कथा लेखिका मृदुला बिहारी ने "दलित बाभन " पुस्तक को लोकार्पित करते हुए कहा कि बिहार के रचनाकारों के प्रति मेरी हार्दिकता बनी रहती है। शंभू की रचनाओं में जीवन दर्शन दृष्टिगोचर होता है। इनकी कहानियों को पढ़ते वक्त मन में सद्भावना की भावना आती है। उनकी एक कहानी में अत्यंत मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत हुआ है - "खूंटे में बंधी गाय सोचती है कि मैं तो उन महिलाओं से बेहतर हूं, जो घर की परंपरागत खूंटे में इस तरह बंधी हुई है कि वह उसे तोड़ कर भाग भी नहीं सकती। मैं तो खूंटा तोड़ कर भाग भी सकती हूं।" हमारे समाज में तो, रोज नए नए सवर्ण आ रहे हैं, हमारा शोषण करने के लिए। जातिगत प्रसंग हमें दिग्भ्रमित भी करती है।

उन्होंनें कहा कि - "कहानी कभी पुरानी नहीं होती। कथावाचकों का देश है मेरा। इसलिए तीन घंटे की फिल्मी कहानी हम शौक से देख लेते हैं। शंभु की कहानियां अंतर्मुखी है। भीतर तक झकझोर कर रख देती है। सच्चाई दिल की बात जरुर सुनती है। तमाम बाधाओं कंटिकाओं के बावजूद, सत्य का पलायन नहीं होता। कहानी का उद्देश्य ही होना चाहिए - "जीवन को सुन्दर बनाना!"

कवि राजकिशोर राजन ने कहा कि- "जातीय व्यवस्था धर्म से भी अधिक मजबूत दिखाई देता है। इसलिए अगर मैं इन आस्थाओं पर इस पुस्तक के माध्यम से प्रहार करूंगा तो बात विवादास्पद हो सकती है।

इनकी कहानियों का आरंभ पति-पत्नी की झंझट वाली चर्चा से होता है जो हमारे साहित्य में एक आमूल परिवर्तन का प्रतीक है। और हमारे देश में इसका परिचायक है शंभु की कहानियां। एक उकताया हुआ पति और झल्लाई हुई पत्नी नजर आती है शंभु की जीवंत कहानियों में जो आसान बात नहीं है।   कहानी के अंत में आखिरी पैरा संवहार करती है। और वह महत्वपूर्ण भी है।

मुख्य वक्ता डॉ. शिवनारायण ने कहा कि - "कहानी का शिल्प जबरदस्त है। कहानी का अंत कहानी का प्राणतत्व है। शंभु जी प्रयोगधर्मी कथाकार हैं। देश इतना विकास कर रहा है किंतु समाजिक बदलाव नजर क्यों नहीं आता? पाठकों के सामने कथाकार यह सवाल छोड़ जाता है।

इतिहास पढ़ने की जरूरत नहीं है। आप शंभु जी की कहानी को पढ़ लीजिए, समाज की तस्वीर नजर आ जाएगी। एक कठिन समय से हमारा समाज गुजर रहा है। साहित्य में हित कल्याण से जुड़ा है और जहां हित है वहां साहित्य है। एक कथाकार समाज के शाश्वत यथार्थ को सामने रखता है। किसी भी स्थिति को जीवंत बना देता है ।

मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार डॉ. रामवचन राय ने अपने अनोखे अंदाज में कहा कि -"कौन कहता है कि हम कठिन समय से गुजर रहे हैं? उन्होंने कहा कि "कठिन नहीं, बहुत आसान समय से हम गुजर रहे हैं। बहुत सारी विचारधाराएं प्रकट करने की स्वतंत्रता है। अच्छे कपड़े, अच्छा मोबाइल, अच्छी टीवी, अच्छा फर्नीचर , क्या नहीं है हमारे पास? यहां तक कि साहित्य के साथ जैसा सलूक कर लीजिए, आज ऐसी छूट है जो पहले नहीं थी।

लोकार्पण के साथ विचार गोष्ठी का विषय दिया गया है। इस बात को सभी वक्ता लोकार्पण की बात करते हुए भूल गए कि विचार गोष्ठी का विषय भी है और दूसरे कथाकार की चर्चा करना तो हम भूल ही गए। या तो लोकार्पण के साथ विचार गोष्ठी रखी ही नहीं जाती।

मेरे विचार से कहानी तो कतरन की कला है। उपन्यास में विस्तार होता है! एक कथाकार पूरे बदन को नहीं छूता किसी एक अंग में सुई चुभोता है और अपना असर दिखला देता है।

शंभु की कहानी प्रेम और करुणा की कहानी है। प्रेम और करुणा में संतुलन बनाए रखना, कथाकारों का काम है। कहानी कम शब्दों में अधिक कहने की कला है, जो शंभु की कहानियों में दिखता है। भाषा, कला, शब्दों का करिश्मा दिखता है "सेवानिवृति" कहानी में जिसका नायक घर में प्रताड़ित महसूस करतत है।  35 साल की नौकरी करने के बाद भी परिवार वालों की अधिक अपेक्षा नायक को निराश करता है। यानी सेवानिवृत्त होकर भी वह घर में ही उपेक्षित महसूस करता है।

प्रेमचंद के बाद भी कई सार्थक रचनाकार सामने आए हैं, बिहार के कथाकारों में असीम संभावना रही है। शंभु की 'पटनदेवी' कहानी श्रेष्ठ है। धर्म के भीतर भी प्रेम की सरिता बहा दी है कथाकार ने। भाषा व संयम रखा है वरना बिहारी कवि ने तो आंख से ही नौ तरह का काम लिया है।

डॉ. अमरनाथ ने लोकार्पित पुस्तक पर कहा कि - "पुस्तक पर चर्चा करना नैतिक भी नहीं है क्योंकि मैंने इस पुस्तक को पढा़ ही नहीं लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि वैश्वीकरण के बाद विमर्श का दौड़ जो चला है वह जाति-भेद में अटक कर रह गया है। उन्होंने कहा कि साहित्यकारों में स्थानीयता की बात नहीं होनी चाहिए। राजनीति ने हमें बांट दिया है। हिंदी में लिखने वालों का वैश्विक मूल्यांकन होना चाहिए। न कि रेणु, दिनकर, नेपाली आदि बिहार के हैं या उत्तर प्रदेश के, यह सोचा जाय! क्या वे विदेशों में महत्व नहीं रखते हैं? प्रेमचंद का फलक वैश्विक स्तर पर नहीं आंका जा रहा है।

हमने एक बार कहा था कि जनवादी लेखक संघ को उर्दू नाम देने का औचित्य क्या है? कोई हिंदी नहीं समझता है क्या? क्या प्रेमचंद को उर्दू में इश्कचंद कहना चाहिए? भोजपुरी को आठवीं सूची में शामिल करने की मांग क्यों? हिंदी राष्ट्रभाषा बनने का अधिकारी इसलिए है कि देश की अस्सी प्रतिशत जनता हिन्दी समझती है। क्षेत्रीय स्तर पर मातृभाषा बनाकर  हिंदीभाषियों के साथ खिलवाड़ न कीजिए। हिन्दी को बंटने नहीं दीजिए। सारी बोलियां अलग अलग हो जाएंगी तो हिन्दी कमजोर हो जाएगी।

प्रभात सरसिज ने कहा कि मैंने इन कहानियों को नहीं पढ़ा लेकिन उनके बाहरी भाव से प्रभावित हुआ हूं। विचारकों ने दलितों पर जो विस्तार से चर्चा की है उससे मुझे यह लगा कि सबसे दलित तो नारी है। जिस पर चर्चा नहीं हुई ही नहीं।

रामयतन यादव ने कहा कि शंभु की "जनता दरबार" की तरह "दलित बाभन" भी उनकी प्रतिनिधि कहानियों का पठनीय संग्रह है। जटिल विषयों पर भी उन्होंने सरलता से कलम चलाई है।

कथाकार शंभु पी सिंह ने कहा कि - "हम वही पढ़ना चाहते हैं जैसा हम सोचते हैं। आप देखना, सुनना नहीं चाहते यह आपका दोष है, किंतु समाज में सबकुछ हो रहा है। 'गईया' कहानी लिखते हुए मेरी आंखों से आंसू निकल आए थे। दलित बाभन में मैंने जो देखा, भोगा सुना उसे ही लिखा। कहानियों को सिर्फ मनोरंजन के ख्याल से नहीं पढिए। 'कफन' के पात्र आज भी जिंदा हैं, मगर आज वे जलेबी खाने की स्थिति में नहीं, बल्कि जलेबी खिलाने की स्थिति में है। "कानों में कंगना" कहानी पर मैंने फिल्म भी बनाई है। आपको जो मसाला लगता है वह किसी को संवेदित करती है।

शैलेश्वर ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि - "कथाओं के देश में सिर्फ अपनी बात को कह कर हम संतुष्ट नहीं होते जब तक कोई उसे किसी भी रूप में अंगीकार न कर ले।

धन्यवाद ज्ञापन के समय राजकिशोर राजन ने कहा कि "हमारी पहली भाषा क्षेत्रीय बोली है, दूसरी भाषा हिन्दी है और तीसरी भाषा अंग्रेज़ी।" इसलिए सवाल यह उठता है कि देश की मातृभाषा हिन्दी क्यो?

श्रोता उनकी बातों को सुनकर समझ नहीं पा रहे थे कि वे हिन्दी के पक्ष में बोल रहे हैं या विरोध में? हमारे देश का यही दुर्भाग्य है कि अपने देश के लोग ही 'हिन्दी' के दुश्मन बन बैठे हैं? "हिन्दी में जीते और मरते हैं किंतु पक्ष लेते हैं अपनी क्षेत्रीय भाषा या अंग्रेजी भाषा का।

विचारकों ने सही कहा कि - "तुम औरत बन कर देखो, तब तुम्हें अपनी मर्दानगी समझ में आ जाएगी। इंसान का खून दूसरे इंसान के काम ही आता है, किसी भी धरम के काम नहीं आता। स्त्री विमर्श से भरी हुई है शंभु की ये कहानियां। 
.....
आलेख - सिद्धेश्वर
छायाचित्र - सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com









  





5 comments:

  1. बहुत अच्छी समीक्षा।आयोजन का विस्तृत वर्णन।बधाई

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    1. महोदय, आप जैसे समर्थ और सामाजिक सरोकार वाले कथाकार बने रहें यही कामना है।

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    2. उमदह रिपोर्ट है
      बहुत सार्थक चर्चा हुई थी
      सिद्धेश्वर जी ने बड़ी तत्परता से तसवीरें भी लगाई हैं।उनकी सेल्फ़ियाँ भी ख़ूब हैं।
      बहुत बधाई ।

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    3. बहुत धन्यवाद महोदय। blogger.com पर login करने के बाद यहां कमेन्ट करने से उसके प्रोफाइल वाला फोटो और नाम यहां दिखेंगे।

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  2. Be sure to set limits on your kid's video gaming. Your children should not play for more than a couple of hours a day since there are other activities they should focus on.
    play bazaar satta king

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